लघु उद्योगों के लिए नीति

लघु उद्योगों के लिए नीति | औद्योगिक क्षेत्रों में संसाधनों के मूल तत्व | सरकार द्वारा लघु उद्योगों हेतु संरक्षात्मक कदम

लघु उद्योगों के लिए नीति | औद्योगिक क्षेत्रों में संसाधनों के मूल तत्व | सरकार द्वारा लघु उद्योगों हेतु संरक्षात्मक कदम | Policy for Small Scale Industries in Hindi | Basics of Resources in Industrial Sectors in Hindi | Protective steps for small scale industries by the government in Hindi

लघु उद्योगों के लिए नीति

(Policy for Small Scale Industries)

औद्योगिक नीति सम्बन्धी घोषणाओं में लघु उद्योगों पर विशेष जोर दिया गया है। इनकी महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं-

(1) सुरक्षित वस्तुओं की संख्या में वृद्धि- अभी तक 180 वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योगों के लिए सुरक्षित था, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 748 कर दी गई है।

(2) लघु उद्योगों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून- लघु उद्योगों की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाया जा रहा है जिससे कि अधिक संख्या में लोगों को स्वयं-रोजगार व देश के औद्योगिक विकास में उचित स्थान मिल सके।

(3) खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग के कार्यों का विस्तार- आयोग का राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर पुनर्गठन किया जा रहा है जिससे कि यह अपने उत्तरदायित्व को प्रभावी ढंग से निभा सके। खादी का विकास किया जा रहा है तथा खादीं एवं ग्राम उद्योग अधिनियम में परिवर्तन किया जा रहा है। खादी कार्यक्रम के विपणन एवं आर्थिक विकास के लिए सरकार द्वारा अधिकतम सहायता प्रदान की जा रही है।

(4) हथकरघा उद्योग का विकास- हथकरघा उद्योग का विकास किया जा रहा है और उनको निश्चित मात्रा में सूत देने की व्यवस्था जा रही है। हरकरघा उद्योग की मिल या पावरलूम उद्योग से अनुचित प्रतियोगिता न हो इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। हथकरघा उद्योग के लिए कुछ प्रकार के कपड़ों का उत्पादन सुरक्षित कर दिया गया है। उसकी समीक्षा करके इसमें वृद्धि की जायेगी और कुछ नयी वस्तुएँ इसमें जोड़ दी जायेंगी।

(5) उचित तकनीकी- लघु उद्योग के लिए इस बात की व्यवस्था की जा रही है कि वे साधारण मशीनें व उपकरण काम में ले सकें और उत्पादकता एवं आय बढ़ा सकें।

(6) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक- 2अप्रैल, 1990 को लघु उद्योगों की आर्थिक सहायता के लिए यह बैंक स्थापित किया गया है जिसका मुख्यालय लखनऊ में है।

(7) विशेष शाखाएँ- “देश में 85 स्थानों पर लघु उद्योग केन्द्रित हैं। अतः इनकी सहायता के लिए बैकों की विशेष शाखाएँ इन स्थानों पर खोली जा रही है।”

(8) जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना- देश के प्रत्येक जिले में जिला उद्योग केन्द्र स्थापित किये जाते हैं। जो लघु उद्योगों को प्रत्येक प्रकार की सहायता एवं सेवा प्रदान करेंगे, जिसमें कच्चे माल के लिए जिले में आर्थिक अनुसंधान, मशीनें व अन्य उपकरणों की पूर्ति, साख सुविधाएँ, विपणन के लिए गुणवत्ता नियन्त्रण आदि शामिल हैं। इन केन्द्रों पर घरेलू उद्योगों के लिए अलग से विभाग होते हैं जो उनकी आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सहायता करते हैं। अब तक 422 जिला उद्योग केन्द्र स्थापित किये जा चुके हैं।

(9) विकास खण्ड एवं विशिष्ट संस्थाओं में सह-सम्बन्ध- विकास खण्ड एवं विशिष्ट संस्थाओं, जैसे लघु उद्योग सेवा संस्थान, आदि में उचित सह-सम्बन्ध बनाया जा रहा है। जिससे कि लघु उद्योग के विकास में कोई बाधा उपस्थित न हो तथा लघु उद्योगपतियों को अधिक दूर न जाना पड़ें।

(10) बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं में विशेष विभाग- लघु उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सभी वित्तीय संस्थाओं व राष्ट्रीयकृत बैंकों में विशेष विभाग खोले जा रहे हैंक्षजिससे कि इस क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं की अनदेखी न की जा सके।

(11) लघु उद्योगों की वस्तुओं के विपणन का प्रबन्ध- लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन के लिए सर्वेक्षण किये जा रहे हैं, क्वालिटी नियन्त्रण की व्यवस्था की जा रही है व वस्तुओं का प्रमापीकरण किया जा रहा है। इस क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं को सरकारी विभागों व राजकीय उद्योगों द्वारा क्रय करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।

