शिक्षाशास्त्र / Education

माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें | माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें एवं उनका समाधान

माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें | माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें एवं उनका समाधान

माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें एवं उनका समाधान

(Problems Secondary Education and their Remedies)

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत, माध्यमिक शिक्षा में सुधार करने हेतु विभिन्न आयोगों का गठन किया गया, जिन्होंने इस सम्बन्ध में अपने-अपने सुझावों को प्रस्तुत किया, लेकिन फिर भी विभिन्न समस्यायें माध्यमिक शिक्षा के विकास में बाधक बनी हुई हैं, जिनके कारण माध्यमिक शिक्षा दोषपूर्ण है। ये समस्यायें एवं उनके समाधान के सुझाव निम्नलिखित हैं-

(1) उद्देश्यहीनता की समस्या-

माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को शिक्षण के सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी नहीं होती है और न ही इसके लिए वे कोई नियोजित प्रय न कर पाते हैं। इसी कारण वे बालकों में वांछनीय परिवर्तन करने में असफल रहते हैं। उद्देश्य न होने के कारण बालकों का भविष्य भी अधंकारमय रहता  है। उद्देश्यहीनता की समस्या के समाधान के लिए माध्यमिक स्तर की शिक्षा का उद्देश्य निश्चित किया जाये तथा शिक्षा को एक स्वतंत्र इकाई बनाया जाये।

मुदालियर आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(i) व्यावसायिक कुशलता में वृद्धि की जायें।

(ii) बालकों की नेतृत्व शक्ति का विकास किया जायें।

(iii) बालकों में लोकतांत्रिक नागरिकता का विकास किया जायें।

(iv) बालकों के व्यक्तित्व का विकास किया जाये।

(2) शिक्षा की दोषपूर्ण नीति-

ज्ञान को भली प्रकार से छात्रों तक पहुँचाने की शिक्षण विधियाँ महत्त्वपूर्ण साधन हैं। परन्तु आज भी हमारे देश में अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में परम्परागत शिक्षण विधियों का ही प्रयोग किया जाता है। नवीन शिक्षण विधियों से शिक्षक तथा छात्र दोनों ही अनभिज्ञ है।

शिक्षा की दोषपूर्ण नीति को समाप्त करने के लिए छात्र व शिक्षक को नवीन शिक्षण विधियों से परिचित कराया जाये तथा नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाये।

(3) अपर्याप्त पाठ्य-पुस्तकें-

माध्यमिक स्तर पर प्रकाशित अधिकांशत: पाठ्य-पुस्तकें ऐसी हैं, जिनसे छात्र स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं करते हैं। अवबोधनीय, सरल तथा स्पष्ट भाषा का इन पाठ्य-पुस्तकों में अभाव पाया जाता है। पाठ्य-वस्तु को वांछित रूप से न समझ पाने के कारण अधिकांश छात्र पाठ्य-वस्तु को रट लेते हैं। यदि रटे हुए प्रश्न परीक्षा में नहीं आते हैं तो वे अनुत्तीर्ण हो जाते हैं।

मुदालियर तथा कोठारी आयोग ने अपर्याप्त पाठ्य-पुस्तकों में सुधार करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(i) पाठ्य-पुस्तकें शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिये।

(ii) पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण छात्रों की बौद्धिक योग्यता तथा कक्षा की परिस्थिति के अनुसार किया जायें।

(iii) पाठ्य-पुस्तकों की भाषा सरल तथा स्पष्ट हों।

(iv) पाठ्य-पुस्तकों के चयन, निर्माण तथा प्रकाशन के लिए एक समिति का गठन किया जाये जिसका सभापतित्व शिक्षा संचालक करें।

(4) व्यावसायीकरण की समस्या-

औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप आज माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायीकरण करना अत्यन्त आवश्यक है। कोठारी आयोग के अनुसार- “इस शिक्षा को विस्तृत पैमाने पर व्यावसायिक बनाया जाये तथा 1968 तक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की विद्यार्थी संख्या का बीस प्रतिशत व उच्चतम माध्यमिक स्तर की समग्र विद्यार्थी संख्या का पचास प्रतिशत कर दिया जायें।” परन्तु विभिन्न आयोगों द्वारा प्रस्तुत सुझावों के उपरांत भी आज शिक्षा के व्यावसायीकरण में कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं।

व्यावसायीकरण की समस्या के समाधान के लिए माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार की व्यवस्था की जायें-

(i) सामान्य शिक्षा तथा (ii) व्यावसायिक शिक्षा। इन दोनों स्तरों पर एक से तीन वर्ष तक व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जायें। माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण के लिए धनी व्यक्तियों से शिक्षा कर लिया जाये। छात्रों को व्यावसायिक केन्द्रों में ले जाकर उन्हें व्यावसायिक ज्ञान प्रदान किया जायें तथा व्यावसायिक शिक्षा की प्राप्ति के पश्चात् उन्हें रोजगार दिलाने का हर संभव प्रयास किया जाये।

