कम्प्यूटर / Computer

आउटपुट डिवाइसेस (What is Output Devices in hindi)

आउटपुट डिवाइसेस (What is Output Devices in hindi)

परिचय (Introduction)

वर्तमान में कम्प्यूटर सिस्टम प्रत्येक कॉम्शियल सेण्टर, ऑफिस, एजुकेशनल इन्स्टीट्यूट आदि का आवश्यक अंग बन गया है इन सेण्टर्स तथा ऑर्गेनाइजेशन्स में कम्प्यूटर्स का प्रमुखतम कार्य सही समय पर सही जानकारी तथा परिणामों को उचित प्रारूपों में प्रदान करना है। एक साधारण कम्प्यूटर यूजर को सामान्यतया यह जानने की आवश्यकता कभी नही होती कि कम्प्यूटर कैसे प्रोसेसिंग कर रहा है, वह तो केवल कम्प्यूटर में डाटा एण्ट्री कर शीघ्रता से परिणाम प्राप्त करना चाहता है तथा ये परिणाम तथा जानकारियाँ जिन्हें कम्प्यूटर की भाषा में आउटपुट (output) कहा जाता है, यूजर तक ‘आउटपुट डिवाइसेस’ द्वारा पहुँचायी जाती हैं। इसलिए, कम्प्यूटर सिस्टम में आउटपुट डिवाइसेंस का होना आवश्यक है। यदि कम्प्यूटर सिस्टम में किसी भी प्रकार की आउटपुट डिवाइस नहीं जुड़ी है तो वह कम्प्यूटर निरर्थक है, भले ही वह तीव्र गति से तथा पूर्ण कुशलता से डाटा प्रोसेसिंग कर रहा हो।

आउटपुट डिवाइसेस अनेक प्रकार की होती हैं। डाटा के भिन्न-भिन्न स्वरूपों को ध्यान में रखकर भिन्न- भिन्न क्षमताओं वाली आउटपुट डिवाइसेस डिजाइन तथा डेवलप की जा चुकी हैं; जैसे-प्रिण्टर डाटा को पेपर पर प्रिण्ट करती आउटपुट डिवाइस की अपनी विशेषताएँ तथा कमियाँ होती हैं; प्लॉटर नामक आउटपुट डिवाइस ग्राफिक-डाटा को बेहतर गुणवत्ता के साथ प्रिण्ट करती है, यद्यपि प्रिण्टर भी ग्राफिक-डाटा प्रिण्ट कर सकता है परन्तु प्लॉटर के समान अच्छी गुणवत्ता के साथ नहीं।

कम्प्यूटर सिस्टम को जिस कार्य विशेष के लिए इन्स्टाल किया जाता है, उसी के आधार पर आउटपुट डिवाइस का भी चयन किया जाता है; जैसे-यदि कम्प्यूटर पर रिपोर्ट बनाने का कार्य किया जा रहा है तो उसके साथ ऐसी आउटपुट डिवाइस लगी होनी चाहिए जो रिपोर्ट को पेपर पर प्रिण्ट कर सके; जैसे-प्रिण्टर। इसके अतिरिक्त यदि किसी कम्प्यूटर सिस्टम पर म्यूजिक की मिक्सिंग की जा रही है तो उसके साथ स्पीकर (Speaker) जुड़े होने चाहिए।

निष्कर्षतः, कम्प्यूटर सिस्टम में सभी आउटपुट डिवाइसेस का होना आवश्यक नहीं है, कम्प्यूटर पर किए जा रहे कार्य के अनुसार एक या दो आउटपुट डिवाइसेस का कम्प्यूटर से जुड़ा होना पर्याप्त होता है।

यहाँ हम आउटपुट डिवाइसेस के प्रमुख कार्य, वर्गीकरण तथा कुछ महत्त्वपूर्ण आउटपुट डिवाइसेस का अध्ययन करेंगे।

आउटपुट डिवाइसेस के प्रमुख कार्य (Main functions of Output Devices)

