भौतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में अंतर | Difference between physical environment and cultural environment in Hindi
भौतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में अंतर | Difference between physical environment and cultural environment in Hindi
भौतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में अंतर – पर्यावरण को दो वृहद वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-(1) प्राकृतिक पर्यावरण (2) सांस्कृतिक पर्यावरण अथवा भौतिक पर्यावरण एवं अभौतिक या मानवीय पर्यावरण। कभी-कभी इसे जैविक और अजैविक पर्यावरण में भी विभक्त किया जाता है, किन्तु भौगोलिक पर्यावरण से आशय भौतिक और सांस्कृतिक दोनों के सम्मिलित स्वरूप से है।
भौतिक पर्यावरण-
भौतिक पर्यावरण से अभिप्राय उन भौतिक अथवा प्राकृतिक अर्थात् प्रकृति से बनाये कारकों से है, जिन पर प्रकृति का सीधा नियंत्रण है। मानव का हस्तक्षेप इसके निर्माण में नहीं है। यदि मनुष्य को इस पृथ्वी से हटा लिया जाय तो जिन प्रक्रियाओं- क्रियाओं और प्रतिक्रयाओं पर कोई अन्तर न आये, उन सब कारकों को भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत रखा जाता है। इसका आशय यह है कि जिसका निर्माण और नियंत्रण मनुष्य से परे है, जो प्रकृति प्रदत्त है, वह सब कुछ भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत आता है। जैसे-सूर्य- ताप, ऋहतु परिवर्तन, स्थिति, भू-वैज्ञानिक संरचना, उच्चावच, भूकम्पन, ज्वालामुखी उद्भेदना, मृदा, खनिज, वनस्पति, जीव-जन्तु आदि ऐसे तथ्य है, जो प्रकृतिजन्य है। अतः उक्त सभी तथ्यों को प्राकृतिक अथवा भौतिक पर्यावरण पर्यावरण के अन्तर्गत रखा जाता है।
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सांस्कृतिक पर्यावरण-
मानव निर्मित कारकों की प्रभावशीलता को सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत रखा जाता है। जिनका निर्माण मनुष्य ने किया है। जैसे- भवन, मार्ग, नगर, परिवहन-संचार और उद्योग व्यापार एवं वाणिज्य आदि। सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक पर्यावरण के कारकों से कहीं पूर्णतः और कहीं आंशिक प्रभावित होता है, जैसे- अतिनगरीय, अति औद्योगिक एवं अति जनसंख्या, सघन क्षेत्रों में सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक पर्यावरण से अधिक प्रभावी होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में वायु, जल और मृदा आदि भौतिक पर्यावरण के तत्व अपना स्वाभाविक रूप खोकर प्रदूषित होने लगते हैं। फिर भी भौतिक पर्यावरण की सर्वोच्च सत्ता है। तथा भौतिक पर्यावरण का वर्चस्व ही मानव जीवन के लिए और विकास के लिए अनुकूल है। सांस्कृतिक पर्यावरण वस्तुतः मनुष्य के भौतिक कारकों के प्रति अनुकूलन। समायोजन, संघर्ष आदि की प्रतिक्रिया और अनुक्रिया के परिणामस्वरूप जन्मा है, किन्तु मनुष्य भौतिक पर्यावरण के कारकों को पृथक-पृथक कर अध्ययन करता है। वस्तुतः विभिन्न कारक आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हुए जीव जगत पर संयुक्त प्रभाव छोड़ते हैं, अर्थात् इनका प्रभाव एकाकी न होकर संयुक्त होता है। पर्यावरण बाह्य शक्ति है जो मनुष्य को प्रभावित करती है। दूसरे शब्दों में, पर्यावरण वह सब कुछ है जो किसी वस्तु या मानव को चारों ओर से घेरे हुये हैं और उसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।
पर्यावरण विज्ञान एक अपेक्षाकृत नया विषय है। इसके प्रति जनरूचि एवं उत्सुकता दोनों ही दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विषय की व्यापकता ही इसका प्रमुख कारण है। ध्वनि-प्रदूषण (शोर) से भौतिक शास्त्र जुड़ा है तो जल-प्रदूषण का संबंध जल-विज्ञान, जन स्वस्थ्य एवं आरोग्य यांत्रिकी से है। मृदा के प्रदूषण का संबंध मृदा-विज्ञान, कृषि-विज्ञान एवं भूगर्भ-शास्त्र से है तो औषधि-विज्ञान एवं विष शास्त्र से प्रदूषकों का स्वभाव जुड़ा है। वनस्पतिशास्त्र एवं जीव शास्त्र की सहायता से पर्यावरण की परिस्थितिकी का अध्ययन किया जा सकता है। पर्यावरण से होने वाली लाभ-हानि, ‘ईकोमार्किग’ पर्यावरण-बजट एवं ऑडिट, अर्थशास्त्र एवं वाणिज्य से जुड़े हैं तो जनसंख्या-वृद्धि की गतिकी ‘डेमोग्राफी’ के अंतर्गत रखी जा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जब पर्यावरण के प्रदूषण एवं रक्षण की चर्चा होती है तो राजनीतिशास्त्र के सिद्धांत उसे संचालित करते हैं। प्रदूषकों और विषैले-पदार्थ के संबंध में बने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून विधिशास्त्र के अंतर्गत आते हैं। मानव-मात्र का स्वभाव एव व्यवहार इस अध्ययन का एक महत्वपूर्ण अंग है। अतः समाजशास्त्र योगदान भी इसमें कम नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पर्यावरण का अध्ययन-क्षेत्र एक अत्यंत व्यापक क्षेत्र है।
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