Tools of Internet in hindi | इंटरनेट के साधन
Tools of Internet in hindi | इंटरनेट के साधन
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इंटरनेट के साधन
इस हिस्से हम उन साधनों को जानने का प्रयास करेंगे जो इंटरनेट सुविधा को सफल बनाने का काम करते हैं। इनमें किसी कंप्यूटर को इंटरनेट से जोड़ने वाले उपकरण भी शामिल हैं तो कंप्यूटर पर इंटरनेट और संचार सुविधा संचालित करने वाले एप्लीकेशन प्रोग्राम भी। आइए, इनका संक्षिप्त परिचय लेते हैं:
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मोडेम (Modem):
मोडेम का विस्तारित शब्द है मॉडुलेटर डि मॉडुलेटर (Modulator-De-Modulator) यह एक ऐसा उपकरण है जो कंप्यूटर में मौजूद डिजिटल डाटा (Digital Data) को एनालॉग सिग्नलों (Analog Signal ) में बदलता है। एनालॉग सिग्नल वे सिग्नल होते हैं, जो टेलीफोन लाइन या अन्य संचार माध्यम के जरिये एक से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकते हैं। इसी तरह वह एनालॉग सिग्नल को डिजिटल डाटा में बदल देता है, ताकि कंप्यूटर सिग्नल को समझ सके।
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वेब ब्राउजर (Web Browser):
वेब ब्राउजर दरअसल एक तरह के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं, जो कंप्यूटर में ही स्थापित रहते हैं। इनकी मदद से उपभोक्ता इंटरनेट का इस्तेमाल सूचनाएं, डाटा की तलाश करने में कर पाता है उदाहरणः इंटरनेट एक्स्प्लोरर, गूगल का गूगल कोम ब्राउजर, मोजिला फायर फॉक्स, एप्पल सफारी आदि।
इंटरनेट क्या है | इंटरनेट का संक्षिप्त इतिहास | इंटरनेट कनेक्शन के प्रकार
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वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web):
हम जानते हैं कि वेब का अर्थ जाले से होता है। वल्ल्ड वाइड वेब का अर्थ सूचनाओं या डाटा के एक ऐसे जाल से है। जो पूरी दुनिया में विस्तृत हो और कोई भी इंटरनेट उपयोगकर्ता इस डाटाबेस से अपनी जरूरत के मुताबिक सूचना हासिल कर सकता है। यह मूलतः डाटाबेस के अलग-अलग पेजों का एक समूह है जो शीर्षकों (Titles) में बंटे रहते हैं और जिन्हें वेबसाइट कहा जाता है।
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वेबसाइट (Website):
इंटरनेट पर कोई भी जानकारी डाटाबेस संबंधित पेजों के रूप में उपलब्ध रहती है, जिन्हें वेबसाइट कहा जाता है। ब्राउजर के जरिये उपयोगकर्ता इन वेबसाइट तक पहुंच सकता है। वेबसाइट जीवन के हर आयाम, पहलू पर आधारित होती हैं। खेल, मनोरंजन, विज्ञान अलग-अलग विषय की हजारों-लाखों वेबसाइट यानी पेज इंटरनेट पर उपलब्ध रहते हैं। शोधकार्यों के लिए ये वेबसाइट शोधार्थियों (Research Fellows) की खासी मददगार साबित होती है।
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वेब पेज और एचटीएमएल (Webpuge and HTML):
एचटीएमएल एक उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है, जो वेबपेज तैयार करने में काम आती है। वेबपेज क्या है, यह हम पहले ही जान चुके हैं। कोई भी वेबसाइट कई वेबपेजों का एक समूह हो सकता है। एचटीएमएल का विस्तृत शब्दरूप है हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (Hypertext Markup Language)
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एचटीटीपी (HTTP/ http):
एचटीटीपी का विस्तृत शब्दरूप है हाइपर टेक्स्ट दासफर प्रोटोकोंल (Hypertext Transter Protocol) यह प्रोटोकॉल दरअसल वर्ल्ड वाइड वेब में मौजूद डाटाबेस को बुनियाद है, हम जब भी ब्राउजर पर किसी वेबसाइट को सर्च करने के लिए किसी वेबसाइट का नाम लिखते हैं तो उसके आगे http:// लिखा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि उपयोगकर्ता वेब पर वह फाइल तलाशना चाहता है, जो एचटीएमएल भाषा में उपलब्ध हो। एचटीटीपी को वर्ल्ड वाइड वेब की आचार संहिता भी माना जाता है।
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डोमेन नेम (Domain Name):
