अर्थशास्त्र / Economics

व्यापार की शर्तों से आशय | अनुकूल एवं प्रतिकूल व्यापार शर्ते | व्यापार शर्तों की अवधारणाएँ

व्यापार की शर्तों से आशय | अनुकूल एवं प्रतिकूल व्यापार शर्ते | व्यापार शर्तों की अवधारणाएँ

‘व्यापार की शर्तों से आशय’

(Meaning of ‘Terms of Trade’)-

व्यापार की शर्तों से आशय उस अनुपात (ratio) से होता है जिस अनुपात (ratio) पर देशों में उत्पादित वस्तुओं का आपस में लेन-देन होता है। सरल शब्दों में व्यापार की शर्ते उस दर से सम्बन्धित हैं जिस पर किसी देश के निर्यात और आयात में विनिमय (Exchange) होता है। ये शर्ते स्पष्ट करती हैं कि कोई देश जितनी वस्तुओं का आयात करता है उसके बदले में कितनी वस्तुओं का निर्यात करेगा। अतः विदेशी व्यापार की शर्तों से आशय उन शर्तों से जिन पर किसी देश के निर्यात-आयातों का विनिमय होता है। उदाहरण के लिए यदि भारत को अमेरिका से 100 क्विंटल गेहूँ के बदले 50 क्विंटल चावल भेजना पड़ता है तो व्यापार की शर्ते 100 : 50 होगी।

प्रो० वाल्टर क्रूज (Prof. walter Krause) के अनुसार-“आयात और निर्यात करने वाले देशों के मध्य लाभ का वितरण प्रचलित व्यापार-शर्तों पर निर्भर करता है। जितनी अनुकूल व्यापार-शर्ते होगी उत्पन्न कुल लाभ में अधिक हिस्सा प्रास होगा।” प्रो० रोस्टोव के अनुसार- ‘व्यापार-शर्ते उन अनेक शक्तियों के शुद्ध प्रभाव की सुविधाजनक सूचक है जो अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों पर क्रिया करती है और व्यापार में शामिल राष्ट्रों के कल्याण में होने वाले परिवर्तनों पर प्रभाव के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होती है।’

व्यापार की शर्तों को निम्न समीकरण (Equation) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

व्यापार शर्ते = आयात का समस्त मूल्य/निर्यात का समस्त मूल्य

अब इसे भिन्न समीकरण के रूप में भी व्यक्त किया जाता है-

व्यापार शर्ते = निर्धारित मूल्य/आयात मूल्य × 100

जब दो देशों के बीच वस्तुओं का व्यापार हो, यातायात व्यय का न होना, उत्पादन लागतों का स्थिर होना आदि की दशा में व्यापार की शर्ते उस अनुपात के रूप में होंगी जिस रूप में एक वस्तु का दूसरी वस्तु से विनिमय होता है। ऐसी स्थिति में व्यापार की शर्ते एवं उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है।

(1) मौद्रिक श्रम लागत का अनुपात, (2) दोनों वस्तुओं की विनिमय दर, (3) दोनों वस्तुओं के प्रति इकाई मुद्रा लागत का अनुपात ।

यद्यपि व्यापार की शर्तों की व्याख्या और उनकी गणना करने में अनेक कठिनाइयाँ और अनिश्चितताएँ पाई जाती हैं। परन्तु ऐसा होते हुए भी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में इनका अपना महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये शर्ते उन देशों के लिए और अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं जिनके लिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उनकी राष्ट्रीय आय में एक बड़ी सीमा तक योगदान देती हैं क्योंकि व्यापार शर्तों में परिवर्तन होने से राष्ट्रीय आय और भुगतान सन्तुलन प्रभावित होते हैं।

अनुकूल एवं प्रतिकूल व्यापार शर्ते

(Favourable and unfavourable Terms of Trade)

जब देश के आयात के लिए कम वस्तुओं का निर्यात करना पड़े अर्थात् देश के निर्यात के लिए अधिक वस्तुओं का आयात किया जाता है तो यह व्यापार की अनुकूल शर्ते कहलाती हैं। उदाहरणार्थ, भारत की व्यापार की शर्ते अनुकूल है तो भारत कम निर्यात करके अधिक आयात कर सकता है क्योंकि निर्यात के मूल्य ऊँचे हैं तथा आयात के मूल्य कम हैं।

