राजनीति विज्ञान / Political Science

एक्वीनास के कानून सम्बन्धी विचार | Aquinas law in Hindi

एक्वीनास के कानून सम्बन्धी विचार | Aquinas law in Hindi

एक्वीनास के कानून सम्बन्धी विचार

थॉमस एक्वीनास द्वारा प्रतिपादित कानून का सिद्धान्त एक ऐसी धारा है, जिसके माध्यम से अरस्तु, स्टोइक और सिसरों, आदि के विचार मिलकर वर्तमान समय में हमारे सम्मुख आते हैं। प्राचीन समय में कानून और न्याय के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं थी, थॉमस ने इन दोनों क्षेत्रों में पग आगे बाकर इनकी परिभाषा एवं व्याख्या की हैं। थॉमस द्वारा प्रस्तुत विवेचना निश्चित रूप से अधिक स्पष्ट ओर परिमार्जित थी। उसने कानून पर विचार का प्रारम्भ उसकी परिभाषा से ही किया है। कानून की परिभाषा करते हुए उसने कहा है कि “कानून विवेक से प्रेरित और लोक कल्याणं हेतु उस व्यक्ति द्वारा जारी किया गया आदेश है, जिस व्यक्ति पर समुदाय की व्यवस्था का भार होता है।

कानून सार्वभौमिक है। कानून के ऊपर कोई भी सत्ता नहीं होती और कानून की आज्ञा का पालन सबको करना होता है। एक्वीनास के अनुसार कानून की एक विशेषता उसकी अपरिवर्तनशीलता होती है जिसका आशय केवल यह है कि राजा उनमें मनमाने ढंग से परिवर्तन नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त, उसका सबसे महान् गुण यह है कि विधियाँ अस्वाभाविक रूप से मनुष्य के स्वभाव के विपरीत कार्य नहीं करतीं, वरन् उनमें स्वाभाविकता होती है। थॉमस कानून का मूल स्रोत प्रकृति को मानता है, अतः यदि कानून न्याय या धर्म के सिद्धान्तों का उल्लंघन करते हैं, तो वह वास्तविक नहीं वरनु कानून का विकृत रूप होगा। उसका प्रयास था कि मानवीय कानून का देवीय कानून के साथ सामीप्य प्रकट करें। उसके अनुसार मानवीय कानून कोई अलग वस्तु नहीं है, वरन् यह ईश्वरीय सत्ता की देन है, जिसके द्वारा दैवीय और भौतिक सभी वस्तुओं पर नियन्त्रण रखा जाता है, चूंकि कानून का आदि स्रोत प्रकृति है, अतः किसी भी मनुष्य में प्राकृतिक और दैवीय कानून का उल्लंघन करने की शक्ति नहीं होती है। पोप भी कानून का उल्लघन नहीं कर सकता।

कानूनों का वर्गीकरण-

कानूनों का वर्गीकरण करते हुए एक्वीनास ने कानूनों को चार श्रेणियों में रखा है, जो निम्न प्रकार हैं-

(1) शाश्वत कानून, (2) प्राकृतिक कानून, (3) मानवीय कानून, तथा (4) देवीय कानून।

कानून के इन चार स्वरूपों में भिन्नता नहीं है, वरन् सभी स्वरूप शाश्वत कानून के ही विभिन्न प्रकार हैं। सेबाइन के अनुसार, “कानून के चार प्रकार विवेक के ही चार रूप हैं। ये विश्व व्यवस्था के चार स्तरों पर अपने आप को प्रकट करते हैं।” कानून के इन चार प्रकारों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-

  1. शाश्वत कानून-

शाश्वत कानून ईश्वरीय ज्ञान है जिसके द्वारा प्रकृति की सृष्टि की जाती है और जो प्रकृति एवं ब्रह्माण्ड पर नियन्त्रण रखता है। सम्पूर्ण सृष्टि के अन्तर्गत मानव समाज, पशु और वनस्पति, आदि इसी कानून के अधीन हैं। यह कानून ईश्वर में निहित रहता है और अभिव्यक्तिकरण हेतु विश्व में व्यापक होता जाता है। मनुष्य अनेक बार शाश्वत कानून को पूर्ण रूप से नहीं समझ पाता, क्योंकि शाश्वत कानून सर्वोच्च विवेक का प्रतीक होता है, किन्तु मनुष्य की बुद्धि सीमित होती है। थॉमस अपनी रचना Summa Theologica’ में लिखते हैं कि “शाश्वत कानून दैवी ज्ञान है जो सभी कार्यों और प्रवृत्तियों को निर्देशन देता है। यह स्वयं में सत्य है।” सेबाइन के शब्दों में, शाश्वत कानून “दैवी विवेक की शाश्वत योजना है जिससे सारी सृष्टि व्यवस्थित होती है।”

