अभिक्रमित अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा | अभिक्रमित अधिगम के विभिन्न प्रकार
अभिक्रमित अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा | अभिक्रमित अधिगम के विभिन्न प्रकार | Meaning and definition of programming learning in Hindi | Different types of programming learning in Hindi
प्रसिद्ध सिद्धान्तवादी बी. एफ. स्किनर ने अपने सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त (Theory of Operant Conditioning) को अधिगम के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि अच्छे शिक्षण के लिए उसकी व्यापक व्याख्या प्रस्तुत की और इसी के आधार पर उन्होंने अनुबद्ध अनुक्रिया शिक्षण प्रतिमान का भी प्रतिपादन किया अभिक्रमित अविगम अनुदेशन व्यूह रचना का ऐसा स्वरूप है,जिसमें विषयवस्तु को छोटे-छोटे वाक्यों में विभक्त कर लिया जाता है और उन वाक्यों के प्रति ही छात्र अनुक्रिया करते हैं । इसी अनुक्रिया के आधार पर छात्र आगे की ओर बढ़ते हैं। यदि छात्रों की क्रियायें सही होती हैं तो यह पुनर्बलन के रूप में कार्य करती है। स्पष्ट है अभिक्रमित अधिगम एक ऐसी व्यूह रचना है जिसकी सहायता से शिक्षण सामग्री को छोटे-छोटे टुकड़ा में विभक्त कर ऐसे क्रम में नियोजित किया जाता है जिससे कि छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सके। नीचे प्रस्तुत अभिक्रमित अधिगम की परिभाषाओं से इसकी धारणा और अधिक स्पष्ट हो जाएगी।
सुसन मारकल के अनुसार, “अभिक्रमित अधिगम एक ऐसी व्यूह रचना है जिसकी सहायता से शिक्षण सामग्री को एक ऐसे क्रम में नियोजित किया जाता है जिससे छात्रों में लगातार अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने का प्रयास किया जा सकता है और साथ ही उसका मापन भी किया जा सकता है।”
डी. एल. कुक के अनुसार, “अभिक्रमित अधिगम, स्वशिक्षण विधियों के व्यापक सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त एक प्रत्यय है।”
स्टोफल के अनुसार, “ज्ञान के छोटे अंगों को एक तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने को अभिक्रम तथा इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया का अभिक्रमित अध्ययन कहा जाता है।”
अभिक्रमित अधिगम के प्रकार
अभिक्रमित अधिगम के प्रमुख प्रकार निम्न हैं-
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रेखीय अथवा बाह्य अभिक्रम (Linear or Extrinsic Programming) –
अभिक्रम के इस प्रकार के प्रतिपादक बी. एफ. स्किनर हैं उन्होंने 1954 में सीखने के क्रिया प्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया स्किनर के अनुसार छात्रों को पढ़ाने का सबसे उत्तम तरीका यह है कि विषयवस्तु को छोटे-छोटे खण्डों में बांटकर और उन्हें छोटे अंशों में लिखकर छात्रों के सम्मुख इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाए कि उससे सही उत्तर प्राप्त हो सकें। रेखीय अभिक्रम में छात्र के सम्मुख विषयवस्तु का एक छोटा सा अंश ही प्रस्तुत किया जाता है और छात्र से उस अंश से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। छात्रों को उस अंश से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। छात्र द्वारा गलत उत्तर देने पर उसे पद के सही उत्तर से परिचित करा दिया जाता है। इस प्रकार एक के बाद एक पदों से सम्बन्धित प्रश्न छोटे-छोटे अंशों में छात्रों से पूछे जाते हैं और जैसे-जैसे छात्र