नगरीकरण क्या है? | नगरीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारक
नगरीकरण क्या है? | नगरीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारक | What is urbanization in Hindi | Factors promoting urbanization in Hindi
नगरीकरण क्या है?
नगरीकरण एक गतिशील प्रक्रिया है जो ग्रामीण एवं नगरीय दोनों प्रकार के जीवन में सदा एरिलक्षित प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया की विशेषता के सम्बन्ध में बर्गल ने लिखा है, “जिस प्रक्रिया के द्वारा ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होते हैं उसे ही हम नगरीयकरण कहते हैं।”
इस प्रकार के समान ही औद्योगीकरण भी एक प्रक्रिया है। ये दोनों प्रक्रियाएँ एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। इसलिए कभी-कभी नगरीयकरण को औद्योगीकरण का पर्यायवाची मान लिया जाता है।
स्पष्टतयः औद्योगीकरण एवं नगरीकरण दोनों कभी-कभी समानान्तर चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं। ये प्रक्रियाएँ दोनों एक दूसरे पर पूर्णतः निर्भर हैं। औद्योगीकरण की प्रक्रिया से तात्पर्य उद्योगों के विकास से है। नवीन उद्योगों की स्थापना और उनका विकास औद्योगीकरण कहलाता है। इसी प्रकार औद्योगीकरण नगरीकरण को प्रभावित करता है। इन दोनों प्रक्रियाओं से नगरों का विकास होता है। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणाम लगभग एक होते हैं।
भारत के औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है।
नगरीकरण एवं नगरीय विकास भी अन्तर्सम्बन्धित प्रक्रियाएँ हैं। नगरीय विकास नगरीकरण का परिणाम है। बिना नगरीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुए नगरीकरण तथा उप नगरीकरण दोनों प्रक्रियाएँ प्रभावशील होती हैं। नगरीकरण प्रमुखतः दो मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित हैं-
(1) ग्रामीण जनसंख्या का नगरों में प्रव्रजन तथा
(2) नगरों का ग्रामीण क्षेत्रों तक विकास होना।
इस प्रकार नगरीकरण तथा उपनगरीकरण से नगरों का विकास होता है।
नगरीय विकास के अन्तर्गत नगरों में श्रेणीकरण की प्रक्रिया में परिवर्तन होता है। नगरों की जनसंख्या एवं उनके प्रशासनिक महत्व की दृष्टि से भारत में ‘अ’ श्रेणी के नगरों का विकास द्रुतगति से हुआ है। नगरीय विकास में छोटे नगरों का महानगरों में परिणत होना भी सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार महानगरों की अभिवृद्धि नगरीय विकास की प्रक्रिया की द्योतक है। स्पष्टतः नगरीकरण एवं नगरीय विकास परस्पर सम्बन्धित प्रक्रियाएँ हैं।
एण्डरसन ने नगरीकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए लिखा है-
“Urbanization means the movement of the people from rural to urban places of residence, they become urban in their way of life. It also means the movement of the people from agricultural to non-agricultural works, which means they become industrial in their occupation.”
नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले कारक-
नगरीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से नगरीयता का विकास होता है। नगरीयता से नगरों में नगरीकृत समाजों की अभिवृद्धि होती है। इससे नगरीय विकास अपना स्वरूप स्पष्ट करता है। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण दोनों परस्पर सम्बद्ध सापेक्ष प्रक्रियाएँ हैं। औद्योगीकरण से व्यापारीकरण होता है। व्यापारीकरण वस्तुतः नगरीकरण की प्रक्रिया को दिशा प्रदान करता है। नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले प्रमुख कारण निम्न हैं-
(1) औद्योगिक क्रान्ति- ग्रामों का आर्थिक व्यवस्था में तकनीकीकरण व मशीनीकरण के कारण बेकारी और जनाधिक्य की समस्या ने नगरों का विकास किया है। गत एवं वर्तमान शताब्दियों में इस प्रकार के परिवर्तन विशेष रूप से हुए हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि तकनीकी एवं प्रौद्योगिकीय घटनाएं मानव-जीवन निर्वाह क्रम को शीघ्र बदलती है। जीवन में बढ़ती हुई विशेषीकृत विधियों की प्रभावित घटना ही नगरीकरण है।
(2) भौगोलिक पर्यावरण- जिन प्रदेशों में भौगोलिक पर्यावरण अनुकूल होता है और जहाँ प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति सीधे जाती है वहाँ नगरीकरण सरलता से होता है। भारत में गंगा, यमुना के मैदान में 1 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 40 नगरों का बाहुल्य इसी कारण से हुआ है। इस प्रकार भौगोलिक परिस्थितियाँ नगरीकरण के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ मानी जा सकती है।
