अर्थशास्त्र / Economics

क्षतिपूर्ति के सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा | काल्डर-हिक्स के कल्याणकारी मानदण्ड की आलोचनात्मक समीक्षा

क्षतिपूर्ति के सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा | काल्डर-हिक्स के कल्याणकारी मानदण्ड की आलोचनात्मक समीक्षा

क्षतिपूर्ति के सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा

काल्डर-हिक्स के कल्याणकारी मानदण्ड (क्षतिपूर्ति के सिद्धान्त) की आलोचनात्मक समीक्षा (critical evaluation of Kaldor-Hicks welfare criteria or compensation principle)

काल्डर, हिक्स तथा साइटोवोस्की द्वारा प्रतिपादित क्षतिपूर्ति सिद्धान्त कल्याणकारी अर्थशास्त्र में सन् 1939 से लेकर अब तक बड़े वाद-विवाद का प्रश्न रहा है। सर्वप्रथम काल्डर ने अन्तर्व्यक्ति तुष्टिगुण की तुलना के बिना क्षतिपूर्ति सिद्धान्त द्वारा उस दशा में सामाजिक कल्याण में वृद्धि अथवा कमी जाँचने का मानदण्ड प्रस्तुत किया। सन् 1940 में हिक्स ने इसका समर्थन किया यद्यपि उन्होंने क्षतिपूर्ति सिद्धान्त को कुछ निम्न शब्दों में व्यक्त किया। साइटोवोस्की ने क्षतिपूर्ति पर आधारित अपने दोहरे मानदण्ड के प्रतिपादन द्वारा काल्डर-हिक्स के कल्याणकारी मानदण्ड पर सुधार किया। क्षतिपूर्ति पर आधारित कल्याणकारी मानदण्ड (welfare criteria) के प्रतिपादकों का दावा है कि वे क्रमवाचक तुष्टिगुण (ordinal utility) की अवधारणा पर आधारित तथा नैतिक मूल्यों (value judgements) से मुख्य कल्याणकारी मानदण्ड विकसित करने में सफल हुए हैं। किन्तु क्षतिपूर्ति सिद्धान्त की भी कटु आलोचना की गई है।

  1. यह कल्याण व मानदण्ड नहीं

(This is not a criterion of welfare)-

सर्वप्रथम एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० लिटिल के मतानुसार काल्डर ने कल्याण का कोई नवीन मानदण्ड प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि वह कल्याण को उत्पादन अथवा आर्थिक कुशलता में वृद्धि का फलन मानता है तथा कल्याण पर वितरण के प्रभाव की उपेक्षा करता है। इस प्रकार लिटिल के अनुसार काल्डर ने क्षतिपूर्ति पर आधारित धन अथवा आर्थिक कुशलता में वृद्धि (increase in wealth or economic efficiency) की परिभाषा मात्र प्रस्तुत की है। यह उल्लेखनीय है कि स्वयं काल्डर ने क्षतिपूर्ति सिद्धान्त का अर्थ ही इसी प्रकार व्यक्त किया है। काल्डर के मतानुसार, “जंब धन के उत्पादन में वृद्धि होती है तो ऐसा आय-वितरण मालूम किया जा सकता है जिससे किसी के हानिग्रस्त हुए बिना कुछ लोगों को लाभ प्राप्त होती है” (“when the production goes up some income distribution could be found which makes some people better off and no one worse off than before”)। इस प्रकार लिटिल के अनुसार चूंकि काल्डर-हिक्स के कल्याणकारी मानदण्ड में क्षतिपूर्ति द्वारा वांछित आय वितरण केवल काल्पनिक (hypothetical) है, यह कल्याण में वृद्धि का मानदण्ड न होकर अति क्षतिपूर्ति के शब्दों में आर्थिक कुशलता की परिभाषा है। (“It is not a welfare test but a definition of economic efficiency in terms of over compensation”)

