शिक्षाशास्त्र / Education

परीक्षण निर्माण के सिद्धान्त | परीक्षण योजना के परीक्षण रचना के अनेक चरण

परीक्षण निर्माण के सिद्धान्त | परीक्षण योजना के परीक्षण रचना के अनेक चरण | test building in Hindi | Multiple stages of testing a test plan in Hindi

परीक्षण निर्माण के सिद्धान्त

(Principles of Test Construction)

आज मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अनेक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का उपयोग किया जाता है। यह परीक्षण प्रायः मानवीकृत परीक्षण होते हैं, अत: इसके परीक्षणों का निर्माण किस प्रकार किया जाय, इसका ज्ञान अति आवश्यक है।

किसी भी परीक्षण का निर्माण विधिपूर्वक होना चाहिए। परीक्षण निर्माण के कुछ मुख्य चरण इस प्रकार हैं-

(1) परीक्षण की योजना, उद्देश्य और पाठ्यक्रम का विश्लेषण

(2) परीक्षण का प्रथम प्रारूप तैयार करना, पद चयन।

(3) परीक्षण का प्रथम प्रशासन, फलांकन, विश्वसनीयता, वैधता तथा पद विश्लेषण।

(4) अन्तिम प्रारूप प्रशासन तथा आरोपण आदि।

(5) मानकीकरण मानक, व्यवस्था आदि।

परीक्षण योजना के परीक्षण रचना के अनेक चरण

(Planning of Test Stages of Tests Construction)

(1) उद्देश्यों का निर्धारण- किसी भी परीक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उद्देश्यों की संख्या तीन या चार से अधिक न हो। उदाहरणार्थ- गणित का परीक्षण तैयार करते समय निम्नांकित व्यावहारिक परिवर्तनों पर ध्यान रखना चाहिए-(1) गणितीय समस्याओं को हल करने की क्षमता, (2) तर्क करने की क्षमता, (3) इकाइयों का ज्ञान। ये वे परिवर्तन है जो दैनिक जीवन में देखे जा सकते हैं। परीक्षण के उद्देश्य हर विषय के लिए अलग-अलग होते हैं। अतः हमें ज्ञान होना चाहिए कि हम परीक्षण किसी उद्देश्य के लिए तैयार करना चाहते हैं।

(2) स्त्रोत सामग्री और पाठ्यक्रम का विश्लेषण (Analysis of Curriculum and Source Material)– उद्देश्य को निश्चित कर लेने के पश्चात् उससे सम्बन्धित स्रोत सामग्री तथा पाठ्यक्रम का विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा करते समय इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि पाठ्यक्रम का कौन सा भाग कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस निश्चय के आधार पर ही परीक्षण के पदों का चयन तथा किस अंश से कितने पद लेने हैं, इसका निश्चय किया जाता है। इसके लिए पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कक्षा में नये नोटस, आलोचनायें प्रश्न-पत्र, कार्य विश्लेषण रख विभिन्न मानवीकृत परीक्षण सहायक होते है।

(3) प्रथम प्रारूप तैयार करना (Preparing the first draft) — एक बार उद्देश्य का निश्चय हो जाने और पाठ्यक्रम का विश्लेषण कर लेने पर, पदों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाता है। पदों के चयन में कुछ सामान्य नियमों का ध्यान रखना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर पद, वैध, उपयुक्त और स्पष्ट है। इस सम्बन्ध में निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

(1) प्रश्नों का भाषा स्पष्ट होनो चाहिए ताकि उसकी विषयवस्तु के आधार पर उत्तर प्राप्त हो सकें अन्यथा इस बात का खतरा बना रहता है कि प्रश्न के प्रारूप के आधार पर उत्तर प्राप्त हो जाये। ‘सदैव’ कभी नहीं निश्चित रूप से आदि शब्दों का प्रयोग पदों में जहाँ तक हो सके नहीं करना चाहिए।

(2) एक प्रकार के पद एक साथ हो लिये जाने चाहिए। जैसे- सत्य, असत्य तथा वैकल्पिक प्रकार के पद

(3) प्रारम्भिक प्रारूप में अनेक प्रकार के पदों को सम्मिलित करना चाहिए।

(4) प्रारम्भ प्रारूप में पदों की संख्या अन्तिम प्रारूप से अधिक होनी चाहिए। सामान्यतः यह दुगुनी रखी जाती है।

(5) स्मृति या प्रत्यावाहन को अपेक्षा अधिगम पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।

(6) अनुक्रियाओं का कोई क्रम नहीं होना चाहिए। उन्हें संयोग के आधार पर लिखा जाना चाहिए ताकि एक अनुक्रिया के लिए मार्ग प्रशस्त न कर सके।

(7) जहाँ तक सम्भव हो हर पद के अंश समान होने चाहिए।

(8) कोई भी पद ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसका उत्तर किसी अन्य पद या पद समूह के आधार पर दिया जा सके।

