सामान्यीकृत मापन किसे कहते हैं? | इप्सेटिव मापन किसे कहते हैं? | Normative Measurement in Hindi | Ipsative Measurement in Hindi
सामान्यीकृत मापन किसे कहते हैं? | इप्सेटिव मापन किसे कहते हैं? | Normative Measurement in Hindi | Ipsative Measurement in Hindi
मापन
परीक्षण के चयन तथा इससे प्राप्त अंकों की व्याख्या करते समय इस तथ्य पर ध्यान दना अत्यन्त आवश्यक है कि प्रयुक्त परीक्षण में सम्मिलित प्रश्नों की प्रकृति तथा उनकी अकन विधि किस तरह की है। यदि परीक्षार्थी को परीक्षण के प्रश्नों में अनेक विकल्पात्मक क्रियाओं में से किसी एक क्रिया का बाध्य चयन (Forced Choice) करना होता है तो ऐसे परीक्षणों से प्राप्त अंको को इप्सीटिव प्राप्ताक (Ipsative Scores) कहते हैं। व्यक्तित्व, रुचि तथा अभिरुचि जैसे परीक्षणों में कभी-कभी प्रयोज्य को बाध्य चयन करना पड़ता है। परन्तु यह बाध्य चयन बहुविकल्पात्मक प्रश्नों से भिन्न है। बाध्य चयन प्रश्नो (Forced choice items) में चयनित विकल्प से मापे जाने वाले चर की किसी एक विमा को प्राप्तांक मिलते हैं तथा गलत विकल्प का चयन करने पर शून्य प्राप्तांक मिलता है। इप्सेटिव (Ipsative) शब्द का प्रयोग मापन के क्षेत्र में सबसे पहले रेमंड कैटेल (Raymond Cattel) ने सन् 1944 में किया था। बाद में कैटेल ने अपनी पुस्तक (Personality and Motivation : Structure and Measurement), जो सन 1957 में प्रकाशित हुई थी, में इप्सेटिव मापन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इस दृष्टि से मापन प्रक्रिया तीन प्रकार का हो सकती है। मापन के ये तीन प्रकार क्रमशः – 1. निरपेक्ष मापन (Absolute Measurement), 2. सामान्यीकृत मापन (Normative Measurement), तथा 3. इप्सेटिव मापन (Ipsative Measurement) हैं।
कुछ परिस्थितियों में इन तीनों ही प्रकार का मापन किया जा सकता है जबकि कुछ परिस्थितियों में केवल किसी एक प्रकार का अथवा किन्हीं दो प्रकार का मापन ही सम्भव हो सकता है। निरपेक्ष मापन (Absolute Measurement) में मापन से प्राप्त अंकों के लिए परम शून्य (Absolute Zero) स्थिति सम्भव होती है। इस प्रकार के मापन से प्राप्त प्राप्तांक किसी गुण की निरपेक्ष मात्रा (Absolute quantity) को अभिव्यक्त करते हैं । अधिकांश भीतिक चर जैसे लम्बाई, भार आदि का मापन निरपेक्ष मापन होता है। सामान्यीकृत मापन (Normative Measurement) में परम शून्य स्थिति असम्भव होती है। इस प्रकार के मापन से प्राप्त अंक किसी बड़े तथा सामान्य समूह के अन्दर किसी छात्र अथवा किन्हीं छात्रों की सापेक्षिक स्थिति को इंगित करते हैं। अधिकांश मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक चर जैसे बुद्धि, शैक्षिक उपलब्धि आदि का मापन सामान्यीकृत मापन के अन्तर्गत आता है। इप्सेटिव मापन में न तो परम शून्य की स्थिति सम्भव होती है और न ही किसी सामान्य समूह के सदस्यों की सापेक्षिक स्थिति को स्पष्ट किया जाता है। इसके विपरीत इप्सेटिव मापन से प्राप्त अंक किसी छात्र के विभिन्न गुणों पर उसकी अपनी सापेक्षिक