समाज शास्‍त्र / Sociology

शिक्षा द्वारा बालक का समाजीकरण | Socialization of the child through education in Hindi

शिक्षा द्वारा बालक का समाजीकरण | Socialization of the child through education in Hindi

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बालक के समाजीकरण में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। परिवार के बाद शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा बालक का समाजीकरण सम्पन्न होता है। शिक्षा के दो महत्वपूर्ण साधन शिक्षक और विद्यालय समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

दुखीम के अनुसार, “शिक्षा नई पीढ़ी का नियम पूर्वक समाजीकरण करती है।” (“Education consists of methodical socialization of young generation” –Durkhiem.) दुर्खीम ने नियम पूर्वक शब्द का प्रयोग विद्यालय के भीतर तथा बाहर होने वाले समाजीकरण के भेद को स्पष्ट करने के लिए किया है। वास्तव में नियम पूर्वक शब्द का प्रयोग उसने विद्यालय के अन्दर होने वाले समाजीकरण के लिए किया है। उसका मानना है कि विद्यालय के बाहर होने वाला बालक का समाजीकरण योजना विहीन और मनमाने ढंग से चलता है। शिक्षा के माध्यम से विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा योजनापूर्वक और संगठित ढंग से होती है। अतः विद्यालय में बालकों का समाजीकरण भी सुव्यवस्थित एवं योजनापूर्वक तरीके से होता है। विद्यालयों में समाजीकरण की प्रक्रिया के सुव्यवस्थित और नियमित होने के कई कारण होते हैं।

  1. शिक्षक चूंकि समाज के बलते स्वरूप को भली भांति समझते हैं और उसके अनुसार ही बच्चे को शिक्षित करने का प्रयास करते हैं। अतः बच्चे का समाजीकरण भी उसी के अनुकूल होता है।
  2. विद्यालय को चलाने वाली संस्थाओं के प्रबन्धक समय-समय पर शिक्षको के साथ सम्पर्क साध कर और अधिवेशन आदि बुला कर शिक्षा के स्तर को समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने का निरन्तर प्रयास करते रहते हैं। फलस्वरूप बालक का समाजीकरण भी नियमित ढंग से होता रहता हैं।
  3. समायोजन समाजीकरण की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। विद्यालय में नियमित ढंग से ज्ञान की वृद्धि के साथ समायोजन की प्रवृत्ति को भी विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
  4. विद्यालयों में शिक्षण के लिए शिक्षण विधियां अपनायी जाती हैं। इन विधियों के माध्यम से बच्चे को शिक्षा प्रदान करके उनकी कार्यशीलता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। नवीन शिक्षा पद्धतियों के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा निश्चित ही बालक के समाजीकरण को सही दिशा प्रदान करती है।
  5. नवीन शिक्षा पद्धति चूंकि वैज्ञानिक है और मनोवैज्ञानिक भी अत: इन पद्धतियों में बालक की आवश्यकता को ध्यान में रखकर शिक्षा की योजना को तैयार किया जाता है जिससे बालक के समाजीकरण को सही दिशा मिलती है।
  6. परम्परागत शिक्षा में बालक को गौण माना जाता था और यह माना जाता था कि बालक शिक्षा के लिए है न कि शिक्षा बालक के लिए। लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। अब विद्यालयों में शिक्षा देते समय बालक को ही शिक्षा का केन्द्र माना जाता है और उसी की रुचियों, अभिरुचियों आदि को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देने की योजना बनाई जाती है। इससे बालक के समाजीकरणा में सहायता मिलती है।

समाजीकरण में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट करने के लिए यहां समाजीकरण की दिशा में शिक्षक और विद्यालयों के कार्यो का उल्लेख करना नितान्त आवश्यक है क्योंकि यह दोनों ही शिक्षा के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं इनके बिना शिक्षा द्वारा समाजीकरण की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हो सकती।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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