इसके विपरीत जब कोई देश एक दी हुई निर्यात मात्रा के बदले कम वस्तुओं का आयात कर सकता है तो व्यापार की शर्ते देश के प्रतिकूल कहलाएंगी। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि निर्यातों की तुलना में आयात की जाने वाली वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो गई है।

व्यापार शर्तों की अवधारणाएँ

(Concepts of Terms of Trade)

व्यापार के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन हेतु विभिन्न संभव विकल्प सूचकांक तैयार करके व्यापार शर्तों का निर्धारण किया जा सकता है। व्यापार के मूल्य के अतिरिक्त व्यापार की मात्रा भी महत्त्वपूर्ण है और कीमतों में होने वाले परिवर्तन भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। उत्पादन के साधनों की उत्पादकता में वृद्धि के परिणामस्वरूप व्यापार की शर्तों में गिरावट आती है लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि यह स्थिति प्रतिकूलता का द्योतक है। इन सभी तत्वों को मद्दे नजर रखते हुए विभिन्न सूचकांक प्रस्तुत किये गए हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण सूचकांक निम्नांकित हैं-

(1) वस्तुओं की विनिमय दर के आधार पर- व्यापार की शर्तों की अवधारणाओं का अध्ययन वस्तुओं की विनिमय दर के आधार पर किया जा सकता है। विनिमय दर के आधार पर निम्न व्यापार की शर्ते हो सकती हैं।

(A)विशुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते (Net Barter Terms of Trade)

प्रो० टॉसिग ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तु विनिमय व्यापार शर्तों का वर्णन करते हुए विशुद्ध वस्तु विनिमय’ तथा ‘सकल-वस्तु विनिमय’ व्यापार शर्तों के अन्तर को स्पष्ट किया है। आयात एवं निर्यात वस्तुओं के मूल्यों के अनुपात को ही विशुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते कहा जाता है। इसे निम्न सूत्र से प्रदर्शित किया जाता है।

N= Px /Pm

N= विशुद्ध विनिमय व्यापार शर्ते

(Net barter terms of trade)

P= मूल्य सूचकांक (Price Index)

x= निर्यात (Exports)

M= आयात (Imports)

N की वृद्धि अनुकूल स्थिति का सूचक मानी जाती है क्योंकि एक दी हुई निर्यात वस्तुओं की मात्रा के बदले अब देश विशेष को अधिक मात्रा प्राप्त होती है। दो समयाविधियों के बीच व्यापार शर्तों के परिवर्तन का अध्ययन निम्न सूत्र से किया जा सकता है-

PXI/Pml =  Pxo/Pmo

इसमें I = चालू वर्ष (Current year)

0= आधार वर्ष (Base year)

(B) सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते

(Gross Barter Terms of Trade)

प्रो० टॉसिग ने विशुद्ध विनिमय व्यापार शर्तों की भुगतान सन्तुलन संबंधी कमी को दूर करके सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्तों का विचार प्रतिपादित किया है। जब आयात निर्यात मूल्यों के स्थान पर उनकी मात्राओं के सूचकांकों का संबंध प्रस्तुत किया जाये तो उसे सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते कहा जाता है। इसके अन्तर्गत आयात एवं निर्यात की भौतिक मात्राओं को विनिमय दर को सूचकांकों की सहायता से व्यक्त किया जा सकता है। आयात निर्यात के इस अनुपात को निम्न सूत्र से स्पष्ट किया जा सकता है-

G = Qm/Qx

इसमें

G= सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते

(Gross Barter Terms of Trade)

G= मात्रा (Quantity)

M= आयात सूचकांक (Imports Index)

x= निर्यात सूचकांक (Exports Index)

दो समयविधियों में व्यापारिक परिवर्तनों की तुलना के लिए इसे निम्न सूत्र में प्रदर्शित किया जा सकता है-

Qml/Qx1  =  Qmo/Qxo

इसमें 1 वर्तमान (current) तथा 0 आधार वर्ष (Base year) इंगित करते हैं।

प्रो० टॉसिग के अनुसार इन शर्तों में ऐसे व्यापार की कल्पना की जाती है जहाँ भुगतान सन्तुलन में एक पक्षीय व्यवहार भी शामिल किये जाते हैं जैसे दान, रेट, कर, देशान्तरवासी धन प्रेषण (Immigrants Remittances) इत्यादि।

