होमी जहांगीर भाभा

होमी जहांगीर भाभा | Homi J. Bhabha in Hindi

होमी जहांगीर भाभा | Homi J. Bhabha in Hindi

भारत में परमाणु युग के निर्माता होमी जहांगीर भाभा। भारत उन छः बड़े राष्ट्रों में गिना जाता है जिन्हें परमाणु शक्ति के सभी रहस्य मालूम हैं। भारत चाहे तो परमाणु शक्ति द्वारा सभी प्रकार के बमों और शस्त्रों का निर्माण कर सकता है, परंतु भारत ही प्रथम देश है जिसने परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण ढंग से देश के विकास कार्यों के लिए प्रयोग करने की बात सोची – इसका श्रेय तो हमारे पहलें प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू को है – परंतु क्रियात्मक रूप दिया हमारे महान वैज्ञानिक डा० होमी भाभा ने।

डा० भाभा ने सर्वप्रथम अमेरिका में परमाणू रियक्टर स्थापित करने वाले महान वैज्ञानिक एनरिको फेर्मी के साथ रोम में काम किया था। उन्होंने एक अन्य भौतिकशास्त्री नील्स बोर के साथ भी कार्य किया था । भारत स्वतंत्र होने पर परमाणु शक्ति आयोग का गठन हुआ। डा० भाभा को उसका अध्यक्ष बनाया गया और जब केन्द्र में परमाणु शक्ति के विकास के लिए अलग से विभाग खोला गया तो उन्हें सचिव का पद दिया गया। विभाग तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अधीन था – अर्थात डा० भाभा भारत में अणु शक्ति के विकास कार्यक्रमों की स्थापना करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इसी विभाग के निश्चय के कारण 1955 में बंबई में ट्राम्बे के पास परमाणु शक्ति अनु-संधान केन्द्र की स्थापना की गयी-इस प्रकार भारत ने डा० भाभा की देख-रेख में परमाणु युग में प्रवेश किया।

डा० भाभा की प्रेरणा से 1963 में भारत ने तारापुर परमाणु बिजली घर की स्थापना की। इसके साथ परमाणु बिजली घरों की स्थापना का क्रम चालू हुआ और राजस्थान में राणा प्रताप सागर और दक्षिण में कल्पक्कम में परमाणु बिजली घरों की स्थापना की गई। इसके बाद डा० भाभा का ध्यान परमाणु रियक्टरों की स्थापना की ओर गया और ट्राम्बे के परमाणू शक्ति संस्थान में पहला रियेक्टर स्थापित किया गया। यह काम भारतीय वैज्ञानिकों ने डा० भाभा की देख-रेख में किया, किसी प्रकार की विदेशी सहायता नहीं ली गयी। केवल यूरेनियम की सप्लाई ब्रिटेन ने की थी। इसके अतिरिक्त राणा प्रताप सागर और तारापुर परमाणु बिजली घरों में भी रियेक्टर स्थापित किए गए । जारलीना नामक रियेक्टर संपूर्ण नया भारतीय साजो-सामान और किसी भी विदेशी सहायता के बिना स्थापित किया गया। 1964 में ट्राम्बे में प्लेटोनियम संयत्र की स्थापना भी की गयी।

डा० भाभा का जन्म एक पारसी परिवार में अक्टूबर 1909 में हुआ था। इनकी परिवार बहुत सुशिक्षित और समृद्ध था । इनके दादा हरपुस जी भाभा बहुत विद्वान और शिक्षा शास्त्री थे। इनके पिता ने इंग्लैंड में बैरिस्टरी पढ़ी। वे बंबई के प्रसिद्ध वकील थे। होमी भाभा बचपन से ही बहुत विलक्षण बुद्धि के बालक थे। वह सोते बहुत कम थे – या यों कहिए, नींद कम आती थी। माता-पिता इस बात से चितित थे। और उन्होंने अनेक प्रसिद्ध चिक्रित्सकों से बच्चे का परीक्षण करवाया। अंत में एक प्रसिद्ध विदेशी चिकित्सक ने परीक्षणों के बाद बताया कि बालक बहुत बुद्धिमान है, इसलिए उसका मस्तिष्क हर समय कुछ न कुछ सोचने में लगा रहता है, परंतु इससे हानि की कतई संभावना नहीं और न इसके स्वास्थ्य पर इस बात का कोई प्रभाव पड़ेगा।

प्रारम्भिक शिक्षा के बाद इन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया । पिता इन्हें इंजीनियर बनाना बाहते थे परंतु इनकी रुचि वैज्ञानिक खोजों में थी। इन्होंने पिता की आज्ञा से इंजीनियरिंग पास की परन्तु उच्च गणित और भौतिकी में भी अध्ययन जारी रखा। इंग्लैण्ड में इनकी योग्यता के कारण अनेक छात्रवृत्तियां प्राप्त हुई और डाक्टरेट करने के बाद वहीं प्राध्यापक नियुक्त हो गए। परंतु वह अन्य वैशानिकों की भांति न थे – उन्हें अपने देश से प्रेम था, अतः वे भारत आ गए और यहां पर परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में जो कुछ किया वह विश्वविदित है ।

डा० भाभा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और केवल शुष्क वैज्ञानिक ही नहीं थे उन्हें चित्रकला और संगीत में भी भारी रुचि थी । इंग्लैण्ड की एक प्रसिद्ध कला समीक्षक ने इनके चित्र देखक र आग्रह किया था कि विज्ञान छोड़कर चित्रकार बनें तो अधिक अच्छा होगा परंतु उसे क्या मालूम था कि भारत का यह महान वैज्ञानिक अपने देश के लिए क्या-क्या सपने संजोए है। उनमें देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था। उन्हें अनेक बार विदेश में आकर काम करने के प्रलोभन दिए गए परंतु वह समझते थे कि यदि सभी वैज्ञानिक विदेशों के माया-जाल में फंस गए तो अपने देश का क्या होगा।

चित्रकार तो वह थे ही, इंग्लैण्ड में उन्होंने आर्केस्ट्रा संचालन भी शौकिया किया था। इसलिए इस कला प्रेमी वैज्ञानिक ने परमाणु शक्ति से संबंधित जितनी संस्थाओं का निर्माण किया, उन्हें बाग-बगीचों, चित्रों और मूर्तियों आदि से बहुत कलात्मक ढंग से सजाया भी। परंतु दुख है कि जब उन जैसे वैज्ञानिक की भारत को महती आवश्यकता थी तो वे चल बसे । वह 24 जनवरी, 1966 के अन्त राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी के जेनेवा अधिवेशन में भाग लेने जा रहे थे कि एयर इंडिया बोइंग विमान आल्पस पर्वत मोला से टकराकर चूर-चूर हो गया और डा० भाभा सहित सभी यात्री मारे गए। उनके निधन के बाद ट्राम्बे के परमाणु अनुसंधान केन्द्र का नाम उनकी याद में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र कर दिया गया।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- [email protected]

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *