विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली | ललित निबन्ध किसे कहते हैं?

विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली | ललित निबन्ध किसे कहते हैं? विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली ललिता निबन्ध, साहित्य की एक कोटि है। निबन्ध में रचनाकार के व्यक्तित्व का रचना ही ललित निबन्ध की खास पहचान है। इस प्रकार के निबन्धों में निबन्धकार विषय को मात्र सहारा के लिये सामने रखता है, निबन्ध में जो…

एक दुराशा निबन्ध का सारांश | बालमुकुन्द गुप्त की भाषा-शैली

एक दुराशा निबन्ध का सारांश | बालमुकुन्द गुप्त की भाषा-शैली एक दुराशा निबन्ध का सारांश भंग की तरंग में मस्त शिवशम्भु के मानसिक घोड़े वा से कुलांचे भर रहे थे कि उनके कानों में एक सुरीले गाने के बोल ‘चलो-चलो आज खेलें होली कन्हैया के घर’ पड़ गये। गाने की आवाज सुनकर शिवशम्भु बाहर आये…

बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली | बालमुकुन्द गुप्त की निबन्ध शैली की विशेषताएँ

बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली | बालमुकुन्द गुप्त की निबन्ध शैली की विशेषताएँ बाल मुकुंद गुप्त की निबंध शैली हिन्दी निबन्ध जगत् में बालमुकुन्द गुप्त पत्रकार और निबन्धकार दोनों के संश्लिष्ट रूप हैं। यह भारतेन्दु और द्विवेदी-युग की कड़ी हैं। जयनाथ नलिन का कहना सर्वांशतः सत्य है कि “इनके निबन्धों के प्राण भारतेन्दु युग’…

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रमुख रचनाएँ | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की निबंध शैली

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रमुख रचनाएँ | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की निबंध शैली भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का परिचय- युग प्रवर्तक भारतेन्दु आधुनिक हिन्दी साहित्य की ऐसी महान विभूति है जिन्होंने रीति के पंक में फंसी हिन्दी सरिता को आधुनिकता की नवीन भूमि पर प्रवाहित कर नव युग का प्रारम्भ किया। आधुनिक…

घने नीम तरु तले | विद्यानिवास मिश्र- घने नीम तरु तले

घने नीम तरु तले | विद्यानिवास मिश्र- घने नीम तरु तले घने नीम तरु तले वैसे आजीवन मेरा प्राप्य है नीम की गिलोय, जिसे मुए संस्कृत वाले अमृत कहते है, पर मैं इस प्राप्य के साथ अपना मन न मिला सका। न जाने कितनी बार आँखे करुआ आयी हैं, जीभ लोढ़ा हो गयी है, कान…

एक दुराशा | बालमुकंद गुप्त – एक दुराशा | फणीश्वर नाथ रेणु – ‘तीसरी कसम’ के सेट पर तीन दिन

एक दुराशा | बालमुकंद गुप्त – एक दुराशा | फणीश्वर नाथ रेणु – ‘तीसरी कसम’ के सेट पर तीन दिन एक दुराशा – बालमुकंद गुप्त “द्वितीया के चन्द्र की भाँति-कभी-कभी बहुत देर तक नजर गड़ाने से उसका चन्द्रानन दिख जाता है तो दिख जाता है। लोग उँगुलियों से इशारा करते हैं कि वह है। किन्तु…

कुटज सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | हजारी प्रसाद द्विवेदी – कुटज

कुटज सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | हजारी प्रसाद द्विवेदी – कुटज कुटज भारतीय पंडितों का सैकड़ों बार का कचारा-निचोड़ प्रश्न सामने आ गया रूप मुख्य है या नाम? नाम बड़ा है या रूप? पद पहले है या पदार्थ? पदार्थ सामने है, पद नहीं सूझ रहा है। मन व्याकुल हो गया, स्मृतियों के पंख फैलाकर सुदूर अतीत…

भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या

भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | भारन्तेन्दु हरिश्चन्द्र भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है

भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | भारन्तेन्दु हरिश्चन्द्र भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है हम नहीं समझते कि इनकों लाज भी क्यों नहीं आती कि उस सयम में जबकि इनके पुरखों के पास कोई भी सामान नहीं था तब लोगों ने जंगल में पत्ते और…

सम्पादन के आधारभूत तत्व | सम्पादन कला

सम्पादन के आधारभूत तत्व | सम्पादन कला सम्पादन के आधारभूत तत्व पत्रकारिता अपने मूल रूप में ऐसे लेखन में निहित रहती है, जो पाठक को उसे आद्योपान्त पढ़ने के लिये विवश कर दे। बहुत से लोग अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को पत्र लिखते हैं, परन्तु इनमें ऐसे पत्र बहुत कम होते हैं, जिन्हें पत्र प्राप्तकर्ता…