जब शुद्ध और कुल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्ते समान होती हैं जो व्यापार सन्तुलन साम्यवस्था में होता है। यदि सम्पूर्ण भुगतान सन्तुलन में एक पक्षीय भुगतान शामिल होंगे तो सकल वस्तु व्यापार शर्ते विशुद्ध वस्तु व्यापार शर्तों से भिन्न होंगी।

(C) आय व्यापार शर्ते (Income terms of trade)

जी० एस० डोरेन्स (G.S. Dorrance) ने विशुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्तों में सुधार करके आय व्यापार शर्तों का प्रतिपादन किया है। विशुद्ध व्यापार शर्तों के अन्तर्गत व्यापारिक वस्तुओं के गुण व प्रकृति परिवर्तनों पर कोई विचार नहीं किया जाता है। विकासशील एवं प्रारम्भिक उत्पादक देशों के व्यापार में वस्तुओं के गुण और व्यापार के स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है, जिनका इन निम्न देशों के अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। आय व्यापार शर्तों के द्वारा विशुद्ध विनिमय व्यापार शर्तों को दूर किया गया है। कुछ अमरीकी अर्थशास्त्री आय व्यापार शर्तों के विचार को व्यापार से निर्यात लाभ (The Export gain from trade) भी कहते हैं।

आय व्यापार शर्ते निम्न सूत्र से निर्धारित की जा सकती हैं-

I=NQx

इसमें I = आय व्यापार शर्ते (Income Terms of Trade)

N= विशुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते (Net barter of Trade)

Qx = निर्यात मात्रा सूचकांक (Export Quantity Index)

अथवा

I = Px.Qx/Pm

इसमें I = आय व्यापार शर्ते

P= मूल्य सूचकांक (Price Index)

X= निर्यात (Exports)

M= आयात (Imports)

G = मात्रा (Quantity)

Q= निर्यात मात्रा सूचकांक

आय व्यापार शर्तों पर किसी भी देश की आयात करने की क्षमता (Capacity to Import)

निर्भर करती है क्योंकि Px .Qx/Pm द्वारा Qm (आयात की मात्रा) निर्धारित होती है।

  1. उत्पादक साधनों के आदान-प्रदान के अनुसार- व्यापार शर्तों संबंधी अवधारणाओं का उत्पादक साधनों के आदान-प्रदान के अनुसार भी अध्ययन किया जा सकता है। इस आधार पर निम्न वर्गों में व्यापार शर्तों को विभाजित किया जा सकता है-

(A) एक साधनात्मक व्यापार शर्ते (Single Factorial Terms of Trade)-

जैकोब वाइनर (Jacob Viner) ने वस्तु व्यापार शर्तों में सुधार करके एक साधनात्मक व्यापार शर्तों के विचार का प्रतिपादन किया है। साधनात्मक व्यापार शर्ते उत्पादन साधनों की उत्पादकता पर आधारित है। यह व्यापार की शर्त निर्यात-कीमतों व आयात-कीमतों के निर्देशांकों के बीच सम्बन्ध को प्रदर्शित करती है परन्तु जिसे निर्यातों के उत्पादन में उत्पादकता संबंधी परिवर्तनों के लिए समायोजित कर लिया जाता है। प्रो० वाइनर के अनुसार, “यदि निर्यात वस्तुओं के उत्पादन के औसत तकनीकी गुणांकों (Technical Coefficients) के रूप में उत्पादन लागत का एक सूचकांक बनाना सम्भव हो और यदि वस्तुगत व्यापार शर्त सूचकांक को उक्त तकनीकी गुणांक से व्युत्क्रम (Reciprocal) से गुणा किया जाए तो इसके फलस्वरूप जो सूचकांक प्राप्त होगा वह व्यापार से लाभ की प्रवृत्ति के बारे में वस्तुगत व्यापार शर्त सूचकांक की अपेक्षा अधिक अच्छा मार्ग दर्शन प्रदान कर सकता है। उन्होंने ऐसी व्यापार शर्त का एक साधनात्मक व्यापार शर्त की संज्ञा दी है। एक साधनात्मक व्यापार शर्तों को निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।

S = N.Zx

इसमें-

S= एक साधनात्मक व्यापार शर्ते

(Singl Factoral Terms of Trade)

N= विशुद्ध व्यापार शर्ते

(Net Berter Terms of trade)

Zx = निर्यात उत्पादकता सूचकांक

(Export Productivity Index)

