अध्यापक शिक्षा में अलगाव | अलगाव का अर्थ | अध्यापक प्रशिक्षण के कार्यक्रम में गुणात्मक सुधार के उपाय | अध्यापक शिक्षा के सुझाव
अध्यापक शिक्षा में अलगाव | अलगाव का अर्थ | अध्यापक प्रशिक्षण के कार्यक्रम में गुणात्मक सुधार के उपाय | अध्यापक शिक्षा के सुझाव
(Isolation in Teacher Education)
अलगाव का अर्थ (Meaning of Isolation)-
अध्यापक शिक्षा में अलगाव से तात्पर्य है एक स्तर के शिक्षकों का दूसरे स्तर के शिक्षकों से अलग रहना तथा एक ही स्तर पर अपने अपने विभागों में अलग रूप से कार्य करने से हैं।
अलगाव तीन स्तरों पर
(1) विश्वविद्यालयी जीवन से पृथकता।
(2) विद्यालयी जीवन से पृथकता।
(3) एक दूसरे से पृथकता।
भारत में अध्ययन व्यवसाय के निम्नलिखित तीन स्तर हैं-
(1) प्राथमिक स्तर,
(2) माध्यमिक स्तर तथा
(3) विश्वविद्यालयी स्तर।
उपरोक्त तीनों स्तरों पर शिक्षकों का कोई ताल-मेल नहीं है। इसका मुख्य कारण अध्यापक शिक्षा में समन्वय न होना है। इसी कारण शिक्षक-वर्ग एक-दूसरे से विशेष परिचित नहीं होता तथा न ही एक-दूसरे के ज्ञान का लाभ उठा पाता है। इस सन्दर्भ में कोठारी आयोग के अनुसार-“प्रत्येक प्रशिक्षण के स्तर, पूर्व-प्राथमिक तथा माध्यमिक, में प्रसार सेवा केन्द्र होना चाहियें तथा यह प्रशिक्षण संस्थाओं का अन्तरंग कार्यक्रम हो। स्टाफ के सभी सदस्य इसमें नियमित रूप से भाग लेंगे।”
अध्यापक प्रशिक्षण के कार्यक्रम में गुणात्मक सुधार के उपाय
(Remedies to Positive Improvement in Teacher-Training Schdule)
(1) माध्यमिक शिक्षकों की वृत्तिक शिक्षा की पाठ्यचर्या- आयोग के अनुसार-“आज इस स्तर पर पाठ्यक्रम में निम्न चीजें हैं-शिक्षा की दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक आधार भूमियों का अध्ययन, अभ्यास के लिए अध्ययन व्यावहारिक कार्य, स्कूल संगठन तथा शिक्षण विधियाँ। यहाँ आवश्यकता इस बात की है कि अनावश्यक वस्तुओं को निकाल दिया जाये तथा पाठ्यक्रम को ऐसा बनाया जाये कि उसका शिक्षक के दायित्व, भारतीय परिस्थितियों तथा समस्याओं एवं अध्ययन से सीधा सम्बन्ध रहे।”
(2) विषय ज्ञान की पुनः स्थापना- आयोग के अनुसार प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पाठ्यक्रम विषयों के गठन और विस्तृत अध्ययन की व्यवस्था होनी चाहिये।
(3) छात्र अध्यापन में सुधार-अधिकतर छात्राध्यापक जिस पाठ को पढ़ाते हैं, उनका निरीक्षण नहीं हो पाता। इस दिशा में सुधार किया जाना आवश्यक है।
(4) स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम-आयोग ने शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसमें शोध, समस्याओं के अध्ययन, प्रबन्ध तथा शैक्षिक नियोजन आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
(5) प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की अवधि- आयोग के अनुसार-“प्राथमिक स्तर पर दो वर्ष की न्यूनतम अवधि आवश्यक है तथा जिन क्षेत्रों में आज केवल एक वर्ष की पाठ्य अवधि है, वहाँ सभी जगह दो वर्षों की अवधि कर दी जानी चाहिये। माध्यमिक स्तर पर भी यह अवधि दो वर्ष की कर दी जानी चाहिये।“
