अर्थशास्त्र / Economics

सूक्ष्म अर्थशास्त्र | सूक्ष्म अर्थशास्त्र का क्षेत्र | सूक्ष्म अर्थशास्त्र के उपयोग | सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सीमाएँ

सूक्ष्म अर्थशास्त्र

सूक्ष्म अर्थशास्त्र | सूक्ष्म अर्थशास्त्र का क्षेत्र | सूक्ष्म अर्थशास्त्र के उपयोग – सीमाएँ

सूक्ष्म अर्थशास्त्र

आर्थिक विश्लेषण

(Economic Analysis)

आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण प्राय: दो प्रकार से किया जाता है –(1) व्यष्टिगत अथवा सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण तथा (2) समष्टिगत अथवा व्यापक आर्थिक विश्लेषण । विश्लेषण की इन दो रीतियों के आधार पर अर्थशास्त्र को दो भागों में विभाजित किया जाता है –(1) व्यष्टिगत या सूक्ष्म अर्थशास्त्र तथा (2) समष्टिगत या व्यापक अर्थशास्त्र ।

व्यष्टिगत या सूक्ष्म अर्थशास्त्र

(Micro Economics)

Micro शब्द ग्रीक भाषा के ‘Mikros’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है सूक्ष्म या छोटा। इसके अन्तर्गत हम अर्थव्यवस्था के एक भाग या व्यक्तिगत वस्तुओं का अध्ययन करते हैं। सूक्ष्म अर्थशास्त्र व्यक्तिगत उत्पादकों, व्यक्तिगत फर्मों, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं और व्यक्तिगत उद्योगों से सम्बन्धित सिद्धान्तों का अध्ययन करता है। इसमें एक उपभोक्ता, एक उत्पादक या एक फर्म किस प्रकार सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त करते हैं, की व्याख्या की जाती है। इस प्रकार यह आंशिक सन्तुलन का अध्ययन है जिसमें हम पूर्ण रोजगार की मान्यता लेकर चलते हैं।

कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-

(1) बोल्डिंग के अनुसार, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र में विशेष फर्मो, विशेष परिवारों, व्यक्तिगत कीमतों, मजदूरी, आय, व्यक्तिगत उद्योगों तथा विशेष वस्तुओं का अध्ययन करते हैं।”

(2) हेन्सन के अनुसार, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र उस शाखा को कहते हैं जिसमें व्यक्तिगत फर्म, उनके उत्पादन व मूल्य, व्यक्तिगत मजदूरों की मजदूरी आदि समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।”

(3) हैन्डरसन व क्वांट के अनुसार, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र में व्यक्तियों व ठीक से परिभाषित व्यक्ति-समूहों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन होता है।”

(4) गार्डनर एक्ले के अनुसार, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र में फर्मों और उद्योगों के बीच कुल उत्पादन के विभाजन का और प्रतियोगिता रखने वाले लक्ष्यों के बीच साधनों के वितरण का अध्ययन किया जाता है। यह आय वितरण की समस्या पर भी विचार करता है। इसकी रुचि विशेष वस्तुओं और सेवाओं की सापेक्ष कीमतों में है।”

इसे को कीमत सिद्धान्त (Price Theory) के नाम से भी पुकारा जाता है।

प्रो० शुल्ज के शब्दों में, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र का मुख्य यन्त्र कीमत सिद्धान्त है।” (Price Theory is the main tool of Micro Economics)|

प्रो० जे०के० मेहता ने स्पष्टतः कहा है, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र केवल इस बात का अध्ययन करता है कि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती हैं।” 

  1. “Micro economics is the study of particular firms, particular house-holds, individual pri..s, wages, income, individual industries and particular commodities.”

-K. E. Boulding

क्षेत्र

(Scope of Micro Economics)

इसका का सम्बन्ध इकाइयों से होता है । इसके अन्तर्गत निम्नांकित शामिल किये जाते हैं-

(1) उपभोग- उपभोग के वे सभी नियम जो सीमान्त विश्लेषण पर आधारित हैं, सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में शामिल किये जाते हैं। एक उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि किस प्रकार प्राप्त करेगा, इसका अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ही किया जाता है।

(2) उत्पादन- उत्पादन के क्षेत्र में एक फर्म या एक उद्योग की उत्पादन तथा मूल्य निर्धारण सम्बन्धी समस्याओं का अध्यपन इसके विषय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

(3) वितरण- वितरण के क्षेत्र में उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को राष्ट्रीय आय में से जो भाग मिलता है, उसका अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

सूक्ष्म अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र को निम्न चार्ट द्वारा दिखाया जा सकता है-

  1. वस्तु कीमत निर्धारण सिद्धान्त
  2. उपभोक्ता व्यवहार सिद्धान्त
  3. उत्पादन लागत सिद्धान्त
  4. साधन कीमत निर्धारण सिद्धान्त
  5. मजदूरी का सिद्धान्त
  6. लगान का सिद्धान्त
  7. ब्याज का सिद्धान्त
  8. लाभ का सिद्धान्त
  9. आर्थिक कल्याण का सिद्धान्त

