निबंध / Essay

भारत विभिन्नताओं का देश

भारत विभिन्नताओं का देश

भारत अनेक विषमताओं का देश कहा जा सकता है। यह कथन निम्न तथ्यों द्वारा सत्य प्रतीत होता है :

भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का लगभग 2.4% है, किन्तु यहां विश्व की 17.5% जनसंख्या पायी जाती है। वर्ष 2011 की जनगणनानुसार भारत की जनसंख्या 121.05 करोड़ से अधिक हो चुकी है।

भारत के क्षेत्रफल के सम्बन्ध में विशेष रूप से उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस देश का लगभग सम्पूर्ण भू-भाग ऐसा है जो देशवासियों द्वारा उपयोग में लिया जाता रहा है, भारत का लगभग 85% भाग मनुष्य के उपयोग में लाया जा रहा है। उत्तरी हिमाचल प्रदेश को छोड़कर (जिसका क्षेत्रफल कुल भारत का 12 प्रतिशत है) कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां मनुष्य ने भूमि का थोड़ा-बहुत उपयोग न किया हो।

भूवैज्ञानिक दृष्टि से भी भारत में बड़ी विभिन्नताएं पायी जाती हैं। दक्षिण का प्रायद्वीप विश्व का प्राचीनतम कठोर चट्टानों के द्वारा निर्मित है जबकि हिमालय विश्व का नवीनतम और सर्वोच्च पर्वत है। यह पर्वत कभी महासागर के गर्भ में था। सतलज और गंगा का मैदान हिमालय की नदियों द्वारा लायी गयी। उपजाऊ मिट्टी से बना है जिसमें खनिज पदार्थों का नितान्त अभाव पाया जाता है।

यह देश के एक उष्ण मानसूनी जलवायु वाला देश (Tropical Monsoon Country) कहा जाता है। सम्पूर्ण देश में ऋतुओं का क्रम एक सा पाया जाता है, क्योंकि इसकी जलवाय उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिन्द महासागर से पूर्णतः प्रभावित होती है। हिन्द महासागर की ओर से आने वाले मानसून भारत को उष्ण मानसूनी जलवायु प्रदान करते हैं।

कहीं गगनचुम्बी पर्वत मिलते हैं, जो अधिकांश समय तक हिम ढके रहते हैं, कहीं नदियों की गहरी और उपजाऊ घाटियां बड़े भाग में फैली हैं, तो कहीं पठार हैं व कहीं लहलहाते खेत। नदियों की भी यहां अधिकता है। अतः देश सरस, आर्द्र एवं धन-धान्य से परिपूर्ण है। उत्पादकता की दृष्टि से कपास, तम्बाकू, जूट और चावल के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। गन्ना, चमड़ा और लाख के उत्पादन में भारत सर्वप्रथम है। यहां विश्व का सबसे अधिक चाय, तिलहन, गन्ना पैदा किया जाता है। यहा के वनों में 4,000 से भी अधिक किस्म की लकडियां मिलती हैं। अभ्रक, मैंगनीज और कच्चे लोहे के उत्पादन में भी भारत की स्थिति बड़ी महत्वपूर्ण है। यद्यपि कृषि भारत का प्रमुख उद्योग है, किन्तु अब यहां खनिज प्राप्त करना, मछलियां पकड़ना और वृहत् उद्योगों में कार्य करना भी उल्लेखनीय है। अणु सम्बन्धी खनिज और जल-विद्युत् शक्ति की सम्भावित मात्रा देश के समृद्धशाली होने का संकेत करती है।

यहां अनेक धर्मों और जातियों के लोग पाये जाते हैं। पारसी, ईसाई, हिन्दू, सिख, मुस्लिम, यहूदी, जैन, बौद्ध तथा जनजातियां सभी मिलती हैं। कहा जाता है कि प्रति 50 किलोमीटर के अन्तर पर यहां बोली, रहन-सहन और रीति-रिवाजों में भी अन्तर हो जाता है। देश में 225 बोलियां (Dialects) बोली जाती हैं जिनमें 22 भाषाएं मुख्य हैं । देश में असंख्य मन्दिर, मस्जिद, छतरियां, गिरजाघर और गुरुद्वारे पाये जाते हैं। जैन और बौद्ध धर्म का जन्म गंगा की घाटी में हुआ है। भारत की वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है। यहां सभ्यता का प्रकाश सबसे पहले फैला था क्योंकि जिस समय विश्व के आधुनिक महान् देश बर्बर एव असभ्य थे उस समय भी भारत विश्व का गुरु था। यहाँ सभ्यता के विकास के फलस्वरूप उद्योग पूर्णता को पहुंच चुके थे। यहाँ के व्यापारी अपने जलयानों में विभिन्न वस्तुएं भरकर दूरस्थ देशों की ले जाकर व बेचकर धन प्राप्त करते थे।

चिश्व के सुन्दरतम भवन निर्माण के नमूने भारत में ही पाये जाते हैं। आगरा का ताजमहल, फतेहपुर सीकरी के महल, कर्नाटक में सबसे ऊंची एक ही पत्थर की बनी गोमतेश्वर की मूर्ति, खजुराहो, कोणार्क, मदुरै, मीनाक्षी और कांजीवरम के भव्य मन्दिर, रामेश्वरम् का सबसे लम्बा मन्दिर दालान (1,200 मीटर), तंजाबुर एवं सोमनाथ के विशाल मन्दिर, गोरखपुर (उ.प्र.) में सबसे लम्बा रेलवे प्लेटफार्म (1,366.33 मीटर) तथा बीजापुर में सबसे बड़ा गुम्बज स्थित है।