  1. नैतिक निर्णयों से मुक्त नहीं

(Not Free From Value Judgements)-

अनेक अर्थशास्त्रियों का मत है कि काल्डर-हिक्स का मानदण्ड भी नैतिक निर्णयों से स्वतन्त्र नहीं है। प्रो० लिटिल और बॉमल (Baumol) के विचार में यह कहना कि वे सभी परिवर्तन जिनके फलस्वरूप लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति हानिग्रस्त व्यक्तियों की क्षतिपूर्ति करने के बाद भी पहले से श्रेष्ठतर रहते हैं। अच्छे और वांछनीय हैं स्वयं नैतिक निर्णय है। लिटिल के अनुसार यह कहना कि नीति परिवर्तन (जो काल्डर-हिक्स के मानदण्ड पर पूरा उतरता है) समाज के उत्पादन अथवा कुशलता में वृद्धि करता है वास्तव में उसका अनुमोदन करना है। उसका विचार है कि काल्डर- हिक्स ने “कुशलता” की जो परिभाषा प्रस्तुत की है उसमें निहित नैतिक मूल्यों अथवा नैतिक निर्णयों को अधिकांश व्यक्ति अच्छा नहीं समझते। काल्डर-हिक्स के मानदण्ड में क्षतिपूर्ति केवल काल्पनिक होने के कारण किसी नीति परिवर्तन जिसका यह मानदण्ड अनुमोदन करता है, से गरीब व्यक्ति अधिक गरीब भी बन सकते हैं। अतएव लिटिल के अनुसार काल्डर-हिक्स के मानदण्ड में निहित नैतिक निर्णयों को यदि स्पष्ट (explicit) रूप में व्यक्त किया जाय तो काल्डर-हिक्स का यह दावा कि उन्होंने नैतिक निर्णयों से स्वतन्त्र कल्याण में वृद्धि की जाँच करने का मानदण्ड खोज निकाला है अधिकांश लोगों को स्वीकार्य नहीं होगा।

इसी तरह बॉमोल का भी विचार है कि काल्डर-हिक्स का कल्याणकारी मानदण्ड ऐसे निहित नैतिक निर्णयों पर आधारित है जो स्वीकार्य नहीं है। “ऐसे मानदण्ड का प्रयोग करके जिसमें सम्भाव्य मौद्रिक क्षतिपूर्ति का प्रावधान है, में प्रच्छन्न रूप से मुद्रा रूप में अन्तर्व्यक्ति तुलना पायी जाती है।” यदि एक व्यक्ति A अपने लाभ की कीमत 500 रुपये आंकता है जबकि दूसरा व्यक्ति B उसी आर्थिक परिवर्तन से हुई हानि 75 रुपये के बराबर बताता है तो हम इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि सामाजिक कल्याण में वृद्धि हुई है क्योंकि यदि हानिग्रस्त निर्धन व्यक्ति है और लाभ प्राप्त करने वाला धनी व्यक्ति है तो यह सम्भव है कि 75 रुपये की हानि से निर्धन की सन्तुष्टि में कमी धनी के 500 रुपये के लाभ से सन्तुष्टि में वृद्धि की तुलना में बहुत अधिक हो। कारण यह है कि निर्धन द्वारा प्राप्त एक रुपये से सीमान्त तुष्टिगुण धनी व्यक्ति की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। इस प्रकार वास्तविक क्षतिपूर्ति के बिना, प्रस्तावित परिवर्तन से व्यक्ति B के कल्याण में भारी क्षति होगी और व्यक्ति A के कल्याण में तुच्छ वृद्धि 1 अत: बॉमोल के अनुसार, “काल्डर और साइटोवोस्की के मानदण्डों ने अन्तर्व्यक्ति तुलना की मौलिक समस्या को छिपा दिया है जिसकी ऐसे नीति परिवर्तन जो व्यक्ति A हो हानि तथा B को लाभ पहुँचाता है कि सामाजिक कल्याण पर प्रभाव आंकने के लिए आवश्यकता है। इस समस्या को वे यह कह कर छिपा देते हैं कि किसी नीति परिवर्तन का अनुमोदन A और B व्यक्तियों की इच्छा और मूल्य चुकाने की क्षमता पर निर्भर करता है।”

