शिक्षाशास्त्र / Education

प्रकृतिवाद में रूसो एवं टैगोर का योगदान | प्रकृतिवाद में रूसो का योगदान | प्रकृतिवाद में टैगोर का योगदान

प्रकृतिवाद में रूसो एवं टैगोर का योगदान | प्रकृतिवाद में रूसो का योगदान | प्रकृतिवाद में टैगोर का योगदान

प्रकृतिवाद में रूसो का योगदान

रूसो का शिक्षा के प्रति विचार यह था कि “सच्ची शिक्षा वह है जो ब लक की प्रकृति का विकास करे।” रूसो ने अपनी पुस्तक “एमील में लिखा है कि “प्रत्येक वस्तु प्रकृति के नियन्ता के यहाँ से अच्छे रूप में आती है, मनुष्य के सम्पर्क से ही दृषित हो जाती है।” रूसो का कथन है कि”विधाता प्रत्येक वस्तु को अच्छी बनाता है, मनुष्य वस्तु के साथ छेड़छाड़ करता है। और उसे दूषित कर देता है।”

रूसो द्वारा प्रकृतिवादी शिक्षा को एक स्वाभाविक क्रिया कहा गया है। रूसो के अनुसार शिक्षा व्यक्ति का आन्तरिक विकास है, न कि बाहर से प्राप्त किया हुआ। बालक स्वयं प्रकृति के निकट होते हैं। अतः उनकी शिक्षा का स्वरूप भी प्राकृतिक साधनों के साथ सुनिश्चित किया जाना चाहिए। रूसो ने कहा है कि “शिक्षा एक अनान्दमय, तर्कयुक्त, सन्तुलित, उपयोगी और प्राकृतिक जीवन के विकास की अनवरत क्रिया है।”

रूसो की प्रकृतिवादी शैक्षिक विचारधारा में व्यक्त शिक्षा सिद्धान्त को यदि हम संक्षेप में व्यक्त करें तो कुछ निम्न प्रकार होगा-

  • बालक की श्क्षा नैसर्गिक हो और उसमें सामाजिक परम्परा का समावेश नहीं करना चाहिए।
  • बालक की प्रारम्भिक शिक्षा में स्वयं ज्ञान तथा अनुभव पर बल देना चाहिए।
  • बालक के शारीरिक अंगों तथा इन्द्रियों के विकासानुसार शिक्षा देनी चाहिए।
  • शिक्षा रुचि और जिज्ञासा के आधार पर हो। रटना हानिकारक हैं।
  • बालक को प्राकृतिक अनुशासन का ज्ञान होना चाहिए।
  • बालक की शिक्षा का उसके वातावरण से सम्बन्ध होना चाहिए।
  • शिक्षा व्यावहारिक और जीवन के अनुकूल हो।
  • शिक्षा में ऐसे उद्योग-धन्धों को स्थान दिया जाये जो बालक के वातावरण तथा रुचि के अनुकूल हो।
  • शिक्षा निषेधात्मक और उसका केन्द्र बालक हो।
  • बालक की वास्तविक शिक्षा वही है जो उसके अन्दर से प्रस्फुटित होती है।

उक्त समस्त विवेचन रूसो को एक प्रबल प्रकृतिवादी दार्शनिक सिद्ध करता है। एडम्स ने भी इसी बात का समर्थन करते हुए कहा है “शिक्षा के सम्बन्ध में लिखने वाला रूसो ही कदाचित सुप्रसिद्ध प्रकृतिवादी था।”

प्रकृतिवाद में टैगोर का योगदान (Contribution of Tagore in Naturalism)

रूसो की भांति टैगोर भी प्रकृतिवाद से प्रभावित थे। वे जन्म से ही प्रकृति के उपासक थे। वे प्रकृति को एक शक्ति के रूप में स्वीकार करते थे तथा उनकी यह धारणा थी कि बालक की शिक्षा प्राकृतिक वातावरण में होनी चाहिए। उनके द्वारा शान्तिनिकेतन में किया गया शिक्षा देने का प्रत्यक्ष प्रयोग शान्तिनिकेतन विद्यालय सटीक प्रमाण है। उनमें प्रकृतिवादिता के स्पष्ट गुण दिखाई देते हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा की एक आदर्शवादी शिक्षा प्रणाली में मानवतावाद पर बल देते हुए प्रकृतिवाद की रक्षा की है। उनका दर्शन कोटि-कोटि शिक्षाशास्त्रियों में उच्चकोटि का है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा में भौतिकवादी तामझाम नहीं होने चाहिए। ये शिक्षा को “प्राकृतिक संसाधनों के साथ विकसित किये जाने के पक्षधर हैं।

उनके अनुसार एक आदर्श विद्यालय का स्वरूप इस प्रकार का होना चाहिए “विद्यालय मानव निवास के स्थानों से दूर एकान्त स्थान में खुले आकाश के नीचे, पेड़-पौधों के बीच होना चाहिए।”

