सामाजिक आन्दोलन | सामाजिक आन्दोलन की परिभाषा | सामाजिक आन्दोलन की विशेषताएँ | सामाजिक आन्दोलन के चरण | अधिसंरचनात्मक परिवर्तन एवं अधोसंरचनात्मक परिवर्तन में अन्तर
सामाजिक आन्दोलन
सामाजिक आन्दोलन को सामाजिक परिवर्तन का एक स्वरूप माना जाता है। लेकिन दोनों एक-दूसरे के पर्यायवाची न होकर परस्पर भिन्न है। सामाजिक आन्दोलन, सामाजिक परिवर्तन करने वाला साधन है। सामाजिक आन्दोलन को सामाजिक परिवर्तन के कई कारकों में एक कारक मात्र कहा जा सकता है।
सामाजिक आन्दोलन को एक नवीन सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का सामूहिक प्रयास कहा जाता है। जब समाज में प्रचलित मानक एवं मूल्यों या परंपराओं से असंतोष पैदा हो जाता है तब लोग संगठित होकर इस व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन खड़ा करते हैं। अतः आन्दोलन एक नयी दिशा की ओर समाज को ले जाना होता है।
- गिडिंग्स के शब्दों में, “आन्दोलन व्यक्तियों का ऐसा सामूहिक प्रयास है जिसका एक सामान्य उद्देश्य होता और उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्थागत सामाजिक नियमों का सहारा न लेकर लोग अपने ढंग से व्यवस्थित होकर किसी परंपरागत व्यवस्था को बदलने का प्रयास करते है।”
- हरबर्ट ब्लूमर के अनुसार- “सामाजिक आन्दोलन एक प्रकार का सामूहिक उद्यम है, जिसका उद्देश्य जीवन में एक नयी व्यवस्था को स्थापित करना है।”
- टर्नर और किलियन के शब्दों में, “सामाजिक आन्दोलन किसी समष्टि की वह गतिविधि है, जिसका उद्देश्य किसी समाज या समूह में आने वाले परिवर्तन को बढ़ावा देना या रोकना होता है।
- हार्टन एवं हंट के अनुसार, “सामाजिक आन्दोलन समाज अथवा उसके सदस्यों में परिवर्तन लाने अथवा विरोध करने का सामूहिक प्रयास है।”
- मैरिल व एल्ड्रिज के अनुसार- “सामाजिक आन्दोलन रूढ़ियों में परिवर्तन के लिए अधिक या कम मात्रा में किये गये प्रयास है।’
- थियोडोरसन लिखते है कि, – “सामाजिक आन्दोलन सामूहिक व्यवहार का एक महत्वपूर्ण स्वरूप हैं जिसमें परिवर्तन लाने अथवा उसका विरोध करने में सहयोग देने के लिए लोगों को बहुत बड़ी संख्या में संगठित अथवा जागरुक किया जाता है।”
- रोज के अनुसार – “सामाजिक आन्दोलन सामाजिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों के एक बड़ी संख्या के एक औपचारिक संगठन को कहते हैं जो अनेक व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास से प्रभुता संपन्न संस्कृति संकुलों, संस्थाओं अथवा एक समाज के विशिष्ट वर्गों को संशोधित अथवा स्थानांतरित करता है।”
- कैमरॉन लिखते हैं कि, “सामाजिक आन्दोलन तब होते है जब एक बड़ी संख्या में लोग विद्यमान संस्कृति या सामाजिक व्यवस्था के किसी भाग को परिवर्तित करने अथवा उनके स्थान पर दूसरी को स्थापित करने के लिए एक साथ बंध जाते हैं।”
- एण्डरसन व आर्कर लिखते हैं कि, “सामाजिक आन्दोलन को गत्यात्मक सामूहिक व्यवहार के एक स्वरूप के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो समय के साथ-साथ एक संरचना विकसित कर लेता है और जिसका उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था में आंशिक या पूर्ण संशोधन करना है।”