हम जानते है कि कम्प्यूटर डाटा को इनपुट डिवाइसेस से डिजिटल सिग्नल्स के रूप में ग्रहण करता है, इसी स्वरूप में इन्हें प्रोसेस करता है तथा आउटपुट डिवाइसेस को आउटपुट डाटा भी इसी रूप में देता है। अब आउटपुट डिवाइसेस इन डिजिटल सिग्नल्स के रूप में मिले डाटा को ऐसे स्वरूप में परिवर्तित करती हैं जिससे वह डाटा यूजर के समझने-योग्य हो जाए। अन्य शब्दों में, आउटपुट डिवाइसेस डिजिटल सिग्नल्स के रूप में मिले डाटा को डिजिट्स, कैरेक्टर्स, ग्राफ, पिक्चर आदि के रूप में परिवर्तित कर देती हैं। आउटपुट डिवाइसेंस का दूसरा प्रमुख कार्य आउटपुट डाटा की स्पष्टता, प्रारूप तथा गुणवत्ता को बनाए रखना होता है। यदि आउटपुट की गुणवत्ता में कोई कमी रह जाती है तो उसे पढ़ने या समझने में कठिनाई हो सकती है तथा इनके आधार पर लिए गए निर्णय हानिकारक हो सकते हैं। अत: आउटपुट डाटा की स्पष्टता बनाए रखना अत्यधिक आवश्यक है।

आउटपुट डाटा का वर्गीकरण (Classification of Output Data)

आउटपुट डाटा को उसके स्वरूप के आधार पर दो प्रकार का माना जा सकता है-

(1) हार्डकॉपी (Hardcopy),

(2) सॉफ्टकॉपी (Softcopy).

(1) हार्डकॉपी (Hardcopy)

जो आउटपुट डाटा कम्प्यूटर आउटपुट डिवाइसेस के द्वारा किसी ऐसे माध्यम (media) पर प्राप्त कर लिया जाता है जिसे यूजर बिना कम्प्यूटर सिस्टम की उपस्थिति के पढ़ सके, प्रयोग कर सके तथा सुरक्षित रख सके, हार्डकॉपी कहलाता है। उदाहरण के लिए जब हम प्रिण्टर द्वारा आउटपुट को पेपर पर प्रिण्ट कर लेते हैं तो वह हार्डकॉपी कहलाता है। हार्डकॉपी तैयार करने में प्रयोग की जाने वाली डिवाइसेस, हार्डकॉपी आउटपुट डिवाइसेस (Hardcopy output devices) कहलाती है।

 (2) सॉफ्टकॉरपी (Softcopy)

जब आउटपुट डाटा यूजर द्वारा देखा तथा पढ़ा तो जा सकता है परन्तु वह उसे किसी अलग माध्यम; जैसे-पेपर पर नहीं रख सकता है तब ऐसा डाटा सॉफ्टकॉपी कहलाता है। उदाहरण के लिए, कम्प्यूटर की मैमोरी में स्टोर आउटपुट डाटा जिसे कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखा जा सकता है, सॉफ्टकॉपी डाटा कहलाता है। सॉफ्टकॉपी तैयार करने में प्रयोग की जाने वाली डिवाइसेस, सॉफ्टकॉपी आउटपुट डिवाइसेस (Softcopy output devices) कहलाती है।

प्रमुख आउटपुट डिवाइसेस (Main Output Devices)

कम्प्यूटर के आरम्भिक युग मे डाटा को पंचकार्ड तथा पेपर टेप पर प्रिन्टर द्वारा प्रिन्ट किया जाता था, इस प्रकार प्रिण्टर सर्वप्रथम आउटपुट डिवाइस थी परन्तु प्राचीन प्रिण्टर तथा आधुनिक प्रिण्टर्स के स्वरूप, डिजाइन तथा तकनीक में अत्यधिक परिवर्तन आ चुका है। प्रिण्टर सर्वाधिक प्रयोग होने वाली यूनिवर्सल आउटपुट डिवाइस है। प्रिण्टर के अतिरिक्त कम्प्युटर स्क्रीन अथवा मॉनिटर भी वर्तमान मे प्रत्येक कम्प्युटर सिस्टम का आवश्यक घटक है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रिण्टर तथा मॉनीटर दोनों ही यूनिवर्सल आउटपुट डिवाइसेस हैं। इनके अतिरिक्त कुछ विशेष रूप से प्रयोग होने वाली आउटपुट डिवाइसेस के बारे में भी प्रस्तुत अध्याय में चर्चा की गयी है।

मॉनीटर (Monitor)

कम्प्यूटर में आउटपुट डिवाइस के रूप में प्रयोग किए जाने वाले मॉनीटर को विजुअल डिस्प्ले यूनिट (Visual Display Unit, VDU) भी कहते हैं। मॉनीटर, टेलीविजन के समान दिखाई देने वाला उपकरण है जिस पर कम्प्यूटर-यूजर इनपुट किए डाटा को देख सकता है तथा प्रोसेसिंग के पश्चात् आउटपुट को भी देख सकता है। मॉनीटर को सामान्यतया उनके प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन वर्गों में बॉँटा जा सकता है-