इनके सही उत्तर देते रहते हैं वैसे-वैसे उनके उत्तर पुनर्बलित होते रहते हैं और इस क्रम में छात्र पूर्व व्यवहार से (Entering Behaviour) से अन्तिम व्यवहार तक पहुंच पाता है। सारांश रूप में कहा जा सकता है कि रेखीय अभिक्रम में किसी विषयवस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि बढ़ते हुए प्रयासों के साथ त्रुटि की दर न्यूनतम होती जाती है। रेखीय अभिक्रमित अधिगम की विशेषता यह भी है कि इसमें मन्द, तीव्र और सामान्य बुद्धि के बालकों के लिए समान विधि अपनायी जाती है।
2. शाखीय या आन्तरिक आभिव्रम (Branching or Intrinsic Programming) –
अमरीकन वेज्ञानिक नॉमर्मल ए. क्राउन्डर ने रेखीय अभिक्रम की कुछ कमियों को दूर करने के दृष्टिकोण से शाखीय अभिक्रम का प्रतिपादन 1954 में किया जिसका प्रमुख आधार ट्यूटोरियल तथा परम्परागत विधि है। इस विधि में छात्र ,की कठिनाइयों, कमजोरियों और त्रुटियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न परदो का इस्तेमाल किया जाता है। इन पदों में विषयवस्तु का अश अपेक्षाकृत अधिक होता है। एक पद को पढ़ लेने के पश्चात् छात्र से उस पद के विषय में अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों की प्रकृति इस प्रकार की होती है कि तीन चार प्रश्नों में एक ही सही उत्तर निहित रहता है। सही उत्तर मिल जाने के पश्चात् छात्र को अग्रिम पद की ओर बढ़ाया जाता है। यदि छात्र द्वारा दिये गये उत्तर गलत हैं अर्थात् छात्र की अनुक्रियायें गलत हैं तो छात्र का उपचारात्मक निर्देश दिये जाते हैं। ऐसा करने में उसे पीछे के पद की ओर वापिस लाया जाता है। इस प्रकार के अभिक्रम में तीव्र बुद्धि छात्रों के लिए अगले पदों में तीव्रता के साथ बढ़ने की संभावनायें विद्यमान रहती हैं। इस अभिक्रम में छात्र समस्त अनुक्रियाओं पर स्वयं ही नियन्त्रण करता है और अपनी अन्तर्दृष्टि एवं सक्ष्म बद्धि का प्रयोग करता है। किेन्हीं प्रकार के संकेतों का सहारा इसमें नहीं लिया जाता। बल्कि बहविकल्पी प्रश्नों के सही उत्तर को अपनी सूझ-बृझ के द्वारा स्वयं ही खोजना होता है। शाखीय अभिक्रम की कुछ प्रमुख बातें निम्न है-
- विषयवस्तु क अंश को एक पद में प्रस्तुत किया जाना,
- विषयवस्तु पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्नों का निर्माण,
- छात्र द्वारा बहुविकल्पीय प्रश्नों में से सही उत्तर को खोजना,
- चुने गये उत्तर पर प्रदत्त निर्देशों का पालन करना,
- सही उत्तर चुन लेने के पश्चात् अपने पद की ओर बढ़ना,
- गलत उत्तरों की स्थिति में छात्र का पुनः पूर्व पदों की ओर लौटना।
अभिक्रमित अधिगम की इस शाखीय अभिक्रम चिधि की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें छात्र धेर्य पूर्वक अभिक्रम का अनुसरण करता है और सीखने की ओर अग्रसर होता है। बहुकल्पीय प्रश्न उसे अधिक सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। छात्र स्व नियन्त्रित अभिक्रमण का अनुसरण करेता है और छात्री की कमजोरियों में सुधार लाने के लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था विद्यमान है। यह अभिक्रम मन्द, तीव्र और सामान्य बुद्धि बालकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। इसमें त्रुटि की दर बहुत निम्न होती है।
अधिगम अन्तरण के विभिन्न सिद्धान्त | अधिगम अन्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
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अवरोही अभिक्रम (Mathetics Programming) –
