समाज शास्‍त्र / Sociology

समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका | Role of teacher in socialization process in Hindi

समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका | Role of teacher in socialization process in Hindi

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परिवार में बालक का समाजीकरण करने में माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि का हाथ रहता है। माता-पिता का हाथ विशेष रूप से रहता है। बालक जब विद्यालय आता है तो वहां पर भी वह अपने माता-पिता के आदर्शों को अपने साथ लाता है। माता-पिता के पश्चात अध्यापक का ही सबसे अधिक हाथ बालक के समाजीकरण में रहता है। अध्यापक को बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में अग्रलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए-

(1) कक्षा में अधिकारपूर्ण वातावरण न होना चाहिए।

(2) जहां तक हो सके, छात्रों को वात्तालाप के अवसर प्रदान किये जायें अध्यापक को यथासाध्य कम बोलना चाहिए।

(3) अध्यापकों में आपस में आदर्शों पर मतभेद न होना चाहिए। इससे छात्रों के मन में संस्कृति के प्रति सन्देह नहीं उत्पन्न होगा।

(4) कभी-कभी छात्रों के माता-पिता के आदर्श अध्यापकों के आदर्शों से बिलकुल मेल नहीं खाते हैं। इस प्रकार की स्थिति का विश्लेषण करके अध्यापकों को अपने एवं छात्रों के माता-पिता के आदर्शों में समन्वय स्थापित करना चाहिए।

(5) विद्यालय में मानवीय सम्बन्ध उचित हों। छात्रों का शिक्षकों से एवं शिक्षकों का प्रधानाचार्य से स्वस्थ सम्बन्ध होना चाहिए।

(6) अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना के साथ-साथ समालोचनात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होना चाहिए।

(7) छात्रों में सामाजिक मूल्यों के प्रति सृजनात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना चाहिए जिससे संस्कृति का विकास हो सके।

(৪) सामूहिक कार्यों को प्रोत्साहन देना चाहिए।

(9) विद्यालय में स्वस्थ परम्पराओं का विकास करना चाहिए जिससे सामाजिक परम्परा से प्रेरित होकर छात्र अनुशासित जीवन बितायें।

(10) छात्रों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न करना चाहिए।

(11) अन्तरसामूहिक शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे एक समूह के छात्र अन्य समूहों की संस्कृति का आदर कर सकें।

(12) विद्यालय को सामुद्यायिक केन्द्र के रूप में परिवर्तित करना चाहिए जिससे स्थानीय समुदाय की मान्यताओं का छात्र दर्शन कर सकें।

(13) छात्रों में यह भावना भरना कि वे माता-पिता एवं परिवार के विरुद्ध न चलें। यदि कहीं पर उन्हें त्रुटि दिखाई पड़े तो उनमें संशोधन करके उसे स्वीकार करें।

(14) जब अध्यापक के आदर्श से छात्र के माता-पिता के आदर्श मेल नहीं खाते तो कभी-कभी छात्र अपने अध्यापक के विरुद्ध हो जाता है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का अवसर ही न देना चाहिए।

(15) अध्यापक को सामाजिक आचरण का मानदण्ड स्थिर करना चाहिए। उसे भी उसी के अनुसार चलना चाहिए ताकि छात्र कक्षा में या कक्षा से बाहर अध्यापक के आचरण का अनुकरण कर सकें।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बालक के समाजीकरण में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। कभी-कभी शिक्षक खेल में स्वयं रुचि. नहीं लेते और खेल के महत्व पर सदा व्याख्यान देते हैं। कभी-कभी वे सारे सांस्कृतिक कार्यों में स्वयं तो रुचि लेते नहीं, छात्रों को उपदेश देते हैं। छात्रों पर इन सबका बुरा प्रभाव पड़ता है। छात्र उपदेश के अनुसार न चलकर अध्यापक के कार्यों के अनुसार ही चलते हैं। अतः शिक्षक को बहुत सतर्क रहना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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