शिक्षक शिक्षण / Teacher Education

मूल्यांकन कार्यक्रम के निर्माण के सोपान | Preparation of Evaluation Programme in Hindi

मूल्यांकन कार्यक्रम के निर्माण के सोपान | Preparation of Evaluation Programme in Hindi

मूल्यांकन कार्यक्रम को सहकारी (Co-operative), व्यावहारिक (Practical ) तथा निश्चित (Definite) होना चाहिये। निःसन्देह किसी भी प्रकार के व्यापक मूल्यांकन कार्यक्रम (Comprehensive Evaluation Programme), भले ही वह संस्थागत मूल्यांकन कार्यक्रम हो अथवा कक्षागत मूल्यांकन कार्यक्रम हो, के अन्तर्गत निम्न आठ क्रमबद्ध सोपानों का अनुसरण किया जाता है –

मूल्यांकन कार्यक्रम के निर्माण के सोपान

  1. मूल्यांकन कार्यक्रम के उद्देश्य/उद्देश्यों का निर्धारण करना
  2. उपयुक्त मापन उपकरणों का चयन करना
  3. मापन उपकरणों का प्रशासन करना
  4. मापन उपकरणों का अंकन करना
  5. प्राप्तांकों का विश्लेषण व उनकी व्याख्या करना
  6. प्राप्त परिणामों का अनुप्रयोग प्राप्त करना
  7. पुनर्परीक्षण से उपचारात्मक कार्यक्रम की सफलता का ज्ञान

1. मूल्यांकन कार्यक्रम के उद्देश्य (Purposes of the Evaluation Programme)

परीक्षण वास्तव में मापन के उपकरण है तथा मापन एक साधन है जो किन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है। मापन अथवा परीक्षणों की महत्ता उनके उचित उपयोग में ही निहित रहती है। बिना किसी कारण के परीक्षणों का प्रयोग वास्तव में समय, धन व परिश्रम को व्यर्थ करना है। परीक्षणों का समय-समय पर प्रशासन करके परिणामो को फाइल या रजिस्टर में लिख देना मात्र ही मूल्यांकन नहीं है। कोई भी अच्छा मूल्यांकन कुछ पूर्व इंगित उद्देश्यों पर आधारित होता है। यही कारण है कि मूल्यांकन कार्यक्रम के निर्माण का प्रथम सोपान मूल्यांकन के उद्देश्यों का भली भाँति निर्धारण करना है। मापन व मूल्यांकन के उद्देश्यो तथा कारयों की चर्चा प्रथम अध्याय में की जा चुकी है।

  1. मापन उपकरणों का चयन (Selection of Appropriate Tests)

छात्रों की उपलब्धि, दृष्टिकोण, अभिरुचि आदि का मापन करके के लिए अनेक प्रकार के मापन उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के अध्यापक निर्मित परीक्षण तथा मानकीकृत परीक्षणों को मूल्यांकन कार्यक्रम में प्रयोग में लाया जा सकता है। अतः मूल्यांकन कार्यक्रम बनाते समय यह निर्णय लेना होता है कि उपलब्ध सहस्रों परीक्षणों में से किन-किन परीक्षणों का प्रयोग किया जायेगा। परीक्षण के सम्बन्ध में उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर अच्छे व उपयुक्त परीक्षणों का चयन किया जा सकता है। परीक्षण की सामान्य प्रकृति, परीक्षण की रचना सम्बन्धी सूचना, परीक्षण की वैधता, परीक्षण की विश्वसनीयता, परीक्षण मानक, परीक्षण प्रशासन, लागत तथा परीक्षण से सम्बन्धित समीक्षायें आदि कुछ ऐसी महत्वपूर्ण सूचनायें हैं जिनको किसी परीक्षण का चयन करते समय ध्यान में रखा जाता है ।

  1. मापन उपकरणों का प्रशासन (Administration of the Tests)

