पाठ योजना के निर्माण में क्या सावधानी रखनी चाहिये | What precautions should be taken in the preparation of lesson plans in Hindi

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पाठ योजना के निर्माण में क्या सावधानी रखनी चाहिये
पाठ योजना के निर्माण में क्या सावधानी रखनी चाहिये

पाठ योजना के निर्माण में क्या सावधानी रखनी चाहिये | What precautions should be taken in the preparation of lesson plans in Hindi

पाठ योजना का अर्थ

पाठ योजना के निर्माण में क्या सावधानी रखनी चाहिये

पाठ योजना से तात्पर्य उन सभी बातों के क्रमबद्ध तथा विस्तार पूर्वक विवरण से है जिन्हें शिक्षक कक्षा में एक निश्चित समय में पूरा कर लेना चाहता है। डेविस के मतानुसार “कक्षा में जाने से पूर्व शिक्षक की पूर्व तैयारी आवश्यक है क्योंकि शिक्षक की प्रगति में सर्वाधिक बाधक उसकी अपूर्ण तैयारी है।” उपरोक्त कथन में डेविस महोदय ने कक्षा में जाने से पूर्व शिक्षक की तैयारी को ही पाठ योजना माना है। एन. एल. वासिंग ने पाठ योजना को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “शिक्षण क्रियाओं तथा उद्देश्यों के आलेख को ही पाठ योजना कहते हैं। शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षक जिन क्रियाओं का नियोजन करता है उन्हीं आलेखों को पाठ योजना के नाग से जाना जाता है।” स्पष्ट है पाठ योजना शिक्षण प्रक्रिया की एक ऐसी व्यवहारिक लिखित योजना है जो शिक्षण क्रियाओं को नियोजित करके किसी भी शिक्षक को कक्षा में जाने से पूर्व मानसिक रूप से तैयार करती है।

पाठ योजना का निर्माण करते समय शिक्षक को कुछ निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए-

  1. पाठ योजना को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसमें निर्धारित उद्देश्य पूर्णतः स्पष्ट हों। उद्देश्यों के स्पष्ट निर्धारित तथा परिभाषित होने से छात्र तथा शिक्षक दोनों ही सक्रिय रहते हैं।
  2. पाठ योजना का निर्माण करते समय शिक्षक को अपनी विषयवस्तु से पूर्णतया परिचित होना चाहिए। विषय के पूर्ण रूप से स्पष्ट तथा परिचित न होने की स्थिति में विभिन्न तथ्यों को कक्षा में पढ़ाते समय स्पष्ट करना कठिन हो जाता है।
  3. पाठ योजना बनाते समय अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होने के साथ-साथ उससे सम्बन्धित विषयों का थोड़ा बहुत ज्ञान भी शिक्षक को होना लाभकारी सिद्ध होता है अतः शिक्षक को प्रयास करना चाहिए कि वह अपनी पाठ योजना के विषय के ज्ञान के अतिरिक्त अन्य सम्बन्धित विषयों के ज्ञान को भी अर्जित करने का प्रयास करें।
  4. शिक्षक को पाठ योजना बनाते समय अपने विषय से सम्बन्धित सिद्धान्तों, विधियों एवं नीतियों का भी पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
  5. शिक्षक को छात्रों की रुचियों, अभिरुचियों एवं योग्यताओं आदि का भी पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तभी उसके द्वारा बनायी गयी पाठ योजना छात्रों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकेगी। छात्रों की योग्यताओं और क्षमताओं के समुचित ज्ञान के अभाव में पाठ योजना प्रभावकारी सिद्ध नहीं हो सकेगी।
  6. शिक्षक को पाठ योजना बनाते समय छात्रों के पूर्व ज्ञान का भी सही-सही ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि इस पूर्व ज्ञान के आधार पर ही छात्र नवीन ज्ञान को सरलता से ग्रहण कर सकते हैं।
  7. पाठ योजना के विभिन्न सोपानों का विभाजन बड़ी सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी निश्चित कर लिया जाना चाहिए कि शिक्षण के किस सोपान में किस शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना छात्रों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकगा।
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