मोनोक्रोम (Monochrome)

ग्रे-स्केल (Gray Scale)

रंगीन (Colour)

मोनोक्रोम मॉनीटर (Monochrome Monitor)

मोनोक्रोम मॉनीटर, जैसे कि नाम से स्पष्ट होता है, एकल रंग (mono = एकल; chrome = रंग) प्रदर्शित करता है। इस प्रकार के मॉनीटर आउटपुट को ब्लैक एण्ड व्हाइट (black and white) रूप में प्रदर्शित करते हैं।

ग्रे-स्केल मॉनीटर (Gray-scale Monitor)

प्रे-स्केल मॉनीटर विशेष प्रकार के मोनोक्रोम मॉनीटर ही होते हैं जो अनेक ग्रे-शेड्स (gray shades) में आउटपुर प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर छोटी स्क्रीन वाले डिवाइसेस; जैसे-लेपटॉष फोटोकॉपियर, माबाइल फोन आदि में प्रयुक्त किए जाते हैं।

रंगीन मॉरनीटर (Colour Monitor)

रंगीन मॉनीटर RGB (Red-Green Blue) सिद्धान्त पर कार्य करते हैं। इस सिद्धान्त के कारण रंगीन मॉनीटर उच्च रिजोल्यूशन में ग्राफिक्स को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं। रंगीन मॉनीटर कम्प्यूटर-मैमोरी की क्षमता के आधार पर 16 से 16 लाख रंगों में आउटपुट प्रदर्शित कर सकते हैं।

मॉनीटर में प्रयुक्त तकनीकें (Techniques used in Monitors)

(1) सी०आर०टी० मॉनीटर (CRT Monitor)

कुछ समय पहले तक मॉनीटरों में पिक्चर ट्यूब एलीमेण्ट (Picture tube element) होता था। यह ट्यूब कैथोड रे ट्यूब (Cathode Ray Tube) या सी०आर०टी० कहलाती है। सी०आर०टी० तकनीक सस्ती और उत्तम रंगीन आउटपुट देने में सक्षम है। परन्तु सी०आर०टी० से उत्सर्जित हानिकारक विकिरण तथा अधिक विजली की खपत के कारण अब ये मॉनीटर प्रचलन में नहीं हैं।

सी०आर०टी० तकनीक रास्टर ग्राफिक्स (Raster graphics) के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार, सी०आर०टी० में निर्वात (vacuum) उत्पन्न किया जाता है। मोनोक्रोम मॉनीटर में इसकी समतल सतह की ओर इलेक्ट्रॉन-उत्सर्जक यूनिट द्वारा इलेक्ट्रॉन का एक बारीक पुंज छोड़ा जाता है। समतल सतह के आन्तरिक पृष्ठ पर फॉस्फोरस पदार्थ का लेपन (Coating) होता है जो उच्च गति के इलेक्ट्रॉन के टकराव से प्रकाश अथवा चमक उत्सर्जित करता है। सतह का प्रत्येक डॉट अथवा पिक्सेल (Pixel) इलेक्ट्रॉन के एक पुंज से चमकता है।

अनेक इलेक्ट्रॉन एक ही बिन्दु पर आघात करके फॉस्फोरस को जला सकते हैं, इसलिए इलेक्ट्रॉन पुंज Z’ आकृति में गति करता हुआ सम्पूर्ण स्क्रीन पर पिक्सेलों को सक्रिय करता है। इलेक्ट्रॉन पुंज की Z- आकृति की यह गति रास्टर (Raster) कहलाती है (चित्र)। पिक्चर ट्यूब की दूसरी सतह जिसे योक (yoke) कहते हैं, चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic field) के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉन पुंज समतल सतह की ओर भेजती है।

जब समतल सतह पर स्थित कोई एक पिक्सेल कुछ क्षणों के लिए चमक कर निष्क्रिय होता है तो यह घटना रिफ्रेश (Refresh) कहलाती है। तत्पश्चात् इस पिक्सेल से इलेक्ट्रॉन पुंज टकराकर इसे पुन: सक्रिय कर देते हैं तथा यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। बार-बार इसके रिफ्रेश होने की दर, रिफ्रेश-दर (Refresh rate) कहलाती है जो सामान्यतया 30 बार प्रति सेकण्ड होती है। यदि रिफ्रेश-दर (Refresh rate) इससे कम होगी तो पिक्चर ट्यूब हिलती या लहराती हुई दिखाई देगी, क्योंकि रिफ्रेश-दर कम होने पर फॉस्फोर (फॉस्फोरस के कण) अपनी दीप्ति (Glow) कम समय में ही खो देते हैं।

