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आगमन विधि का अर्थ | निगमन पद्धति का अर्थ | आगमन विधि तथा निगमन पद्धति के गुण एवं दोष

आगमन विधि
आगमन विधि

आगमन विधि का अर्थ | निगमन पद्धति का अर्थ | आगमन विधि तथा निगमन पद्धति के गुण एवं दोष

आगमन विधि का अर्थ

आगमन पद्धति से “अर्थ उस ढंग से है जिसमें विशेष तथ्यों की आर से सामान्य तथ्यों की ओर बढ़ा जाता है।” दूसरे शब्दों में आगमन विधि से अर्थ उस ढंग से है जिसमें विशेष तथ्यों से सामान्य तथ्यों की ओर बढ़ा जाता है और विशेष तथ्यों के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस पद्धति में इतिहास का विशेष महत्व है क्योंकि भूतकालीन घटनाओं में से हम कुछ विशेष घटनाओं का चुनाव पहले कर लेते हैं और इन विशेष घटनाओं के आथार पर सामान्य घटनाओं की खोज करते हैं तथा नियमों का प्रतिपादन करते हैं।

लेण्डल महोदय ने आगमन विधि को परिभाषित करते हुए लिखा है “जब कभी छात्रों के सम्मुख अनेक उदाहरण अधवा वस्तुएं प्रस्तुत की जाती है और इसके पश्चात् बालकों से स्वयं उनके निष्क्षों को निकलवाने का प्रयास किया जाता है तब इस शिक्षण विधि को आगमन विधि कहा जाता है। आगमन विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर तथा मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाने की विधि है।” आगमन विधि उदाहरणों से प्रारम्भ होती है तथा उदाहरण के माध्यम से ही सामान्य नियमों का प्रतिपादन करती है। अतः अध्यापकों को चाहिए कि वह बालकों को ज्ञान देने में इस विधि का अधिक से अधिक प्रयोग करें।

आगमन विधि के गुण

आगमन विधि के प्रमुख गुण निम्न हैं-

  1. इस पद्धति का पहला लाभ यह है कि इसके द्वारा पुराने निष्कर्षों क नवीन निष्कर्षों के अनुसार संशोधित किया जा सकता है। इस प्रकार यह पद्धति पुराने निष्कर्षों की जांच कर उन्हें सदा वर्तमान के अनुकूल बनाये रखती है।
  2. इस पद्धति के माध्यम से प्राचीन सामाजिक सस्थाओं, विचारों एवं घटनाओं के विषय में अच्छा खासा ज्ञान प्राप्त होता है जिससे शिक्षाशास्त्री को प्रचीन के आघार पर नवीन समस्याओं को समझने में बड़ी सुविधा रहती है और समस्याओं का विश्लेषण किया जाना सम्भव होता है।
  3. इस पद्धति के द्वारा हमें इस बात का ज्ञान भी सरलता से हो जाता है कि किन परिस्थितियों, स्थान एवं समय में सामाजिक घटनाओं के सामान्यीकरण मान्य हो सकते हैं।
  4. सामाजिक तथ्य अथवा घटनाओं की प्रकृति बहुत जटिल होती है। आगमन पद्धति द्वारा इस जटिलता का अध्ययन वास्तविक अर्थों में किया जा सकता है तथा ऐसे निष्कर्षों पर सरलता से पहुंचा जा सकता है जिनका प्राप्त करना अन्य परिस्थितियों में एक कठिन कार्य है।
  5. आगमन विधि पूर्ण रूप से मनावज्ञानिक विधि है और इस विधि से बालक अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से ज्ञान को ग्रहण करते हैं।
  6. इस प्रणाली की एक महत्वपूर्ण विशषता यह भी है कि बालक इनके प्रयोगां से थकते नहीं। सरल उदाहरणों के आधार पर वह ज्ञान का सुगमता के साथ धारण करते रहते हैं। और सन्तोष तथा सफलता का अनुभव करते रहते हैं।
  7. इस विधि से अध्ययन बहुत रोचक एवं सरल हो जाता है।

आगमन विधि के दोष

आगमन विधि या पद्धति के प्रमुख दाष निम्न हैं-

  1. सबसे पहली कमी तो यह हे कि उपकल्पना के अभाव के कारण विभिन्न घटनाओं के मध्य उलझ जाने का भय सदा बना रहता है जिससे कभी-कभी तो सही-निष्कर्ष पर पहुंच ही नहीं पाते। यदि अनेक सावधानियां बरत कर सही निष्कर्ष पर पहुंच भी पाते हैं तो इसके लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  2. इस पद्धति द्वारा शिक्षण कार्य बहुत धीमी गति से चलता है क्योंकि इसमें सारा कार्य छात्र को स्वयं ही करना पड़ता है।
  3. क्योंकि निष्कर्ष निकालने का पूर्ण उत्तरदायित्व छात्रों पर ही होता है अतः कभी-कभी उनक द्वारा निकाले गये निष्कर्ष सही नहीं होते।
  4. आगमन विधि सभी विषयों के अध्ययन के लिए उपयोगी नहीं है और कक्षीय परिस्थितियों में इसका प्रयोग सदैव नहीं किया जा सकता।

इस विधि को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षकों का सतर्क बने रहना बहुत आवश्यक है। तभी इस विधि द्वारा किये गये शिक्षण से छात्र एवं शिक्षक लाभान्वित हो सकते हैं। यह विधि बड़ी कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी नहीं है। हां छोटी कक्षाओं के लिए यह अवश्य ही बहुत उपयोगी है।