(6) प्राथमिक अध्यापकों की वृत्तिक शिक्षा की पाठ्यचर्या-इस स्तर पर पाठ्यचर्या सैद्धान्तिक अधिक न होकर व्यावहारिक होनी चाहिये। सामुदायिक जीवन का विकास होना चाहिये।
(7) अध्ययन तथा योग्यतांकन की विधियों में सुधार- इस सम्बन्ध में आयोग के अनुसार- “खेद है कि इस बात का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता तथा प्रशिक्षण शालाओं में प्रयुक्त अध्ययन तथा योग्यतांकन की विधियाँ आज भी परम्परागत ही हैं।”
इस सम्बन्ध में आयोग ने निम्न सुझाव दिये हैं-
(i) अध्ययन वृत्ति का महत्त्व समझा जाना चाहिये।
(ii) विकसित तकनीक तथा पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिये।
(iii) सम्पर्क, अनुभव, अध्ययन और निर्वाचन चर्चा का प्रारम्भ होना चाहिये।
(8) सामान्य तथा वृत्तिक शिक्षा के समन्वित पाठ्यक्रम- कोठारी आयोग के अनुसार-“माध्यमिक शिक्षकों के स्तर पर विषयों तथा वृत्तिक प्रशिक्षण के बीच एक कड़ी स्थापित करने का वैकल्पिक उपाय यह है कि सामान्य तथा वृत्तिक शिक्षण के समकालिक तथा समन्वित पाठ्यक्रम रखे जाने चाहिये।”
(9) पाठ्यचर्चाओं में सुधार –कोठारी आयोग के अनुसार “अब वह समय आ गया है कि सभी स्तरों पर छात्र शिक्षकों को पाठ्यचर्चाओं पर फिर से विचार करना होगा। विविध कार्यों के आधार पर ही परीक्षा ली जानी चाहियें।”
(10) विशेष पाठ्यक्रमों तथा कार्यक्रमों का विकास- विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप नये पाठ्यक्रम बनाये जायें। यह काम राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् करे।
अध्यापक शिक्षा के सुझाव
(Suggestions)
(1) गाँधी जी के शैक्षिक मूल्यों जैसे अहिंसा, सत्य, आत्म-अनुशासन, श्रम की महत्ता आदि विकसित करना।
(2) स्नातक अध्यापक को एक वर्ष के प्रशिक्षण कार्यक्रम में कम से कम दो विषयों में शिक्षण विधि का प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।
(3) प्रयोगात्मक प्रशिक्षण में सिर्फ पाठों का शिक्षण अवलोकन, प्रदर्शन ही नहीं होना चाहिए, वरन् इसके साथ-साथ स्कूल स्तर पर परीक्षणों का निर्माण, अनुशासन तथा छात्रों का संगठन करना तथा संचयी लेखा पत्रों का रिकार्ड रखना होना चाहिए।
(4) सभी प्रशिक्षण विद्यालयों में शिक्षण स्तर एक समान होना चाहिए विषयों का अध्ययन उतनी गहनता के साथ अवश्य करना चाहिए जितना कि आवश्यक है।
(5) चुनाव प्रक्रिया विशेष होनी चाहिए जिसमें सिर्फ योग्य अभ्यार्थी ही चयनित हो।
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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- माध्यमिक शिक्षा का अर्थ | माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप एवं संगठन | माध्यमिक शिक्षा आयोग के सुझाव | कोठारी आयोग द्वारा माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का प्रस्तावित स्वरूप
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मूल तत्त्व | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का मूल्यांकन | राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा
- जर्नादन रेड्डी समिति के शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव | जनार्दन रेड्डी समिति 1992 का मूल्यांकन
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