  1. वितरण से स्वतन्त्र उत्पादन में वृद्धि का कोई अर्थ नहीं

(Increase in production without considering distribution has no meaning)-

काल्डर व हिक्स का दावा है कि क्षतिपूर्ति के नियम द्वारा वे उत्पादन में परिवर्तन को वितरण में परिवर्तन (जो उत्पादन में परिवर्तन से सम्बन्धित होता है) से अलग करने में सफल हो गये हैं। ऐरो (arrow), सैम्युल्सन, बॉमल का विचार है कि वितरण से स्वतन्त्र उत्पादन में वृद्धि का कोई अर्थ नहीं अर्थात् क्या उत्पादन में वृद्धि हुई है या नहीं यह उत्पादित वस्तुओं के विभिन्न व्यक्तियों में वितरण पर भी निर्भर करता है। उदाहरणत: मान लीजिए किसी नीति परिवर्तन के फलस्वरूप कैम्पाकोला के उत्पादन में वृद्धि और अंग्रेजी शराब के उत्पादन में कमी हो जाती है। यदि व्यक्ति A कैम्पाकोला को और व्यक्ति B अंग्रेजी शराब को पसन्द करे तो इस प्रश्न का उत्तर कि क्या सामाजिक उत्पादन में वृद्धि हुई है इस बात से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है कि वस्तुओं का वितरण A और B व्यक्ति में किस प्रकार हो रहा है।

इसके अतिरिक्त काल्डर और हिक्स का यह विचार कि उत्पादन का स्तर ही सामाजिक कल्याण का प्रमुख निर्धारक है और इस सम्बन्ध में वितरण की भूमिका गौण है, अधिकांश अर्थशास्त्रियों को स्वीकार्य नहीं है। वस्तुत: कल्याण के दो पक्ष हैं : निरपेक्ष और सापेक्ष (absolute and relative) गरीब लोगों की असन्तुष्टि न केवल इसलिए होती है कि वे निर्धन हैं बल्कि इसलिए भी कि कुछ अन्य लोग उनसे बहुत अधिक धनी हैं। यदि समाज के सभी लोग गरीब होते तो उनकी असन्तुष्टि इतनी अधिक न होती। इस प्रकार सम रूप से वितरित निम्न कुल उत्पादन, विषम रूप से वितरित अधिक उत्पादन से सामाजिक कल्याण की दृष्टि से श्रेष्ठ है।

  1. काल्डर-हिक्स का मानदण्ड वास्तविक सामाजिक कल्याण पर विचार नहीं करता

(Kaldor-Hicks criterion does not envisage actual social welfare)-

लिटिल, ऐगे तथा बॉमल का मत है कि केवल काल्पनिक क्षतिपूर्ति को विचार में लाकर काल्डर-हिक्स का कल्याणकारी मानदण्ड वास्तविक (actual) सामाजिक कल्याण की उपेक्षा करता है। क्षतिपूर्ति सिद्धान्त के अनुसार लाभान्वित व्यक्तियों द्वारा हानिग्रस्त व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति कर सकने के पश्चात् भी पहले से बेहतर रहते हैं तो प्रस्तावित परिवर्तन सामाजिक कल्याण को बढ़ायेगा, किन्तु यह क्षतिपूर्ति वास्तव में करना आवश्यक नहीं। परन्तु यह सही नहीं है। वे नीति परिवर्तन जो वास्तविक क्षतिपूर्ति के साथ सामाजिक कल्याण को बढ़ाते हैं, आवश्यक नहीं कि वे क्षतिपूर्ति के बिना भी सामाजिक कल्याण को बढ़ायें। एक उदाहरण लीजिए। एक उद्योग में श्रम का प्रतिस्थापन करने वाली नयी उत्पादन तकनीक का प्रयोग किया जाता है और फलस्वरूप उत्पादन की लागत घट जाती है और उद्योग की फर्मों को बहुत लाभ पहुंचते हैं। परन्तु साथ ही मशीनों द्वारा श्रम के प्रतिस्थापन से बड़ी मात्रा में श्रमिकों को कार्य से हाथ धोना पड़ता है और इस प्रकार वे बेरोजगार हो जाते हैं। मान लीजिए कि नयी टेक्नोलॉजी से लाभान्वित फर्मे बेरोजगार हुए श्रमिकों की क्षतिपूर्ति करने के बाद भी पहले से अधिक लाभ अर्जित करती है, परन्तु यह क्षतिपूर्ति वास्तव में नहीं की जाती। अतएव क्षतिपूर्ति वास्तव में न होने से सामाजिक कल्याण घट जाएगा क्योंकि बेरोजगार हुए श्रमिकों के कल्याण में बहुत कमी होगी। इस प्रकार क्षतिपूर्ति काल्पनिक होने से एक आर्थिक परिवर्तन गरीब को अधिक गरीब और धनी को अधिक धनी बना कर सामाजिक कल्याण में कमी करेगा। यह परिवर्तन काल्डर-हिक्स मानदण्ड द्वारा सफलता से पारित होता है।