निगमन पद्धति के लाभ

निगमन पद्धति के प्रमुख लाभ निम्न हैं-

  1. शैक्षिक घटना की प्रकृति की जटिलता के कारण उनके कारण व प्रभाव आपस में गुथे रहते हैं। यह उनकी खाज में बड़ी सहायक सिद्ध होती है।
  2. निगमन पद्धति के द्वारा सामान्यीकरण की बारीकी तक सरलता से पहुंचा जा सकता है लेकिन आधार बनाये गये नियम या सिद्धान्त अवश्य ही सही होने चाहिए।
  3. निगमन प्रणाली सामग्री एकत्र करने की समस्या से मुक्त होने के कारण एक सरल पद्धति है।
  4. शिक्षाशास्त्र शैक्षिक व्यवहार का अध्ययन करता है जो एक कठिन कार्य है लेकिन इस कठिन कार्य को निगमन पद्धति ने सरल बना दिया है।
  5. यह विधि ज्ञान को अर्जित करने में तीव्रता लाती है।
  6. यह विधि शिक्षक के कार्य को बहुत सरल बना देती है।
  7. यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए बहुत उपयोगी है। किसी सिद्धान्त की परीक्षा के लिए यह विधि बहुत उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध होती है।

केरनेस ने निगमन पद्धति के गुणों की चर्चा करते हुए कहा कि “यदि उचित आावयानियों का पालन करके निगमने पद्धति का प्रयोग किया जाये तो यह अतुल्य है क्योंकि मानव की बुद्धि द्वारा खोज करने वाला यह अब तक का सबसे शक्तिशाली यन्त्र है।”

निगमन पद्धति के दोष

निगमन पद्धति का सर्वप्रथम दोष यह है कि इसे वैज्ञानिक पद्धति स्वीकार करने में आपत्ति की जाती है। सामाजिक घटनायें इतनी जटिल होती हैं कि इस पद्धति द्वारा उनका तुलनात्मक अध्ययन कर सत्यता की पुष्टि करना एक बड़ा ही कठिन कार्य है। निकल्सन ने इस पद्धति के दोषों का उल्लेख करते हुए कहा कि “इस पद्धति को बड़ा खतरा इस बात से है कि सत्यापन का परिश्रम द्वेष में परिवर्तन हो जाता है।”

अधिकांश विद्वानों ने निगमन प्रणाली की आलोचना ही की है। इनके आलों चको का मानना है कि बालकों के सामने पहले सामान्य नियमों को प्रस्तुत कर देना घोड़े के आगे गोड़ी रखने जैसा है। इस प्रणाली में बालक अपने परिश्रम तथा प्रयत्न द्वारा किसी नियम या सिद्धान्त की खोज करने की बजाय नियमों या सिद्धान्तों को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं जिस रूप में व उनके सामने प्रस्तुत किये गये हैं। इसका परिणाम यह होता है कि छात्रों में जिज्ञासा एवं तर्कशक्ति जड़ हो जाती है। यह पद्धति पूर्ण रूप से अमनोवैज्ञानिक है। इस विधि में बालकों को रटने की आदत पड़ जाती है और यह विधि बच्चों की रुचियों और अभिरुचियों के विपरीत ही है। इस विधि से बालकों का ज्ञान अस्पष्ट तथा अपूर्ण रह जाता है और वह सिद्धान्तों और नियमों को भली प्रकार नहीं समझ पाते।

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आगमन एवं निगमन विधि में अन्तर –

आगमन एवं निगमन विधि में प्रमुख अन्तर निम्न हैं-

आगमन विधि
निगमन विधि

आगमन विधि शिक्षा प्रदान करने की एक उत्तम प्रणाली है।

निगमन विधि शिक्षा की उत्तम प्रणाली न होकर मात्र एक आदेश देने की प्रणाली नजर आती है।

यह विधि पूर्णतः मनोवैज्ञानिक है।

अमनोवैज्ञानिक है।

इस विधि में शिक्षा प्रदान करने की गति बहुत मंद होती है।

इस विधि में शिक्षा प्रदान करने की गति तीव्र मन्द होती है।

इस विधि से ग्रहण किया गया ज्ञान स्थायी होता है।

इस विधि से प्राप्त किया गया ज्ञान अस्थायी होता है।

इस विधि में विशिष्ट से सामान्य की ओर बढ़ा जाता है।

इस विधि में सामान्य से विशिष्ट की ओर बढा जाता है।

बालक अनुसंधान के द्वारा नियमों का प्रतिपादन करते हैं।

प्रतिपादित सिद्धान्तों पर ही विद्यार्थियों को आश्रित रहना पड़ता है।

आत्मनिर्भरता विकसित होती है।

बालकों को दूसरों के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों पर ही निर्भर रहना होता है।

छोटे बालकों के लिए उपयोगी है।

बड़े छात्रों के लिए उपयोगी है।

इस विधि का प्रयोग करने के लिए प्रयोग से पूर्व अध्यापक को पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता होती है।

इस विधि में तैयारी की अधिक आवश्यकता नहीं होती।

बालकों का मानसिक विकास करने में सहायक होती है।

बालकों का मानसिक विकास नहीं करती बल्कि उनमें अनुकरण की आदत डालती है।

इस विधि में अधिकांश कार्य छात्रों द्वारा स्वयं किया जाता है।

इसमें अधिकांश कार्य शिक्षकों को करना होता है।

यह विधि बालकों को स्वतन्त्रतापूर्वक सोचने के अवसर प्रदान करती है।

इस विधि में बालकों को तर्क एवं स्वतन्र रूप से सोचने के अवसर उपलब्ध नहीं होते।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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