कम्प्यूटर का इतिहास | History of Computer in Hindi
कम्प्यूटर का इतिहास | History of Computer in Hindi
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कम्प्यूटर का इतिहास
असीमित क्षमता तथा गति वाला आधुनिक कम्प्यूटर, जिसे वर्तमान में हम अपने समक्ष देखते हैं, कोई ऐसा अकेला आविष्कार नहीं है जो केवल एक व्यक्ति की खोज का परिणाम है अपितु यह विगत सैकड़ों वर्षों में अनेक व्यक्तियों द्वारा किए गए अनगिनत आविष्कारों, विचारों तथा विकास का परिणाम है।
गणना के लिए सर्वप्रथम उपयोग में आने वाला उपकरण अबेकस (Abacus) था। जिसका आविष्कार लगभग 3000 वर्ष पूर्व चीन में हुआ था। यह एक मैकेनिकल डिवाइस (mechanical device) है जो आज भी चीन, जापान सहित एशिया के अनेक देशों में अंकों की गणना के लिए काम आती है। ‘अबेकस” में धातु या लकड़ी का बना एक चौकोर फ्रेम होता है। जिस में अनेक कठोर तारें लगी होती हैं। इन तारों में पक्की मिट्टी के गोल टुकड़े, जिनमें आर-पार छिट्र होते हैं पिरो दिए जाते हैं इन गोल टुकड़ों को बीड (bead) कहते हैं। प्रत्येक बीड का एक निश्चित मान होता है जिसके आधार पर ‘अबेकस’ गणना करने में सक्षम हो जाता है। प्रारम्भ में अबेकस को केवल व्यापारिक गणनाओं में प्रयोग किया जाता था यह उपकरण अंकों पर विभिन्न मैथमैटिकल ऑपरेशन्स; जैसे जोड़, घटा, गुणा आदि करने के काम आता है।
शताब्दियों बाद अनेक अन्य यान्त्रिक मशीनें अंकों की गणना के लिए विकसित की गई। फ्रांसीसी दार्शनिक ब्लेज पास्कल (Blaise Pascal ) ने एक मैकेनिकल डिजिटल कैलकुलेटर (mechanical digital calculator) का निर्माण सन् 1642 में किया था जो दशमलव अंकों का जोड़ व घटा कर सकता था। इस यन्त्र को एडिंग मशीन (adding machine) कहा जाता था, क्योंकि यह केवल जोड़ या घटा कर सकती थी। यह मशीन घड़ी तथा ओडोमीटर (वाहनों में प्रयुक्त होने वाला गतिमापक यन्त्र) के सिद्धान्त पर कार्य करती थी। उसमें अनेक दाँतेदार चकरियाँ (toothed wheels) लगी हुई थीं जो घूमती थीं। इन चकरियों के दाँतों पर छपे अंक; 0 से 9 तक एक स्थानीय मान (place value); जैसे इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि को दर्शाते थे। इसमें प्रत्येक चकरी स्वयं से पिछली चकरी के एक चक्कर लगाने पर एक अंक पर घूमती है। ब्लेज पास्कल की इस एडिंग मशीन को पास्केलाइन (Pascaline) कहा जाता है जिसे प्रथम योन्त्रिक गणना यन्त्र होने का गौरव प्राप्त है। वाहनों के स्पीडोमीटर में पास्केलाइन यन्त्र ही कार्य करता है।
सन् 1694 में इस यन्त्र में जर्मनी के वैज्ञानिक गॉटफ्रिड लीबनिज (Gotfried Leibniz) ने कुछ संशोधन किए जिससे यह यन्त्र गुणा व भाग करने में भी सक्षम हो गया। इसे रेकोर्निंग मशीन (Reckoning machine) या लीबनिज चक्र (Leibniz wheel) कहा गया।
इसी क्रम में एक मैकेनिकल कैलकुलेटर ऐरिथ्मोमीटर (Arithmometer) थॉमस डे कॉमर (Thomas de Colmar) ने सन् 1820 में बनाया था।
सन् 1801 ई० में फ्रांसीसी बुनकर जोसेफ जैकार्ड (Joseph Jacquard) ने कपड़ा बुनाई की मशीन के लिए एक ऐसा लूम तैयार किया, जो पंचकार्ड के छिद्रों से कण्ट्रोल होता था। यह लूम अंगुलियों से छिद्रों की स्थिति बदलने से नए-नए डिजाइन या पैटर्न स्वत: देता था। विभिन्न डिजाइनों के पंचकार्ड तैयार करके पहले ही डिजाइन निश्चित कर लिए जाते थे; अत: इस आविष्कार से किसी क्रिया के लिए पहले से ही कोड (code) तैयार करने का सिद्धान्त सामने आया।
