प्रकृतिवाद क्या है | प्रकृतिवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ | प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम के सामान्य तत्व

प्रकृतिवाद क्या है | प्रकृतिवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ | प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम के सामान्य तत्व
प्रकृतिवाद
प्रकृतिवादी विचारधारा के विचारक प्रकृति या सृष्टि को ही सम्पूर्ण तत्व मानते हैं, आध्यात्मिक या ईश्वरीय सत्ता को नहीं। जॉइस ने लिखा है कि, “प्रकृतिवादी दर्शन या प्रकृतिवादी विचारधारा एक ऐसी विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता प्रकृति तथा मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन से जो कुछ आध्यात्मिक है तथा जो कुछ अनुभव से अलग है, उसे हटा देना है।”
डॉ० सिन्हा का कथन है कि, “प्रकृतिवादी या प्रकृतिवादी दर्शन ईश्वर की सत्ता, इच्छा की स्वतन्त्रता, आत्मा की अमरता तथा जगत की जीवनोत्तर सत्ताओं को नहीं मानता। यह प्रकृति को ही सम्पूर्ण तत्व मानता है।”
वार्ड के शब्दों में, “प्रकृतिवाद वह सिद्धान्त है जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक् करता है, आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है और परिवर्तन नियमों को सर्वोच्च मानता है।”
थामस तथा लैंग के अनुसार, “प्रकृतिवाद आदर्शवांद के विपरीत मस्तिष्क को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास करता है कि अन्तिम यथार्थ भौतिक है, आध्यात्मिक नहीं।”
एडम्स का विचार है, “प्रकृतिवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसे शिक्षा सिद्धान्त” में प्रशिक्षण की प्रणालियों को लचीले तौर पर लागू किया जाता है जो कि स्कूलों तथा पुस्तकों पर निर्भर नहीं करती, अपितु छात्र के वास्तविक जीवन पर निर्भर करती है।”
ब्राइस के अनुसार, “प्रकृतिवाद एक प्रणाली है और जो कुछ आध्यात्मिक है, उसका बहिष्कार ही उसकी प्रमुख विशेषता है।”
अंत में हम कह सकते हैं कि प्रकृतिवाद भी एक सिद्धान्त है जो प्रकृति या सृष्टि को इंश्वर से परे करता है, आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है और परिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च मानता है।
प्रकृतिवादी दर्शन की विशेषताएँ
प्रकृतिवादी दर्शन की निम्नलिखित विशेषताएँ है।
- प्रकृतिवादी दर्शन प्रकृति या सृष्टि को ही सत्य मानता है। इसके अनुसार समस्त वस्तुएँ प्रकृति से ही निकलती हैं और अन्त में उसी में ही विलीन हो जाती हैं।
- प्रकृतिवादी कहते हैं कि विज्ञान की सहायता से ही प्रकृति के रहस्यों के विषय में जाना जा सकता है।
- प्रकृतिवादियों के अनुसार आत्मा-परमात्मा काल्पनिक है। इस जगत से अलग कोई सत्ता नहीं है।
- प्रकृतिवादी दर्शन मनुष्य को मात्र एक यंत्र मानता है जो प्राणियों का विकसित रूप है।
- प्रकृतिवादी दर्शन आदर्शवादी ढोंगों का खण्डन करता है।
- प्रकृतिवादी दर्शन मौलिक प्रवृत्तियों को श्रेष्ठ मानता है। इस बनावटी सभ्यता से मानव को प्राकृतिक सभ्यता की ओर ले जाना चाहता है।
- प्रकृतिवादी दर्शन प्रकृति की ओर पुनः लौटाने का नया सन्देश देता है।
- प्रकृतिवादी पुस्तकीय ज्ञान या शिक्षा का विरोध करते हैं।
- प्रकृतिवादी शिक्षा में बालक की प्रधानता स्वीकार करते हैं न कि शिक्षक की।
- प्रकृतिवादी शिक्षा में स्वतन्त्रता को आवश्यक मानते हैं।
- प्रकृति ही सब कुछ है। इससे परे अथवा इसके पश्चात् और कुछ नहीं। प्रत्येक वस्तु प्रकृति से आती है और उसी में मिल जाती है।
- वास्तविक सत्ता अथवा भौतिक है।
- पदार्थ अथवा भौतिक जगत ही सब कुछ
- मानव में जन्मजात शक्तियाँ हैं।
- मानव एक महान् यंत्र के समान है।
- प्रकृतिवाद में आत्मा, धर्म और ईश्वर का कोई स्थान नहीं है।
- मानव जीवन पवित्र होता है। जन्म के समय इसमें कोई बुराई नहीं होती है।
- मानव भौतिक सुख चाहता है। वह कभी स्वमं को प्रकृति के अनुकूल बनाकर अथवा कभी प्रकृति को अपने अनुकूल बनाकर भौतिक सुख प्राप्त करता है।
- प्रकृति के नियम नहीं बदलते हैं।
- प्रकृतिवाद आध्यात्मिकता को स्थान नहीं देता है।
- प्रकृतिवाद ज्ञान-इन्द्रियों को ज्ञान का मुख्य द्वार मानता है।
- विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को प्रकट करता है।
- शरीर ही आत्मा को धारण करता है न कि आत्मा शरीर को।
प्रकृतिवादियों द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रम का उल्लेख
प्रकृतिवादियों द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रम में कुछ सामान्य तत्व पाये गये हैं जो निम्नलिखित
1 यह बाल केन्द्रित है।
- पाठ्यक्रम निर्माण में बालक की आयु, उसकी मूल प्रवृत्ति, प्राकृतिक रुचियों, स्वाभाविक क्रियाओं तथा व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा गया है।
- पाठ्यक्रम विस्तृत है।
- पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा साहित्यिक विषयों को गौण।
- पाठ्यक्रम जीवन से सम्बन्धित है।
- पाठ्यक्रम बालक को जीवनोपयोगी क्रियाओं व कौशलों में दक्ष बनाता है।
प्रकृतिवाद तथा अनुशासन
रूसो का मत है, बालकों को दण्ड नहीं देना चाहिए। उनकी अवांछनीय क्रियाओं के परिणामस्वरूप दण्ड प्राकृतिक रूप से उन्हें प्राप्त होना चाहिए। बालक यदि पेड़ पर चढ़ता है तो चढ़ने देना चाहिए। गिरने से उसे अपनी भूल का पता चलेगा। प्रकृति स्वयं बड़ा शिक्षक है।
प्रकृतिवादियों का यह भी मानना है कि प्रकृति स्वयं एक श्रेष्ठ शिक्षिका है जो मानव को अनुशासन का ज्ञान कराती है। जब मनुष्य कोई गलती करता है तो प्रकृति स्वयं उसे दण्ड देती है जिससे व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास होता है। प्रकृतिवाद का मानना है कि बालक जब स्वयं अपनी क्रियाओं के परिणामों से अनुशासित होता है तो वही सच्चा अनुशासन है। हरबर्ट के अनुसार, मनुष्य को जो कार्य अच्छे लगते हैं उन्हें वह करता जाता है जो कार्य अच्छे नहीं लगते हैं उन्हें वह त्यागता जाता है। हरबर्ट का यह सिद्धान्त सुख-दुख का सिद्धान्त कहा जाता है। हक्सले का विचार था कि हमें बच्चों को स्वभांविक विकास करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए लेकिन साथ ही उनके ऊपर कुछ नियंत्रण अवश्य रखना चाहिये, जिससे कि उनका व्यवहार संतुलित बना रहे।
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