(3) वैज्ञानिक प्रगति- विश्व में सर्वाधिक नगरीकरण 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में हुआ। इसका प्रमुख कारण वैज्ञानिक आविष्कारों की प्रगति है। वैज्ञानिक आविष्कारों के परिणामस्वरूप ही इस दृष्टि से यातायात के साधनों की वृद्धि हुई है। डॉ० घुरिये ने लिखा है “नगररूपी शरीर के शक्तिशाली पैर आवागमन के साधन और उनका अधिकार है।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि नगरीकरण की प्रक्रिया को संचालित करने के लिए आवागमन के साधन पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं। सामाजिक गतिशीलता जो यातायात एवं परिवहन साधनों का परिणाम है, नगरीकरण की प्रक्रिया को विकसित व प्रस्फुटित करते हैं। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के लिए भी इन परिस्थितियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
वैज्ञानिक आविष्कारों ने यातायात साधनों में वृद्धि के साथ ही ऐसी अनेक शक्तियों की उत्पत्ति की है जिन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। इस प्रकार वैज्ञानिकता के विकास के साथ औद्योगिक क्षेत्रों का विकास होता है। यह विकास अन्ततोगत्वा नगरीकरण को बढ़ावा देता है।
(4) व्यापारीकरण- व्यापारी नगरीकरण की सहयोगी परिस्थिति है। वैज्ञानिक क्रान्ति के फलस्वरूप यातायात एवं संचार सम्बन्धी परिस्थितियाँ जन्म लेती हैं। इन घटनाओं के कारण नये-नये उत्पाद सम्भव होते हैं। इन उत्पादनों के कारण लोगों की आवश्यकताओं एवं रहन- सहन के स्तर में वृद्धि होती है। इस प्रकार स्थान-स्थान पर कल कारखानें, मिलें, फैक्ट्रियों का विकास होता है। सिक्स ने लिखा है कि “वाणिज्यिक नगर के अस्तित्व के लिए नगरीकरण एवं औद्योगीकरण उतना ही आवश्यक है जितना कि एक प्राणी के लिए उसके रक्त का परिचालन होना है।” इस प्रकार वाणिज्यिक परिस्थितियाँ नगरों के लिए आवश्यक हैं। इससे व्यवसायों की विभिन्नता का विकास होता है और जीविकोपार्जन की दशाएँ सुलभ होती हैं।
(5) सामाजिक परिवर्तनशीलता- समाज परिवर्तनशील है। सामाजिक सम्बन्धों में सदा परिवर्तन होते रहते हैं। ये परिवर्तन जनसंख्या में अभिवृद्धि और गतिशीलता से उत्पन्न होते रहते हैं। विर्थ ने इस सम्बन्ध में लिखा है- “जनसंख्या में अभिवृद्धि इस प्रकार बदले हुए सामाजिक सम्बन्धों को समाविष्ट करती है।” जनसंख्या की अभिवृद्धि से विशेषीकरण का विकास होता है। इस व्यावसायिक और औद्योगिक विशेषीकरण से नगर का विकास होता है। इस प्रकार जनसंख्यात्मक परिस्थितियों भी नगरीकरण को विकसित करने में योग देती है। सामाजिक गतिशीलता के कारण जनसंख्यात्मक गतिशीलता विकसित होती है जो नगरीकरण के रूप में प्रकट होती है।
(6) सभ्यता सम्बन्धी परिस्थितियाँ- नेल्स एण्डरसन ने लिखा है कि सभ्यता के विकास से नगरों का विकास हुआ है। मनुष्यों की नई सभ्यता के निर्माण की प्रवृत्ति नगरीकरण को दिशा देती है। सभ्यता की परिभाषा करने का अर्थ है नगरीकरण की दिशा एवं गति बताना। इस सम्बन्ध में दुर्खीम ने लिखा है- “समाजशास्त्र की रूचि के केन्द्र में नगर को समझने के कार्यक्रम के द्वारा हम न केवल नगरीय सभ्यता की प्रमुख समस्याओं का ज्ञान करते हैं, अपितु समकालीन समाज को पूर्ण रूप से समझ लेते हैं।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि आधुनिक सभ्यता सम्बन्धी परिस्थितियाँ भी नगरीकरण का विकास करने के लिए उत्तरदायी हैं। सभ्यता मानव जीवन की भौतिक संस्कृति है जिसका विकसित स्वरूप हमें नगरों में ही परिलक्षित होता है।
(7) जनसंख्या वृद्धि- जनसंख्या वृद्धि नगरीकरण की सहयोगी परिस्थिति है पश्चिमी देशों में इसका प्रभाव सन् 1750 ई0 से 1950 ई0 तक रहा है। इस अवधि में यहाँ नगरीय जनसंख्या में विशेष रूप से अभिवृद्धि हुई है। इस प्रक्रिया का प्रभाव इंगलैण्ड, बेल्जियम, जर्मनी, फ्रान्स, अमेरिका और भारत से विशेष रूप से हुआ है। इन देशों में नगरीकरण का कारण जनसंख्या विकास हो रहा है। नगरों में आने वाली जनसंख्या को नगरों ने आकर्षित ही नहीं किया, बल्कि ग्रामीण जनसंख्या में अभिवृद्धि होने के कारण ग्रामीण लोग नगरों में आते हैं। नगरीय आवास में पुश एवं पुल के सिद्धान्त लागू होता है। स्पष्टतः नगरीकरण के विकास में जनसंख्या वृद्धि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
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