अथवा

S = Px/Pm × Zx

इसमें

S= एक साधनात्मक व्यापार शर्ते

Px =निर्यात मूल्य सूचकांक

(Export Price Indices)

Pm = आयात मूल्य सूचकांक

(Import Price Indices)

Zx = निर्यात उत्पादकता सूचकांक

(B) द्विसाधनात्मक व्यापार शर्ते (Double Factorial Terms of Trade)- एक साधनात्मक व्यापार शर्तों का सबसे बड़ा देन इनका एकांकी स्वरूप है। इसमें निर्यात वस्तुओं में लगे उत्पादन साधनों की उत्पादकता को व्यापार शर्तों के अध्ययन में सम्मिलित किया जाता है, लेकिन आयात की जाने वाली वस्तुओं में लगे उत्पादन साधनों की उत्पादकता को छोड़ दिया गया है। वास्तविक जीवन में निर्यात तथा आयात दोनों ही की उत्पादकता का समावेश करके व्यापार शर्तों का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस दोष को दूर करने के लिए प्रो० वाइनर ने द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों के विचार का प्रतिपादन किया है। वाइनर के अनुसार, “द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों का आशय देश उत्पादन के साधनों की प्रति इकाई के उत्पादन से विनिमय की जाने वाली आयातों में निहित उत्पादक साधनों के सापेक्षिक मात्राओं से है।”

द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों को निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-

D = NZX/Zm

इसमें

D= द्विसाधनात्मक व्यापार शर्ते

(Double Factoral Terms of Trade)

N= विशुद्ध वस्तु व्यापार शर्ते

(Net Berter Terms of trade)

Zx = निर्यात उत्पादकता सूचकांक

(Export Productivity Indices)

Zm = आयात उत्पादकता सूचकांक

(Import Productivity Indices)

अथवा

D = Px/Pm × Zx/Zm

इसमें

Px/Pn = वस्तु व्यापार शर्ते

Zx/Zm = निर्यात एवं आयात उत्पादकता अनुपात

पैमाने की स्थिर प्राप्तियों की मान्यता के अन्तर्गत द्विसाधनात्मक व्यापार शत, वस्तुगत व्यापार शर्तों के समान होने की प्रवृत्ति रखती है। महत्त्वपूर्ण होने पर भी यह सूचकांक व्यापार से होने वाली प्राप्तियों को सही रूप में नहीं नापता है। उदाहरणार्थ यदि x-देश y-देश से समान अवसर लागतों पर वस्तुओं का आयात करता है और इस वस्तु के उत्पादन के लिए आवश्यक उत्पादन के स्रोतों की इकाईयों की संख्या y- देश में घट जाती है, क्योंकि इसकी उत्पादन कुशलता में सुधार हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में x- देश की द्विसाधनात्मक व्यापार शर्ते विपरीत हो जायेंगी जबकि व्यापार से होने वाली उसकी प्राप्तियां अप्रभावित रहेंगी। यदि y- देश की उत्पादन कुशलता कम होती है तथा अन्य चीजें समान रहती हैं तो x- देश की व्यापार-शर्तों में सुधार होगा। यद्यपि व्यापार से होने वाली इसकी प्राप्तियाँ अप्रभावित रहेंगी। इसी प्रकार यदि x देश की उत्पादकता तेजी से बढ़ती है तो इसकी वस्तुगत व्यापार शर्त विपरीत हो सकती है और साथ ही उसकी द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों में सुधार हो सकता है।

उत्पादकता सूचकांकों के निर्माण की कठिनाई के कारण द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों का प्रयोग नहीं किया जा सका है।

  1. उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार- व्यापार शर्तों की अवधारणाओं का अध्ययन उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार भी किया जा सकता है। उपयोगिता विश्लेषण के आधार पर निम्न प्रकार की व्यापार शर्तों का निर्धारण किया जा सकता है।

(A) वास्तविक लागत व्यापार शर्ते (Real Cost Terms of Trade)-  वस्तुगत व्यापार शर्तों तथा एक साधनात्मक व्यापार शर्तों की कमियों को दूर करने हेतु इस विचार का प्रतिपादन भी जैकोब वाइनर ने किया है। वास्तविक लागत व्यापार शर्तों से आर्थिक कल्याण का प्रत्यक्ष विश्लेषण संभव है जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के वास्तविक लाभ को प्रत्यक्ष रूप से माप सकता है। इसके लिए एक साधनात्मक व्यापार शर्तों के सूचकांक को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के तकनीकी गुणांकों के अनुपयोगिता गुणांकों (Disutility Coefficients) के सूचकांकों के व्युत्क्रम से गुणा किया जाना चाहिए। यही वास्तविक लागत व्यापार शर्त सूचकांक होगा।