स्थिति बताते हैं। निरपेक्ष मापन में सामान्यीकृत मापन की सभी विशेषताएँ सम्मिलित रहती हैं। परन्तु सामान्यीकृत मापन तथा इप्सेटिव मापन एक दूसरे से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं। अतः मापन तथा मूल्यांकन के छात्रों के लिए सामान्यीकृत तथा इप्सेटिव मापन के बीच के अन्तर को स्पष्ट रूप से समझना अत्यन्त आवश्यक है। आग सामान्यीकृत मापन तथा इप्सेटिव मापन के अन्तर को उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
सामान्यीकृत मापन (Normative Measurement)
सामान्यीकृत मापन (Normative Measurement) सामान्य रुप से प्रयुक्त होने वाली एक मापन विधि है। विभिन्न परीक्षणों तथा मापनी के द्वारा सामान्यतः सामान्यीकृत मापांक (Normative Measures) प्राप्त होते हैं। सामान्यीकृत प्रकृति के ये मापांक एक दूसरे से स्वतन्त्र रहते हैं तथा एक दूसरे को प्रभावित नहीं करते हैं। इनकी व्याख्या किसी समूह या अनेक समूहों के मध्यमान तथा मानक विचलन के परिप्रक्ष्य में की जाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी परीक्षण में 5 प्रश्न हैं जिनमें से प्रत्येक प्रश्न पाँच अंकों का है अर्थात प्रत्येक प्रश्न के उत्तर पर छात्र 0,1, 2, 3, 4 या 5 में से कोई एक अंक प्राप्त कर सकता है। यदि चार छात्रों को यह परीक्षण दिया गया हो तो उनके प्राप्तांक निम्नवत् हो सकते हैं:
प्रश्न |
प्रथम छात्र |
द्वितीय छात्र |
तृतीय छात्र |
चतुर्थ छात्र |
I |
1 |
2 |
3 |
5 |
II |
3 |
3 |
4 |
5 |
III |
2 |
2 |
3 |
5 |
IV |
5 |
2 |
5 |
5 |
V |
4 |
1 |
5 |
5 |
योग |
15 |
10 |
20 |
25 |
मध्यमान |
3.0 |
2.0 |
4.0 |
5.0 |
मानक विचलन |
1.58 |
.87 |
1.22 |
0.0 |
स्पष्ट है कि छात्रों के प्राप्ताको का थोग क्रमशः 15, 10, 20 तथा 25 है तथा मध्यमान क्रमशः 3, 2, 4 और 5 है। दूसरे शब्दों में विभिन्न छात्रों के कुल प्राप्तांक, मध्यमान तथा मानक विचलन भिन्न-भिन्न हैं। यह सामान्यीकृत मापन का उदाहरण है। इसमें किसी छात्र के द्वारा किसी प्रश्न पर प्राप्त अंकों अथवा कुल अंकों का अन्य प्रश्नों के अंकों पर अथवा अन्य छात्रों के अंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। छात्र विभिन्न प्रश्नों पर स्वतंत्र ढंग से अंक प्राप्त करते हैं। छात्रों के द्वारा प्राप्त अंकों की व्याख्या अन्य छात्रों के सापेक्ष की जाती है। यहाँ पर चतुर्थ छात्र सबसे अधिक योग्य है जबकि द्वितीय छात्र सबसे कम योग्य है। स्पष्ट है कि विभिन्न छात्रों के द्वारा प्राप्त अंकों की परस्पर तुलना करके उनकी योग्यता का निर्धारण किया जा सकता है। अधिकांश बुद्धिलब्धि परीक्षणों, उपलब्धि परीक्षणों एवं अभिवृत्ति मापनी के द्वारा सामान्यीकृत प्राप्तांक प्राप्त होते हैं।
इप्सेटिव मापन (Ipsative Measurement)