इंटरनेट पर एक ही विषय से जुड़ी हजारों-लाखों वेबसाइट उपलब्ध होती हैं, ऐसे में इनमें से उपयोगकर्ता के वास्तविक उपयोग वाली वेबसाइट तलाशना लंबा समय और ऊर्जा खाने वाला काम बन जाता है। ऐसे में हर वेबसाइट को जो नाम दिया जाता है वह डोमेन नेम कहलाता है। वास्तव में डोमेन नेम इंटरनेट पर किसी वेबसाइट का पता होता है। ब्राउजर पर जब भी उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट का नाम लिखता है तो ब्राउजर तुरंत लाखों वेबपेज में से संबंधित वेबपेज को आसानी से तलाश लेता है।
अब जब भी हम ब्राउजर पर किसी वेबसाइट को तलाश करते हैं तो उसे इस तरह पूरा लिखा जाता है- facebook.com इसमें शुरूआती तीन अक्षर www बताते हैं कि हम जिस पेज की तलाश कर रहे हैं, वह वर्ल्ड वाइड केब पर उपलब्ध है, जबकि बारकी के दो शब्द यानी सिcebook.com इस वेबपेज का डोमेन नेम है किन्हीं भी दो वेबसाइट का डोमेन नेम कभी भी एकसमान नहीं हो सकता है । यही वजह है कि ब्राउजर पर वेबसाइट का पूरा नाम लिखते ही अभीष्ट वेबपेज तुरंत खुल जाता है।
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यूआरएल (URL):
यूआरएल यारनी यूनिफोर्म रिसोर्स लोकेटर (Uniform Resource Locator) किसी वेबसाइट का पूरा नाम यानी वर्ल्ड वाइड वेब पर उस वेबसाइट या वेबपेज़ का पूरा पता है। इसे हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं। यदि हमें अपने विश्वविद्यालय यानी उत्तराखंड मुक्त विवि (Uttarakhand Open University) की वेबसाइट खोलनी है तो हम वेब ब्राउजर पर इस तरह लिखते हैं: http://www.uou.ae.in अब हम जानते हैं कि इस नाम के आखिरी तीन शब्द डोमेन नेम, पहले शब्द और चिहृन हाइपर टेक्स्ट प्रोटोकॉल और www वर्ल्ड वाइड वेब के परिचायक हैं। इन सभी से मिलकर वेबसाइट का जो पूरा पता बना है, वह यूआरएल कहलाता है।
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सर्च इंजन (Search Engines):
कई बार होता यह है कि उपयोगकर्ता को उस विषय की तो जानकारी रहती है, जिसके लिए उसे डाटा या सूचनाओं की आवश्यकता है, लेकिन उसे यह मालूम नहीं होता कि कौन सी वेबसाइट उसके लिए उपयोगी होगी। कई बार उसे अभीष्ट वेबसाइट का नाम भी मालूम नहीं होता है। ऐसे में सर्च इंजन इंटरनेट उपयोगकर्ता के खासे मददगार साबित होते हैं।
(गूगल सर्च इंजन पर इस तरह की वर्ड की मदद से साइट ढूंढी जाती हैं)
दरअसल, सर्च इंजन पर उपयोगकर्ता को वेबसाइट का पूरा नाम लिखने के बजाय सिर्फ कुछ कीवर्ड (Keywords) ही लिखने की जरूरत होती है । उदाहरण के लिए अगर उपयोगकर्ता समाज में बढ़ते अपराधों के विषय पर डाटा-सूचनाएं और जानकारी जुटाना चाहता है, लेकिन उसे नहीं मालूम है कि वह किस वेबसाइट पर जाए तो वह ब्राउजर पर काइम (Crime) या समाज (Society) या समाज में अपराध (Crime in Society) जैसे शब्द ही लिख सकता है। सर्च इंजन तुरंत इन शब्दों के आधार पर एक साथ कई वेबपेज की सूची उपलब्ध करा देता है, जिन पर क्लिक कर उपयोगकर्ता अभीष्ट जानकारी हासिल कर पाता है। गूगल, याहू,बिंग आदि ऐसे ही सर्च इंजन हैं।
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ईमेल (E-mail):
ई-मेल, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसी चिट्ठी या संदेश है जिसका स्वरूप इलेक्ट्रॉनिक यानी डिजिटल है। वास्तव में ई-मेल भी एक तरह का सॉफ्टवेयर है, जो उपयोगकर्ता को कोई संदेश दूसरे उपयोगकर्ता तक पहुंचाने की सुविधा देता है। ई-मेल दो प्रकार की होती हैं । पहली ब्राउजर आधारित, इस तरह की मेल में उपयोगकर्ता को इंटरनेट पर मौजूद ई-मेल सुविधा देने वाली कंपनी से जुड़ना होता है। इसके लिए उपयोगकर्ता को संबंधित कंपनी में अपना विशेष खाता बनाना होता है। जीमेल, याहूमेल, रेडिफमेल, हॉटमेल ऐसी ही कंपनियां हैं जो ई-मेल सुविधा देती हैं। यह प्रक्रिया निःशुल्क होती है। इनसे जुड़ा उपयोगकर्ता इस तरह अपना ई-मेल खाता या ई-मेल आईडी बनाता है: xyz@gmail.com दूसरी ई -मेल होती हैं उपभोक्ता आधारित। इस तरह की मेल कंप्यूटर में इंस्टॉल सॉफ्टवेयर पर ही उपलब्ध होती हैं। मसलन माइक्रोसोफ्ट ऑफिस सॉफ्टवेयर पर आउटलुक, आउटलुक एक्सप्रेस आदि।
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