उपर्युक्त विश्लेषण से सिद्ध होता है कि काल्डर-हिक्स का क्षतिपूर्ति सिद्धान्त वास्तविक कल्याण की बजाय सम्भाव्य कल्याण (Potential welfare) की दृष्टि में रखता है क्योंकि इसमें क्षतिपूर्ति वास्तव में करने का प्रावधान नहीं। वास्तविक क्षतिपूर्ति के बिना कोई यह नहीं कह सकता कि क्या किसी नीति परिवर्तन के फलस्वरूप सामाजिक कल्याण में वृद्धि हुई है, यदि वह विशेष नैतिक निर्णय (Value judgements) लेने को तैयार नहीं है। अत: कल्याणकारी अर्थशास्त्र में नैतिक निर्णय लेना विशेषकर वे जो आय अथवा कल्याण के वितरण से सम्बन्धित होती हैं, अनिवार्य है। हमारे विचार में अर्थशास्त्रियों को वे नैतिक निर्णय जो समाज के अधिकांश लोगों को मान्य हों लेने से संकोच नहीं करना चाहिए।

  1. क्षतिपूर्ति सिद्धान्त द्वारा उपभोग तथा उत्पादन के बाहरी प्रभावों पर ध्यान न देना

(External effects on consumption and production ignored by the compensation principle)-

काल्डर व हिक्स के क्षतिपूर्ति सिद्धान्त की एक और महत्त्वपूर्ण त्रुटि यह है कि यह इस ओर ध्यान नहीं देता कि एक व्यक्ति की सन्तुष्टि (कल्याण) न केवल उसके अपने उपभोग अथवा उत्पादन पर निर्भर करती है बल्कि इस पर भी कि अन्य व्यक्तियों का वस्तुओं तथा सेवाओं का उपयोग अथवा उत्पादन कितना और किस प्रकार का है। एक व्यक्ति अधिक सन्तुष्ट होता है जैसे कि समाज में उसकी सापेक्ष आर्थिक स्थिति (relative economic position) श्रेष्ठतर होती है। अतएव यदि कोई आर्थिक परिवर्तन एक व्यक्ति को पूर्ववत् स्थिति में रखता है परन्तु किसी अन्य व्यक्ति को लाभ पहुँचाता है तो पहले व्यक्ति की सन्तुष्टि पूर्व स्थिति के समान नहीं रहेगी, बल्कि घट जायेगी। कारण यह है कि आर्थिक परिवर्तन द्वारा अन्य व्यक्तियों को लाभ पहुँचने के कारण और फलस्वरूप उनकी आर्थिक दशा में सुधार पहले व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव डालेगा जिससे उसकी सन्तुष्टि कम हो जाएगी।