सन् 1812 ई० में चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage), जो एक अंग्रेज गणितज्ञ तथा आविष्कारक थे, ने पाया कि जेकार्ड लूम का सिद्धान्त सांख्यिक गणना (statistical calculations) करने के काम भी आ सकता है। उन्होंने पाया कि यदि किसी मशीन में गणना करने के नियम और विधि को पहले से दिया जाए तो मशीन बिना किसी सहायता के गणना कर सकती है। इस प्रकार से बैबेज ने ‘Stored Program for Data Processing’ का सिद्धान्त दिया। इसी सिद्धान्त ने कम्प्यूटर तथा कैलकुलेटर के मध्य अन्तर को स्पष्ट किया। चाल्ल्स बैबेज को ‘कम्प्यूटर का जनक’ (Father of Computer) कहा जाता है।
चार्ल्स बैबेज द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्त ने उन्नीसवीं शताब्दी के उस काल को कम्प्यूटर के इतिहास का स्वर्णिम युग बना दिया। उन्होंने सन् 1822 ई० में एक मशीन का निर्माण किया जिसका खर्च ब्रिटिश सरकार ने वहन किया। इस मशीन का नाम डिफरेन्स इंजन (Difference Engine) रखा गया। इस मशीन में गियर (gears) तथा शाफ्ट (shafts) लगे थे तथा यह भाप (steam) से चलती थी। इसके निर्माण का प्रमुख उद्देश्य उस समय प्रचलित हस्त-निर्मित गणना सारणियों में आने वाली त्रुटियों का निस्तारण करना था। यह मशीन जोड़ करने में सक्षम थी। अन्य कैलकुलेशन्स के लिए इसमें Finite Difference Technique का उपयोग किया जाता था इस कार्यक्रम को वित्तीय सहायता प्राप्त होने के बाद भी यह पूर्णता प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि इसे पूरा करने के लिए आवश्यक मैकेनिक तकनीक उस समय पर्याप्त विकसित नहीं थी।
इसी क्रम में सन् 1833 ई० में चार्ल्स बैबेज ने डिफरेन्स इंजन का विकसित रूप तैयार किया, जिसे ऐनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) कहा गया। इस यन्त्र की सामान्य विशेषताओं के कारण इसे हम पहला सामान्य उपयोग वाला कम्प्यूटर (General Purpose Computer) कह सकते हैं।
ऐनालिटिकल इंजन की संरचना वर्तमान के कम्प्यूटरों की संरचना का आधार है। इसका उद्देश्य किसी भी मैथमैटिकल कम्प्यूटिंग को ऑटोमैटिक रूप से करना था। इसमें ऑपरेशन्स की श्रृंखला को कण्ट्रोल करने के लिए बैबेज ने पंचकार्डों का प्रयोग किया।
चार्ल्स बैबेज के ऐनालिटिकल इंजन को प्रारम्भ में व्यर्थ मानकर इसकी उपेक्षा की गई जिस कारण बैबेज को घोर निराशा हुई। परन्तु बाद में ऐडा ऑगस्टा (Ada Augusta), जो प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन (Lord Byron) की पुत्री थीं, ने ऐनलिटिकल इंजन में गणना के निद्देशों को विकसित करने में बैबेज को सहायता प्रदान की। जिस प्रकार चाल्ल्स बेबेज को कम्प्यूटर का जनक कहा जाता है, उसी प्रकार ऐडा ऑगस्टा को ‘संसार के प्रथम प्रोग्रामर’ का गौरव प्राप्त है। ऑगस्टा को सम्मानित करने के उद्देश्य से एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम ऐडा (ADA) रखा गया।