इसके अतिरिक्त समतल सतह पर स्थित प्रत्येक पिक्सेल की चमक (Luminescence) इलेक्ट्रॉन पुंज की तीव्रता पर भी निर्भर करती है, जो इलेक्ट्रॉन गन (Electron Gun) की वोल्टता (Voltage) पर निर्भर करती है। यह वोल्टता कण्ट्रोल भी की जा सकती है। डिजिटल मॉनीटरों में वोल्टता की उपस्थिति और अनुपस्थिति पिक्सेल को क्रमश: ऑन (On) और ऑफ (Off) करती है। आधुनिक मॉनीटर जिन्हें एनालॉग मॉनीटर (Analog Monitor) कहते हैं, में प्रत्येक पिक्सेल की स्पष्टता को इलेक्ट्रॉन की सतत पुंज (Beam ) से नियन्त्रित किया जा सकता है। मोनोक्रोम मॉनीटर की कैथोड रे ट्यूब में यह तकनीक ग्रे-स्केल प्रभाव उत्पन्न करती है; कलर मॉनीटर की CRT में यह तकनीक डिजिटल मॉनीटर की तुलना में अधिक संख्या में रंग उत्पन्न करने की सुविधा देती है।

कलर मॉनीटर की सी०आर०टी० में अनेक अतिरिक्त भाग लगे होते हैं; जैसे- एक इलेक्ट्रॉन गन के स्थान पर तीन इलेक्ट्रॉन गन होती हैं जो RGB (Red-Green-Blue) रंगों के लिए अलग-अलग लगाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त इसमें एक पिक्सेल के लिए तीन फॉस्फोर का लेपन होता है। इससे प्रत्येक पिक्सेल एक इलेक्ट्रॉन पुंज से तीन प्रकार के रंग उत्पन्न कर सकता है। लाल, हरे और नीले रंग के अतिरिक्त आँय रंग और उनके टिंट व शेड इलेक्ट्रॉन पुंज की तीव्रता को घटा-बढ़ा कर उत्पन्न किए जाते हैं।

(2) फ्लैट पैनल मॉरनीटर (Flat Panel Monitor)

वर्तमान में सी०आर०टी० तकनीक के स्थान पर मॉनीटर और डिस्प्ले डिवाइसेस की नई तकनीक विकसित की गई हैं। जिनमें आवेशित रासायनिक तत्वों, यौगिकों की गैसों को काँच की प्लेटों के मध्य भरा जाता है। इस प्रकार की पतली डिवाइसेस फ्लैट पैनल मॉनीटर कहलाती हैं। ये डिवाइसेस हल्की, हानिकारक विकिरणों का कम उत्सर्जन करने वाली तथा विद्युत की कम खपत करने वाली होती हैं। आजकल ये डिवाइसेस लैपटॉप, डेस्कटॉप पॉमटॉप, मोबाइल फोन आदि उपकरणों में बहुधा लगाई जाती हैं।

फ्लैट पैनल मॉनीटर लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (Liquid Crystal Display-LCD) तकनीक होती है। LCD में CRT तकनीक की तुलना में कम रेजोल्यूशन (Resolution) होता है जिससे आउटपुट अधिक स्पष्ट नहीं आता है। LCD के अतिरिक्त, दो अन्य फ्लैट-पैनल तकनीक भी हैं- गैस प्लाज्मा डिस्प्ले (Gas Plasma Display-GPD) और इलेक्ट्रोल्यूमिनिसेन्ट डिस्प्ले (Electroluminescent Display-ELD)। GPD और ELD तकनीक में LCD की तुलना में अच्छा रेजोल्यूशन होता है, परन्तु अभी यह तकनीक महँगी है।

(3) प्लाज्मा मॉरनीटर (Plasma Monitor)

प्लाज्मा मॉनीटर अन्य प्रचलित मॉनीटरों की तुलना में अत्यन्त पतला होता है। यह शीशे (glass) की दो शीट के बीच में एक विशेष प्रकार की गैसे; जैसे – नेओन या जीनोन को भरकर बनाया जाता है। जेबी गैस के परमाणुओं को छोटे-छोटे इलेक्ट्रोडों (Electrodes) के मध्य वैद्युत अपघटित (Electrolysed) किया जाता है तब ये परमाणु आयनिक रूप में चमकते हैं। ग्रिड के विभिन्न बिन्दुओं पर जब एक विशेष परिमाण की वोल्टता आरोपित की जाती है तब ये आयन पिक्सेलों के रूप में कार्य करते हैं तथा एक आकृति में परिवर्तित हो जाते हैं।

