भूगोल / Geography

18 वीं शताब्दी के जर्मन भूगोलवेत्ता (German geographers of 18th century)

18 वीं शताब्दी के जर्मन भूगोलवेत्ता (German geographers of 18th century)

18 वीं शताब्दी के जर्मन भूगोलवेत्ताओं में फ्रेडरिक बुश्चिंग, क्रिस्टाफ गाटेरर, रीनहोल्ड फास्स्टर, जार्ज फास्स्टर और इमैनुअल कांट का नाम उल्लेखनीय है। इनके कार्यों और उपलब्धियों का विवरण निम्नांकित है-

(1) ऐंटन फ्रेडरिक बुश्चिंग (A. F. Bushching)

जर्मन दार्शनिक और भूगोलवेत्ता बुश्चिंग (1724-1793) ने नवीन भूगोल के लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने 1792 में छः खण्डों में ‘”यूरोप का भूगोल’ नामक ग्रंथ प्रकाशित किया । इसमें यूरोप का भूगोल राजनीतिक इकाइयों के आधार पर लिखा गया था भौगोलिक चिन्तन के इतिहास में बुश्चिंग प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने जनसंख्या घनत्व को एक भौगोलिक कारक के रूप में प्रयोग किया था। वे अपने समय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित भूगोलवेत्ता थे।

(2) क्रिस्टाफ गाटेरर (J. C. Gatterer)

गाटेरर (1727-1799) ने 1775 में ‘संक्षिप्त भूगोल’ (Abriss der Geographie) प्रकाशित की थी। गाटेर ने प्राकृतिक सीमाओं (पर्वत श्रेणी, नदी, घाटी आदि) के आधार पर विश्व को प्राकृतिक विभागों में विभक्त किया था उन्होंने प्राकृतिक प्रदेशों को भौगोलिक अध्ययन की मौलिक इकाइयों के रूप में प्रयोग करने का सुझाव दिया था। इस प्रकार वे शुद्ध भूगोल (Rein geography) के समर्थक थे।

(3) रीनहोल्ड फास्स्टर (Reinhold Forster)

रीनहोल्ड फार्स्टर (1729-1778) एक यात्री भूगोलवेत्ता थे जिनकी अध्ययन शैली वैज्ञानिक और क्रियात्मक (scientific and prnctical) थी। वोल्गा बेसिन के स्टेपी क्षेत्र में बसाव सम्बंधी समस्या पर सलाह लेने के उद्देश्य से रूसी सरकार के आमंत्रण पर रीनहोल्ड फास्स्टर 1765 में रूस गये। उनकी इस यात्रा में उनके साथ उनका 11 वर्षीय पुत्र जार्ज भी था जो आगे चलकर भूगोल में महत्वपूर्ण योगदान किया। फास्स्टर ने वहाँ जनसंख्या घनत्व, अधिवास और प्राकृतिक पर्यावरण आदि भौगोलिक तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण किया और उपयुक्त सुझाव दिया। सात वर्ष पश्चात् 1772 में कैप्टन कुक के हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर के द्वितीय अभियान में पिता-पुत्र रीनहोल्ड और जार्ज फास्स्टर दोनों प्रमुख सदस्यों में से थे। इस अभियान (यात्रा) के दौरान दोनों फार्स्टर ने पर्याप्त वानस्पतिक आँकड़े एकत्रित किये थे। इस यात्रा के तीन वर्षों तक रीनहोल्ड फास्स्टर द्वारा प्रेक्षित आंकड़ों और तथ्यों का प्रकाशन 1778 में इंग्लैण्ड में हुआ था। सम्पूर्ण रिपोर्ट छः अध्यायों में विभक्त थी- (1) पृथ्वी और भूमि, (2) जल और महासागर, (3) वायुमंडल, (4) ग्लोब की भिन्नताएं, ( 5 ) पशु एवं वनस्पति और (6) मानव प्रजाति।

