भारतीय गृह की प्रादेशिक विशेषताएँ Regional morphological characteristics of Indian village

भारतीय गृह की प्रादेशिक विशेषताएँ | Regional morphological characteristics of Indian village  in Hindi   

भारतीय गृह की प्रादेशिक विशेषताएँ Regional morphological characteristics of Indian village
भारतीय गृह की प्रादेशिक विशेषताएँ Regional morphological characteristics of Indian village

भारतीय गृह की प्रादेशिक विशेषताएँ | Regional morphological characteristics of Indian village  in Hindi   

हमारे देश के विभिन्न भागीं मे तापमान तथा वर्षा के वितरण और धरातलीय बनावट मे अधिक भिन्नता देखने को मिलती है जिससे प्राकृतिक वनस्पतियों तथा रहन सहन मे भी उल्लेखनीय अंतर पाया जाता है |

इसी प्रकार जहां पर्वत या पहाड़ियां स्थित होती हैं वहाँ पर घर के निर्माण हेतु पत्थर उपलब्ध हैं जबकि समतल स्थान या मैदाओं मे घर के लिए मिट्टी का प्रयोग सर्वाधिक होता है | वहाँ गृहों मे लकड़ी तथा पत्थरों का प्रयोग किया जाता है | पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों मेन उगने वाले नरकुल , बांस , ताड़ , गन्ना , लंबी लंबी घासे , आदि की पतियों का प्रयोग छ्प्परों के निर्माण के लिए किया जाता है |

  1. हिमालय का पर्वतीय प्रदेश – हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र (जम्मू और कश्मीर , हिमाचल प्रदेश , उत्तरांचल) ने स्थानीय उपलब्धता के कारण अधिकांशत: पत्थर के गृह बनाए जाते हैं जिनमें लकड़ी तथा पत्थरों का प्रयोग किया जाता है | गृहों की छतों को ढालू बनाया जाता है | काही काही पर दो या तीन मंज़िला गृह भी पाये जाते हैं | इनमें ऊपरी छत के नीचे लकड़ी के लट्ठे तथा पत्थर से कोठे बनाए जाते हैं | गृहों के द्वरा प्राय: सूर्योन्मुखी (पू० और द०) होते हैं जिससे अपेक्षित धूप प्राप्त होती है |
  2. पूर्वोत्तर भारत – उत्तर – पूर्वी पहाड़ी प्रदेशों मे पत्थर और इमारती लकड़ियों का पर्याप्त मात्रा मे उपयोग किया जाता है | यहाँ वर्षा की मात्रा भी बहुत अधिक 200 सेमी वार्षिक से भी अधिक है | पत्थर तथा लकड़ी के मिश्रित गृह यहाँ लोकप्रिय हैं | गृहों की छत प्राय: ढालू होती हैं तथा उन पर घास इत्यादि डली होती है | छप्परों के बार्जे दीवार से बाहर की ओर निकले होते हैं| घाटियों मे गृह की दीवार मिट्टी से निर्मित मिलती है |
  3. निचली गंगा घाटी – पश्चिम बंगाल मे जहां वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेमी से अधिक है, अधिकांशत: तीव्र ढाल वाले छतों के गृह बनाए जाते हैं | गृहों की दिवारे दो प्रकार से बनाई जताई है –1. पहले प्रकार मे बांस और बेंत से बनाए गए टटटरों पर मिट्टी का लेप चढ़ा कर दिवाले बनाई जाती है और उनके उपर बांस की घास , पुआल , इत्यादि की पत्ते डाले जाते हैं | 2. दूसरे प्रकार मे मिट्टी की दीवाल पर छप्पर रख दिया जाता है |

अधिकांश बंगाली गृह मे एक ही कक्ष होता है जिसके आगे औए पीछे दोनों ओर बरामदे बनाए जाते हैं | ये जीएचआर एक ही अहाते के भीतर होते हैं तथा इनकी फर्श या भूमि डेढ़ से ढाई मीटर तक उची पायी जाती है क्योकि यहा नमी की मात्रा अधिक है | आहते के भीतर प्राय: एक लघु तलब भी बनाया जाता है किसमे मछलियाँ पाली जाती है | सम्पन्न कृषकों एवं परिवारों के गृह कक्षों वाले होते हैं तथा उनके रसोई घर , बैठका , गोदाम , और पशुशाला भी होती है |

  1. मध्य गंगा घाटी – मध्य गंगा घाटी मे वर्षा की मात्रा निचली गंगा घाटी से कम होती है जिसके परिणामस्वरूप झोपड़ियों के साथ ही खपरैल वाले कच्चे गृह मिलते हैं | छतों ही ढाल तीव्र तोती है , कच्ची दीवारों वाले तथा खपरैल वाले घर दोनों प्रकार के घर प्राप्त होते हैं | यहन एक या कई कमरे वाले घर देखने को मिलते हैं जिनमे चौकोर ,T , L आकृति के घर प्राप्त होते हैं | किन्तु आदर्श मकान उसे माना जाता हैं जिसमें चारों ओर से घिरा एक आँगन और बाहर की ओर मुख्य द्वार हो तथा उससे जुड़ा बरामदा हो घर का | यहाँ अधिकन घर पूर्व या उत्तर मुखी होते हैं |
  2. उत्तरी गंगा घाटी – उत्तर प्रदेश के मध्यवर्ती भाग से पश्चिम की ओर बढ़ने पर मकानों के स्वरूप मेन परिवर्तन दिखाई देता है | मकानों के छतों के ढाल अत्यंत मंद और सपाट होते हैं | मिट्टी की दिवारे चिकनी तथा सपाट पायी जाती हैं घर प्राय: चौकोर पाये जाते हैं | यहाँ लकड़ियों , बांस , घास आदि के बनाए गए कच्चे ढांचे पर चिकनी मिट्टी लगा कर उन्हे समतल किया जाता है | कच्ची और पक्की दोनों प्रकार की दिवारे तथा खपरैल वाले छत भी आपये जाते हैं | आँगन का प्रचालन यहाँ बहुत अधिक है जी प्रकाश , हवा तथा सुरक्षा की दृष्टि से लाभदायक है |
  3. पश्चिमोत्तर मैदान – पंजाब , हरियाणा और राजस्थान मे गृह की दिवारे मिट्टी तथा ईट की बनी होती है | इनके छत सपाट होते हैं क्योकि यहा वर्षा की मात्रा बहुत कम पायी जाती है | हल्के घास वाले खपरैल भी गृह भी पाये जाते हैं मकान आयताकार तथा वर्गाकार पाये जाते हैं जिनके बीच मेन एक आँगन भी पाया जाता है | अरावली पर्वत निकट वाले क्षेत्र मे पत्थर की दीवाल वाले घर भी पाये जाते हैं |
  4. दक्षिणी पठारी भाग – यहाँ मिट्टी तथा पत्थर के दिवाल वाले घर पाये जाते हैं | छत समान्यतः खपरैल , मिट्टी या छप्पर की होती है | निर्धन परिवार घास तथा पत्तों के बने मकान या झोपड़ियों मे रहते हैं | सपाट प्रकार की छते पायी जाती है | यहाँ घर दो या तीन मजीला के भी मिलते हैं यहाँ के मकानों मेन प्राय: छज्जे भी निकले होते हैं |
  5. पश्चिमी सागरीय तट – यहाँ एकाकी गृह का प्रचलन अधिक है | वर्षा अधिक होने के कारण यहाँ गृह के छत बंगाली घरों की भाति अधिक ढाल वाले होते हैं | मलाबार तट पर सर्वांग गृह को आदर्श गृह माना जाता है जिसमें एक बड़े आँगन के चारों ओर चार गृह बनाए जाते हैं जो परस्पर मिले होते हैं आपस मे और इन घरों के छत का पनि बीच के रिक्त स्थान मे गिरता है | इन गृहों को नलुपुरा गृह भी कहा जाता है | गृहों के द्वार मुख्यत: पश्चिमी मुखी होते हैं | यहाँ की दिवाले मिट्टी की बनाई जाती हैं इसके अतरिक काही काही ईट तथा पत्थर कभी प्रयोग किया जाता है | छतों के निर्माण मेन नारियल तथा ताड़ के पत्ते तथा लकड़ियों का भी प्रयोग किया जाता है |
  6. पूर्वी सागर तट – छप्पर और खपरैल के बने गृह अधिक पाये जाते हैं | आयताकार औए एक मंजिल गृहों की बहुलता है यहाँ | चोटी चोटी वृत्ताकार झोपड़ियाँ भी यहाँ आंध्रप्रदेश केआर हिस्से मे देखने को मिलती है | इनकी दिवारे बांस तथा लकड़ी की बनी होती हैं जिनपे मिट्टी का लेप चढ़ा होता है | खपरैल या छप्पर के नीचे लकड़ी , पटरों , बांस तथा घास आदि के बने ढांचों का परत होता है |

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