(4) पेपर-व्हाइट मॉरनीटर (Paper-White Monitor)

पेपर-व्हाइट मॉनीटर सामान्यतया डॉक्यूमेण्ट डिजायनर; जैसे-डेस्कटॉप पब्लिशिंग, न्यूज पेपर, मैगजीन तथा उच्च-क्वालिटी के प्रिण्टेड डॉक्यूमेण्ट बनाते हैं, के द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के मॉनीटर व्हाइट बैकग्राउण्ड पर प्रदर्शित ब्लैक या ग्रे टैक्स्ट या ग्राफिक के मध्य उच्च कांट्रास्ट उत्पन्न करते हैं। पेपर व्हाइट मॉनीटर के एल०सी०डी० (LCD) वर्जन (version) को पेज-व्हाइट मॉनीटर (Page-White Monitor) कहते हैं। पेज-व्हाइट मॉनीटर में एक विशेष प्रकार की तकनीक प्रयोग की जाती है जिसे सुपरट्विस्ट (Supertwist) कहते हैं, जो अधिक कण्ट्रास्ट (Contrast) उत्पन्न करने में सक्षम होता है।

(5) इलेक्ट्रोल्यूमिनेसेण्ट मॉनीटर (Electroluminiscent Monitor)

इलेक्ट्रोल्यूमिनेसेण्ट मॉनीटर LCD मॉनीटर के लगभग समान ही होते हैं। इनमें अन्तर केवल इतना होता है कि इसमें ग्लास की दोनों शीट के मध्य फोसफोरेसकेंट फिल्म का प्रयोग किया जाता है। तारों के ग्रिड इस फिल्म (film) के माध्यम से वैद्युत धारा प्रवाहित करते हैं जिससे आकृति (Image) उत्पन्न हो जाती है।

प्रिण्टर (Printer)

प्रिण्टर एक हार्डकॉपी आउटपुट युक्ति (Hard copy output device) है, जिसका प्रयोग हम पेपर (Paper) पर आउटपुट प्राप्त करने के लिए करते हैं। प्रिण्टर का प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले Electronic Binary Signals को Text या Graphic के रूप में प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। हम प्रिन्टर को प्रिंटिंग के स्तर, गति, आकार, तकनीक और खर्च के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं। प्रिण्टर को मुख्यत: निम्नलिखित दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

(I) इम्पैक्ट प्रिण्टर (Impact Printer)

(II) नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर (Non-Impact Printer)

(I) इम्पैक्ट प्रिण्टर (Impact Printer)

इस प्रकार के प्रिण्टर की कार्य-विधि एक टाइपराइटर के समान होती है। इसमें एक हैड (head) होता है, जो रिबन तथा पेपर पर दबाव देकर पेपर पर कैरेकटर छापता है।

इस प्रकार के प्रिण्टर में हैंड (head) तथा पेपर के मध्य भौतिक (phvsical) सम्पर्क होता है, जिस कारण इस प्रकार के प्रिण्टर बहुत ज्यादा शोर करते हैं तथा इनकी प्रिण्टिग गुणवत्ता (printing quality) भी सामान्य स्तर की होती है। इस प्रकार के प्रिण्टर को भी दो श्रेणियों में बाँटा गया है-

(i) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर (Dot.Matrix Printer)

(ii) सॉलिड फॉण्ट प्रिण्टर (Solid Font Printer)

(i) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर (Dot Matrix Printer)- यह एक ऐसा इम्पैक्ट (Impact) प्रिण्टर है, जिसका प्रयोग ग्राफिक (Graphic) तथा टैक्स्ट (Text) के रूप में; पेपर (Paper) पर आउटपुट प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

इसमें एक हैड होता है, जिसमें 5x 7 या 7 x 9 के Matrix में पिन लगे रहते हैं। ये पिन आगे-पीछे घूमते हैं। इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के कैरेक्टर तथा इमेज बनाने में किया जाता है। किसी कैरेक्टर को बनाने के लिए प्रिण्टर के हैड (head) की कुछ पिन आगे व कुछ पिन पीछे चली जाती हैं। डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर की गति को CPS (Characters Per second) मे नापते हैं। इस प्रकार के प्रिन्टर की प्रिंटिंग स्ंतोषजनक होती है तथा सस्ती भी पड़ती है। इनकी गति 30 से 600 CPS (Characters Per Second) होती है।