सामान्यीकृत मापन के विपरीत इप्सेटिव मापन में किसी एक छात्र के द्वारा विभिन्न प्रश्नों/विमाओं (Dimensions) पर प्राप्त अंक एक दूसरे से, पूर्णतया स्वतंत्र नहीं होते हैं। एक प्रश्न/विमा के प्राप्तांक अन्य प्रश्नों / विमा के प्राप्तांकों को क्रमबद्ध ढंग से प्रभावित करते रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अथवा छात्र के द्वारा प्राप्त अंको का कुल योग, मध्यमान तथा मानक विचलन समान होता है। जैसे यदि कुछ छात्रों से कहा जाय कि वे क्रिकेट, हाकी तथा फुटबाल में से जिस खेल को खेलना अथवा देखना सर्वाधिक पसंद करते हों उसे Most से, जिसे कम पसंद करते हो उसे Average से, तथा जिसे सबसे कम पसंद करते हों उसे Least से व्यक्त करें। अब यदि अंकन करते समय Most को दो अंक, Average को एक अंक तथा Least को शून्य अंक दिया जाये तो प्रत्येक छात्र का औसत प्राप्तांक समान होगा। चाहे कोई छात्र प्रतिदिन चार घंटे क्रिकेट खेलता हो अथवा कोई भी खेल न खेलता हो। छात्र के द्वारा तीनों खेलों पर प्राप्त अंक उसकी अपनी सापेक्षिक स्थिति को तो इंगित करते हैं परन्तु किसी खेल पर प्राप्त अंक की तुलना दूसरे छात्र द्वारा उसी खेल पर प्राप्त अंक से नहीं की जा सकती। कोई व्यक्ति क्रिकेट खेलना बिल्कुल न जानने के बावजूद भी क्रिकेट को सर्वाधिक पसंद कर सकता है जबकि दूसरा कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटा क्रिकेट खेलने के बावजूद भी क्रिकेट को औसत पसंद कर सकता है। स्पष्ट है कि व्यक्ति के द्वारा तीनों खेलों को दी गई वरीयता उसके अपने लिए ही तुलनीय है। अन्य व्यक्तियों की पसंद से उसकी पसंद की तुलना नहीं की जा सकती है। उदाहरणार्थ यदि किसी परीक्षण के पाँच प्रश्नों के उत्तरों को उनकी गुणवत्ता के आधार पर क्रमबद्ध करके उन्हें क्रमशः 1, 2, 3, 4 तथा 5 अंक देने हो तथा कुल चार छात्रों को परीक्षण दिया गया हो तब छात्रों के द्वारा प्राप्त अंकों का विवरण निम्नवत प्रकार का होगा –
प्रश्न |
प्रथम छात्र |
द्वितीय छात्र |
तृतीय छात्र |
चतुर्थ छात्र |
I |
1 |
2 |
3 |
2 |
II |
2 |
4 |
2 |
4 |
III |
3 |
3 |
5 |
1 |
IV |
4 |
1 |
1 |
5 |
V |
5 |
5 |
4 |
3 |
योग |
15 |
15 |
15 |
15 |
मध्यमान |
3 |
3 |
3 |
3 |
मानक विचलन |
1.414 |
1.414 |
1.414 |
1.414 |
स्पष्ट है कि चारों छात्रों के लिए प्राप्तांकों का योग 15, मध्यमान 3, तथा मानक विचलन 1.414 है। मध्यमान तथा मानक विचलन के प्रत्येक छात्र के लिए समान होने के कारण इसे इप्सेटिव मापन कहा जायेगा इस मापन में एक प्रश्न के प्राप्तांक उसी छात्र के लिए अन्य प्रश्नों के प्राप्तांको को प्रभावित कर रहे हैं। यदि किसी छात्र को किसी प्रश्न पर प्राप्तांक एक मिल गया है तो अन्य प्रश्नों को प्राप्तांक एक पुनः नहीं मिल सकता है, अन्य प्रश्न 2, 3, 4 अथवा 5 में से कोई अंक प्राप्त कर सकते है। इसी प्रकार से 1, 2 तथा 3 प्राप्तांक मिल चुके होते है तो शेष प्रश्नों को 4 अथवा 5 में से ही कोई अंक मिल सकता है। स्पष्ट है कि इप्सेटिव मापन में एक प्रकार का अन्तर्निहित बन्धन रहता है जिसके कारण किसी एक छात्र के लिए विभिन्न प्रश्नों अथवा विमाओं पर प्राप्त अंक एक दूसरे से पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं होते हैं। वरन् परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
