महाराजा का इलाज सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | यशपाल – महाराजा का इलाज

महाराजा का इलाज सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | यशपाल – महाराजा का इलाज महाराजा का इलाज (1) महाराजा गर्मियों में प्रतिवर्ष मंसूरी में जाकर रियासत की कोठी में रहते थे। कोठी की अपनी रिक्शाएं थी। रिक्शा खींचने वाले कुलियों की नीली वर्दियों पर मोहाना स्टेट के बिल्ले चमचमाते पीतल के रहते थे। महाराज जब कभी कोठी…

दोपहर का भोजन सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | अमरकान्त – दोपहर

दोपहर का भोजन सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | अमरकान्त – दोपहर का भोजन दोपहर का भोजन सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या सिद्धेश्वरी लोटा लेकर पानी लेने चली गयी। रामचन्द्र ने कटोरे को अँगुलियों से बजाया, फिर हाथ को थाल में रख दिया। एक दो क्षण बाद रोटी के टुकड़े को धीरे से हाथ से उठा कर आँख से…

गुल्ली डण्डा कहानी की व्याख्या

गुल्ली डण्डा कहानी की व्याख्या | प्रेमचंद की कहानी गुल्ली डण्डा

गुल्ली डण्डा कहानी की व्याख्या | प्रेमचंद की कहानी गुल्ली डण्डा गुल्ली डण्डा कहानी की व्याख्या मुझे पदाकर मेरा कचूमर नहीं निकालना चाहता था। ‘ अब अफसर हूँ। यह अफसरी मेरे और उसके बीच में दीवार बन गयी है। अब मैं उसका लिहाज पा सकता हूँ, अदब पा सकता है, साहचर्य नहीं पा सकता। लड़कपन…

विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली | ललित निबन्ध किसे कहते हैं?

विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली | ललित निबन्ध किसे कहते हैं? विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली ललिता निबन्ध, साहित्य की एक कोटि है। निबन्ध में रचनाकार के व्यक्तित्व का रचना ही ललित निबन्ध की खास पहचान है। इस प्रकार के निबन्धों में निबन्धकार विषय को मात्र सहारा के लिये सामने रखता है, निबन्ध में जो…

एक दुराशा निबन्ध का सारांश | बालमुकुन्द गुप्त की भाषा-शैली

एक दुराशा निबन्ध का सारांश | बालमुकुन्द गुप्त की भाषा-शैली एक दुराशा निबन्ध का सारांश भंग की तरंग में मस्त शिवशम्भु के मानसिक घोड़े वा से कुलांचे भर रहे थे कि उनके कानों में एक सुरीले गाने के बोल ‘चलो-चलो आज खेलें होली कन्हैया के घर’ पड़ गये। गाने की आवाज सुनकर शिवशम्भु बाहर आये…

बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली | बालमुकुन्द गुप्त की निबन्ध शैली की विशेषताएँ

बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली | बालमुकुन्द गुप्त की निबन्ध शैली की विशेषताएँ बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली हिन्दी निबन्ध जगत् में बालमुकुन्द गुप्त पत्रकार और निबन्धकार दोनों के संश्लिष्ट रूप हैं। यह भारतेन्दु और द्विवेदी-युग की कड़ी हैं। जयनाथ नलिन का कहना सर्वांशतः सत्य है कि “इनके निबन्धों के प्राण भारतेन्दु युग’…

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रमुख रचनाएँ | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की निबंध शैली

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रमुख रचनाएँ | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की निबंध शैली भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय- युग प्रवर्तक भारतेन्दु आधुनिक हिन्दी साहित्य की ऐसी महान विभूति है जिन्होंने रीति के पंक में फंसी हिन्दी सरिता को आधुनिकता की नवीन भूमि पर प्रवाहित कर नव युग का प्रारम्भ किया। आधुनिक…

घने नीम तरु तले | विद्यानिवास मिश्र- घने नीम तरु तले

घने नीम तरु तले | विद्यानिवास मिश्र- घने नीम तरु तले घने नीम तरु तले वैसे आजीवन मेरा प्राप्य है नीम की गिलोय, जिसे मुए संस्कृत वाले अमृत कहते है, पर मैं इस प्राप्य के साथ अपना मन न मिला सका। न जाने कितनी बार आँखे करुआ आयी हैं, जीभ लोढ़ा हो गयी है, कान…

एक दुराशा | बालमुकंद गुप्त – एक दुराशा | फणीश्वर नाथ रेणु – ‘तीसरी कसम’ के सेट पर तीन दिन

एक दुराशा | बालमुकंद गुप्त – एक दुराशा | फणीश्वर नाथ रेणु – ‘तीसरी कसम’ के सेट पर तीन दिन एक दुराशा – बालमुकंद गुप्त “द्वितीया के चन्द्र की भाँति-कभी-कभी बहुत देर तक नजर गड़ाने से उसका चन्द्रानन दिख जाता है तो दिख जाता है। लोग उँगुलियों से इशारा करते हैं कि वह है। किन्तु…