उद्यमिता और लघु व्यवसाय / Entrepreneurship And Small Business

उद्यमी का अर्थ | उद्यमी की परिभाषा | उद्यमी के कार्य

उद्यमी का अर्थ | उद्यमी की परिभाषा | उद्यमी के कार्य | Meaning of Entrepreneur in Hindi | Definition of Entrepreneur in Hindi | Functions of an entrepreneur in Hindi

उद्यमी का अर्थ एवं परिभाषायें

(Meaning and Definitions of Entrepreneur)

उद्यमी यह व्यक्ति है, जो किसी व्यवसाय की स्थापना करता है, उससे सम्बन्धित आर्थिक निर्णय लेता है, जैसे- किस वस्तु का उत्पादन करना है, कितनी मात्रा में करना है, किन साधनों की सहायता से किया जायेगा आदि और जोखिम उठाता है। किसी भी व्यवसाय या उत्पादन को शुरू करने से पहले एक योजना बनानी पड़ती है तथा उत्पादन के साधनों, जैसे-भूमि, श्रम, पूँजी आदि को इकट्ठा करना पड़ता है। उत्पादन के साधन अलग-अलग व्यक्तियों के पास होते हैं, जैसे-भूस्वामी के पास भूमि, पूँजीपति के पास पूँजी तथा श्रमिक के पास श्रम होता है। अतः जो व्यक्ति उत्पादन के इन विभिन्न साधनों को इकट्ठा करता है, इनमें तालमेल बिठाता है, इन्हें एक योजना के अनुसार काम पर लगाता है तथा उत्पादन आरम्भ करता है। उसे ही उद्यमी कहा जाता है। उत्पादन में यदि हानि होती है, तो उसे सहन करता है, यदि लाभ होता है, तो वह भी उद्यमी को ही प्राप्त होता है। इस प्रकार उद्यमी जोखिम उठाता है। वह अनिश्चितता को सहन करता है। अतः उद्यमी उत्पादन का वह मानवीय साधन है, जो आर्थिक निर्णय लेता है तथा जोखिम उठाता है। भारत में बिरला, टाटा, अम्बानी बड़े-बड़े उद्यमी हैं।

उद्यमी की कुछ मुख्य परिभाषायें निम्न हैं-

(1) फ्रेंक नाइट के अनुसार, “उद्यमी वह विशिष्ट समूह अथवा व्यक्ति है, जो जोखिम सहते हैं तथा अनिश्चितता की व्यवस्था करते हैं।”

(2) जे0बी0 से के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो आर्थिक संसाधनों को उत्पादकता एवं लाभ के निम्न क्षेत्रों से उच्च क्षेत्रों की ओर हस्तान्तरित करता है।”

(3) रिचर्ड केण्टीलान के अनुसार “उद्यमी वह व्यवसायी है जो उत्पत्ति के साधनों को निश्चित मूल्यों पर बेचता है।”

(4) एफ0वी0 हाने के अनुसार, “उत्पत्ति में निहित जोखिम उठाने वाला साधन उद्यमी होता है।”

(5) आर्थर डेविंग के अनुसार “उद्यमी वह व्यक्ति है जो विचारों को लाभदायक व्यवसाय में रूपान्तरित करता है।”

(6) आर0टी0इली के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो उत्पादक घटक को संगठित एवं निर्देशित करता है।”

(7) जेम्स बर्न के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह है जो किसी नये उपक्रम की स्थापना के लिये उत्तरदायी होता है।”

उचित परिभाषा- “उद्यमी वह व्यक्ति है जो व्यवसाय में लाभदायक अवसरों की खोज करता है, संसाधनों (मानव शक्ति), तकनीक, सामग्री एवं पूँजी आदि को एकत्रित करता है, नवाचार को जन्म देता है, जोखिम वहन करता है तथा अपने चातुर्य एवं तेज दृष्टि से असाधारण परिस्थितियों का सामना करता है तथा लाभ अर्जित करता है।”

उद्यमी के कार्य

(Function of Entrepreneur)

उद्यमी के कार्यों को मुख्यतः चार भागों में बांटा जाता है-

(I) जोखिम सम्बन्धी कार्य (Risk Taking Function)-

प्रत्येक उद्यमी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य जोखिम उठाना है। प्रत्येक व्यवसाय में दो प्रकार के जोखिम होते हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

(1) निश्चिम जोखिम (Certain Risks)- व्यवसाय में अनेक जोखिम ऐसे होते हैं, जो कि निश्चित होते हैं। अर्थात् जिनका पहले से अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे- आग लग जाना, चोरी, दुर्घटना, मशीन का टूट जाना आदि। इन्हें निश्चित जोखिम कहते हैं। इन जोखिमों से बचने के लिये उद्यमी बीमा कम्पनियों से इनका बीमा करवा लेते हैं, जिनके लिये उन्हें कुछ निश्चित रकम प्रीमियम के रूप में प्रतिवर्ष चुकानी पड़ती है। ये जोखिम उद्यमी को नहीं उठाने पड़ते हैं।