मूल्याकन के लिए उपयुक्त परीक्षणों का चयन करने के उपरान्त परीक्षण के प्रशासन का प्रश्न आता है। परीक्षणों को समृचित ढंग से छात्रों पर प्रशासित करने की व्यवस्था की जानी चाहिये। उन अध्यापकों को, जिनको परीक्षण का प्रशासन करना है, अच्छी प्रकार से प्रशिक्षित होना चाहिये। परीक्षण का प्रशासन छात्रों के ऊपर किस समय किया जायेगा इसका भी निर्धारण करना होता है। आवश्यकतानुसार कुछ परीक्षण संत्र के अन्त में प्रशासित किये जा सकते हैं जबकि कुछ परीक्षण सत्र के मध्य में प्रशासित किये जाने की आवश्यकता हो सकती है। परीक्षणों को कितनी बार प्रशासित किया जाए, इस सम्बन्ध में भी विभिन्न मत हो सकते हैं। छोटी कक्षा में औपचारिक परीक्षण अपेक्षाकृत कम बार प्रशासित किये जाने चाहिये। परीक्षण के प्रशासन के लिए एक अच्छी योजना बनायी जानी चाहिए। परीक्षण के समय छात्रों के बठने की व्यवस्था का समृचित प्रबन्ध होना चाहिए। छात्रों को अपनी योग्यता का सर्वोत्तम प्रदर्शन करने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार किया जाना चाहिये। प्रकाश तथा स्वच्छ हवा से युक्त शान्तिपूर्ण पारस्थितियों में ही परीक्षण को प्रशासित किया जाना चाहिए। प्रमापीकृत परीक्षणों के लिए परीक्षण निर्माता के द्वारा दिये गये निर्देशों का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए।

  1. मापन उपकरणों का अंकन (Scoring the Tests)

परीक्षण के प्रशासन के पश्चात् अगला कार्य परीक्षणों का अंकन करना है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का करना एक लिपिकीय (clerical) कार्य है। अंकन कुरजी के प्रयोग अथवा कम्प्यूटर की सहायता से इस कार्य को अधिक शीघ्रता एवं यथार्थता से कराया जा सकता है। निवन्धात्मक परीक्षणों के मूल्यांकन का कार्य अध्यापकों की सहायता से कराया जा सकता है। अंकन करते समय परीक्षण निर्देशिका में दिये गये निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार अनुमान के प्रभाव को समाप्त करने के लिए संशोधन सूत्र का प्रयोग करना चाहिए। अकन में त्रुटियो की सम्मावना को यथासम्भव न्यून करने का प्रयास करना भी आवश्यक होता है।

  1. प्राप्तांकों का विश्लेषण व व्याख्या (Analysis and Interpretation of Scores)

परीक्षणों के अंकन के उपरान्त प्राप्तांकों का विश्लेषण व व्याख्या की जाती है। ये दोनों कार्य साथ-साथ किये जाते हैं, व्याख्या के अभाव में विश्लेषण का कोई लाभ नहीं तथा विश्लेषण के बिना व्याख्या करना असम्भव सा कार्य है। विश्लेषण के वास्तविक कार्य से पूर्व प्राप्तांकों का वर्गीकरण व सारणीयन करना होता है। विश्लेषण दो प्रकार का हो सकता है – सांख्यिकीय विश्लेषण अथवा लेखाचित्रीय विश्लेषण। विश्लेषण के उपरान्त मानकों व प्रतिमानों से तुलना करके फलांकों की व्याख्या की जाती है। निदानात्मक मापन में मानकों व प्रतिमानों से तुलना न करके फलांकों की निरपेक्ष व्याख्या की जाती है। स्पष्ट है कि किसी अच्छे मूल्यांकन कार्यक्रम में प्राप्तांकों के विश्लेषण व व्याख्या को अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

  1. प्राप्त परिणामों का अनुप्रयोग (Applying the Results)