‘Mathetics’ शब्द ग्रीक शब्द ‘Mathene’ से बना है जिसका अर्थ है ‘सीखना’। थॉमस गिलबर्ड जिन्होंने 1972 में अवरोही अभिक्रम का प्रतिपादन किया, ने Mathetics को परिभाषित करते हुए लिंखा है “अवरोही अभिक्रम जटिल व्यवहार समूह विश्लेष एवं पुनर्निर्माण के लिए पुनर्बलन के सिद्धान्तों का व्यवस्थित प्रयोग है जो विषयवस्तु के पूर्ण अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है।”
इस अभिक्रम में छात्रों को जटिल से जटिल व्यवहारों के समुचित विकास के लिए प्रेरित किया जाता है। विषयवस्तु पर अधिकार प्राप्त करना इस अभिक्रम का प्रमुख लक्ष्य है। इसमें पाठ्यवस्तु को एक विशिष्ट शृंखला के रूप में व्यवस्थित किया जाता है और छात्र को विशिष्ट अनुक्रिया करनी होती है। अवरोही अभिक्रम प्रेरणादायी क्रियाओं के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होता है। पाठ्यवस्तु के स्वामित्व के दृष्टिकोण से भी यह बहुत उपयोगी है। अधिगम परिस्थितियों के सामान्यीकरण तथा विभेदीकरण की दृष्टि से भी यह अभिक्रम बहुत उपयोगी है। इस अभिक्रम की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं-
- अवरोही अभिक्रम में विभेदीकरणं तथा सामान्यीकरण. के नियमों का पालन किया जाता है।
- अवरोही अभिक्रम में व्यवहार के आधार पर विषयवस्तु पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
- विषयवस्तु पर स्वामित्व प्राप्त करने के लिए प्रदर्शन, अनुक्रिया और अनुबोधन का प्रयोग किया जाता है।
- यह शिक्षण नीति अपेक्षाकृत अधिक लचीली होती है।
- इसमें कार्य पुनर्बलन के रूप में सम्पूर्ण होता है।
- विभिन्न कौशलों के शिक्षण के लिए अवरोही अभिक्रम बहुत सहायक है।
- शिक्षक की उपस्थिति के अभाव में भी शिक्षण की प्रक्रिया चल सकती है।
4. कम्प्यूटर आधारित अभिक्रम (Computer Assisted Programming) –
अभिक्रम के इस प्रकार में सीखने वाले के पूर्ण व्यवहारों के आधार पर अनुदेशन का चयन किया जाता है और यह चयन कम्प्यूटर द्वारा होता है। इसी कारण इसे कम्प्यूटर सह अनुदेशन के नाम से भी जाना जाता है। संक्षिप्ते में इसे CAI के नाम से भी जाना जाता है। इसका विकास शिक्षा में यन्त्रों व मशीनों के प्रयोग के लिए हुआ। 1961 में सर्वप्रथम इस दिशा में प्रयास प्रारम्भ किये गये और 1966 में स्टेनफर्ड विश्वविद्यालय के पेंट्रिक स्पेस ने प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों के लिए गणित और वाचन पर प्रग्राम तेयार किये। आज कम्प्यूटर का प्रयोग अनुदेशन, शैक्षिक निर्देशन, परामर्श शोध कायों और परीक्षा प्रणाली से सम्बन्धित अनेक कार्यों के लिए किया जा रहा है। कम्प्यूटर्स में अनेक प्रकार के अभिक्रमों को संग्रहीत कर दिया जाता है और अधिगम कत्त्ता अपनी आवश्यकता, योग्यता और पूर्व ज्ञान के आधार पर इनका स्वयं चुनाव करता है। सक्षेप में कम्प्यूटर के शिक्षा में प्रयोग से विषयवस्तु, शिक्षण विधियों का व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर सामंजस्य किया जाना बहुत सरल हो गया है।
निः सन्देह अभिक्रमित अधिगम ने शिक्षण की प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और बहुत बड़े पैमाने पर आज शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा अभिक्रम के इन प्रकारों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।
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