पारिस्थितिकी पिरैमिड | पारिस्थितिकी पिरैमिड कैन कैन हैं | Eco pyramid in Hindi | Ecological pyramids are cans in Hindi

पारिस्थितिकी पिरैमिड | पारिस्थितिकी पिरैमिड कैन कैन हैं | Eco pyramid in Hindi | Ecological pyramids are cans in Hindi
पारिस्थितिकी पिरैमिड
प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में पोषक संरचना (Trophic structure) एवं उत्तरोत्तर पोषक स्तरों पर कार्य जैसे उत्पादक -> शाकाहारी -> माँसाहारी को एक आलेख/ग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस प्रकार आलेखी प्रतिरूपण (graphic representation) पारिस्थितिक पिरैमिड्स (Ecological pyramids) कहलाते हैं। इन पारिस्थितिक पिरेमिड्स का आधार (base) उत्पादक स्तर एवं उत्तरोत्तर स्तर, शीर्ष (apex) बनाते हैं। पारिस्थितिक पिरेमिड्स तीन प्रकार के होते हैं-
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संख्याओं के पिरैमिड (Pyramids of Numbers)-
खाद्य शृंखला में प्रत्येक पद में जीवों की संख्या पाई जाती है। सी. ई. एल्टन (C.E. Ellon- 1927) ने सर्वप्रथम पारिस्थितिक पिरैमिड का उपयोग किया था इस वैज्ञानिक ने पिरैमिड का उपयोग विभिन्न पोषक स्तर (Trophic level) के अन्दर एवं विभव पोषक स्तरों (Potential trophic levcl) के जीव संख्या घनत्व के सम्बन्धों को दर्शाने के लिए किया था। इन पिरैमिड के द्वारा उत्पादक, शाकाहारी एवं मॉसाहारी जीवों की संख्या दर्शाते हैं। भोजन शृंखला के निम्नस्तर पर जन्तु अधिक होते हैं और आगे के स्तरों में माँसाहारी की संख्या कम होती जाती है। शीर्ष स्तर पर माँसाहारी प्राणियों की संख्या कम हो जाती है।
(i) चारागाह पारिस्थितिक तंत्र (Grass land ecosystem)- इसके अन्तरर्गत उत्पादक-पौधे आकार में छोटे होते हैं किन्त संख्या में अधिक होने के कारण यह संख्या पिरैमिड का आधार बनाते हैं।
(i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers)- खरगोश, चूहे आदि घास, पौधों की संख्या से कम होते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) सर्प आकार में छिपकली आदि की संख्या धीरे-धीरे कम होती जाती है यह माँसाहारी होते हैं। तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) पक्षी, बाज आदि इनके आकार में वृद्धि होती है, संख्या कम होती है।
इस संख्या में पिरैमिड का आधार चौड़ा, पोषक स्तर (Trophic level) पर अत्यकधिक उपलब्धता को दर्शाता है तथा ऊँचाई में वृद्धि होने के साथ पिरैमिड के आकार में कमी, उपभोक्ताओं की कम संख्या को दर्शाता है। इस प्रकार का पिरेमिड अनुलम्बित (Upright) प्रकार का होता है।
(ii) जलीय पारिस्थितिक तंत्र (Pond Ecosystem)- इस प्रकार के संख्या पिरैमिडके आधार स्तर पर पाये जाने वाली जलीय वनस्पति एवं उत्पादकों (P) की संख्या अधिक होती है। शाकभक्षी (Herbivores) या प्राथमिक उपभोक्ता (C1) इनकी संख्या में कमी होती है- मछलियाँ, कीट, रोटीफर आदि माँसभक्षी या द्वितीयक उपभोक्ता (C 2) सबसे कम संख्या में होते हैं, लेकिन आकार बड़ा होता है। यह पिरेमिड के शीर्ष (Apex) को बनाते हैं। इस प्रकार पिरैमिड अनुलम्बित (upright) प्रकार का होता है।
(iii) वन पारिस्थितिक तंत्र (Forest Ecosystem)- इस संख्या पिरैंमिड का आकार भिन्न होता है। उत्पादक (P) पेड़ बड़े आकार के तथा संख्या में कम होते हैं और पिरैमिड का आधार बनाते हैं। शाकाहारी या शाकभक्षी (C1) फलभक्षी हिरण, हाथी संख्या में अधिक होते हैं। माँसभक्षी (Carnivores) या द्वितीयक उपभोक्ता (C 2) संख्या में कमी आकार भी कुछ बड़ा होता है। इस प्रकार का संख्या पिरैमिड अनुलम्बित (upright) होता है।