टैगोर का यह दर्शन प्रतिपादित करते हैं कि मानव में प्रकृति की ओर एक गहन आकर्षण होता है, जो अनसीखा होता है। यह आकर्षण बालक में बहुत होता है। बालक प्रकृति की देखकर प्रसन्न होता है। हरे-भरे खेत, खुला आसमान, ठण्डी हवा, लहराते हुए पेड़-पोधे उरायी आत्मा और शरीर दोनों को अपनी ओर खींचते हैं। अतएव उनकी शिक्षा ऐसे ही वातावरण में होनी चाहिए।

टैगोर की प्रकृतिवादी शैक्षिक विचारधारा में व्यक्त शिक्षा-सिद्धान्तों को यदि हम संक्षेप में व्यक्त करें तो कुछ निम्न प्रकार होंगे-

  • छात्रों को भारतीय विचारधारा और भारतीय समाज की पृष्ठभूमि का स्पष्ट ज्ञान प्राकृतिक वातावरण में प्रदान किया जाना चाहिए।
  • शिक्षा का समुदाय के जीवन से घनिष्ट सम्बन्ध होना चाहिए।
  • शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।
  • जनसाधारण को शिक्षा देने के लिए प्राथमिक विद्यालयों को फिर जीवित किया जाये।
  • शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को जन्मजात शक्तियों का विकास करके उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास और सामंजस्यपूर्ण विकास करना होना चाहिए।
  • शिक्षण विधि का आधार- जीवन, समाज और प्रकृति होनी चाहिए।
  • छात्रों को उत्तम मानसिक भोजन दिया जाना चाहिए, जिससे कि उनका विकास विचारों के पर्यावरण में हो।
  • शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिए तथा इसे भारत के अतीत एवं भविष्य का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
  • छात्रों में संगीत, चित्रकला, अभिनय की योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिए।
  • छात्रों को नगर की गंदगी और अनैतिकता से दूर प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रखकर शिक्षा दी जानी चाहिए।
  • टेगोर के अनुसार भ्रमण के समय पढ़ाना एक उपयुक्त विधि है।

प्रकृति के बारे में टैगोर के विचार निम्नलिखित कथन से और भी अधिक स्पष्ट रूप से समझे जा सकते हैं-

“प्रकृति में प्रारम्भ से ही परिपूर्ण सादा जीवन होता है। यह वह स्थान है जहाँ शुद्ध वायु और गंभीर शान्ति सहजता से. उपलब्ध होती है और मनुष्य भावी जीवन के लिए पूर्ण विश्वास से रहता है।”

इस प्रकार यह निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रूसो और टैगोर दोनों ही महान प्रकृतिवादी विचारक थे, जिन्होंने माना कि प्रकृति एक महान शिक्षक की भाँति है, प्रकृति ही ज्ञान का भण्डार है और प्रकृति की गोद में प्राप्त की गयी शिक्षा सर्वोत्कृष्ट शिक्षा है । दोनों ने ही बालक के व्यक्तित्व को बहुत महत्व दिया है। दोनों ने ही बालकेन्द्रित शिक्षा को महत्व दिया है। वे मानते थे कि शिक्षा में विद्यालयों, नियमों, शिक्षकों व पुस्तकों आदि की तुलना में बालकों का महत्व अधिक है।

अतः दोनों के ही अनुसार शिक्षा की व्यवस्था बालक की आवश्यकताओं, रुचियों व योग्यताओं के अनुरूप की जानी चाहिए। रूसो की भाँति टैगोर ने भी ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का नारा लगाया।

परन्तु इतनी समानताओं के बावजूद भी टैगोर व रूसो के प्रकृतिवाद में कुछ विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

रूसो एक पाश्चात्य दार्शनिक था तथा टैगोर पूर्ण भारतीय दार्शनिक थे, जिससे कि उनके दर्शनों में भारतीय व पाश्चात्य दर्शनों की अलग-अलग झलक मिलती है।

रूसो पूर्ण रूप से प्रकृतिवादी था, परन्तु टैंगोर के विचारों में आदर्शवाद, प्रकृतिवाद और प्रयोजनवाद का सुन्दर समन्वय मिलता है।

टैगोर के प्रकृतिवाद का समाज से घनिष्ठ सम्बन्ध है, क्योंकि टैगोर बालक की प्रकृति का समाजीकरण करके उसे विकसित करने का सुझाव देते हैं। इसके विपरीत रूसो बालक को समाज से दूर रखकर उसे विकसित करने का सुझाव देते हैं।

इसी प्रकार टैगोर प्रकृति में मानव एकता तथा ब्रह्म का दर्शन करते हैं तथा इंस प्रकार वे अति प्रकृतिवाद में विश्वास करते हैं, जबकि रूसो प्रकृति को मात्र एक भौतिक शक्ति मानता था।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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