सन् 1890 ई० में कम्प्यूटर के इतिहास में एक और महत्त्वपूर्ण घटना हुई। वह घटना थी – अमेरिका का जनगणना-कार्य। सन् 1890 ई० से पहले जनगणना का कार्य पारम्परिक विधियों से किया जाता था। इन पारम्परिक विधियों से सन् 1880 ई० की जनगणना में सात वर्ष लगे थे। इस कार्य को कम समय में सम्पन्न करने के उद्देश्य से हर्मन होलेरिथ (Herman Hollerith) ने ‘सेंसस टेबुलेटर’ (Census Tabulator) नामक मशीन बनाई जिसमें पंचकार्डों को विद्युत द्वारा संचालित किया गया। इस मशीन की सहायता से जनगणना का कार्य मात्र तीन वर्षों में सम्पन्न हो गया जो एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। सन् 1896 ई० में होलेरिथ ने पंचकार्ड यन्त्र बनाने की एक कम्पनी ‘टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी’ (Tabulating Machine Company) स्थापित की। सन् 1911 ई० में इस कम्पनी का अन्य कम्पनी के साथ विलय हुआ तथा कम्पनी का नाम परिवर्तित होकर ‘कम्प्यूटर टेबुलेटिंग रिकॉर्डिग कम्पनी’ (Computer Tabulating Recording Company) हो गया। सन् 1924 ई० में उस कम्पनी का नाम पुन: परिवर्तित होकर इण्टरनेशनल बिजनेस मशीन (International Business Machine IBM) हो गया जो वर्तमान में कम्प्यूटर-निर्माण में विश्व की अग्रणी कम्पनियों में से एक है।
कुछ प्रसिद्ध कम्प्यूटर्स (Some Famous Computers)
कम्प्यूटर के इतिहास के विषय में और बेहतर ढंग से जानने के लिए कुछ प्रसिद्ध कम्प्यूटर्स का उल्लेख परमावश्यक है, जो निम्नलिखित है-
मार्क-1 (Mark-1)
सन् 1940 में इलेक्ट्रो – मैकेनिकल कम्प्यूटिंग (Electro-mechanical computing) शिखर तक पहुँच चुकी थी। आई०बी०एम० (IBM) के चार शीर्ष इंजीनियर्स तथा डॉ० हॉवर्ड आइकेन (Dr. Howard Aiken) ने सन् 1944 में एक मशीन को विकसित किया जिसका आधिकारिक नाम ऑटोमैटिक सिक्वेन्स कण्ट्रोल्ड कैलकुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) रखा। बाद में इस मशीन का नाम ‘मार्क-I’ रखा गया। यह मशीन प्रथम ऑटोमैटिक कम्प्यूटिंग डिवाइस थी। यह मशीन भी पंचकार्ड सिद्धान्त पर आधारित थी। यह मशीन अत्यन्त भरोसेमन्द थी, परन्तु इसकी संरचना बहुत जटिल और इसका आकार बहुत बड़ा था। इसमें 500 मील लम्बाई के तार व 30 लाख विद्युत संयोजन थे। यह 6 सेकण्ड में एक गुणा तथा 12 सेकण्ड में एक भाग की क्रिया कर सकती थी। इस मशीन के द्वारा पाँच प्रकार की कैलकुलेशन्स (जमा, घटा, गुणा, भाग तथा सारणी का उपयोग) की जा सकती थी। इस मशीन की गति आज के कम्प्यूटर की तुलना में बहुत कम थी। यह मशीन वास्तविकता में इलेक्ट्रो-मैकेनिकल डिवाइस (Electro-mechanical device) थी; क्योंकि दोनो मेकैनिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक पुजों का उपयोग इसकी संरचना में किया गया।
ए०बी०सी० (ABC)