रीनहोल्ड फास्स्टर ने मानव और पर्यावरण के मध्य घनिष्ठ सम्बंधों को बारीकी से देखा और समझा था। उन्होंने मानव भूगोल से सम्बंधित कई लेख लिखे थे । उन्होंने मानव पर पर्यावरण के प्रभावों, जनसंख्या स्थानांतरण आदि पर लेख प्रकाशित किया था। उन्होंने दक्षिणी महासागर के द्वीपों के वर्णन में जनसंख्या घनत्व, पर्यावरणीय संसाधन और जनसंख्या घनत्व में सम्बन्ध, मानव अधिवास आदि का वर्णन किया था। रीनहोल्ड फास्स्टर को प्रथम महान विधितंत्रीय भूगोलवेत्ता (Methodological geographer) माना जाता है। उनमें कुशल भौतिक सर्वेक्षण और वैज्ञानिक तुलना करने की अद्भुत क्षमता था।

(4) जार्ज फास्स्टर (George Forster)

जार्ज फास्स्टर (1754-1794) रीनहोल्ड फास्स्टर के पुत्र और मेधावी पर्यटक भूगोलवेत्ता थे। जार्ज फार्स्टर का सम्बंध उनके समकालीन अलेक्जेण्डर वान हम्बोल्ट से हो गया था जिसे आधुनिक भूगोल का संस्थापक माना जाता है। हम्बोल्ट जार्ज की विद्वता से बहुत प्रभावित थे और उसे मित्र तथा गुरु मानते थे। जार्ज फास्स्टर ने कैप्टन कुक के साथ हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर की लम्बी यात्रा किया था। उन्होंने प्रशांत महासागर के द्वीपों का भौगोलिक वर्णन किया था और अंग्रेजी में प्रकाशित अपने पिता रीनहोल्ड के प्रेक्षणों का जर्मन भाषा में अनुवाद भी किया था। जार्ज फास्स्टर ने प्रादेशिक भूगोल के क्रमबद्ध विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और ‘राइन के निचले क्षेत्र का भौगोलिक वर्णन’ प्रकाशित किया था। जार्ज ने अपने पिता द्वारा आरंभ की गयी अध्ययन शैली का अनुसरण करते हुए उसे और सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया था।

(5) इमैनुअल कांट (Immanuel Kant)

इमैनुअल कांट (1724-1804) अठारहवीं शताब्दी के अंतिम और सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक और भूगोलवेत्ता थे। कांट ने केवल दर्शनशास्त्र ही नहीं बल्कि खगोल विज्ञान, भूगर्भ शास्त्र और भूगोल में भी अति महत्वपूर्ण योगदान किया था। कांट प्रथम विद्वान थे जिन्होंने भूगोल को पूर्ववर्ती धर्म-बंधन से मुक्त कराकर उसे सुदृढ़ वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। इसीलिए यदि भौगोलिक चिन्तन के इतिहास को दो बृहतु भागों में विभक्त किया जाय तो वह होना चाहिए- (I) कांट के पूर्व का काल, और (2) कांट एवं पश्चात् का काल।

इमेनुअल कांट का जन्म रूस के कोनिग्सबर्ग (कालिनिनग्राड) में 22 अप्रैल 1724 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने कोनिंग्सबर्ग विश्वविद्यालय से 1742 में हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् कोनिग्सबर्ग के समीप में एक धनी परिवार में निजी शिक्षक के रूप में कार्य करना आरंभ किया था। कांट ने 1755 में कोनिग्सबर्ग विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की और 31 वर्ष की आयु में व्याख्यता बन गये। अगले 15 वर्षों तक वे दर्शन, भौतिकी, भौतिक भूगोल, गणित आदि से सम्बंधित विषयों में व्याख्यान देते रहे। 46 वर्ष की आयु में 1770 में कांट को कोनिंग्सबर्ग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर नियुक्त किया गया। वे 1780 में इसी विश्वविद्यालय में बोर्ड आफ गवर्नर्स के सदस्य और 1786 में विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन हुए।

कांट ने भौगोलिक यात्राएं नहीं किया था जिसके कारण उन्हें ‘आराम कुर्सी वाला दार्शनिक भूगोलवेत्ता’ (Armchair Philosopher Geographer) के रूप में जाना जाता है। कांट की अभिरुचि मुख्यतः भौतिक भूगोल में थी जिसके अन्तर्गत उन्होंने मानव प्रजातियों, पृथ्वी पर भौतिक क्रियाओं तथा प्राकृतिक अवस्थाओं को समाहित किया था। वे एक सैद्धान्तिक भूगोलवेत्ता श्वे जिन्होंने आनुभविक तथ्यों को वर्गीकृत करने का उल्लेखनीय प्रयास किया था।