यह कथन भी सत्य ही माना जा सकता है कि भारत जैसे विशाल देश का क्षेत्रफल लाखों वर्ग किलोमीटर से भी यहां प्राकृतिक दशा, जलवायु, वनस्पति, निवासियों के रंग-रूप, बोलचाल, खान-पान, रहन-सहन और रीति-रिवाज में अन्तर पाया जाना स्वाभाविक ही है। उत्तर में विस्तृत मैदान है। तो दक्षिण में ऊबड़-खाबड़ भूमि । कहीं लहलहाते खेत दृष्टिगोचर होते हैं तो कहीं जल-विहीन मरुस्थल। कहीं भूमि के अनुपात जनसंख्या अधिक है तो कहीं बहुत ही विरल। किन्तु इन सब विभिन्नताओं के होते हुए भी भारत एक विशेष प्रकार की समरूपी एवं समन्वित संस्कृति द्वारा बंधा है। सर्वत्र देश में ‘मूलभूत एकता’ दिखायी पड़ती है। सम्पूर्ण देश जलवायु की दृष्टि से सामान्यतः एक उष्ण मानसूनी लक्षणों वाला देश है। जहां छः ऋतुओं का एक ही क्रम पाया जाता है। समूचे देश पर मानसूनों का प्रभाव एक-सा ही पाया जाता है। यहां के निवासियों का दृष्टिकोण सदैव आध्यात्मिक एवं दार्शनिक रहा है। यहां के निरवासियों के विचार-स्वातन्त्र्य के कारण ही प्रायः पूरे देश में कभी-कभी विभिन्न विचारधाराएं दिखायी पड़ती हैं। फलतः भारत को एक महान् देश कहना पूर्ण रूप से उपयुक्त है।

भारत की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराएं भी इसकी मूलभूत एकता की प्रतीक है। यह अल्यन्त प्रावीनकाल से ही अनेक जातियों और धर्मावलम्बियों की संगम स्थली रहा है। विभिन्न जातियाँ के आगमन, अनेक सभ्यताओं के सम्पर्क और विभिन्न विचारों के पारस्परिक आदान प्रदान से भारतीय संस्कृति बनती गयी और उसकी मूल आत्मा में अन्तर नहीं आ पाया। प्राचीनकाल से ही ऋषियों और मनीषियों ने भारतीय संस्कृतिक जीवन की विभिन्न धाराओं को एकता प्रदान की है जिसके मूल में भारतीयों की उच्च धार्मिक वृत्ति रही है। इस प्रकार यद्यपि भारत अपने बाहरी जीवन में अनेक प्रकार की विभिन्नता लिये हुए है, किन्तु उसकी तह में हिमालय से लेकर कन्याकूमारी तक आन्तरिक एकता है।

प्रो०, डोडवैल के शब्दों में, “भारतीय संस्कृति एक विशाल महासागर के समान है जिसमें अनेक दिशाओं में विभिन्न जातियां और धर्म की नदियां आकर विठीन होती हैं।” यही कारण है कि भारत में विभिन्न विचारों का सुंदर समन्वय हुआ है और हमारी संस्कृति एक मिली जुली संस्कृति कही जाती है। डॉ. सिद्धालंकार के शब्दों में, “यहां अनेक संस्कृतियां इस प्रकार मिश्रित हो गयी हैं कि आज यह कहना अत्यन्त कठिन है कि संस्कृति का कौन-सा रूप इसका अपना है और कौन-सा पराया। मानवशास्त्र की दृष्टि से भारत में विभिन्न नृ-वंश एवं प्रजातियां आपस में आदान-प्रदान द्वारा आत्म-विलय करती रही हैं जिससे उनका स्वतन्त्र व्यक्तित्व समाप्त होकर एक नया ही व्यक्तित्व प्रकट हो गया है। “

अन्त में, कहा जा सकता है कि भारत जैसे विशाल देश की भौतिक संरचना और वनस्पति एवं जलवायु में अन्तर होने के कारण एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में होने वाले उत्पादन, पशु-पक्षी, मानव के रहन-सहन, वेश-भूषा, खान-पान एवं रीति-रिवाज में अत्यधिक विषमता पायी जाती है किन्तु सभी एक विशेष संस्कृति में बंधे हैं। वास्तव में यह एक बड़ा देश है, जादू की पिटारी है, रंग-बिरंगे पशु-पक्षियों का पिंजड़ा है तथा प्रकृति और पुरुषों का अजायबघर है जिसकी समता विश्व के किसी अन्य देश से करना सम्भव नहीं है।

भारत सदैव से ही एक अखण्ड भौगोलिक इकाई रहा है। जिसमें पश्चिम की ओर से आने वाले आक्रमणकारी अपनी विदेशी संस्कृति को लेकर यहां आये और भारतीय संस्कृति में आत्मसात् हो गए, किन्तु देश के सभी भागों में एक सूत्रता मिलती है चाहे कोई हिन्दू हो या मुस्लिम, सिक्ख हो या ईसाई, बंगाली हो या मद्रासी, भारत सभी के लिए पवित्र मातृभूमि है। जिस पर सभी को गर्व है।

प्रमुख गवर्नर जनरल एवं वायसराय के कार्यकाल की घटनाएँ

 INTRODUCTION TO COMMERCIAL ORGANISATIONS

गतिक संतुलन संकल्पना Dynamic Equilibrium concept

भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)|भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ|भूमंडलीय ऊष्मन के कारक

 भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)

मानव अधिवास तंत्र

इंग्लॅण्ड की क्रांति 

प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!