(ii) सॉलिड फॉण्ट प्रिण्टर (Solid Font Printer)- इस प्रकार के प्रिण्टर में प्रिण्ट किए वाले कैरेक्टर्स का एक पूरा समूह होता है। ये कैरेक्टर लोहे के हैड पर उभरे होते हैं (जैसे कि एक टाइपराइटर में होते हैं)। यह हैड रिबन तथा पेपर पर चोट करके कैरेक्टर को छापता है। इस प्रकार के प्रिण्टर से इमेज आदि प्रिण्ट नहीं की जा सकती है।

इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं-

(a) डेजी व्हील प्रिण्टर (Daisy Wheel Printer)

(b) ड्रम प्रिण्टर (Drum Printer)

(c) चेन प्रिण्टर (Chain Printer)

(a) डेजी व्हील प्रिण्टर (Daisy wheel Printer)- यह सालिड फॉण्ट इम्पैक्ट प्रिण्टर (Solid Font Impact Printer) की श्रेणी में आता है। इसका यह नाम, इसके हैड के कारण होता है। जो आकार में गुलबहार (Daisy) के  फूल के जैसा होता है। इसमें एक गोल घूमने वाला पहिया (wheel) होता है, जिसमें प्रिण्ट किए जाने वाले कैरेक्टर (लोहे की तीलियों के द्वारा लगाकर) डेजी फूल के आकार का हैड बनाते हैं।

प्रिण्टिग के समय हैड घूमता रहता है तथा जब उचित कैरेक्टर अपनी सही स्थिति में आता है तो प्रिण्टर का हथौड़ा (hammer) इस कैरेक्टर पर चोट करता है, जिससे वह कैरेक्टर रिबन तथा पेपर पर टकराकर पेपर पर छप जाता है। यह प्रिण्टर एक समय में एक ही कैरेक्टर छापता है, अत: इसे कैरेक्टर प्रिन्टर (Character printer) की श्रेणी मे रखा गया है। इसकी गति 30-90 CPS (Characters Per Second) के लगभग होती है।

(b) ड्रम प्रिण्टर (Drum Printer)- इसमें एक घूमने वाला बेलनाकार ड्रम होता है, जिसमें प्रिण्ट किए जाने वाले विभिन्न कैरेक्टर के समूह उभरे होते हैं। इसी कारण इसको ड्रम प्रिण्टर कहते हैं। छापे जाने के समय यह ड्रम घूमता रहता है तथा जब उचित कैरेक्टर आता है तो प्रिण्टर में लगा एक हथौड़ा (hammer) इस पर चोट करता है, जिससे पेपर पर कैरेक्टर प्रिण्ट हो जाता है।

यह प्रिण्टर ड्रम का एक घूर्णन (घुमाव) पूर्ण होने पर एक लाइन प्रिण्ट करता है, इसलिए इसे लाइन प्रिण्टर (Line printer) की श्रेणी में रखा गया है।

(c) चेन प्रिण्टर (Chain Printer)- यह सॉलिड फॉण्ट (Solid Font) श्रेणी का प्रिण्टर है, जिसमें एक घूमने वाली चेन होती है। इसकी प्रत्येक कड़ी पर एक कैरेक्टर उभरा होता है, जिस कारण इसे चेन प्रिण्टर (Chain Printer) कहते हैं।

इस प्रिण्टर में प्रिण्टिग के समय चेन घूमने लगती है तथा जब उचित कैरेक्टर आता है तो प्रिण्टर में लगा हथौड़ा इस पर चोट करता है, जिससे पेपर पर कैरेक्टर छप जाता है। यह प्रिन्टर छें का एक घूर्णन पूर्ण होने पर एक लाइन छापता है। इसी कारण इसको भी लाइन प्रिण्टर (Line printer) की श्रेणी में रखा गया है ।

(II) नॉन-इम्पैक्ट प्रिण्टर (Non-Impact Printer)

इस प्रकार के प्रिण्टर में हैड, प्रिण्टिग हैड (Printing head) तथा पेपर के बीच भौतिक (physical ) सम्पर्क नहीं होता है। पेपर से हैड का स्पर्श न होने के कारण ये प्रिण्टर शोर उत्पन्न नहीं करते हैं।