परीक्षणों से प्राप्त परिणाम के उपयोग को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है – (i) कक्षा उपयोग तथा (ii) प्रशासनिक उपयोग । परीक्षण से प्राप्त परिणामों के कक्षा उपयोग अधिक महत्वपूर्ण है । मूल्यांकन कार्यक्रम के कक्षा उपयोग संस्थागत मूल्यांकन कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य से सम्बन्धित होते हैं। इनके अन्तर्गत परीक्षणों से प्राप्त परिणामों का उपयोग करके कक्षा शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाना होता है। कक्षा अध्यापक परीक्षण से प्राप्त परिणामों का उपयोग अनेक प्रकार से कर सकता है। परीक्षण के परिणामों से अध्यापक को ज्ञात हो सकता है कि छात्रों की क्या शैक्षिक समस्यायें हैं तथा उनका निदान किस प्रकार से किया जा सकता है। अध्यापक यह भी देख सकता है कि क्या उसके छात्र अपनी मानसिक योग्यता के अनुसार शैक्षिक प्रगति कर रहे हैं। यदि नहीं तो इस दिशा में क्या प्रयास किये जाने चाहिए। दूसरे शब्दों में परीक्षण प्राप्तांकों से प्राप्त सूचना के आधार पर उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) की व्यवस्था की जाती है।

परीक्षण से प्राप्त परिणामों के प्रशासकीय उपयोग भी कम महत्वपूर्ण नहीं होते हैं। परीक्षण प्राप्ताको से विद्यालय में दिए जा रहे शिक्षण की प्रभावशीलता का ज्ञान हो जाता है। यह सूचना शिक्षा परिषदों तथा अभिभावक संघ के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। छात्रों को कक्षा उन्नति देने में भी परीक्षण प्राप्तांको का उपयोग किया जाता है। परीक्षण से प्राप्त अंकों की सहायता से अध्यापकों की प्रभावशीलता का भी मूल्यांकन किया जा सकता है। प्रभावशाली शिक्षक की यही पहचान है कि उसके छात्र अधिक से अधिक शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम हों, इसलिए छात्रों के प्राप्तांकों के आधार पर उनके अध्यापकों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना तथा तदनुसार उपचारात्मक कार्यक्रम (Remedial Programme) बनाना भी तर्कसंगत होगा।

  1. पुनर्परीक्षण से उपचारात्मक कार्यक्रम की सफलता का ज्ञान (Retesting to determine the success of the remedial Programme)

प्रायः मूल्यांकन कार्यक्रम को प्राप्त परिणामों के अनुप्रयोग सोपान के उपरान्त समाप्त समझ लिया जाता है। लेकिन इसके उपरान्त भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सोपान है। मूल्यांकन के आधार पर लागू किये गये उपचारात्मक उपायों (Remedial Measures) की प्रभावशीलता को कुछ समय के उपरान्त ज्ञात करना भी आवश्यक है। उपचारात्मक उपाय हमेशा ही सफल होंगे, यह स्वीकार करना गलत होगा तथा इससे मूल्यांकन कार्यक्रम स्वयं में अधूरा रह जायेगा । अतः उपचारात्मक कार्यक्रम की सफलता/विफलता को जानने के लिए भी निश्चित प्रयास किये जाने चाहिए। इसके लिए कुछ समय के बाद छात्रों के ज्ञान, बोध, कौशल आदि का पुनर्परीक्षण: किया जाना चाहिए। पुनर्परीक्षण के लिए पूर्ववर्ती परीक्षणों अथवा समतुल्य परीक्षणों का प्रयोग किया जा सकता है। पुनर्परीक्षण का समय-अन्तराल उपचारात्मक उपायों की प्रकृति के अनुरूप कुछ दिन से लेकर कई महीने हो सकता है।

  1. उपयुक्त अभिलेख तथा आख्या Making Suitable Records and Reports)

छात्र, अध्यापक, प्रशासक, अभिभावक तथा सामान्य जनता मूल्यांकन कार्यक्रम के सम्बन्ध में विभिन्न सूचनाएं जानने की इच्छुक हो सकती हैं। अतः मूल्यांकन कार्यक्रम से सम्बन्धित आवश्यक अभिलेख व रिपोर्ट तैयार करना भी मूल्यांकन कार्यक्रम का एक आवश्यक अंग है। मूल्यांकन कार्यक्रम में संलग्न व्यक्तियों को समय-समय पर आवश्यक अभिलेख तैयार करते रहना चाहिए तथा अन्त में एक सामान्य परन्तु व्यापक आख्या (Report) तैयार करनी चाहिए जिससे विभिन्न छात्रों, विद्यालयों, अध्यापकों आदि की शैक्षिक प्रगति को भली-भाँति ढंग से लिपिबद्ध किया जा सके तथा उसका भविष्य में उपयोग किया जा सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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