मार्क-I की तकनीक, नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक के आने से पुरानी हो गई। नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक में कोई मैकेनिकल पुर्जा संचालित करने की आवश्यकता नहीं थी, जबकि मार्क-I एक इलेक्ट्रिकल मशीन थी। नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक मशीनों में विद्युत की उपस्थिति और अनुपस्थिति का सिद्धान्त कार्य करता था। चूँकि इसमें कोई चलायमान पुर्जा नहीं था, इसलिए यह इलेक्ट्रो-मैकेनिकल मशीन से तेज गति की मशीन बन गई। सन् 1945 में ऐटनासोफ (Atanasofi) ने एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन; ए०बी०सी० को विकसित किया। ए०बी०सी० (ABC) शब्द ऐटनासोफ बेरी कम्प्यूटर (Atanasoff Berry Computer) का संक्षिप्त रूप है। ए०बी०सी० प्रथम इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर था।
एनिएक (ENIAC)
एनिएक अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक न्यूमेरिकल इण्टीग्रेटर एण्ड कैलकुलेटर (Electronic Numerieal Integrator and Calculator, ENIAC) का आविष्कार प्रो० जे० पी० एकट (Prot. J. P. Aikert) तथा जॉन मुचली (John Mauchly) ने किया। एनिएक एक इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर था। एनिएक का विकास सेना की सहायता के लिए किया गया था। एनिएक की गति मार्क-I से तो अधिक थी, परन्तु इसका उपयोग बहुत संकुचित था तथा इसके प्रोग्राम्स को बोर्ड पर तारों द्वारा लिखा जाता था। इन्हीं कारणों से इस कम्प्यूटर पर प्रोग्राम को बदलना या संशोधन करना अत्यन्त कठिन था। इन समस्याओं के होते हुए भी इस कम्प्यूटर का उपयोग लम्बे समय तक होता रहा।
एडवैक (EDVAC)
एनिएक कम्प्यूटर की समस्याओं का हल एक नए सिद्धान्त स्टोर्ड प्रोग्राम (Stored Program) द्वारा हुआ, जिसका प्रतिपादन डॉ० जॉन वॉन न्यूमैन (Dr. John Van Neumann) ने किया। स्टोर्ड प्रोग्राम के सिद्धान्त के अनुसार निर्देशों तथा जानकारियों को इस क्रम में लिखा जाता है कि वे स्वतः ही क्रिया कर सकें तथा जिन्हें कम्प्यूटर मेमोरी में स्टोर किया जा सके। इस नई तकनीक का नाम एडवैक रखा गया। एडवैक (EDVAC) का विस्तारित रूप है-इलेक्ट्रॉनिक डिस्क्रीट वेरिऐबल ऑटोमैटिक कंप्यूटर (Electronic Discrete Variable Automatic Computer)
एडसैक (EDSAC)
अमेरिका के एडवैक के लगभग समान ब्रिटिशर्स ने एडसैक (Electronic Delay Storage Automatic Calculator, EDSAC) का विकास किया। इस कम्प्यूटर का विकास यूनाइटेड किंगडम के प्रो० मोरीस विल्कस (Prot. MorrisMorris Wilkus) ने किया। इसमें तीन नई विशेषताएँ थीं- (1) सबरूटीन की सुविधा, (2) त्रुटियाँ खोजने का गुण तथा (3) ऑपरेटिंग सिस्टम का समावेश।
मैनचेस्टर मार्क-I (Manchester Mark-1)
यह स्टोर्ड प्रोग्राम के सिद्धान्त के आधार पर छोटी प्रायोगिक मशीन थी जिसे मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रो० एम० एच० ए० न्यूमैन (Prof. M. H. A. Neumann) की अध्यक्षता में विकसित किया। इसमें बहुत कम निर्देश तथा जानकारियाँ समाविष्ट की जा सकती थीं; अत: इसका कोई वास्तविक उपयोग न हो सका।
यूनिवैक-1 (UNIVAC-1)
यूनिवैक (Universal Automatic Computer, UNIVAC) संसार का प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर था। पहला UNIVAC अमेरिका के सेंसस ब्यूरो में सन् 1951 ई० में लगा और लगातार 10 वर्षों तक उपयोग में आता रहा। सर्वप्रथम यूनिवैक का व्यावसायिक उपयोग जनरल इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ने सन् 1954 ई० में किया।
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