युग्म तुलना प्रश्न (Paired-Comparison Items), बाध्य चयन प्रश्न (Forced- Choice Items), क्यू विधि (Q Methodology) आदि के द्वारा इपसेटिव मापन ही किया जाता है। किसी एक पद के चयन से अन्य पदों के चयन की सम्भावना समाप्त हो जाती है। एक उदाहरण की सहायता से इस तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है । जैसे यदि किसी मूल्य परीक्षण (Values Test) में 20 प्रश्न है जिनके द्वारा प्रजातांत्रिक मूल्य (Democratic Value) तथा सौंदर्यपरक मूल्य (Aesthetic Value) का मापन किया जाता है। प्रत्येक प्रश्न में दो कथन हैं। एक कथन प्रजातांत्रिक मूल्य के प्रति रुझान को इंगित करता है तथा दूसरा कथन सौंदर्यपरक मूल्य के प्रति रुझान को इंगित करता है । छात्रों को प्रत्येक प्रश्न में दिये गये दो कथनों में से किसी एक कथन का चयन करना होता है। यदि छात्र किसी प्रश्न से प्रजातान्त्रिक कथन का चयन करता है तो उसे प्रजातान्त्रिक मूल्य के लिए एक अंक दे दिया जाता है और यदि वह सौंदर्यपरक मूल्य कथन का चयन करता है तो उसे सौंदर्यपरक मूल्य के लिए एक अंक दे दिया जाता है। यदि कोई छात्र प्रजातान्त्रिक मूल्य से सम्बन्धित आठ कथनों का चयन करता है तो उसे सौंदर्यपरक मूल्य के लिए बारह कथनों का चयन करना ही होगा। इस प्रकार से वह प्रजातान्त्रिक मूल्य पर आठ अंक तथा सौंदर्यपरक मूल्य पर बारह अंक प्राप्त करेगा जिनका कुल योग बीस होगा। स्पर्ट है कि यदि छात्र एक मूल्य पर कम अंक प्राप्त करेगा तो दूसरे मूल्य पर वह अधिक अंक प्राप्त करंगा। दोनों ही मूल्यों पर अत्यन्त कम अथवा अत्यन्त अधिक अंक प्राप्त करना सम्भव नहीं हो सकेगा। वास्तव में छात्र के द्वारा दोनों मूल्यों पर अलग-अलग प्राप्त अंक मूल्यों के प्रति उसकी स्वयं के सापेक्षिक स्थिति को व्यक्त करते हैं तथा इस आधार पर एक छात्र के द्वारा प्राप्त अंकों की तुलना दूसरे छात्र से तर्कसंगत ढंग से नहीं की जा सकती।
इप्सेटिव मापन की सबसे बड़ी कमी विभिन्न प्रश्नों अथवा विमाओं के मध्य मिथ्या ऋणात्मक सहसम्बन्ध (Spurious Negative Correlation) का होना है। उदाहरण के लिए युग्म तुलना मापनी में किसी युग्म के एक विकल्प का चयन दूसरे विकल्प के चयन की सम्भावना को समाप्त कर देता है जिसके परिणामस्वरूप उत्तर देने में स्वतन्त्रता की कमी हो जाती है तथा मापनी की रचना की प्रकृति के कारण विभिन्न प्रश्नों/विमाओं के बीच ऋणात्मक सहसम्बन्ध उत्पन्न हो जाता है। इप्सेटिव मापन की दूसरी कमी विभिन्न छात्रों के द्वारा परीक्षण की विभिन्न विमाओं (Dimensions) पर प्राप्त अंकों के मध्यमान का एक समान प्राप्त होना है। कोई भी छात्र यदि कुछ विमाओं पर मध्यमान से अधिक अंक प्राप्त करता है तो अन्य में वह मध्यमान से कम अक प्राप्त करेगा। किसी एक छात्र के द्वारा विभिन्न विमाओं पर प्राप्त अंक विमा के लिये उसकी सापेक्ष स्थिति को इंगित करते हैं। किसी एक विमा पर छात्रों के द्वारा प्राप्त अंको की तुलना सामान्य ढंग से नहीं की जा सकती है।
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