भारत में कागज उद्योग

भारत में कागज उद्योग | भारत में कागज उद्योग की स्थापना के कारक | भारत में कागज मिलों का वितरण

भारत में कागज उद्योग | भारत में कागज उद्योग की स्थापना के कारक | भारत में कागज मिलों का वितरण | Paper Industry in India in Hindi | Factors for the establishment of paper industry in India in Hindi | distribution of paper mills in India in Hindi

भारत में कागज उद्योग

भारत में सदियों तक हाथ से कागज बनाया जाता रहा। कागज तैयार करने के लिए कच्चा माल के रूप में लुगदी या पल्प (Pulp) का उपयोग किया जाता है। यह दो प्रकार की होती है। (क) यांत्रिक लुगदी (Mechanical Pulp) और (ख) रासायनिक लुगदी (Chemical Pulp ) r रासायनिक लुगदी से अच्छे प्रकार के कागज बनाये जाते हैं। लुगदी तैयार करने के लिये चीड़ स्प्रूस, हेमलाक, फर, पोपलर, सलाई, वैटल, यूक्लिप्टस एवं शहतूत आदि वृक्षों की लकड़ियाँ उपयोग में लायी जाती हैं जिन्हें पानी में भिगोकर पीसा जाता है।

भारत में लुगदी बनाने के पदार्थों की बहुलता है जबकि पाश्चात्य देशों को कच्चे माल के लिये अन्य देशों पर निर्भर करना पड़ता है। यहाँ साधारण कागज तैयार करने के लिए गन्ने की खोई का भी उपयोग किया जा रहा है। तराई प्रदेश में सवाई घास बहुतायत से पैदा की जा रही है।

प्राचीन काल में भारत में कागज उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में प्रचलित था क्योंकि उस समय शिक्षा का व्यापक प्रसार नहीं था। छापने की मशीनों का भी विकास नहीं हो पाया था। शिक्षा के प्रसार के साथ ही साथ कागज की माँग भी देश में बढ़ती गयी। इसीलिये देश में कागज के व्यापक पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा।

सन् 1886 में पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के किनारे बाली नामक स्थान पर प्रथम कागज की मिल की स्थापना की गयी जो कि सफल न हो सकने के कारण बाद में टीटागढ़ पेपर मिल द्वारा चलायी जाने लगी। इस प्रकार भारत में कागज उद्योग का वास्तविक इतिहास सन् 1925 से प्रारंभ होता है जबकि इस उद्योग को तटकर संरक्षण प्रदान किया गया एवं आयात किए जाने वाले कागज पर 25 प्रतिशत आयात कर लगा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि सन् 1937 तक देश में 10 कागज मिलें हो गयीं। उनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 50 हजार टन हो गयी। द्वितीय महायुद्ध काल में इसके उद्योग में बराबर प्रगति होती रही।

हमारे देश में इस समय प्रति व्यक्ति कागज की खपत 30 पौण्ड है जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान एवं ग्रेट ब्रिटेन आदि देशों की तुलना में बहुत कम है जहाँ कागज का उपयोग क्रमशः 453 पौण्ड, 126 पौण्ड एवं 207 पौण्ड हैं। इसीलिए पंचम पंचवर्षीय योजना काल में उत्पादन को 1 करोड़ 30 हजार टन तक पहुँचाने की योजना बनायी गयी थी। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 25-30 नवीन कागज की मिलों को स्थापित करने की योजना बनायी है जिनमें प्रत्येक मिल की उत्पादन क्षमता 100 टन कागज प्रतिदिन की थी। इसी कार्यक्रम के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में 23 करोड़ रूपये की लागत से अखबारी एवं छापने योग्य अच्छे प्रकार का कागज तैयार करने के लिए दो नवीन कारखाने खोले गए हैं। इसके अतिरिक्त पंजाब  एवं उत्तर प्रदेश में एक-एक कागज की मिलें स्थापित की गयी, जिनका क्षमता क्रमशः 60 हजार टन एवं 30 हजार टन वार्षिक है।

वितरण (Distribution)-

देश के विभिन्न राज्यों में कागज की मिलों एवं उनकी उत्पादन क्षमता का विवरण निम्न तालिका से स्पष्ट है।

तालिकाः भारत में कागज मिलों का वितरण

राज्य

मिलों की संख्या

उत्पादन क्षमता (हजार टनों में)