(2) अनिश्चित जोखिम (Uncertain Risks)- व्यवसाय में अनेक जोखिम ऐसे होते हैं, जो निश्चित नहीं होते अर्थात् जिनके बारे में पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता, जैसे- फैशन के बदल जाने से या लोगों की रुचि में परिवर्तन आ जाने से अथवा किसी नई वस्तु के बाजार में आ जाने से उद्यमी की वस्तु की माँग कम होना आदि। इनको अनिश्चित जोखिम कहते हैं। इन जोखिमों का बीमा कम्पनियाँ बीमा नहीं करतीं। ये जोखिम उद्यमी को स्वयं ही उठाने पड़ते हैं।

(II) निर्णय सम्बन्धी कार्य (Decision Making Functions)-

प्रत्येक उद्यमी को व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले कई प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-

(1) व्यवसाय का चुनाव (Selection of Business)- संसार में बहुत से उद्योग हैं। सर्वप्रथम, उद्यमी इस बात का निर्णय करता है कि वह व.न-सा व्यवसाय/उद्योग प्रारम्भ करे, जैसे-लोहे का व्यवसाय करे या कपड़ा बनाने का या कोई अन्य। यह एक अत्यन्त जटिल समस्या है। अपनी योग्यता तथा साधनों के अनुसार वह उस व्यवसाय को चुनता है, जिसमें उसे अधिक सफलता व लाभ नजर आता है।

(2) वस्तुओं का चुनाव (Selection of the Commodities)- व्यवसाय का चुनाव करने के पश्चात् उद्यमी को दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय यह लेना पड़ता है कि वह उद्योग के अन्तर्गत किन वस्तुओं का उत्पादन करे, क्योंकि एक ही उद्योग के अन्तर्गत कई प्रकार की वस्तुएँ होती हैं, जैसे-लोहे के उद्योग में चादरें, गार्टर या सरिया इत्यादि में से कोई एक वस्तु अथवा अधिक वस्तुयें बनायी जा सकती हैं।

(3) उत्पादन के पैमाने का निर्णय (Decision regarding Scale of Production)- उद्यमी की उत्पादन शुरू करने से पूर्व यह निर्णय भी लेना पड़ता है कि वस्तु का उत्पादन छोटे पैमाने पर किया जाये अथवा बड़े पैमाने पर, उसे एक बड़ा उद्योग लगाना है या छोटा। इस सम्बन्ध में निर्णय लेते समय उद्यमी वस्तु की माँग की मात्रा, उपलब्ध पूँजी की मात्रा, लाभ की सम्भावना आदि बातों को ध्यान में रखता है।

(4) उत्पादन के स्थान का चुनाव (Selection of the Location)- उत्पादन के पैमाने व वस्तु के चुनाव के बाद उद्यमी को यह निर्णय भी लेना पड़ता है कि वह उद्योग को किस स्थान पर स्थापित करे ? उद्योग ग्रामीण क्षेत्र में लगाया जाये या शहरी क्षेत्र में। इसके लिये कच्चे माल की निकटता, श्रम तथा पूँजी की प्राप्ति, बाजार की निकटता परिवहन तथा बैंकों की सुविधायें आदि का ध्यान रखना पड़ता है।

(5) उत्पादन की इकाई के आकार का निर्णय (Decision about the size of the Plant)- उद्यमी को यह भी निर्णय लेना पड़ता है कि उत्पादन इकाई का आकार क्या होना चाहिये? उसे एक ही कारखाना लगाना है या कई कारखाने स्थापित करने हैं, एक दुकान खोलनी है या कई दुकानें स्थापित करनी हैं। आज के युग में अधिकांशतः एक ही कम्पनी के अधीन कई कारखाने होते हैं। यह निर्णय वस्तु की माँग को ध्यान में रखकर लिया जाता है।

(III) प्रबन्धकीय अथवा संगठन सम्बन्धी कार्य (Managerial or Organizational Functions) –

उद्यमी कई प्रकार के प्रबन्ध अथवा संगठन सम्बन्धी कार्य भी करता है, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(1) उत्पादन के साधनों का समन्वय (Co-ordination of Factors of Production)- किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिये कई प्रकार के साधनों, जैसे-भूमि, श्रम और पूँजी की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति के पास भूमि है, तो किसी के पास श्रम व किसी के पास पूँजी। उद्यमी उत्पादन के विभिन्न साधनों को आदर्श अनुपात में एकत्रित करता है और उनका प्रयोग इस प्रकार करता है कि उनकी उत्पादन क्षमता का अनुकूलतम प्रयोग हो सके तथा उत्पादन अधिकतम हो सके अर्थात् उनका परस्पर समन्वय करता है।

