सामाजिक प्रगति एवं सामाजिक परिवर्तन में अन्तर | विकास एवं प्रकृति में अंतर | समाज में प्रगति के मापदण्ड | भारत में नियोजन की आवश्यकता

सामाजिक प्रगति एवं सामाजिक परिवर्तन में अन्तर | विकास एवं प्रकृति में अंतर | समाज में प्रगति के मापदण्ड | भारत में नियोजन की आवश्यकता सामाजिक प्रगति एवं सामाजिक परिवर्तन में अन्तर (Difference between social Progress and Social Change) वस्तुतः सामाजिक प्रगति एक प्रकार का सामाजिक परिवर्तन ही समझा जाता है, क्योंकि समाज में जितने…

अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त | पैरेटो का चक्रीय सिद्धान्त

अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त | पैरेटो का चक्रीय सिद्धान्त अर्नाल्ड टायनबी का चक्रीय सिद्धान्त अर्नाल्ड टायनबी का विचार- टायनबी एक ब्रिटिश इतिहासकार थे। इन्होंने विश्व की 21 सभ्यताओं का अध्ययन किया और अपनी पुस्तक (A Study of History, 10 Vols.) में इसका उल्लेख किया। उन्होंने स्पेंग्लर की तरह यह विचार व्यक्त किया कि हर…

ऑगस्ट कॉम्ट का उद्विकास सिद्धान्त | स्पेन्सर का उद्विकास सिद्धान्त | इमाइल दुर्थीम का उद्विकासीय सिद्धान्त

ऑगस्ट कॉम्ट का उद्विकास सिद्धान्त | स्पेन्सर का उद्विकास सिद्धान्त | इमाइल दुर्थीम का उद्विकासीय सिद्धान्त ऑगस्ट कॉम्ट का उद्विकास सिद्धान्त कॉन्ट, जिन्हें समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है, का सामाजशास्त्रीय योगदान उद्विकास सिद्धांत की पुष्टि करता है। कॉम्ह का विचार था कि मानव का बौद्धि का विकास तीन चरणों से गुजरता है। जैसे-जैसे मानव…

घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या | घनानन्द के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या

घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या | घनानन्द के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या पहिले घनआनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार पगी। अब लाय वियोग की लाय, बलाय बढ़ाय, बिसास-दगानि दगी। अखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहूँ लगै कौन घरी सु लगी। मति दौरि थकी, न लहै ढिक ठौर, अमोही…

क्षेत्रीयकरण | क्षेत्रीयता को रोकने के उपाय | क्षेत्रीयता को दूर करने के उपाय | क्षेत्रवाद के उदय के कारण

क्षेत्रीयकरण | क्षेत्रीयता को रोकने के उपाय | क्षेत्रीयता को दूर करने के उपाय | क्षेत्रवाद के उदय के कारण क्षेत्रीयकरण अथवा क्षेत्रीयता से आप क्या समझते हैं? संकुचित अर्थ में क्षेत्रीयता का तात्पर्य एक प्रदेश या प्रदेश के निवासियों की उस समाज विरोधी (Anti Social) भावना या प्रवृत्ति से है जिसके अनुसार वे अन्य…

आधुनिकीकरण | आधुनिकीकरण की परिभाषा | भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में प्रमुख बाधा | आधुनिकीकरण की विशेषताएँ | आधुनिकीकरण की प्रकृति के सम्बन्ध में लर्नर के विचार | आधुनिकीकरण एवं परम्परागत

आधुनिकीकरण | आधुनिकीकरण की परिभाषा | भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में प्रमुख बाधा | आधुनिकीकरण की विशेषताएँ | आधुनिकीकरण की प्रकृति के सम्बन्ध में लर्नर के विचार | आधुनिकीकरण एवं परम्परागत आधुनिकीकरण आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पर प्रायः सभी सामाजिक विज्ञानों में विचार किया गया है।यदि हम केवल समाजशास्त्र के ही क्षेत्र में देखें तो…

सामाजिक उद्विकास की अवधारणा | भारत में सामाजिक उद्विकास के कारक | समाज में उद्विकास की किन्ही दो अवस्थाओं का वर्णन

सामाजिक उद्विकास की अवधारणा | भारत में सामाजिक उद्विकास के कारक | समाज में उद्विकास की किन्ही दो अवस्थाओं का वर्णन सामाजिक उद्विकास की अवधारणा सामाजिक उद्विकास सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख स्वरूप है। उद्विकास परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार किसी वस्तु के आन्तरिक तत्व अपने आप प्रकट होकर उस वस्तु का रूप…

बिहारीलाल के पद्यांशों की व्याख्या | बिहारीलाल के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या

बिहारीलाल के पद्यांशों की व्याख्या | बिहारीलाल के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या बिहारीलाल के पद्यांशों की व्याख्या मेरी भव बाध हरौ राधा नागरि सोय। जा तन की झाई परें स्याम हरित दुति होय।। 1।। सन्दर्भ- ग्रन्थ रचना के आरम्भ में कवि बिहारी की प्रस्तावित उक्ति है। राधा की वन्दना है। व्याख्या- (1) वे चतुर…

मलिक मुहम्मद जायसी के पद्यांशों की व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या

मलिक मुहम्मद जायसी के पद्यांशों की व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या मलिक मुहम्मद जायसी के पद्यांशों की व्याख्या चैत बसन्ता होइ धमारी। मोहि लेखे संसार उजारी।। पंचम बिरह पंचसर मारै। रकत रोइ सगरौ बन ढारै।। बूड़ि उठे सब तरिवर पाता। भीज मंजीठ टेहु बन राता।। बौरे आम फरै अब…