समाज शास्‍त्र / Sociology

सामाजिक आन्दोलन के कारण | सामाजिक आन्दोलन के सिद्धान्त | सामाजिक आन्दोलन के प्रकार

सामाजिक आन्दोलन के कारण | सामाजिक आन्दोलन के सिद्धान्त | सामाजिक आन्दोलन के प्रकार

सामाजिक आन्दोलन के कारण या सिद्धान्त

सामाजिक आन्दोलन के संबंध मेंतीन सिद्धांत प्रमुख हैं-

  1. सापेक्षिक वंचन सिद्धांत (Relative Deprivation theory)- इससे स्टाउफर संबंधित है।
  2. संरचनात्मक तनाव या तनाव सिद्धान्त- (Structural Strain or Strain theory) स्मेल्सर
  3. पुर्ननिर्माण सिद्धांत (Revitalization theory)- वालेश-वालेश ने सामाजिक आन्दोलनों के चार चरणों का उल्लेख किया है-

(क) सांस्कृतिक स्थिरता का काल

(ख) तनाव काल

(ग) सांस्कृतिक विघटन का काल

(घ) पुनर्निर्माण का काल

सामाजिक आन्दोलन के प्रकार

अनेक विद्वानों ने आन्दोलन के संबंध में अपने विचार प्रकट किये हैं तथा उनके द्वारा उसके प्रकारों का भी उल्लेख किया गया है। कुछ महत्वपूर्ण वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं:-

  • हार्टन एवं हंट, सामाजिक आन्दोलन के ‘6’ प्रकारों का उल्लेख करते हैं-

(i) देशान्तर आंदोलन (Migratory Movement)- इस प्रकार के आन्दोलन में स्थान परिवर्तन महत्वपूर्ण है। जब बाढ़, युद्ध, अकाल एवं महामारी के कारण लोग सामूहिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान कोगमन करते है तो देशांतर आन्दोलन कहते हैं भारत विभाजन तथा बंगलादेश के निर्माण के समय इसी प्रकार की स्थिति थी।

(ii) अभिव्यक्ति आन्दोलन (Expressive Movements)- जब व्यक्तियों द्वारा अपने असंतोष रूपी भावनाओं को दिवास्वप्नों, संस्कार, नृत्य, खेल-कूद आदि के रूप में प्रकट किया जाता है, जिससे जीवन जीने योग्य हो जाये तो ऐसे आन्दोलन अभिव्यक्ति आन्दोलन कहे जाते हैं। जैसे अमेरिका का हिप्पी आन्दोलन, नव वामपंथी आन्दोलन आदि।

(iii) काल्पनिक आन्दोलन (Utopian Movement)- इस प्रकार के आन्दोलन द्वारा एक आदर्श समाज की स्थापना किया जाता है। जैसे-विनोबा भावे द्वारा संचालित ग्रामदान व भूदान आन्दोलन तथा मार्क्स का साम्यवादी आन्दोलन इसी श्रेणी में आते हैं।

(iv) सुधार आन्दोलन (Reform Movements)- इसका उद्देश्य संपूर्ण व्यवस्था को बदलना न होकर उसमें व्याप्त बुराई को दूर करना है। इस प्रकार के आन्दोलन प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में ही पनप सकते हैं। इस प्रकार की बुराई को दूर करने में सरकार स्वयं रूचि लेती है। आर्य समाज, ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन, प्रार्थना समाज, राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा हिन्दू विधवा पुनर्विवाह आन्दोलन इसी प्रकार के आन्दोलन है।

(v) क्रांतिकारी आन्दोलन (Revolutionary Movement)- यह प्रचलित समाज व्यवस्था को उखाड़कर नयी व्यवस्था स्थापित करने के लिए किया जाता है। इसके लिए कई बार हिंसा का सहारा भी लिया जाता है। इस प्रकार के आन्दोलन में उग्रता, तीव्रता एवं हिंसा की प्रवृत्ति पायी जाती है। जैसे-रूसी व फ्रांसीसी क्रांति आदि।

(vi) अवरोधक आन्दोलन (Resistance movements)- इसका उद्देश्य परिवर्तन को रोकना है, जैसे उद्योगों में अभिनवीकरण का मजदूरों द्वारा विरोध किया जाता है।

  • हरबर्ट ब्लूमर ‘तीन’ प्रकार के सामाजिक आन्दोलनों का उल्लेख करते हैं:-

(i) सामान्य सामाजिक आन्दोलन (General Social Movements)- युवक आन्दोलन, महिला आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन आदि।

(ii) विशिष्ट सामाजिक आन्दोलन (Specific social Movements)- ऐसे आन्दोलनों के निश्चित उद्देश्य होते हैं तथा संगठित प्रकार के होते हैं। सुधार व क्रांतिकारी आन्दोलन इसी श्रेणी के आन्दोलन है।

(iii) अभिव्यक्तात्मक सामाजिक आन्दोलन (Expressivesocial Movements)- इस प्रकार के आन्दोलन का उद्देश्य किसी भी विषय में सामूहिक असहमति को प्रतीक रूप में करना होता है। ब्लूमर ऐसे आन्दोलन के दो रूप बताते हैं:-

(क) धार्मिक आन्दोलन (ख) फैशन आन्दोलन

  • रश तथा डैनीसोफ सामाजिक आन्दोलन के चार स्वरूपों का उल्लेख करते हैं:-

(i) क्रांतिकारी आन्दोलन, (ii) प्रतिक्रियावादी आन्दोलन (Regressive Movement)- रूढ़िवादी या दक्षिण पंथी आन्दोलन भी कहा जाता है। (3) सुधारवादी आन्दोलन (4) अभिव्यक्तिमूलक आन्दोलन।

  • आबर्ली, सामाजिक आन्दोलन के चार स्वरूपों का उल्लेख करते है:-
  1. सुधारात्मक आन्दोलन (Reformative Movements)- ब्रह्म समाज, आर्य समाज आन्दोलन, सतीप्रथा विरोधी आन्दोलन आदि।
  2. रूपांतकारी आन्दोलन (Transformative Movement)- यह पूर्णतः व्यवस्था परिवर्तन के लिए आन्दोलन है। नक्सलबाड़ी आन्दोलन, माओवादी आन्दोलन आदि
  3. वैकल्पिक आन्दोलन (Alternative Movement)- जब समाज के कुछ लोगों के लिए कोई आन्दोलन चलाया जाता है, जैसे-नशाउन्मूलन आन्दोलन आदि।
  4. मुक्ति आन्दोलन (Redemptive Movement)- समाज को किसी से मुक्त कराने के लिए जब आन्दोलन किया जाय, जैसे-कबीरपंथ आन्दोलन आदि।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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