(5) अवांछित विद्यालयों की वृद्धि-

भारत में सरकारी तथा गैर-सरकारी दोनों प्रकार के माध्यमिक विद्यालय हैं। शिक्षा विस्तार के साथ अनेक अवांछित विद्यालयों में वृद्धि हुई है। इन विद्यालयों में छात्रों से अधिक फीस ली जाती है। शिक्षकों से अधिक वेतन लिखवाकर उन्हें कम वेतन दिया जाता है।

अवांछित विद्यालयों की वृद्धि की समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिये-

(i) देश के सभी अवांछनीय विद्यालय बन्द कर दिये जायें।

(ii) सरकार के द्वारा माध्यमिक शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कर दिया जायें, जिससे इन विद्यालयों के प्रबंधक लाभ न उठा सकें।

(6) दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली-

माध्यमिक स्तर की परीक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। यह परीक्षा प्रणाली छात्रों में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देती है। अधिकांश छात्र नकल की ओर आकर्षित होते हैं तथा शिक्षक भी शिक्षण के प्रति लापरवाही दिखाते हैं। प्रश्न-पत्रों में लघु तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का अभाव रहता है।

दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली की समस्या के समाधान हेतु मुदालियर आयोग ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(i) बाह्य परीक्षायें कम होनी चाहिये।

(ii) बाह्य तथा आन्तरिक परीक्षाओं के कार्यों का मूल्यांकन अंकों के स्थान पर ग्रेडों द्वारा किया जाये।

(iii) परीक्षा में केवल निबन्धात्मक प्रश्न ही नहीं पूछे जायें।

(iv) विद्यालय में प्रत्येक छात्र का एक विद्यालय अभिलेख हो जिसमें छात्र द्वारा अनेक क्षेत्रों में प्राप्त की गयी सफलताओं का वर्णन किया जाये।

(7) विस्तार की समस्या-

हमारे देश में आज माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। छात्रों की संख्या के अनुपात में विद्यालयों की संख्या कम है। इसी कारण एक-एक कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या 70 से अधिक होती जा रही है जिससे शिक्षक प्रत्येक छात्र पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। माध्यमिक शिक्षा के गुणात्मक विकास की दृष्टि से विस्तार की समस्या एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

विस्तार की समस्या के समाधान हेतु विद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जायें। एक-एक कक्षा में कम विद्यार्थी बैठाये जायें जिससे शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी पर ध्यान दे सकें।

(8) पाठ्यक्रम की समस्या-

माध्यमिक स्तर की शिक्षा दोषपूर्ण है। समस्त विद्यार्थी निर्धारित और परम्परागत पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा प्राप्त करते हैं। छात्रों को अपनी रूचि तथा मानसिक योग्यता के अनुसार विषय-चयन के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं जिससे वे अभिवृत्तियों तथा मौलिक विचारों के अनुरूप शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

पाठ्यक्रम की समस्या के समाधान के लिए मुदालियर आयोग ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(i) पाठ्यक्रम छात्रों को प्रेरित करने वाला होना चाहिये।

(ii) पाठ्यक्रम छात्रों की विभिन्न योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास करने वाला होना चाहिये।

(iii) पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिय।

(iv) पाठ्यक्रम के संपूर्ण विषयों में परस्पर सम्बन्ध होना चाहिये।

(v) छात्रों को उनकी रुचि के अनुसार विषयों के चयन का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।

(9) शिक्षकों की स्थिति-

माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य करने वाले अनेक शिक्षक आज भी अप्रशिक्षित हैं। इनमें से अधिकांश शिक्षकों की शिक्षण कार्य में रूचि नहीं होती और जिनकी रूचि होती है वे कम वेतन के कारण अपना कार्य निष्ठापूर्वक नहीं कर पाते हैं। इन सब बातों का प्रभाव विद्यार्थियों के शैक्षिक जीवन पर पड़ता है, फलस्वरूप उनका भविष्य अंधकारपूर्ण हो जाता है।

इस समस्या के समाधान हेतु शिक्षकों को शिक्षण कार्य के लिए प्रशिक्षित किया जायें। शिक्षकों का वेतन बढ़ाया जायें जिससे उनकी इस व्यवसाय में रूचि उत्पन्न हो तथा वे अपना कार्य निष्ठापूर्वक कर सकें।

(10) सामुदायिक जीवन का अभाव-

भारत के अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में सामुदायिक जीवन का अभाव पाया जाता है, क्योंकि इन विद्यालयों में सामाजिक कार्यों का आयोजन नहीं किया जाता है। परिणामस्वरूप छात्रों में परस्पर प्रेम, सद्भाव और सहयोग की भावना का विकास नहीं हो पाता है और न ही उनमें सामुदायिक जीवन की भावना का विकास हो पाता है। ये विद्यालय छात्रों को उत्तम नागरिक बनाने तथा उनमें सुंसगठित सामुदायिक जीवन व्यतीत करने की भावना का विकास करने में असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् छात्र देश के कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिक नहीं बन पाते हैं।

इस समस्या के समाधान के लिए विद्यालयों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जायें। सरकार, शिक्षक, विद्यार्थी तथा जनता सभी मिलकर इस कार्य को करें तथा समस्त विद्यालयों को सामुदायिक जीवन के केन्द्र बनाने के लिए अपना योगदान दें।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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