शिक्षाशास्त्र / Education

थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्त्व | थार्नडाइक के सिद्धान्त के नियमों का शैक्षिक महत्त्व (Educational Implication of Thorndike’s Theory and his various laws of learning)

थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्त्व | थार्नडाइक के सिद्धान्त के नियमों का शैक्षिक महत्त्व (Educational Implication of Thorndike’s Theory and his various laws of learning)

थोर्नडाइक के प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त का पर्याप्त शैक्षणिक महत्त्व है। उसने सीखने की प्रक्रिया को अपने प्रयोगों एवं परीक्षणों के आधार पर पूरी तरह स्पष्ट करने की कोशिश की है। उसने बताया कि केवल पशु-पक्षी में ही नहीं बल्कि मनुष्यो में भी सीखने की प्रक्रिया प्रायः बार-बार प्रयत्न करने और भूल सुधार कर आगे बढ़ने के रूप में सम्पन्न होती है। एक बच्चा जब गणित के प्रश्नों को हल करता है तब वह प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त को प्रयोग में लाता देखा जा सकता है। समस्या को हल करने के प्रयास में पहले वह एक विधि को अपनाने की चेष्टा करता है। थोड़ी देर बाद कार्य में सफलता न मिलने पर दूसरी विधि को अपनाता है। इस तरह अन्त में प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त का पालन करते हुए अपनी समस्या को हल करने में समर्थ हो जाता है। विषयों को सीखने में ही नहीं बल्कि अनुसन्धान एवं आविष्कारों में भी इस सिद्धान्त की उपयोगिता असंदिग्ध ही है उदाहरण के लिए हम आर्कमिडीज़ सिद्धान्त के आविष्कारों के बारे में सोच सकते हैं। आर्कमिडीज़ अपने सम्राट् द्वारा सौंपी हुई एक सामस्या समाधान के लिए बहुत चिन्तित था। उससे कह दिया गया था कि यदि वह समस्या को हल न कर सका तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।

इस प्रकार की आज्ञा उसके लिए एक शक्तिशाली अभिप्रेरक या चालक (Drive) का कार्य कर रही थी। समस्या की गहराई और कठिनता उसके कार्य में बाधक सिद्ध हो रही थी। उसे हल करने के लिए उसने बहुत सोचा तथा प्रयोग किए। इन प्रयत्नों में से एक प्रयत्न अकस्मात् जब वह स्नान कर रहा था, सफल हो गया। इस प्रकार उल्टे-रीधे प्रयत्नों को करते रहने तथा ऋ्रुटिपूर्ण समाधानों का त्याग करते हुए अन्त में उसे संयोगवश सफलता मिल गई। इस सफलता के आधार पर उसने अपने नाम से प्रसिद्ध “आर्कमिडीज़ सिद्धान्त” दुनिया के सामने रखा। इस तरह सीखने तथा ज्ञान की खोज करने में प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। लेकिन सीखने की प्रक्रिया में इसके प्रयोग को अधिक मान्यता और प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए। वस्तुतः थोर्नडाइक के इस सिद्धान्त में यान्त्रिकता की गन्ध आती है। यह सिद्धान्त सीखने की क्रिया में बिना सोचे-रामझे अन्धेरे में इधर-उधर हाथ मारने या ऊल-जलूल चेष्टा करने की प्रवृत्तियों को जन्म देता है। यह ठीक नहीं है। मानव एक सूझ-बूझ वाला विकसित प्राणी है। उसका अज्ञानी और नासमझ पशुओं की तरह बिना अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग में लाए हुए अनगिनत त्रुटि करते हुए सीखना कदापि श्रेयरकर नहीं समझा जा सकता। प्रयत्न अवश्य किए जाने चाहिए परन्तु उन प्रयत्नों में सूझ-बूझ तथा अन्तःदृष्टि अवश्य होनी चाहिए। तभी सीखने की क्रिया अधिक सुगम एवं प्रभावपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

जहाँ तक थोर्नडाइक द्वारा सुझाए गए सीखने संबंधी विभिन्न नियमों का प्रश्न है, यह अच्छी तरह से कहा जा सकता है कि थोर्नडाइक ने इन नियमों के द्वारा अध्ययन-अध्यापन क्षेत्र को बहुत कुछ देने का प्रयत्न किया है। उदाहरण के लिए इन नियमों की देन के रूप में कुछ निम्न तथ्य रामने रखे जा सकते हैं- (थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्त्व)

  1. अध्यापक को इस बात को समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि उसके विद्यार्थियों को कौन-कौन सी बातें याद रखनी चाहिए। जिन बातों को याद रखना है उनसे संबंधित उद्दीपन और अनुक्रियाओं के संयोग को पुनरावृत्ति, अभ्यास कार्य और प्रशंसा तथा पुरस्कार आदि की सहायता लेते हुए अधिक दृढ़ बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। दूसरी ओर जिन बातों को भुलाना है उनसे संबंधित उद्दीपन और अनुक्रियाओं के संयोग को अनुपयोग और निन्दा, ताड़ना और दण्ड और कष्टप्रद परिणामों द्वारा शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
  2. सीखने से पहले बच्चे को सीखने के लिए तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है। जिस बात को बच्चा सीखना चाहता है कि उसमें उसकी पर्याप्त रुचि तथा अभिरुचि का होना अत्यन्त आवश्यक है। अतः बच्चे को सीखने के लिए भली-भाँति अभिप्रेरित किया जाना चाहिए।
  3. कोई भी नई बात सीखने के लिए पहले जो कुछ भी सीखा जाता है अरथवा अनुभव प्राप्त किए जाते हैं वह एक बुनियादी आधार का काम देता है। इसलिए अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान और अनुभवों का समुचित उपयोग करना चाहिए एक परिस्थिति में जो कुछ भी सीख लिया जाता है उसे दूसरी समान परिस्थितियों में पूरी तरह उपयोग में लाने के प्रयत्न भी किए जाने चाहिए।
  4. बच्चे को अपना कार्य स्वयं करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। समस्या का हल एकदम बच्चे के सामने रख देने की अपेक्षा उसे स्वयं हल खोजने के कार्य में लगाया जाना चाहिए। उसके द्वारा हर संभव प्रयत्न करते हुए तथा अपनी त्रुटियों को सुधारते हुए समस्या का सही समाधान ढूढा जाना चाहिए थोर्नडाइक के नियमों द्वारा सुझाया गया यह तथ्य ठीक है परन्तु आगे इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए बच्चे को अनावश्यक स्वतंत्रता एवं ढील नही देनी चाहिए। वह अपना समय और शक्ति व्यर्थ में न खोए तथा अपनी त्रुटियों को बार-बार दोहराता न रहे, इस बात की ओर भी ध्यान देना चाहिए तथा प्रयास के समय सूझ-बूझ तथा मानसिक शक्तियों का समुचित उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिए।

इस प्रकार से शिक्षा की दुनिया में थोर्नडाइक ने अपने नियमों और सिद्धान्तो के द्वारा बहुत कुछ देने का प्रयास किया है। इनके द्वारा अधिगम को पूरी तरह से उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित (Goal Directed) बनाने तथा अभिप्रेरणा (Motivation) को सीखने की प्रक्रिया का बहुमूल्य अंग बनाने का प्रयत्न किया गया है। अधिगम में अभ्यास कार्य तथा पुनरावृत्ति के महत्त्व को समझने तथा प्रशंसा, प्रोत्साहन और पुरस्कार आदि के मूल्य को ठीक ढंग से परखने में थोर्नडाइक ने बहुत ही सूझ-बूझ का परिचय दिया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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