कांट के विचार से भूगोल विज्ञान की तुलना में एक वर्णनात्मक या वर्गीकृत (Taxonomic) विषय हैं। उन्होंने इसके लिए कोरोग्रैफी (chorography) शब्द का प्रयोग किया था जिसका अर्थ है वर्णनात्मक भूगोल। उन्होंने इतिहास और भूगोल की तुलना करते हुए कहा था कि भूगोल सभी समय में रहा है और यह इतिहास का आधार है। भूगोल इतिहास की घटनाओं के विश्लेषण में सहायता प्रदान करता है। उनके अनुसार इतिहास और भूगोल दोनों संगठित विज्ञान हैं जिनके द्वारा विश्व का अध्ययन किया जाता है। इसीलिए इन दोनों के मध्य व्यापक पारस्परिक सम्बंध पाया जाता है।

कांट के अनुसार विश्व के ज्ञान का प्रथम चरण भौतिक भूगोल है जो विश्व के सम्बंध में हमारे बोधों या अवगमों (perceptions) को समझाने के लिए अनिवार्य है। भौतिक भूगोल ही एक विषय है जो प्रकृति की एक सामान्य रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यह इतिहास ही नहीं बल्कि अन्य सभी प्रकार के भूगोल का भी आधार है। भूगोल की अन्य शाखाओं का मूलाधार भौतिक भुगोल ही है।

कांट ने भूगोल को एक दार्शनिक विचारधारा प्रदान करते हुए उसके अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट करने का प्रयास किया था। उनके अनुसार भूगोल में पृथ्वी का अध्ययन मानव गृह (Home of man) के रूप में किया जाता है। कांट के भौतिक भूगोल के अन्तर्गत खगोलिकीय भूगोल, गणितीय भूगोल, पादप भूगोल, जन्तु भूगोल, राजनीतिक भूगोल आदि सम्मिलित थे।

कांट द्वारा भूगोल का वर्गीकरण (Kant’s Classification of Geography)

कांट की भाषणमाला भौतिक भूगोल (Physical Geographie) के नाम से जानी जाती है। जर्मन भाषा में प्रकाशित उनकी भाषणमाला के अनुसार पृथ्वी की व्याख्या और अध्ययन कई प्रकार से किया जा सकता है। इसके आधार पर उन्होंने भूगोल की निम्नांकित शाखाएं बताया था-

(1) भौतिक भूगोल (Physical geography)-इसके अन्तर्गत प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। विश्व के विषय में जानने के लिए यह प्रधान और अनिवार्य विषय है। यह भूगोल की समस्त शाखाओं का भी आधार है।

(2) गणितीय भूगोल (Mathematical ge0graphy)- यह पृथ्वी को गोलाभ आकाशीय पिण्ड मानकर उसके आकार, आकृति, गति आदि का अध्ययन करता है।

(3) नैतिक भूगोल (Moral geography)- इसके अन्तर्गत मानव समाज के रीति रिवाजों, परम्पराओं, चरित्रों, सभ्यताओं आदि का अध्ययन किया जाता है।

(4) राजनीतिक भूगोल (Political geography)- इसमें भौतिक पर्यावरण और राजनीतिक इकाइयों (देशों) के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन सम्मिलित होता है। यह इस बात पर बल देता है कि राजनीतिक इकाइयों की उत्पत्ति एवं विकास, उसकी स्थिरता आदि को भौतिक पर्यावरण किस प्रकार प्रभावित करते हैं।

(5) वाणिज्य भूगोल (Commercial geography)- यह मुख्यतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अध्ययन है। इसमें यह विचार किया जाता है कि किसी वस्तु का उत्पादन एक देश में कम और दूसरे देश में अधिक होने के क्या कारण हैं? क्योंकि इसके कारण ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की परिस्थिति उत्पन्न होती है।

(6) धर्मपरक भूगोल (Theological geography)- इसके अन्तर्गत भिन्न-भिन्न पर्यावरण के अनुसार धार्मिक विश्वास में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है । विश्व के विभिन्न भागों में धार्मिक विश्वासों में पाये जाने वाले अन्तर का अध्ययन करना इसका मूल उद्देश्य होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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