इस प्रकार के प्रिण्टर में पेपर पर कैरेक्टर छापने के लिए कैमिकल हीटिंग (Chemical heating) तथा लेजर तकनीक (Laser technology) आदि का प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित प्रिण्टर आते हैं-

(i) इंक जैट प्रिण्टर (Ink Jet Printer)

(ii) लेजर प्रिण्टर (Laser Printer)

(i) इंक जैट प्रिण्टर (Ink Jet Printer)- इसे ‘वबल जैट प्रिण्टर’ (Bubble Jet Printer) भी कहते हैं। इस प्रकार के प्रिण्टर द्वारा किसी भी कैरेक्टर तथा इमेज को प्रिण्ट किया जा सकता है। इस प्रिण्टर में छोटी-छोटी बूँदों के द्वारा कैरेक्टर तथा इमेज को प्रिण्ट करने का सिद्धान्त प्रयोग में लाया जाता है।

इस प्रकार के प्रिण्टर में विशेष प्रकार की आवेशित स्याही (Magnetized ink) का प्रयोग किया जाता है, इस स्याही की छोटी-छोटी बूँदों को निर्देशित करके ही पेपर पर Image या अक्षर की प्रिण्टिंग होती है। इंक जैट प्रिण्टर की गति को PPM (Pages Per Minute) में नापते हैं।

पेपर से भौतिक स्पर्श (physical touch) न होने के कारण ये দष्टर शोर उत्पन्न नहीं करते हैं। इंक जैट प्रिण्टर की सहायता से रंगीन करिट भी निकला जा सकता है। कलर इंक जेट प्रिण्टर में चार रंग के नोजल होते हैं-नीला, लाल, पीला व काला। इन रंगों के मिश्रण से लगभग सभी रंग तैयार हो सकते हैं।

(ii) लेजर प्रिण्टर (Laser Printer)- इसकी प्रिण्टिग की गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है। इसके द्वारा किसी भी प्रकार के कैरेक्टर तथा इमेज को प्रिण्ट किया जा सकता है।

इस प्रकार के प्रिण्टर की प्रिण्टिग की गति 6 से 24 PPM (Pages Per Minute) होती है, परन्तु इसमें प्रिण्टिग खर्च अधिक आता है। इस प्रकार के प्रिण्टर में लेजर किरणों का प्रयोग किया जाता है। प्रिण्टिंग के समय लेजर किरणें इमेज के अनुसार एक दर्पण द्वारा ड्रम पर पड़ती हैं, जिस कारण ड्रम के उन स्थानों पर ऋणावेश (Negative charge) उत्पन्न हो जाता है। अब ड्रम को टोनर (Toner) से गुजारा जाता है, जिसमें भरी स्याही ड्रम पर चिपक जाती है। जब यह ड्रम पेपर के सम्पर्क में आता है तो यह स्याही पेपर पर चिपक जाती है, जिससे पेपर पर इमेज प्रिण्ट हो जाती है, अब पेपर को heating unit द्वारा गर्म किया जाता है जिससे स्याही पेपर पर मजबूती से चिपक जाती है।

प्लॉटर (Plotter)

प्लॉटर एक आउटपुट डिवाइस है जो चार्ट (Charts), चित्र (Drawings), नक्शे (Maps), त्रि-विमीय रेखाचित्र (Three dimensional diagrams) और अन्य प्रकार की हार्डकॉपी (Hard Copy) प्रिण्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है।

प्लॉटर सामान्यत: दो प्रकार के होते हैं-

(i) ड्रम पेन प्लॉटर (Drum Pen Plotter)

(ii) फ्लैट बेड प्लॉटर (Flat Bed Plotter)

(i) डूरम पेन प्लॉटर (Drum Pen Plotter)

यह प्लॉटर एक ऐसा आउटपुट डिवाइस है, जिसमें पेन (Pen) प्रयुक्त होते हैं, जो गतिशील होकर पेपर पर आकृति तैयार करते हैं। इसमें पेपर एक ड्रम पर चढ़ा रहता है, जो आगे खिसकता जाता है। पेन कम्प्यूटर द्वारा कण्ट्रोल होता है। यह प्लॉटर एक मैकेनिकल आर्टिस्ट (mechanical artist) के समान कार्य करता है। इसमें रंगों का चयन होने के पश्चात् यह अधिक आकर्षक लगने लगता है। कई पेन प्लॉटरों में फाइबर टिप्ड पेन (Fiber tipped pen) होते हैं। यदि उच्च क्वालिटी की आवश्यकता हो तो तकनीकी ड्राफ्टिंग पेन (Technical Drafting Pen) प्रयोग किया जाता है। पेन (Pen) की गति एक बार में एक इंच (inch) के हजारवें हिस्से के बराबर होती है। कई रंगीन प्लोटरों मे चार या चार से अधिक पेन (Pen) होते हैं। प्लॉटर एक सम्पूर्ण चित्र (Drawing) को कुछ इंच प्रति सेकण्ड की दर से प्लॉट करता है।

