शिक्षक शिक्षण / Teacher Education

मापन के स्तर | मापन के प्रकार | Levels of Measurement in Hindi

मापन के स्तर | मापन के प्रकार | Levels of Measurement in Hindi

मापन प्रक्रिया को उसकी विशेषताओं यथा यथार्थता, प्रयुक्त इकाइयों, चरों की प्रकृति, परिणामों की प्रकृति आदि के आधार पर कुछ क्रमबद्ध प्रकारों में बॉटा जा सकता है। एस.एस. स्टीवेन्स (S.S. Stevens) ने मापन की यथार्थता के आधार पर मापन के चार स्तर बताये हैं। ये चार स्तर – (1) नामित स्तर (Nominal Level), (2) क्रमित स्तर (Ordinal level), (3) अन्तरित स्तर (Interval level) तथा (4) आनुपातिक स्तर (Ratio level) हैं। मापन के इन चार स्तरों को कुछ विद्वानों के द्वारा मापन के चार पैमाने (Scales) अर्थात नामित पैमाना (Nominal scale), क्रमित पैमाना (Ordinal scale), अन्तरित पैमाना (Interval scale) तथा आनुपातिक पैमाना (Ratio scale) भी कहा जाता है। यद्यपि इन चारों स्तरों या पैमानों पर किसी समूह के सदस्यों के गुणों या विशेषताओं का वर्णन किया जाता है, परन्तु मापन की प्रकृति, परिशुद्धता व प्रयुक्त प्राविधि के आधार पर इन चारों स्तरों पर किये गये मापन से प्राप्त परिणामों की प्रकृति परस्पर भिन्न होती है । प्रत्येक स्तर के मापन की अपनी कुछ विशेषताएँ, नियम तथा सीमाएँ होती हैं। स्पष्ट है कि इन चार स्तरों के अनुरूप मापन को चार प्रकार में बॉटा जा सकता है।

मापन के ये चार स्तर (प्रकार)-

  1. नामित मापन (Nominal Measurement),
  2. क्रमित मापन (Ordinal Measurement),
  3. अन्तरित मापन (Interval Measurement), तथा
  4. अनुपातिक मापन (Ratio Measurement) है।

(1) नामित मापन (Nominal Measurement)

यह सबसे कम परिमार्जित स्तर का मापन है। इस प्रकार का मापन किसी गुण अथवा विशेषता के नाम पर आधारित होता है। इसमें व्यक्तियों अथवा वस्तुओं को उनके किसी गुण अथवा विशेषता के प्रकार के आधार पर कुछ वर्गों या समूहों में विभक्त कर दिया जाता है। इन वर्गों में किसी भी प्रकार का कोई अन्तर्निहित क्रम (Inherent order) अथवा सम्बन्ध (Relation) नही होता है। प्रत्येक वर्ग गुण अथवा विशेषता के किसी एक प्रकार को व्यक्त करता है। विशेषता के प्रकार की दृष्टि से सभी वर्ग एक समान महत्व रखते हैं। गुण के विभिन्न प्रकारों को एक-एक नाम, शब्द, अक्षर, अंक या कोई अन्य संकेत प्रदान कर दिया जाता है। जैसे निवास के आधार पर नागरिकों को ग्रामीण (Rural) शहरी (Urban) में बॉटना, विषयों के आधार पर खातक छात्रों को कला, विज्ञान, वाणिज्य, विधि, इन्जीनियरिंग, चिकित्सा आदि वर्गों में बाँटना, लिंग-भेद के आधार पर बच्चों को लड़के व लड़कियों में बॉटना, फलों को आम, सेब, केला, अंगूर, सन्तरा आदि में वर्गीकृत करना, फनीचर को मेज, कुर्सी, स्टूल आदि में बाँटना आदि नामित मापन के कुछ सरल उदाहरण है।

स्पष्टतः नामित मापन एक गुणात्मक मापन है जिसमें गुण के विभिन्न प्रकारों / पहलुओं के आधार पर वर्गों की रचना की जाती है एवं व्यक्तियों / वस्तुओं को इन विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। मापन प्रक्रिया में केवल यह देखा जाता है कि कोई व्यक्ति / वस्तु किस वर्ग की विशेषता को अपने में समाहित किये हुए है एवं तदनुसार उस व्यक्ति / वस्तु को उस वर्ग का नाम / सकेत / प्रतीक आवंटित कर दिया जाता है। इस प्रकार के मापन में विभिन्न वर्गों में सम्मिलित व्यक्तियों या सदस्यों की केवल गणना ही सम्भव होती है। वर्गों या समूहों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले नामों, शब्दों अक्षरों, अंकों या प्रतीकों के साथ कोई भी गणितीय संक्रिया (Mathematical operation) जैसे जोड़ घटाना, गुणा या भाग आदि सम्भव नहीं होता है। केवल प्रत्येक समूह के व्यक्तियों की गिनती की जा सकती है। स्पष्ट है कि नामित स्तर पर किये जाने वाले मापन में गुण या विशेषता के विभिन्न पहलुओं आधार पर वर्गों या समूहों की रचना की जाती है।