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि काल्डर व हिक्स के क्षतिपूर्ति सिद्धान्त की अनेक आलोचनाएँ की गयी हैं विशेषकर उसके द्वारा अस्वीकार्य निहित नैतिक निर्णयों (implicit value judgements) पर क्षतिपूर्ति सिद्धान्त की। इन त्रुटियों के कारण कुछ अर्थशास्त्री जैसे कि बर्गसन (bergson), सैम्युल्सन (samuelson) तथा ऐरो (arrow) ने सामाजिक कल्याणकारी फलन (Social welfare function) की अवधारणा विकसित की है जिसमें स्पष्ट रूप से (explicitly) नैतिक निर्णयों को समाविष्ट किया जाता है और इसके आधार पर नीति परिवर्तनों के सामाजिक कल्याण पर प्रभावों की जाँच की जाती है और इससे विशिष्ट सामाजिक अनुकूलतम (unique Social optimum) की प्राप्ति सम्भव होती है।

  1. साइटोवोस्की की दोहरी कसौटी

(Scitovosky’s Double Criterion)-

प्रो० साइटोवोस्की ने बताया कि काल्डर-हिक्स की कसौटी विपरीत स्थिति या विरोधाभास (contradiction or paradox) को जन्म देती है। साइटोवोस्की ने बताया कि काल्डर-हिक्स की कसौटी के आधार पर परिवर्तन वांछनीय है और क्षतिपूर्ति का वास्तव में भुगतान नहीं दिया जाता, तो परिवर्तन के बाद आय का एक ऐसा पुनर्वितरण (redistribution) हो सकता है कि पुरानी स्थिति को वापस चलन, काल्डर-हिक्स की कसौटी के आधार पर हो, वांछनीय हो सकता है। काल्डर-हिक्स की कसौटी में इस विपरीत स्थिति (contradiction) को ‘साइटोवोस्की का विरोधाभास’ (Scitovosky’s Paradox) कहा जाता है। इस प्रकार से साइटोवोस्की के अनुसार यदि कोई परिवर्तन या चलन इस दोहरी कसौटी पर सही उतरता है। केवल तब वह परिवर्तन या चलन एक सुधार होगा।

टी० साइटोवोस्की का विचार है कि काल्डर-हिक्स मानदण्ड में आन्तरिक विरोध (inner contradiction) है क्योंकि इस मानदण्ड के अनुसार यह सम्भव है कि यदि A स्थिति, B स्थिति की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण को व्यक्त करती है तो वही मानदण्ड यह स्पष्ट कर सकता है कि Aस्थिति से पुन: B स्थिति को परिवर्तन भी अधिक सामाजिक कल्याण प्रदर्शित करता है। इस प्रकार एक समय A स्थिति B स्थिति की अपेक्षा श्रेष्ठ है तथा किसी अन्य समय में B स्थिति, A स्थिति की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध होती है, जिसे वास्तव में अपेक्षाकृत हीन (worse off) होना चाहिए। अतः काल्डर-हिक्स मानदण्ड में अन्तर्विरोध (inner contradiction) है। चूँकि इसका स्पष्टीकरण टी० साइटोवोस्की ने किया अत: इसे साइटोवोस्की विरोधाभास (scitovosky paradox) कहा जाता है। इसी प्रकार चूँकि एक स्थिति को उल्टा (reverse) करके भी सामाजिक कल्याण में परिवर्तन को ज्ञान किया जाता है अतः इसे ‘विपरीत परीक्षण’ (reversal test) कहा जाता है।

साइटोवोस्की विरोधाभास की उपयोगिता सम्भावना वक्र (utility possibility curve) द्वारा सरलतापूर्वक व्याख्या की जा सकती है। रेखाकृति में GH तथा JK दो उपयोगिता सम्भावना वक्र है। काल्डर-हिक्स मानदण्ड के आधार पर स्थिति C, स्थिति D की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण को व्यक्त करती है क्योंकि D स्थिति, C बिन्दु से होकर जाने वाले उपयोगिता सम्भावना वक्र JK के नीचे स्थित है। किन्तु काल्डर-हिक्स मानदण्ड से ही यह सिद्ध किया जा सकता है कि स्थिति D, स्थिति C की अपेक्षा श्रेष्ठ है क्योंकि D बिन्दु से होकर जाने वाली उपयोगिता सम्भावना रेखा पर ही एक बिन्दु F स्थित है जो निश्चित रूप से C स्थिति की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण प्रदर्शित करता है क्योंकि F बिन्दु C की अपेक्षा दोनों व्यक्तियों की उपयोगिता में वृद्धि को प्रदर्शित करता है। अतः स्थिति D भी, स्थिति C की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण को, व्यक्त करती है क्योंकि C बिन्दु D, F बिन्दुओं से होकर जाने वाले GH वक्र के नीचे स्थित है।