- लेंग व लेंग, सामाजिक गतिशीलता के रूप में सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित करते हैं, “सामाजिक आन्दोलन एक प्रारंभिक सामूहिक क्रिया है जिसका आकार बड़ा होता है, जो वृहद् होता है तथा जिसमें निरंतरता होती है। इस सामूहिक क्रिया द्वारा सामाजिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन लाने का प्रयत्न किया जाता है।”
- एम.एस.ए.राव के शब्दों में, “सामाजिक आन्दोलन एक सामूहिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य विचारों, व्यवहारों और सामाजिक संबंधों में परिवर्तन लाना होता है। यह परिवर्तन किसी न किसी वैचारिकी पर आधारित होता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि आन्दोलन किसी विद्यमान सामाजिक व्यवस्था में पूर्ण या आंशिक परिवर्तन लाना है अथवा विद्यमान व्यवस्था को बनाये रखना भी है।
सामाजिक आन्दोलन की विशेषताएँ (Characteristics)-
उपर्युक्त विचारों के परिप्रेक्ष्य में आन्दोलन की निम्न विशेषताएँ प्रकट होती हैं-
- मूल्यों की भागीदारी
- हम की भावना
- मानदण्डों की भागीदारी
- सामाजिक संरचना
- जानबूझकर किया गया सामूहिक प्रयत्न
- परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता
- वैचारिकी
- निश्चित उद्देश्य
- आपात स्थिति
सामाजिक आन्दोलन के चरण
(Stage of Social Movement)
हार्टन और हण्ट, आन्दोलन के पांच चरण बताते हैं:-
(क) असंतोष (Unrest)
(ख) अत्यधिक संवेगपूर्ण स्थिति (Heightened stage of Excitement)
(ग) औपचारीकरण (Formalization)
(घ) संस्थाकरण (Dissolution)
(ङ) समापन (Institutionalization)
- डासन एवं गेटिस, आन्दोलन के चार चरणों का उल्लेख करते हैं:-
(क) प्रारंभिक चरण (Preliminary Stage), हार्टन व हण्ट इसे ही सामाजिक असंतोष का चरण करते हैं।
(ख) लोकप्रिय चरण (Popular Stage)
(ग) औपचारिक संगठन (Formal Organization)
(घ) संस्थागत चरण (Institutional Stage)
- हरबर्ट ब्लूमर, जिनका आन्दोलन के विश्लेषण में महत्वपूर्ण योगदान हैं, पाँच चरणों का उल्लेख करते हैं:-
(क) उत्तेजना (Agitation)
(ख) सहयोग बंधुत्व की भावना का विकास (Development of Espirit-de-corps)
(ग) मनोबल का विकास (Development of Moral)
(घ) समूह की विचारधारा का विकास (Development of Group Ideology)
(ड.) रणनीति, युक्ति या दांवपेंच का विकास (Development of Operating Tactics)
अधिसंरचना एवं अधोसंरचना परिवर्तन में अन्तर
(1) मार्क्स ने संम्पूर्ण समाज को आर्थिक संरचना एवं अधिसरंचना में बांटता है ये दोनों ही संरचनाए एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित है।
(2) आर्थिक संरचना के भीतर उत्पादन में साधन, संपत्ति सम्बन्ध, श्रम विभाजन एवं वर्ग आते है जिन्हें मार्क्स ने उत्पादन की शक्तियाँ कहाँ है।
(3) अधिसंरचना में समाज की संस्थाएँ, राज्य (सर्वोच्च संस्था), धर्म, शिक्षा, परिवार, कानून एवं नियम, राजनीतिक, सैनिक संगठन आदि आते हैं।
(4) मार्क्स के अनुसार उत्पादन के साधन बदलने पर धीरे-धीरे सम्पूर्ण उत्पादन शक्तियों में परिवर्तन आता है और इस प्रकार पूरी आर्थिक संरचना परिवर्तन हो जाती है। अधिसंरचना चूँकि आर्थिक संरचना पर आधारित है अतः उसका बदलना भी अनिवार्य है और इस प्रकार दोनों संरचनाओं के बदलने पर पूरा समाज परिवर्तित हो जाता है। इसे ही मार्क्स सामाजिक परिवर्तन कहते है।
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