वाटसन एवं पावलव का सिद्धांत | शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त | Watson’s and Pavlov’s Theory of Classical Conditioning in Hindi
वाटसन एवं पावलव का सिद्धांत | शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त | Watson’s and Pavlov’s Theory of Classical Conditioning in Hindi
कुत्ते, चूहे, बिल्ली आदि प्राणियों पर किए गए अपने विभिन्न प्रयोगों द्वारा वाटसन और पैवलोव जैसे मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम प्रक्रिया को समझने के लिए अनुबन्धित या प्रतिबद्ध अनुक्रिया नामक सिद्धान्त (Conditioning Response Theory) को जन्म दिया। इस सिद्धांत को साधारण रूप में अनुबन्धन द्वारा सीखना (Learning by Conditioning) कहा जाता है। अनुबन्धन का प्राचीनतम रूप होने के कारण इसे शास्त्रीय विशेषण भी प्रदान किया जाता है। और फलस्वरूप इस प्रकार के अधिगम को शास्त्रीय अनुबंधन का नाम भी दिया जाता है। अनुबंधन क्या है और यह सिद्धान्त क्या कहता है, यह समझने के लिए इन मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले कुछ प्रयोगों को समझना अधिक उचित होगा। (वाटसन एवं पावलव का सिद्धांत)
पैवलोव द्वारा किया गया एक प्रयोग (Experiment by Pavlov)
पैवलोव द्वारा किए गए एक प्रयोग में एक कुत्ते को भूखा रख कर उसे प्रयोग करने वाली मेंज के साथ बाध दिया गया। इस कुसे की लार ग्रन्थियों का आपरेशन कर दिया गया ताकि उसकी लार की बूंदों को परखनली में एकत्रित करके लार की मात्रा भी मापी जा सके। स्वतः चालित यांत्रिक उपकरणों की सहायता से कुत्ते को भोजन देने का व्यवस्था की। प्रयोग का प्रारम्भ इस प्रकार किया गया – घंटी बजने के साथ ही कुत्ते के सामने भोजन प्रस्तुत किया गया। भोजन को देख कर कुत्ते के मुँह में लार आना स्वाभाविक ही था। इस लार को कांच की नली द्वारा परख नलिका में एकत्रित किया गया। इस प्रयोग को कई बार दोहराया गया और एकत्रित लार की मात्रा का माप लिया जाता रहा।

प्रयोग के आखिरी चरण में भोजन न देकर केवल घंटी बजाने की व्यवस्था की गई। इस अवस्था में भी कुत्ते के मुँह से लार टपकी जिसकी मात्रा का माप किया गया इस प्रयोग के द्वारा यह देखने को मिला कि भोजन सामग्री जैसे प्राकृतिक उद्दीपन (Natural Stimulus) के अभाव में भी घंटी बजने जैसे कृत्रिम उद्दीपन (Artificial stimulus) के प्रभाव स्वरूप कुत्ते ने लार टपकाने जैसी स्वाभाविक अनुक्रिया (Natural Response) व्यक्त की।

इस प्रयोग में कुत्ते ने यह सीखा कि जब घटी बजती है तब खाना मिलता है सीखने के इसी प्रभाव के कारण घंटी बजने पर उनके मुँह से लार निकलनी प्रारम्भ हो जाती है। पैवलोव ने इस प्रकार के सीखने को अनुबन्धन द्वारा सीखना (Learning by conditioning) कहा। इस प्रकार के सीखने में किसी प्राकृतिक उद्दीपन (Natural Stimulus) जैसे भोजन, पानी, लैंगिक संसर्ग (Sexual contact) आदि के साथ एक कृत्रिम उद्दीपन (Artificial Stimulus) जैसे घंटी की ध्वनि, कोई रंगीन प्रकाश, आदि प्रस्तुत किया जाता है। कुछ समय बाद जब प्राकृतिक उद्दीपन को हटा लिया जाता है तो यह देखा जाता है कि कृत्रिम उद्दीपन से भी वही अनुक्रिया होती है जो प्राकृतिक उद्दीपन से होती है। इस प्रकार अनुक्रिया (Response) कृत्रिम उद्दीपन के साथ अनुबंधित (Conditioning) हो जाती है।
वाटसन द्वारा किया गया प्रयोग (Experiment Performed by Watson)
वाटसन नामक मनोवैज्ञानिक ने स्वयं अपने 1। माह के पुत्र अलबर्ट के साथ एक प्रयोग किया उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया बच्चे ने इसे बहुत पसन्द किया विशेषकर उसके नरम-नरम बालों पर हाथ फेरना उसे बहुत अच्छा लगा। इसी प्रयोग के दौरान कुछ समय पश्चात् बच्चे ने जैसे ही खरगोश को छुआ, एक तरह की डरावनी ध्वनि पैदा की गई और इस क्रिया को जब-जब वह खरगोश को छूता था बार-बार दोहराया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि डरावनी आवाज़ के न किए जाने पर भी बच्चे को खरगोश को देखने से ही डर लगने लगा। इस तरह भय की अनुक्रिया खरगोश (कृत्रिम उद्दीपन) के साथ अनुबंधित हो गई और इस अनुबंधन के फलस्वरूप उसने खरगोश से डरना सीख लिया। प्रयोग को आगे बढ़ाने पर देखा गया कि बच्चा खरगोश से ही नहीं बल्कि ऐसी सभी चीजों जैसे (रुई के गोले, समूर का कोट आदि) से डरने लगा जिनमें खरगोश के बाल जैसी नरमी और कोमलता हो।
ऐसे प्रयोगों के आधार पर वाटसन और पैवलोव आदि मनोवैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी प्रकार की सीखने की क्रियाओं को अनुबन्धन प्रक्रिया (Process of conditioning) के माध्यम से अच्छी तरह समझा जा सकता है।
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