इन शर्तों के अन्तर्गत आयात तथा निर्यात वस्तुओं की उनकी उपयोगिता के अनुसार तुलना की जाती है। आयात और निर्यात दोनों की प्रति इकाई वास्तविक लागत निकाल ली जाती है। इसी को वास्तविक लागत व्यापार शर्त सूचकांक कहते हैं। इसके अन्तर्गत यह ज्ञात किया जाता है कि कितनी उपयोगिता का निर्यात (लागत के रूप में त्याग) किया गया है और कितनी उपयोगिता आयात से वास्ततिक लागत के रूप में प्राप्त होती है। दोनों का अन्तर ही वास्तविक कल्याण का सूचक है। वास्तविक लागत व्यापार शर्तों को ज्ञात करने हेतु एक साधनात्मक व्यापार सूचकांक को निर्यात के निहित त्याग सूचकांक से गुणा करते हैं। इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-

R = S. Rx

इसमें

R= वास्तविक लागत व्यापार शर्ते

(Real Cost Terms of Trade)

S= एक साधनात्मक व्यापार शर्ते

(Single Factoral Terms of Trade)

Rx = निर्यात में निहित उपयोगिता त्याग

अथवा

Px/Pm  Zx Rx

इसमें

Px/Pm= आयात-निर्यात मूल्य सूचकांक (N)

Zx = निर्यात उत्पादकता

Rx = निर्यात में निहित उयोगिता त्याग

व्यापार शर्तों का यह सूचकांक भी दोष मुक्त नहीं है क्योंकि इसका संबंध केवल उन विदेशी वस्तुओं की मात्रा से है जिसे निर्यातों के उत्पादन की वास्तविक लागत की एक इकाई के बदले में कोई देश प्राप्त करता है। इसमें आयातों से प्राप्त होने वाली सापेक्षिक उपयोगिता की उपेक्षा की गई है।

(B) उपयोगिता अथवा बाजार व्यापार शर्ते (Utility or Market Terms of Trade)- वास्तविक लागत व्यापार शर्तों के दोष को दूर करने हेतु उपयोगिता अथवा व्यापार शर्तों के विचार प्रतिपादन किया गया है। जैकोब वाइनर ने इस दोष को दूर करने हेतु ‘उत्पादकता व्यापार शर्तों की कल्पना की है जिसके अन्तर्गत वास्तविक लागत व्यापार शर्तों को आयात उत्पादकता सूचकांक से गुणा किया जाता है। प्रोफेसर रोबर्टसन ने इसे वास्तविक व्यापार शर्तों’ का नाम दिया है। इसे निम्न सूत्र से निकाला जा सकता है-

U = R.Um

इसमें

U = उपयोगिता व्यापार शर्ते

(Utility Terms of Trade)

R= वास्तविक व्यापार शर्ते

(Real Terms of Trade)

Um = आयात उत्पादकता सूचकांक

(Import Productivity Indices)

इस विचार की विशेष आवश्यकता उस समय होती है जबकि एक देश उपभोग कम करके निर्यात को बढ़ाना चाहता है। अतः आयात और निर्यात में निहित उपयोगिता की तुलना की जाती है। इसके लिए आयात तथा निर्यात माल की प्रति इकाई औसत उपयोगिता देखी जाती है। इसी को उपयोगिता व्यापार शर्त सूचकांक कहते हैं।

उपयोगिता व्यापार शर्तों का व्यावहारिक महत्व नहीं है क्योंकि वास्तविक एवं व्यावहारिक जीवन में अयात-निर्यात में निहित उपयोगिता और अनुपयोगिता (त्याग) की माप करना अत्यन्त कठिन है।

व्यापार शर्तों की विभिन्न धारणाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि निर्धन देशों की दृष्टि से विशुद्ध व्यापार शर्ते, सकल व्यापार शर्ते तथा आय व्यापार शर्ते ही व्यावहारिक महत्व की हैं और तीनों धारणाओं में भी वस्तु व्यापार शर्ते का ही व्यापक उपयोग किया जाता है और इन्हीं का व्यावहारिक महत्व है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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