(iv) परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic Food Chain)- इस प्रकार के पिरैमिड में उत्पादक (P) पेड़-पौधे आधार को बनाते हैं। आकार बड़ा संख्या कम होती है। यह शाकभक्षियों/ शाकाहारी (प्रायमरी उपभोक्ता) (C1) को आश्रय देते हैं। इन आश्रित पक्षियों के शरीर माँसाहारी (C 2) परजीवी प्राणि जूँ (lice), बग (Bug) आदि होते हैं, जिनकी संख्या अधिक होती है, आकार छोटा होता है। इन परजीवियों पर अतिपरजीवी (hyper Para-sites) जीवाणु, फफूँद (fungi) एवं ऐक्टिनोमायसिटीजी (Actinomycetes) आदि (C 2) पाये जाते हैं। इनकी संख्या अधिकम होती है। इस प्रकार का संख्या पिरैमिड उत्क्रमित/उल्ट (Inverted) प्रकार का होता है।
संख्या के पिरैमिड के द्वारा वास्तविक रूप से खाद्य श्रृंखला की स्थिति को ज्ञात नहीं किया जा सकता, विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र में, विभिन्न समुदायों में खाद्य श्रृंखला (food chain) के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं।
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जैवभार का पिरैमिड (Pyramid of Biomass)-
यह पारिस्थितिक तंत्र की खाद्य श्रृंखला एवं खाद्य जाल (food web) में जीवों के भार, केलारी मान (Caloric value) का प्रतिरूपण करता है। इस प्रकार के प्रतिरूपण (representation) द्वारा निम्न पाषक स्तर (Trophic level) से उच्च पोषक स्तरों तक जीवों मात्रात्मक (Quantitively) सम्बन्धो का पता चलता है।
(i) चारागाह एवं वन पारिस्थितिक तंत्र (Grassland Forests Ecosystem)- इस प्रकार के पिरेमिड का आधार उत्पादक (P) घोस आदि होते हैं। प्रायमरी उपभोक्ता (C1) शाकाहारी, शाकभक्षी की संख्या में कमी होती है। आकार भी छोटा होता है। द्वितीयक उपभोक्ता (C 2) मॉसभक्षी इनका आकार बड़ा लेकिन संख्या कम होती है, लेकिन जैवभार कम होता है। शीर्ष स्तर को तृतीयक उपभोक्ता (C 2) माँसाहारी होते हैं। संख्या एवं जैव भार भी कम होता है। इस प्रकार का पिरैमिड अनुलम्बित (upright) प्रकार का होता है।
(ii) जलाशय पारिस्थितिक तंत्र (Pond Ecosystem)- इस प्रकार का जैवभार पिरैमिड उत्क्रमित (Inverted) होता है क्योंकि उत्पादक (P) छोटे आकार के जीव होते हैं। इनका जैवभार बहुत कम होता है। शाकाहारी/शाकभक्षी (C 2) का जैवभार अधिक होता है, लेकिन माँसाहारी (C 2, C3) इनकी संख्या कम होती है, जैवभार अधिक होता है।
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ऊर्जा क़रा पिरैमिड (Pyramid of Energy)-
पारिस्थितिक तंत्र की संपूर्ण प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ चित्रण ऊर्जा के पिरैमिड में होता है। इस प्रकार के पिरैमिड का प्रमुख उद्देश्य उत्तरोत्तर पोषक स्तरों पर ऊर्जा प्रवाह दर एवं उत्पादकता का प्रतिरूपण करना होता है या खद्य शृंखला (food chain) एवं खाद्य जाल में एक निश्चित समय में प्रत्येक पषक स्तर (Trophic leve) पर प्रतिवर्ष संग्रहीत ऊर्जा की मात्रा को ज्ञात करना होता है।
इस प्रकार के पिरैमिड भोजन उत्पादन में कमी के कारण विभिन्न पॉषक स्तरों (Trophic level) पर ऊर्जा की उपलब्धता में कमी को दर्शाते हैं। उत्पादक (Producers = P) स्तर पर ऊर्जा की मात्रा उत्तरोत्तर स्तरों- C1, C 2, C3, से अधिक होती है, शीर्ष भाग में अत्यधिक रूप से कम होती है। इस प्रकार के पिरैमिड अनुलम्बित (upright) प्रकार के होते हैं, क्योंकि आधार (उत्पादक) से शीर्ष स्तर (उपभोक्ता) तक निरन्तर ऊर्जा मात्रा में कमी होती जाती है।
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