लौकिक संस्कृत का परिचय

लौकिक संस्कृत का परिचय | वाक्य-विज्ञान | वाक्य की आवश्यकताओं की विवेचन | वाक्य के अंग | प्राचीन आर्य-भाषा | ध्वनि प्रक्रिया

लौकिक संस्कृत का परिचय | वाक्य-विज्ञान | वाक्य की आवश्यकताओं की विवेचन | वाक्य के अंग | प्राचीन आर्य-भाषा | ध्वनि प्रक्रिया लौकिक संस्कृत का परिचय लौकिक संस्कृत के अन्य नाम संस्कृत, क्लासिकल संस्कृत तथा देव-भाषा भी है। वैदिक संस्कृत में भाषा के तीन स्तर उपलब्ध है-उत्तरी, मध्यदेशीय और पूर्वी। कहने की आवश्यकता नहीं है…

स्वर और व्यंजन में प्रमुख अन्तर

स्वर और व्यंजन में प्रमुख अन्तर | ध्वनि-परिवर्तन की दिशा के अन्तर्गत विषमीकरण का वर्णन | अर्थ-विज्ञान का तात्पर्य | अर्थ-संकोच का परिचय | स्वराघात का परिचय

स्वर और व्यंजन में प्रमुख अन्तर | ध्वनि-परिवर्तन की दिशा के अन्तर्गत विषमीकरण का वर्णन | अर्थ-विज्ञान का तात्पर्य | अर्थ-संकोच का परिचय | स्वराघात का परिचय स्वर और व्यंजन में प्रमुख अन्तर स्वर और व्यंजन में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं- (1) स्वर और व्यंजन का अन्तर श्रोता के विचार से किया जाता है। स्वर…

ग्रिम के ध्वनि-नियम के दोष

ग्रिम के ध्वनि-नियम के दोष | ध्वनि परिवर्तन के बाह्य कारण | ध्वनि-यन्त्र का महत्व | वैदिक भाष तथा लौकिक संस्कृत को ध्वनियों का परिचय | ध्वनि-नियम और ध्वनि-प्रवृत्ति में अन्तर

ग्रिम के ध्वनि-नियम के दोष | ध्वनि परिवर्तन के बाह्य कारण | ध्वनि-यन्त्र का महत्व | वैदिक भाष तथा लौकिक संस्कृत को ध्वनियों का परिचय | ध्वनि-नियम और ध्वनि-प्रवृत्ति में अन्तर ग्रिम के ध्वनि-नियम के दोष ग्रिम के ध्वनि-नियम में निम्नलिखित तीन दोष बताये जाते हैं- (1) काल-दोष- ग्रिम महोदय के ध्वनि-नियम के अनुसार भिन्न-भिन्न…

वैदिक और लौकिक संस्कृत का नामकरण

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा | वैदिक और लौकिक संस्कृत का नामकरण | वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत में अन्तर

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा | वैदिक और लौकिक संस्कृत का नामकरण | वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत में अन्तर प्राचीन भारतीय आर्य-भाषा- प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का समय भाषा- विज्ञानवेत्ताओं ने आर्यों के भारत प्रवेश से 500 ई0पू0 तक माना है। इस युग की भाषा संस्कृत कहलाती है। इसके दो रूप उपलब्ध होते हैं- (1)…

भारतीय आर्य भाषा

भारतीय आर्य भाषा | प्राचीन आर्य भाषा का परिचय

भारतीय आर्य भाषा | प्राचीन आर्य भाषा का परिचय भारतीय आर्य भाषा भारतीय आर्य-भाषा के प्रारम्भ का अनुमानित समय 1500ई0 पू0 के आस-पास है। 1500ई0 पू0 से लगभग 2000 ईसवी (साढ़े तीन हजार वर्षों) तक के सुदीर्घ-काल को भाषिक विशेषताओं के आधार पर तीन कालों में बाँटा गया है- (क) प्राचीन आर्य-भाषा- 1500 ई0पू0 से…

वाक्यों के प्रकार

वाक्यों के प्रकार | वाक्यों के भेद

वाक्यों के प्रकार | वाक्यों के भेद वाक्यों के प्रकार वाक्यों के भेद के कई आधार स्वीकार किये गये हैं और वाक्यों के कई प्रकारों का उल्लेख किया गया है। डा0 कपिलदेव द्विवेदी ने प्रमुख रूप में वाक्यों के निम्न पाँच भेदों का उल्लेख किया है- (1) आकृतिमूलक भेद। (2) रचनामूलक भेद। (3) अर्थमूलक भेद।…

स्वरों का वर्गीकरण

स्वरों का वर्गीकरण | उच्चारण प्रयत्न के अनुसार ध्वनियों का वर्गीकरण | घोषत्व के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण | प्राणत्व के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण | अनुनासिकता के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण

स्वरों का वर्गीकरण | उच्चारण प्रयत्न के अनुसार ध्वनियों का वर्गीकरण | घोषत्व के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण | प्राणत्व के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण | अनुनासिकता के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण स्वरों का वर्गीकरण सामान्यतः ध्वनियों को मोटे रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है- (अ) स्वर, (ब) व्यंजन।…

ध्वनि परिवर्तन का स्वरूप और दिशा

ध्वनि परिवर्तन का स्वरूप और दिशा

ध्वनि परिवर्तन का स्वरूप और दिशा ध्वनि परिवर्तन का स्वरूप और दिशा (1) समीकरण और सदृश्य, (2) विषमीकरण, (3) लोप, (4) आगमको समीकरण और सादृश्य- कोई एक ध्वनि किसी दूसरी ध्वनि के प्रभाव से कोई तीसरा रूप ग्रहण कर ले, तो इस प्रक्रिया को समीकरण कहा जाता है। बातचीत करते समय समीपवर्ती ध्वनियाँ एक-दूसरे पर…

ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारण

ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारण

ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारण ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारण जीवित भाषा में परिवर्तन शाश्वत है। परिवर्तन ही भाषा का विकार है। ध्वनि विकार मुख्यतः मुख-सुख और अपूर्ण अनुकरण से होता है। ‘कृष्ण’ पहले ‘क्रिशन’ हुआ फिर ‘किशुन’ और बाद में किसुन या ‘किसन’ हो गया। यह ध्वनि परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे होने पर भी अपने…