अतः स्पष्ट है कि काल्डर-हिक्स मानदण्ड से एक बार D की अपेक्षा C स्थिति श्रेष्ठ तथा दूसरी बार C की अपेक्षा D श्रेष्ठ है जो असंगत (inconsistent) निष्कर्ष है। इसे ही ‘साइटोवोस्की विरोधाभास को दूर करने के उद्देश्य ने साइटोवोस्की ने अपना दोहरा मानदण्ड प्रस्तुत किया।

काल्डर-हिक्स मानदण्ड की असंगति (inconsistency) को दूर करने के लिए साइटोवोस्की ने दोहरा मानदण्ड प्रस्तुत किया जिससे अन्तर्गत काल्डर-हिक्स के मौलिक मानदण्ड की पूर्ति तथा विपरीत परीक्षण (reversal test) की पूर्ति न होने की आवश्यकता है। साइटोवोस्की की इस दोहरे मानदण्ड की व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है-“कोई परिवर्तन सुधार होता है यदि परिवर्तित स्थिति से लाभान्वित व्यक्ति (gainers) परिवर्तित स्थिति को स्वीकार करने के लिए क्षतिग्रस्त  व्यक्तियों (losers) को प्रेरित करने में समर्थ है तथा साथ ही क्षतिग्रस्त व्यक्ति लाभान्वित व्यक्तियों को मौलिक स्थिति में बने रहने के लिए प्रेरित करने में असमर्थ है।” यही कारण है कि यह मानदण्ड ‘साइटोवोस्की का दोहरा मानदण्ड’ के नाम से जाना जाता है। साधारण शब्दों में इसका अभिप्राय यह है कि यदि B स्थिति A की अपेक्षा श्रेष्ठ है तो उसी मानदण्ड के द्वारा B स्थिति से A स्थिति को पुनः परिवर्तन श्रेष्ठ नहीं है।

साइटोवोस्की के मानदण्ड को रेखाकृति द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाकृति में CD तथा EF दो उपयोगिता सम्भावना वक्र हैं जो एक-दूसरे का कहीं भी प्रतिच्छेद (intersection) नहीं करते हैं। ऐसी दशा में Q से G बिन्दु को परिवर्तन काल्डर-हिक्स के मानदण्ड के अनुसार सुधार है अर्थात् सामाजिक कल्याण में वृद्धि को व्यक्त करता है क्योंकि G बिन्दु ऐसी उपयोगिता सम्भावना वक्र पर स्थित है जो R बिन्दु से होकर जाता है। R बिन्दु वस्तु तथा सेवा के एक निश्चित समूह के पुनर्वितरण से प्राप्त उपयोगिता के संयोग को व्यक्त करता है जहाँ पर Q की अपेक्ष दोनों व्यक्तियों को अधिक उपयोगिता प्राप्त होती है। इसके विपरीत G बिन्दु से Q बिन्दु को परिवर्तन सुधार नहीं है क्योंकि वह R बिन्दु की अपेक्षा दोनों व्यक्तियों की कम उपयोगिता का संयोग है तथा G एवं R प्रदत्त वस्तुओं तथा सेवाओं के भिन्न-भिन्न वितरण से प्राप्त उपयोगिता के संयोग प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार काल्डर- हिक्स मानदण्ड की पूर्ति हो जाती है तथा साथ ही विपरीत परीक्षण (reversal test) की पूर्ति नहीं होती है।

यद्यपि साइटोवोस्की ने काल्डर-हिक्स की अपेक्षा श्रेष्ठ मानदण्ड प्रस्तुत किया जो काल्डर तथा हिक्स द्वारा प्रस्तुत मानदण्डों पर ही आधारित है किन्तु इसकी भी अनेक आलोचनाएँ की जाती हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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