अर्थशास्त्र / Economics

भारत में राष्ट्रीय आय कम होने के कारण | भारत में राष्ट्रीय आय में वृद्धि के उपाय | भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण | भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के उपाय | भारत में राष्ट्रीय आय धीमी गति से वृद्धि के कारण | भारत में प्रति व्यक्ति आय धीमी गति से वृद्धि के कारण

भारत में राष्ट्रीय आय कम होने के कारण | भारत में राष्ट्रीय आय में वृद्धि के उपाय | भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण | भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के उपाय | भारत में राष्ट्रीय आय धीमी गति से वृद्धि के कारण | भारत में प्रति व्यक्ति आय धीमी गति से वृद्धि के कारण

भारत में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय कम होने तथा उनमें धीमी गति से वृद्धि के कारण तथा उनमें वृद्धि के उपाय

विश्व के अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में भारत में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय काफी निम्न है। विश्व विकास रिपोर्ट 1994 के अनुसार सयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 21 हजार डॉलर, जापान में 12 हजार डॉलर और स्विट्जरलैण्ड में 32 हजार डॉलर से से भी अधिक है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 350 डॉलर थी, जो चीन के 370 डॉलर और श्रीलंका के 500 डॉलर से भी कम है। इतना ही नहीं, वर्ष 1965- 90 के काल में जापान की प्रति व्यक्ति आय में वार्षिक वृद्धि की दर 3.5 प्रतिशत रही थी, चीन में वार्षिक वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रही वहीं भारत में औसत वार्षिक वृद्धि दर मात्र 1.9 प्रतिशत थी। ये समस्त तथ्य आश्चर्यजनक हैं। भारत में योजनाबद्ध आर्थिक विकास के 48 वर्षों में भी भारत की राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में सन्तोषजनक वृद्धि सम्भव नहीं हो पायी है। जिसके अनेक कारण हैं-

(1) आर्थिक विकास की धीमी गति-

यद्यपि पंचवर्षीय योजनाकाल में भारत के आर्थिक विकास के लिए अथक प्रयत्न किये गये हैं लेकिन फिर भी आर्थिक विकास की गति काफी धीमी रही है। प्रथम पंचवर्षीय योजना काल में आर्थिक विकास की दर मात्र 3.6 प्रतिशत थी, वह तीसरी पंचवर्षीय योजना में कम होकर 2.3 प्रतिशत तथा 1979-80 में ऋणात्मक हो गयी। वर्ष 1991-92 में आर्थिक विकास की दर मात्र एक प्रतिशत थी जो वर्ष 1993-94 में बढ़कर 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो काफी कम है। आठवीं पंचवर्षीय योजना काल में 5.6 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन वास्तविक औसत विकास दर 6.8 प्रतिशत रही। इसलिए देश में योजनाओं के दौरान आर्थिक विकास की गति तेज करना आवश्यक है। वर्ष 1996-97 में विकास की दर 7.5 प्रतिशत लेकिन वर्ष 1997-98 में घटकर 5.2 प्रतिशत रह गयी।

(2) प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग का अभाव-

भारत प्राकृतिक संसाधनों में सम्पन्न और एक धनी राष्ट्र है लेकिन पूँजीगत और तकनीकी साधनों का अभाव होने के कारण इनका पूरी तरह विदोहन सम्भव नहीं हो सका है। इसलिए समृद्धि में गरीबी का विरोधाभास देखने को मिलता है। भारत में सरकार को प्राकृतिक संसाधनों के उचित विदोहन के लिए पर्याप्त पूँजीगत एवं तकनीकी संसाधनों में वृद्धि करनी चाहिए।

(3) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि-

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि सम्भव हुई है जिससे आर्थिक विकास में बाधा पड़ी है। वर्ष 1951 में भारत में मात्र 36 करोड़ जनसंख्या थी वह अब बढ़कर लगभग 98 करोड़ हो गयी है। जनसंख्या में वार्षिक वृद्धि की दर 2.15 प्रतिशत से बढ़कर 2.5 प्रतिशत वार्षिक रही तथा आर्थिक विकास की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 3.5 प्रतिशत रही, इस प्रकार जनसंख्या की तीव्र वृद्धि ने आर्थिक विकास की उपलब्धियों को चोट पहुंचाई है तथा प्रति व्यक्ति आय में न के बराबर वृद्धि सम्भव हुई है। इसलिए राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में सन्तोषजनक वार्षिक वृद्धि करने के लिए जनसंख्या पर तीव्र नियन्त्रण लगाने की आवश्यकता है।

(4) कृषि की मानसून पर निर्भरता व अनिश्चितता-

भारतीय अर्थव्यवस्था प्रारम्भ से ही कृषि प्रधान है तथा मानसून पर निर्भर है और मानसून में अनिश्चितता व अनियमितता का गुण पाया जाता है। योजनाबद्ध विकास के 48 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन भारत में अभी तक सिंचाई के साधनों का पूरी तरह विकास सम्भव नहीं हो सका है। आज भी भारतीय कृषि अधिकांशतः मानसून पर निर्भर है जिसका प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध औद्योगिक उत्पादन, रोजगार, प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय इत्यादि से होता है। अकाल तथा सूखा पड़ने पर प्रति व्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय बुरी तरह प्रभावित होती है। इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र को मानसून के जुए से छुटकारा प्राप्त करवाने के लिए और भूमिगत जल सुविधाओं से सिंचाई के साधनों में पर्याप्त वृद्धि करने की तत्काल आवश्यकता है।