(2) कर्मचारियों की नियुक्ति (Appointment of Employees)- उद्यमी व्यवसाय को चलाने के लिये तकनीकी विशेषज्ञ, प्रबन्धक, क्लर्क, श्रमिकों आदि की नियुक्ति भी करता है। श्रमिकों को उनकी योग्यता के अनुसार काम बाँटता है, उनके कार्यों का निरीक्षण करता है तथा उन्हें अधिक काम करने की प्रेरणा देता है। वह उनके झगड़ों को सुलझाने का भी प्रयास करता है।

(3) कच्चे माल का प्रबन्ध (Provision of Raw Material)- एक उद्यमी को व्यवसाय चलाने के लिये उचित प्रकार के तथा उचित मूल्य के कच्चे माल का प्रबन्ध करना पड़ता है। उत्पादन कार्य को निरन्तर गति से चलाये रखने के लिये उद्यमी यह प्रबन्ध करता है कि कच्चा माल लगातार मिलता रहे अर्थात् उनकी कमी न हो। इसके बिना कार्य आरम्भ नहीं हो सकता।

(4) मशीनरी का प्रबन्ध (Provision of Machinery)- उद्यमी आवश्यक मशीनरी का भी प्रबन्ध करता है। मशीनें ठीक प्रकार से चलती रहें, इसके लिये प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिकों का प्रबन्ध करता है। इसके अतिरिक्त सम्बन्धित मशीनों की जानकारी भी रखनी पड़ती है।

(5) व्यवसाय का प्रबन्ध व नियन्त्रण (Management and Control over Business)- उद्यमी व्यवसाय का उचित प्रबन्ध व नियन्त्रण करता है। यह व्यवसाय के सम्बन्ध में सामान्य नीतियों का निर्धारण करता है तथा व्यवसाय के सभी विभागों को निर्देश देता है। वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि कच्चे माल का अपव्यय न हो और मशीनों का भी ठीक प्रयोग होता रहे। श्रमिक ठीक प्रकार से कार्य करें।

(6) बिक्री का प्रबन्ध (Management of Sales)- उद्यमी केवल वस्तुओं का उत्पादन ही नहीं करता बल्कि तैयार माल की बिक्री का भी प्रबन्ध करता है। इसके लिये वह विज्ञापन एवं प्रचार की व्यवस्था करता है, विभिन्न स्थानों पर अपने विक्रय एजेन्ट (Sales Agent) नियुक्त करता है और विक्रय ऑफिस भी खोलता है। उसे यह भी निर्णय लेना पड़ता है कि वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिये दुकानदारों को कौन-सी सुविधायें दी जायें। वह वस्तु की उचित कीमत भी निर्धारित करता है।

(7) नये आविष्कारों को प्रोत्साहन (To Promote New Inventions)- उद्यमी उत्पादन व बिक्री सम्बन्धी नई-नई खोजों की भी समुचित व्यवस्था करता है, जिससे कि उत्पादन व बिक्री के तरीकों में सुधार होता रहे और उत्पादन की लागत कम हो जाये तथा उद्यमी के लाभ बढ़ें। उदाहरण के लिये, पैट्रोल की कमी के इस युग में एक योग्य उद्यमी पैट्रोल के प्रतिस्थापन (Substitute) के आविष्कार को प्रोत्साहन देगा।

(8) सरकार से सम्बन्ध (Relation with the Government)- वर्तमान युग में सरकार आर्थिक कार्यों में बहुत अधिक भाग ले रही है। उद्यमी सरकार से उचित सम्बन्ध बनाकर रखता है। इस सम्बन्ध में उद्यमी अनेक कार्य करता है, जैसे-सरकार से लाइसेन्स लेना, करों का भुगतान करना, सरकार को माल बेचना, आयात निर्यात विभाग से सम्पर्क रखना आदि। आधुनिक काल में उद्योगों पर सरकार के सहयोग तथा नियन्त्रण के बढ़ जाने से उद्यमी के इस कार्य का महत्व और भी बढ़ गया है।

(9) प्रतियोगियों के सम्बन्ध (Relation with the Competitors)- व्यावहारिक जीवन में प्रत्येक उद्यमी को कई प्रतियोगियों का सामना करना पड़ता है। जैसे कोका-कोला कम्पनी को पेप्सी, लिम्का, मिरिंडा आदि से प्रतियोगिता करनी पड़ती है। उद्यमी प्रतियोगियों के प्रति अपनायी जाने वाली नीति का भी निर्धारण करता है। वह अपनी वस्तु की कीमत प्रतियोगियों द्वारा निर्धारित की गई कीमत को ध्यान में रखकर निश्चित करता है।

(IV) वितरण सम्बन्धी कार्य (Distributional Functions)-

उद्यमी का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य, आय का वितरण करना है। उत्पादन के विभिन्न साधन के स्वामियों को उनकी मेहनत का फल उद्यमी ही देता है। वह व्यवसाय में होने वाली आय को भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन के स्वामियों में लगान, मजदूरी, व्याज तथा वेतन के रूप में वितरित करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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