(ii) क्रमित मापन (Ordinal Measurement)

यह नामित मापन से कुछ अधिक परिमार्जित होता है। यह मापन वास्तव में गुण की मात्रा के आकार पर आधारित होता है। इस प्रकार के मापन में व्यक्तियों अथवा वस्तुओं को उनके किसी गुण की मात्रा के आधार पर कुछ ऐसे वर्गों में विभक्त कर दिया जाता है, जिनमें एक स्पष्ट अन्तर्निहित क्रम निहित होता है। इन वर्गों में से प्रत्येक को कोई नाम, शब्द, अक्षर, प्रतीक या अक प्रदान कर दिये जाते हैं। जैसे छात्रों को उनकी योग्यता के आधार पर श्रेष्ठ (Good), औसत (Average) व कमजोर (Interior) छात्रों के तीन वर्ग में बाँटना क्रमित मापन का एक सरल उदाहरण है। छात्रो के इन तीनों वर्गों में एक अंतर्निहित सम्बन्ध है। पहले बर्ग के छात्र दूसरे वर्ग के छात्रों से श्रेष्ठ हैं तथा दूसरे वर्ग के छात्र तीसरे वर्ग के छात्रों से श्रेष्ठ हैं। क्रमित मापन में यह आवश्यक नहीं कि विभिन्न वर्ग के मध्य गुण की मात्रा का अन्तर सदैव ही समान हो। जैसे यदि सोनू, मोनू तथा पोनू क्रमशः श्रेष्ठ वर्ग, औसत वर्ग तथा कमजोर वर्ग में हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि सोनू व मोनू के बीच योग्यता में वही अन्तर है जो मोनू तथा पोनू के बीच है। छात्रों को परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम (First), द्वितीय (Second), तृतीय (Third) श्रेणियाँ या अनुत्तीर्ण (Fail) निर्धारित करना, लम्बाई के आधार पर छात्रों को लम्बा (Tall), औसत (Average), या नाटा (Short) कहना, छात्रों को उनके कक्षास्तर के आधार पर प्राथमिक स्तर, माध्यमिक स्तर, स्नातक स्तर आदि में बाँटना, विश्वविद्यालय अध्यापकों को प्रवक्ता, रीडर या प्रोफेसर में बाँटना, अभिभावकों को उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर के आधार पर उच्च, मध्यम व निम्न के वर्गों में बाँटना इत्यादि क्रमित मापन के कुछ सरल उदाहरण हैं।

स्पष्ट है कि क्रमित मापन के विभिन्न वर्गों में गुण या विशेषता की उपस्थिति की मात्रा एक दूसरे से भिन्न होती है तथा इन वर्गों को इस आधार पर घटते अथवा बढ़ते क्रम (order) में व्यवस्थित किया जा सकता है। वर्गों को क्रमबद्ध करना सम्भव होने के कारण एक वर्ग के सदस्य अन्य वर्गों के सदस्यों से मापे जा रहे गुण की दृष्टि से श्रेष्ठ अथवा निम्न स्तरीय होते हैं। नामित मापन की तरह से क्रमित मापन में भी केवल प्रत्येक समूह के सदस्यों की गिनती करना सम्भव होता है। समूहों को व्यक्त करने वाले शब्दों, अक्षरों, प्रतीकों या अंकों के साथ गणितीय संक्रियाएं सम्भव नहीं होती है। परन्तु इन वर्ग को घटते क्रम में अथवा बढ़ते क्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है।

(iii) अन्तरित मापन (Interval Measurement)