(5) औद्योगिक विकास की धीमी गति-

भारत में यद्यपि पंचवर्षीय योजना काल में तीव्र गति से औद्योगिक विकास सम्भव हुआ है लेकिन कृषिगत उद्योगों में मानसून की अनिश्चितता के कारण उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कच्चे माल का अभाव, शक्ति के साधनों का अभाव, हड़ताल व तालाबन्दी, यातायात व सन्देशवाहन के साधनों का अभाव, वित्तीय एवं तकनीकी साधनों का अभाव इत्यादि के कारण औद्योगिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। 1980 के दशक में औद्योगिक विकास की वार्षिक दर लगभग 8-9 प्रतिशत रही लेकिन वर्ष 1991-92 में औद्योगिक विकास की दर गिरकर लगभग 1% रह गई लेकिन वर्ष 1993-94 में यह दर बढ़कर 1.6 प्रतिशत हो गयी। भारत में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में धीमी वृद्धि के लिए ये समस्त कारण उत्तरदायी रहे हैं। इसलिए देश में औद्योगिक विकास की गति शीघ्र तेज करने की आवश्यकता है। वर्ष 1994-95 में औद्योगिक विकास की दर 8 प्रतिशत होने का अनुमान था जबकि वर्ष 1995-96 में यह दर बढ़कर 12 प्रतिशत तक पहंच गयी थी जो वर्ष 1997-98 में कम होकर 4.2 प्रतिशत रह गयी।

(6) बढ़ती हुई बेरोजगारी-

भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन प्रबल होती जा रही है। बढ़ती हुई मानव शक्ति का पूर्ण रूप से सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। एक अनुमान के अनुसार आठवीं पंचवर्षीय योजना में देश में नये रोजगार चाहने वालों की संख्या में लगभग 3.5 करोड़ की वृद्धि होगी तथा नवीं पंचवर्षीय योजना में लगभग 3.6 करोड़ नये रोजगार के इच्छुक लोगों को रोजगार से जोड़ने का है। आठवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ में बेरोजगार लोगों की संख्या मात्र 3.5 करोड़ है। रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगार लोगों की संख्या अब लगभग 4.5 करोड़ होने जा रही है। इसलिए राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय का निम्न होना एक साधारण बात है। वर्तमान में देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग 5 से 6 करोड़ के मध्य हैं। भारत में इस समय आवश्यकता इस बात की है कि बेरोजगार लोगों को लाभदायक रोजगार के अवसर प्रदान करके और अल्प-बेरोजगार लोगों की पूर्णकालिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाकर उपलब्ध उत्पादक क्रय शक्ति का पूरा-पूरा सदुपयोग किया जावे, जिससे उनकी आय में वृद्धि से राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में निरन्तर वृद्धि सम्भव हो सके। इसके साथ ही श्रम प्रधान उद्योगों को आर्थिक विकास में प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें।

(7) उत्पादकता का निम्न स्तर-

वर्तमान में भारत के लगभग समस्त उद्योगों में श्रम की उत्पादकता काफी कम है। विश्व के अन्य राष्ट्रों में पूँजीगत एवं तकनीकी संसाधनों की पर्याप्तता होने के कारण वहाँ श्रम शक्ति की उत्पादकता काफी उच्च है तथा प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय भी काफी अधिक है जबकि भारत में वित्तीय संसाधनों की कमी, उत्पादन की परम्परागत तकनीक और घिसी-पिटी मशीनों के उपयोग के फलस्वरूप श्रम उपादकता काफी कम है। कृषि क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर उपज काफी कम है। श्रम की कार्यकुशलता का निम्न स्तर दरिद्रता का कारण तथा परिणाम दोनों हैं।

(8) अर्थव्यवस्था में आधारभूत संरचना की कमी-

किसी भी अर्थव्यवस्था के तीव्र आर्थिक विकास के लिए यातायात एवं सन्देशवाहन, जल, विद्युत शक्ति इत्यादि की आवश्यकता महसूस होती है। अभी तक भारत में इन आधारभूत संरचनाओं का पूर्ण रूप से अभाव है। इनके बिना देश में तीव्र औद्योगिक विकास सम्भव नहीं है और तीव्र औद्योगिक विकास के बिना प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि सम्भव नहीं है। इसलिए देश में इन समस्त आधारभूत संरचनाओं का तेजी से विकास किया जाना चाहिए जिससे भावी राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो सके।

(9) भाग्यवादी और रूढ़िवादी दृष्टिकोण-

भारत में शिक्षा के अभाव के कारण यहाँ के लोग भाग्यवादी और रूढ़िवादी हैं। वे बेरोजगारी, गरीबी, सन्तानोत्पत्ति इत्यादि को भाग्य का दोष मानते हैं। देश में उत्पादन रूढ़िवादी एवं परम्परावादी विधियों के आधार पर किया जाता है, अभी तक आधुनिक तकनीकों का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में नहीं हुआ है जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय काफी कम है। देश में इस समस्या के निवारण के लिए शिक्षा एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, तथा वित्तीय सुविधाओं एवं आधुनिक तकनीकों का अधिक से अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए।

इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में यह कह सकते हैं कि भारत में प्राकृतिक संसाधन बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं और मानव शक्ति में भी तीव्र गति से वृद्धि हो रही है अतएव राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में तीव्र गति से वृद्धि करने के लिए इन समस्त संसाधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। आर्थिक विकास की दर को तेज करने के लिए जनसंख्या पर नियन्त्रण, आधारभूत सुविधाओं का विस्तार, श्रम उत्पादकता में वृद्धि, प्रगतिशील दृष्टिकोण का विकास इत्यादि की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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