औद्योगिक क्षेत्रों में आधारभूत संसाधनों तथा सुविधाओं के मूल तत्व

(Main Elements of Infrastructural Resources & Facilities)

औद्योगिक क्षेत्रों में आधारभूत संसाधनों व सुविधाओं से सम्बन्धित मूल तत्व, जो इसके आशय को प्रकट करते हैं, निम्न प्रकार हैं-

(1) किसी भी देश के आर्थिक विकास में आधारभूत संसाधनों का निर्णायक व महत्वपूर्ण योगदान होता है,

(2) आधारभूत संसाधनों की उपलब्धता व विदोहन की प्रक्रिया औद्योगिक विकास की शैशवावस्था की प्रतीक है जो इसे विकास की क्रमागत अवस्थाओं की ओर अग्रसर करती है,

(3) ये संसाधन व सुविधायें किसी भी स्थान, समय व परिस्थिति में किसी भी औद्योगिक इकाई की स्थापना व विकास की गति में अपनी निर्णायक भूमिका प्रदान करती हैं,

(4) इन संसाधनों की उपलब्धता, प्राप्ति व विदोहन प्रक्रिया में प्राप्त अनुकूलन व लाभदेयी अवसरों सम्बन्धी परिणामों से उद्यमी व उद्यमियों के एक वर्ग की कार्य क्षमता, गुणवत्ता व कौशलता आदि परिलक्षित होती हैं,

(5) ये संसाधन व सुविधायें निःसंदेह सामाजिक पूँजी (Scoical Capital) के अन्तर्गत आती है, चूँकि इनका निर्माण एवं विदोहन आदि समाज व सरकार के दायित्वों व कार्यक्षेत्र में शामिल किया जाता है।

(6) इन संसाधनों व सुविधाओं के आधारभूत ढांचे द्वारा किसी भी सरकार व समाज द्वारा अपनी लोक कल्याणकारी नीतियों व कार्यक्रमों का समुचित क्रियान्वयन सम्भव होता है,

(7) ये संसाधन व सुविधायें किसी भी औद्योगिक समाज में उद्यमिता विकास व उद्यमीय प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने में योगदान देते हैं।

सरकार द्वारा लघु उद्योगों हेतु संरक्षात्मक कदम

(Protection Step for Small Industries Government)

भारत की अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लघु उद्योगों को संरक्षण देने का दायित्व राज्य सरकारों तथा केन्द्र द्वारा प्रशासित राज्यों का है। इस बात को ध्यान में रखते हुये राज्य सरकारों ने इन्हें आवश्यक संरक्षण प्रदान करने के लिये अनेक आवश्यक कदम उठाये हैं, इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(i) लघु उद्योगों के लिये वस्तुओं का आरक्षण (Reservation)- सरकार ने बड़े उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धा से लघु उद्योगों को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योगों के लिये आरक्षित कर दिया है। वर्तमान में आरक्षित वस्तुओं की संख्या 836 है। 12 वस्तुओं का उत्पादन हथकरघा क्षेत्र के लिये आरक्षित किया गया है।

(ii) उत्पादन की छूट सीमा में वृद्धि- केन्द्रीय सरकार ने लघु इकाइयों के लिये उत्पादन शुल्क से सम्बन्धित छूट की सीमा 30 लाख रु0 से बढ़ाकर 50 लाख रु० कर दी है।

(iii) वैधानिक संरक्षण- सरकार ने उद्योग विकास एवं नियमन अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके लघु उद्योगों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया है।

(vi) स्थायी पूँजी विनियोजन में वृद्धि- सरकार ने 7 फरवरी, 2018 लघु उद्योगों में स्थायी पूँजी के विनियोजन की सीमा क्रमशः लघु उद्योगों की दशा में 5 करोड़ रुपये से अधिक तथा सूक्ष्म उद्योगों में 25 करोड़ रुपये निर्धारित की गई है।

(v) उप-कर– सरकार के बड़े उद्योगों के उन कुछ उत्पादनों पर उप-कर लगाया जिनका उत्पादन बहुतायत में लघु उद्योगों द्वारा किया जाता है। इससे लघु उद्योग न केवल बड़े उद्योगों के सामने टिकने की स्थिति में आ जाते हैं बल्कि उनकी प्रतिस्पर्द्धा करने की शक्ति भी बढ़ जाती है।

(vi) औद्योगिक नीतियों द्वारा सुरक्षा- लघु उद्योगों की सुरक्षा एवं उनका विकास करने के लिये केन्द्र सरकार ने प्रत्येक औद्योगिक नीति अर्थात् सन, 1948, 1956,1977, 1980, एवं 1991 में घोषित औद्योगिक नीतियों में महत्वपूर्ण घोषणायें की है।

(vii) लाइसेन्सिंग से छूट- लघु उद्योगों के विकास के लिये अब तक 836 वस्तुओं के उत्पादन को लघु उद्योग क्षेत्र में लाइसेन्सिंग से छूट प्रदान की जा चुकी है।

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