यह नामित व क्रमित मापन से अधिक परिमार्जित होता है। अंतरित मापन गुण की मात्रा अथवा परिमाण (Quantity) पर आधारित होता है। इस प्रकार के मापन में व्यक्तियों अथवा वस्तुओं में विद्यमान गुण की मात्रा को इस प्रकार की ईकाइयों के द्वारा व्यक्त किया जाता है कि किन्हीं दो लगातार ईकाइया में अन्तर समान रहता है। जैसे छात्रों को उनकी गणित योग्यता के आधार पर अंक प्रदान करना अन्तरित मापन का एक सरल उदाहरण है। यहाँ यह स्पष्ट है कि 35 एवं 36 अंकों के बीच ठीक वही अन्तर होता है जो अन्तर 48 व 49 अंकों के बीच होता है। अधिकांश शैक्षिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक चरों का मापन प्रायः अन्तरित स्तर पर ही किया जाता है। समान दूरी पर स्थित अंक ही इस स्तर के मापन की ईकाइयाँ होती है। इन ईकाइयों के साथ जोड़ व घटाने की गणितीय संक्रियाएँ की जा सकती है । इस स्तर के मापन में परम शून्य (Absolute zero) या वास्तविक शून्य (True zero) जैसा गुणविहीनता (Absence of Trait) को व्यक्त करने वाला कोई बिन्दु नही होता है जिसके कारण इस स्तर के मापन से प्राप्त परिणाम सापेक्षिक (Relative) तो होते हैं परन्तु निरपेक्ष (Absolute) नही होते हैं। इस स्तर पर शून्य बिन्दु तो हो सकता है परन्तु यह आभासी (Hypothetical) होता है।

उदाहरण के लिए यदि कोई छात्र गणित परीक्षण पर शून्य अंक प्राप्त करता है तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह छात्र गणित विषय में कुछ नहीं जानता है। इस शून्य का अभिप्राय केवल इतना है कि वह छात्र प्रयुक्त किये गये गणित परीक्षण के प्रश्नों को सही हल करने में पूर्णतया असफल रहा है परन्तु वह गणित के कुछ अन्य सरल प्रश्नों को सही हल भी कर सकता है। अन्तरित मापन से प्राप्त अक्को के साथ जोड़ तथा घटाव की गणनाएँ की जा सकती है। परन्तु गुणा तथा भाग की संक्रियाएं करना सम्भव नहीं होता है। शिक्षा शासत्र, समाज शास्त्र, तथा मनोविज्ञान में प्रायः अन्तरित स्तर के मापन का ही प्रयोग किया जाता है।

(iv) अनुपातिक मापन (Ratio Measurement)

यह मापन सर्वाधिक परिमार्जित स्तर का मापन है। इस प्रकार के मापन में अन्तरित मापन के सभी गुणों के साथ-साथ परम शून्य (Absolute zero) या वास्तविक शून्य (True zero) की संकल्पना निहित रहती है। परम शून्य वह स्थिति है जिस पर कोई गुण पूर्ण रूपेण अस्तित्व विहीन हो जाता है। जैसे- लम्बाई, भार या दूरी का मापन अनुपातिक मापन है क्योंकि लम्बाई, भार या दूरी के पूर्ण रूपेण अस्तित्व हीन होने (Total Absence) की संकल्पना की जा सकती है। अनुपातिक मापन की दूसरी विशेषता इस पर प्राप्त मापों की अनुपातिक तुलनीयता है। अनुपातिक मापन द्वारा प्रयुक्त मापन परिणामों को अनुपात के रूप में व्यक्त कर सकते हैं जबकि अन्तरित मापन द्वारा प्राप्त परिणाम गुण के परिमाण को अनुपातों के रूप में व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं । जैसे 60 किलोग्राम भार वाले व्यक्ति को 30 किलोग्राम भार वाले व्यक्तियों से दो गुना भार वाला व्यक्ति कहा जा सकता है। परन्तु 140 बुद्धि लब्धि (I. Q.) वाले व्यक्ति को 70 बुद्धि लब्धि (I. Q.) वाले व्यक्ति से दो गुना बुद्धिमान कहना तर्कसंगत नहीं होगा। दरअसल तीस-तीस किलोग्राम वाले दो व्यक्ति भार की दृष्टि से 60 किलोग्राम. वाले व्यक्ति के समान हो जायेंगे। परन्तु सत्तर-सत्तर बुद्धि लब्धि (I. Q.) वाले दो व्यक्ति मिलकर भी 140 बुद्धि लब्धि (I. Q.) वाले व्यक्ति के समान बुद्धिमान नहीं हो सकते हैं। अधिकांश भौतिक चरों (Physical Variables) का मापन प्रायः अनुपातिक स्तर पर किया जाता है।

स्पष्ट है कि अनुपातिक स्तर के मापन में परम शून्य या वास्तविक शून्य बिन्दु कोई कल्पित बिन्दु नहीं होता है वरन इसका अभिप्राय गुण की मात्रा के बास्तविक रूप से शून्य होने से होता है। लम्बाई, भार, दूरी जैसे चरों के मापन के समय हम ऐसे शून्य बिन्दु की कल्पना कर सकते हैं जहां लम्बाई, भार या दूरी का कोई अस्तित्व नहीं होता है। अनुपातिक मापन से प्राप्त परिणामों के साथ जोड़, घटाना, गुणा व भाग की चारों मूल गणितीय संक्रियाएं की जा सकती है।

शिक्षक शिक्षण – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!