(ii) फ्लैट बेड प्लॉटर (Flat Bed Plotter)

इस प्लॉटर में पेपर को स्थिर अवस्था में एक बेड (Bed) या ट्रे (Tray) में रखा जाता है। एक भुजा (Arm) पर पेन (Pen) चढ़ा रहता है जो मोटर से पेपर पर ऊपर-नीचे (Y-अक्ष) और दाएँ-बाएँ (X- अक्ष) गतिशील होता है। कम्प्यूटर पेन को X-Y अक्ष की दिशाओं में नियन्त्रित करता है और पेपर पर आकृति चित्रित करता है।

कम्प्यूटर आउटपुट माइक्रोफिल्म, COM (Computer Output MicrofilIm)

यह कम्प्यूटर आउटपुट को माइक्रोफिल्म मीडिया (Microfilm Media) पर संगृहीत (store) करने की तकनीक है। माइक्रोफिल्म मीडिया एक माइक्रोफिल्म रील या एक माइक्रोफिश्च कार्ड (Microfitche Card) के रूप में प्रयुक्त होता है।

माइक्रोफिल्म व माइक्रोफिश्च को पढ़ने के लिए मिनी कम्प्यूटर में एक अलग डिवाइस होती है जो आउटपुट को अलग-अलग फ्रेम्स (Frames) में प्रदर्शित करती है।

स्पीच सिंथेसाइजर (Speech Synthesizer)

स्पीच सिंथेसाइजर एक ऐसी डिवाइस है जो लिखित शब्दों तथा वाक्यों को ध्वनि (sound) में परिवर्तित करती है। इसका प्रयोग भाषा का सही उच्चारण सोखने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग आँख से वंचित यूजर भी करते हैं। यह डिवाइस स्पीकर की सहायता से आउटपुट प्रस्तुत करती है।

टर्मिनल्स (Termlnals)

मेनफ्रेम कम्प्युटर के पारस्परिक वातावरण मे प्रत्येक यूजर मेनफ्रेम कम्प्युटर के रिसोर्सेस का प्रयोग एक विशेष प्रकार की डिवाइस से करते हैं। इस विशेष डिवाइस को टर्मिनल कहते हैं। टर्मिनल तीन प्रकार के होते हैं-

(i) डम्ब टर्मिनल (DumbTerminal)

(ii) स्मार्ट टर्मिनल (Smart Terminal)

(iii) इंटेलिजेण्ट टर्मिनल (Intelligent Terminal)

(1) डम्ब टर्मिनल (Dumb Torminal)

इनं टर्मिनलों का अपना सी०पी०यू० या स्टरिज डिवाइस नहीं होता है। इसका कार्य केवल इनपुट तथा आउटपुट डिवाइसेस की सहायता से चलता है। ये मुख्य कम्प्यूटर जो कहीं और स्थापित होते हैं, के विण्डो के रूप में कार्य करता है।

(i) स्मार्ट टर्मिनल (Smart Terminal)

स्मार्ट टर्मिनल कुछ प्रोसेसिंग कार्यों को सम्पन करने की क्षमता रखता है जबकि इसमें भी इसका अपना कोई स्टोरेज डिवाइस (Storage device) नहीं होता है।

(ii) इंटेलिजेण्ट टर्मिनल (Intelligent Terminal)

ये अपने आप में पूर्ण कम्प्यूटर होता है तथा यह एक कम्प्यूटर के बहुत बड़े नेटवर्क से जुड़ा होता है। यह कम्प्यटर पर सामान्यत: होने वाले सभी कार्यों को करने में सक्षम होता है।

इन र्मिनलों को रेलवे रिजर्वेशन काउण्टर पर देख सकते हैं जहाँ टिकट बनाने के लिए केवल मॉनीटर, की-बोर्ड, माउस तथा प्रिण्टर हो प्रयुक्त होते हैं, जबकि मुख्य कम्प्यूटर अन्यत्र होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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