(9) पदों की भाषा इस प्रकार की होनी चाहिए कि उत्तर पूरे प्रश्न द्वारा निर्धारित हो उससे किसी अंश द्वारा नहीं।

(10) पदों को कठिनाई के दृष्टिकोण से आरोही क्रम में रखा जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि सरल पद प्रारम्भ में और कठिन पद बाद में रखना चाहिए।

(4) पदों की व्यवस्थापन (Arrangement of Items) – पदों को परीक्षण में व्यवस्थित करने के अनेक रूप हैं यथा-

(1) सामान्य कठिनाई योजना- गति परीक्षण में सभी पदों का कठिनाई स्तर समान रखना चाहिए। अत: इसके किसी क्रम की आवश्यकता नहीं होती है।

(2) कठिनाई का कमोत्तर क्रम-शक्ति परीक्षण में पदों की कठिनाई क्रमश: बढ़ती जाती है। अतः ऐसे परीक्षण का सबसे बाद में रखना चाहिए।

(3) स्पाइरल योजना- यदि परीक्षण में चार प्रकार के पदों को ससम्मिलित करना है त व्यवस्थापन स्पाइरल रूप में होना चाहिए। अर्थात् पहले हर प्रकार का एक-एक पद रखना चाहिए। उन्हें हर प्रकार के पदों में एक-एक पद लेकर लिखना चाहिए। इनका क्रम इस प्रकार  होना चाहिए कि हर प्रकार के पद का हर क्रमिक हो सके।

तार्किक योजना- पदों का चयन यदि विभिन्न विषयों से किया गया है तो उनका क्रम तार्किक आधार पर होगा, क्योंकि इन पदों का क्रम मानसिक सेट को बिगाड़ देगा।

परीक्षण का प्रथम प्रशासन (सम्पादन)

(1) प्रशासन (Administration)- अब परीक्षण का प्रथम प्रारूप तैयार हो जाने पर उसे एक न्यादर्श पर प्रकाशित करके देखना चाहिए। इस न्यादर्श में अच्छे बूरे तथा मध्यम सभी वर्ग के विद्यार्थियों ने भरी है। परीक्षण के प्रशासन के समय उपयुक्त निरीक्षण रहना चाहिए ताकि नकल करने का कोई अवसर छात्रों को प्राप्त न हो। उन्हें प्रश्न करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। बैठने, हवा, पानो आदि का उपयुक्त प्रबन्ध होना चाहिए। परीक्षण के निर्देश स्पष्ट होने  चाहिए।

(2) फलांकन (Scoring)- फलांकन की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए हर सही उत्तर के लिए एक अंक दिया जाना चाहिए। परीक्षण का फलांकन करने के लिए पाले से तैयारी कर लेना चाहिए। फलांकन, स्टेन्सिल, कार्बन, पंच बोर्ड या मशीन के द्वारा कर लेना चाहिए।

पद विश्लेषण (Item Analysis) – हर पद को सही और गलत करने वालों के प्रतिशत की गणना कर लेनी चाहिए। परीक्षण पुस्तकों को अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लेना चाहिए। इसके पश्चात सबसे ऊपर से एक तिहाई उत्तर पुस्तकों को निकाल लेना चाहिए। बीच की एक तिहाई उत्तर पुस्तिका का निकाल लेना चाहिए। अब उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में हर पद को सही  कर लेने बालों की गणना कर लेना चाहिए।

अन्तिम प्रारूप तैयार करना (Preparing the Final Test)- फलांकन और पद विश्लेषण के पश्चात् परीक्षण का अन्तिम प्रारूप तैयार करना चाहिए। इसके लिए अच्छे विभेदात्मक मूल्यों वाले पदों को लेना चाहिए तथा अन्य को छोड़ देना चाहिए। परीक्षण के निर्देश तैयार कर देना  चाहिए। प्रशासन के आधार पर समय का निश्चय कर लेना चाहिए। प्रयास के लिए पद अथवा प्रश्नों का चयन कर लेना चाहिए। इस सबके बाद परीक्षण का पुनः प्रशासन कर लेना चाहिए। तब औसत प्रतिशत की गणना कर लेनी चाहिए। फलांकों का मानक विचलन (S. D.) प्रचार चतुर्थांश विचलन (Q. D.) की गणना कर लेनी चाहिए। परीक्षण की विश्वसनीयता तथा वैधता की गणना पहले बताई विधि के द्वारा कर लेनी चाहिए।

मानकीकरण और व्याख्या (Standardization and Interpretation)– मनकों की गणना कर लेनी चाहिए। यह अनेक प्रकार के हो सकते हैं यथा- आयुमानक, श्रेणी, मानक, लिंग मानक आदि। ग्रामीण और शहरी मानकों की गणना की जा सकती है। विभिन्न समूह का औमत, अंकों का परिवर्तन कर लेना चाहिए। जैसे-7 अंक, 2 अंक, स्टेनाइट अंक आदि। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो भी विधि अपनाई जाय वह परीक्षण के लिए उपयुक्त हो।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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