पश्चिम बंगाल

24

216

उत्तर प्रदेश

46

225

बिहार

11

88

ओडिशा

11

188

हरियाणा

20

125

पंजाब

20

103

गुजरात

43

210

महाराष्ट्र

44

230

आंध्र प्रदेश

25

329

कर्नाटक

23

160

केरल

8

80

तमिलनाडु

20

188

मध्य प्रदेश

22

190

जम्मू कश्मीर

02

40

असोम

06

60

नागालैंड

1

32

हिमांचल

9

29

राजस्थान

5

15

दिल्ली

1

05

पश्चिम बंगाल- इस राज्य में देश के कुल कागज उत्पादन का इस समय 30 प्रतिशत तैयार किया जाता है। यहाँ की प्रमुख मिलों में टीटागढ़ पेपर मिल्स, टीटागढ़ तथा बंगाल पेपर, मिल्स रानीगंज हैं जिनकी उत्पादन क्षमता क्रमशः 50 हजार टनएवं 35 हजार मी0 टन है। अन्य केद्र नैहाटी, त्रिवेणी, कोलकाता, काकीनाड़ा और चंद्रहाटा है। यहाँ की मिलों को कच्चे माल के रूप में बाँस असम एवं सवाई घास मध्य प्रदेश एवं बिहार से प्राप्त होती है। शक्ति के लिए कोयला बिहार से एवं रसायन आदि कलकत्ता से प्राप्त होते हैं। आस-पास के घने आबाद क्षेत्रों से श्रमिक मिल जाते हैं।

उत्तर प्रदेश- यहाँ लखनऊ, सहारनपुर में कागज तथा मेरठ, पिलखुआ (मेरठ), सहारनपुर, पिपराइच (गोरखपुर) तथा नैनी (इलाहाबाद) में दफ्ती बनाने के कारखाने हैं। यहाँ पर सवाई घास तराई के क्षेत्रों में मिल जाती है। सवाई घास पैदा करने वाले भागों को दो भागों में बाँटा जाताता है (क) पूर्वी एवं (ख) पश्चिमी। पूर्वी क्षेत्र से घास लखनऊ को एवं पश्चिमी क्षेत्र से घास सहारनपुर को प्राप्त होती है। शक्ति के लिए कोयला बिहार एवं उड़ीसा से मिल जाता है।  इस भाग में घनी जनसंख्या के कारण श्रमिक पर्याप्त संख्या में मिल जाते हैं।

बिहार- यहाँ डालमियानगर (रोहतास), रामेश्वरनगर (दरभंगा) समस्तीपुर तथा डुमराव (भोजपुर) में कागज की मिलें हैं। इनकी उत्पादन क्षमता लगभग एक लाख मी) टन है। इसमें डालमियानगर की रोहतास पेपर मिल्स सर्वप्रमुख है। दक्षिणी बिहार में बाँस तथा पूर्वी भागों से सवाई घास प्राप्त हो जाती है।

उड़ीसा- इस राज्य में ब्रजराजनगर (संबलपुर), रायगढ़ (कोरापुट) तथा चौडवार (कटक) में कागज मिलें हैं। इनमें ओरियंट पेपर मिल, ब्रजराजनगर, सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जिसकी उत्पादन क्षमता 68 हजार टन वार्षिक है। यहाँ की सभी मिलें रायपुर की कोयले की खदानों के निकट स्थित हैं। इस राज्य की सभी मिलों की सम्मिलित उत्पादन क्षमता 1 लाख 88 हजार टन वार्षिक है।

आंध्र प्रदेश- इस राज्य में तिरूपति (चित्तूर), राजमुंद्री (पूर्वी गोदावरी), खिरपुर, बोधन एवं शक्करनगर (निजामाबाद) में कागज की मिलें हैं।

इसके अतिरिक्त तमिलनाडु के पालीपालकम (सेलम), ओक्तुममंदु (नीलगिरि), पुत्तुकोदाई तथा तिरचैनागुड़ सेलम), में कागज की मिलें हैं। केरल में तुनालूर (कोट्टायम) में कागज की मिलें हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 80 हजार टन वार्षिक है। कर्नाटक में मैसूर पेपर मिल भद्रावती (शिमोगा), माण्डया नेशनल पेपर मिल चेलम्कुला (माण्डवी) वेस्ट कोस्ट पेपर मिल डोण्डली (उत्तरी कनारा) तथा कावेरी वैली पेपर मिल नंदनगडु (मैसूर में कागज की मिलें हैं।

व्यापार-

भारत में कागज की माँग अधिक है। अतः कागज का आयात कनाडा, फिनलैंड, स्वीडन एवं रूस किया जाता है। हमारे यहाँ से कुछ कागज का निर्यात भी होता है। यह निर्यात समीपवर्ती देशों जैसे श्रीलंका, म्याँमार, मलयेशिया तथा पूर्वी अफ्रीका को किया जाता है। हमारे यहाँ अखबारी कागज का वार्षिक उत्पादन लगभग 270 हजार मी0 टन है जो कि माँग से बहुत कम है अतः इसका आयात बड़ी मात्रा में करना पड़ता है।

भविष्य-

कागज उद्योग का भविष्य बहुत उज्जवल है। भारत के विभिन्न भागों में कागज की मिलों की शीघ्र स्थापना की आवश्यकता है। इसके लिए सक्रिय प्रयास की आवश्यकता का अनुभव किया जा सकता है। पंजाब के होशियारपुर में एवं हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा में अखबारी कागज की मिलें निर्माणाधीन हैं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में अनेक नवीन मिलों की स्थापना के लिए लाइसेंस दिए गये हैं।

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