उपयोग

(Uses of Micro Economics)

सूक्ष्म अर्थशास्त्र का प्रयोग विभिन्न आर्थिक सिद्धान्तों व नियमों के निर्माण तथा आर्थिक विश्लेषण की विभिन्न आर्थिक समस्याओं को सुलझाने हेतु किया जाता रहा है। सूक्ष्म अर्थशास्त्र के मुख्य उपयोग निम्नांकित हैं-

(1) सम्पूर्ण अर्थशास्त्र को समझने में सहायक- सूक्ष्म अर्थशास्त्र में अलग-अलग आर्थिक समस्याओं का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन किया जाता है। चूंकि व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ ही परस्पर मिलकर एक अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं, अतः सम्पूर्ण अर्थशास्त्र को समझने के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयों का व्यक्तिगत रूप से विश्लेषण किया जाए।

(2) व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक व्यवहार के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायक-  सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति, परिवार तथा फर्म अपने-अपने क्षेत्र में आर्थिक व्यवहार के सम्बन्ध में निर्णय ले सकते हैं। एक उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए अपना व्यय किस प्रकार करे, एक उत्पादक अपने लाभ को किस प्रकार अधिकतम करे तथा एक फर्म अपना उत्पादन किस सीमा तक बढ़ाये, इन प्रश्नों का उत्तर केवल सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण से ही मिल सकता है।

(3) कीमत सिद्धान्त के विश्लेषण में सहायक- सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किसी वस्तु के मूल्य निर्धारण तथा उत्पत्ति के किसी विशेष साधन की कीमत निर्धारण सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। किसी वस्तु की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ उसकी माँग उसकी पूर्ति के बराबर होती है। इसी प्रकार किसी साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के बराबर ही पुरस्कृत किया जाता है।

(4) आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक- सरकार की प्रत्येक आर्थिक नीति का प्रभाव व्यक्तिगत इकाइयों की कार्य-प्रणाली पर पड़ता है। अतः यह आवश्यक है कि सरकार अपनी नीति बनाते समय सूक्ष्म प्रभावों को दृष्टि में रखे अन्यथा निर्धारित नीति अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होगी।

(5) आर्थिक नियमों के निर्माण में सहायक- ‘सीमान्त विश्लेषण’ सूक्ष्म अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। इसकी सहायता से अर्थशास्त्र के अनेक महत्त्वपूर्ण नियमों जैसे उपयोगिता हास नियम, सम सीमान्त उपयोगिता नियम तथा उपभोक्ता की बचत आदि नियमों का निर्माण किया जा सका है।

(6) व्यक्तिगत इकाइयों की कार्यकुशलता बढ़ाने में सहायक-सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण द्वारा समाज में कार्यरत इकाइयों का व्यक्तिगत विश्लेषण करके उनमें पाये जाने वाले दोषों को दूर किया जा सकता है तथा आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं।

(7) आर्थिक कल्याण की जानकारी में सहायक-परम्परावादी अर्थशास्त्रियों ने सूक्ष्म अर्थशास्त्र को आर्थिक कल्याण के मापदण्ड हेतु प्रयोग किया था। इसमें हम सार्वजनिक आय एवं सार्वजनिक व्यय के आर्थिक कल्याण पर प्रभावों का अध्ययन करते हैं।

सीमाएँ

(Limitations of Micro Economics)

सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की प्रमुख सीमाएँ निम्नांकित हैं-

(1) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करता- सूक्ष्म अर्थशास्त्र में हम केवल व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन करते हैं। अतः इसके अध्ययन से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्या की सही एवं पूर्ण जानकारी उपलब नहीं होती।

(2) खूल्ल आर्थिक विश्लेषण के निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं हैं- सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण के निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त एवं सही नहीं होते। उदाहरण के लिए, निजी बचत एक गुण है किन्तु सामाजिक बचत एक दोष है। (Private saving is a virtue but social saving is a vice.) इसका कारण यह है कि व्यक्तिगत हित सामाजिक हित से भिन्न हो सकते हैं।

(3) अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है- सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण अनेक अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है; जैसे-पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता आदि। ये मान्यताएँ वास्तविक जीवन में खरी नहीं उतरतीं।

(4) सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण कुछ विशेष प्रकार की समस्याओं के लिए अनुपयुक्त हैं- कुछ आर्थिक समस्याएँ ऐसी हैं जिनका अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नहीं किया जा सकता; जैसे-राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति, प्रशुल्क नीति, पूर्ण रोजगार, राष्ट्रीय आय, आय एवं धन का न्यायोचित वितरण, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आदि। इन समस्याओं का अध्ययन ‘व्यापक आर्थिक विश्लेषण’ तारा ही सम्भव है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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