  1. प्राकृतिक कानून-

थॉमस एक्वीनास प्राकृतिक कानूनों का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए लिखता है कि मनुष्य इन कानूनों की सहायता से भले और बुरे का ज्ञान प्राप्त करता है। प्राकृतिक कानूनों की उत्पत्ति शाश्वत कानूना से हुई है। शाश्वित कानूनों को मनुष्य पूर्ण रूप से नहीं समझ पाता है, परन्त प्राकृतिक कानन अधिक बाधगम्य और स्पष्ट हैं। प्राकृतिक कानन विश्व की सभी वस्तुओं में समान रूप से व्याप्त हैं। मनुष्यों के अतिरिक्त वह पशुओं और वनस्पति, आदि में भी व्याप्त हैं, किन्तु मनुष्य में प्राकृतिक कानून का सुन्दर ढंग से अभिव्यक्तिकरण हुआ है, क्योंकि पौधे और पशु तो अचेतन रूप में कार्य करते हैं, परन्तु मनुष्य विवेक के साथ है। सेबाइन प्राकृतिक कानून के सम्बन्ध में उदाहरण देते हैं कि मानव जीना चाहता है और जीने के लिए जीवन सुरक्षा की आवश्यकता है, अतः जीवन की सुरक्षा अर्थात् आत्मरक्षा प्राकृतिक कानून है। इतना ही नहीं, जैसा कि अर्तू ने भी कहा था, मानव ऐसे जीवन की इच्छा करता है, जिसमें विवेकीय स्वभाव (rational nature) की सिद्धि हो।

प्राकृतिक कानून ईश्वरीय अभिव्यंजना है। ये कानून अपरिवर्तनीय है और इसके साथ-साथ आवश्यक भी हैं। प्रौकृतिक कानून कोई अलग वस्तु नहीं, वरन् मनुष्य में निहित दैवी प्रेरणा है। मनुष्य स्वतः इन कानूनों के आधार पर कार्यों के भले-बुरे रूप की जाँच कर कदम बढ़ाता है और आदर्श व्यवस्था को प्राप्त कर सकता है। जीवन की रक्षा इसी कानून पर निर्भर करती है और मनुष्य में परोपकार की भावना, दीन-दुखियों की सहायता करना, आदि प्रवृत्तियाँ प्राकृतिक कानून से ही सम्बन्धित हैं।

  1. मानवीय कानून-

यह मनुष्य द्वारा समाज में शान्तिपूर्ण जीवन बनाये रखने के लिए अपनायी गयी दण्ड व्यवस्थाएँ हैं, जिनके भय से समाज में शान्ति बनी रहती है। मानवीय कानून का निर्माण मनुष्य अपनी बुद्धि से करता है, किन्तु ये प्राकृतिक कानून पर ही आधारित होते हैं। इन दोनों में इतना गहरा सम्बन्ध होता है कि यदि मानवीय कानून प्राकृतिक कानून के प्रतिकूल हो तो इसे कानून नहीं, वरन् कानून का भ्रष्ट रूप समझा जाना चाहिए। मानवीय कानून प्राकृतिक कानून के पूरक हैं। मानवीय कानून की आवश्यकता इसलिए होती है कि प्राकृतिक कानून अनिश्चित और अपरिभाषित होते हैं और उनमें दण्ड की व्यवस्था नहीं होती। उदाहरण के लिए, प्राकृतिक कानून के अनुसार चोरी और हत्या अपराध हैं, लेकिन प्राकृतिक कानून में यह नहीं बतलाया गया हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में चोरी और हत्या जिसे कहा जा सकता है और न ही इनके लिए दण्ड निश्चित किया गया है। अतः विशिष्ट परिस्थितियों में विशेष कानूनों की आवश्यकता होती है और इस आवश्यकता को पूरा करने वाला कानून ही मानवीय कानून है। कानून के अन्य रूपों से मानवीय कानून को इस रूप में भिन्न बतलाया जा सकता है कि जहाँ शाश्वत, प्राकृतिक और देवी कानून मानव जगत और जड़ जगत दोनों पर लागू होते हैं, वहाँ मानवीय कानून केवल मानव जगत पर ही लागू किया जाता है।मानवीय कानून की कुछ अन्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

  • मानवीय कानून विवेक पर आधारित घोषणाएँ हैं-

एक्वीनास कानून सम्बन्धी अपनी समस्त धारणा में आदर्शवादी है और इस बात का प्रतिपादन करता है कि मानवीय कानून राजा या शासक वर्ग की मनमानी पर नहीं, वरन् विवेक पर आधारित उद्घोषणाएं हैं। उसने लिखा है कि यदि “राजा की इच्छा, आदेश या कानून विवेक पर आधारित नहीं है, तो वह कानून नहीं, अधर्म है, दुराचार है।” इस सम्बन्ध में एक्वीनास के विचार को स्पष्ट करते हुए सेबाइन लिखते हैं, “सत्ता केवल उसे शक्ति प्रदान करती है जो स्वाभाविक रूप से यक्तियुक्त और न्यायोजित है।”

  • मानवीय कानून सकारात्मक विधियां (Positive Laws) हैं-

मानवीय कानून ऐसी सकारात्मक विधियां है जिन्हें किसी समय विशेष पर मानव आवश्यकताओं के लिए निर्मित किया जाता है। विधियों दो प्रकार की होती हैं (1) नागरिकों के लिए (Ius Civile), और (ii) राष्ट्रों के लिए, (Ius Gentium)। इन्हें आधुनिक शब्दावली में साधारण कानून और संवैधानिक कानून कहा जा सकता है। ये विधियाँ ही उचित-अनुचित, सत्-असत्, न्याय-अन्याय और अच्छाई-बराई के भानदण्ड निर्धारित करती हैं।

  • मानवीय कानून सामान्य हित की पूर्ति के साधन है-

मानवीय कानून किसी व्यक्ति विशेष या विशिष्ट वर्ग के हितों की पूर्ति नहीं, वरन् समस्त समुदाय के सामान्य हितों की पूर्ति के साधन हैं। इस समबन्ध में एक्वीनास कहते हैं कि “जिस प्रकार सूर्य बिना किसी पक्षपात के समस्त सृष्टि को उष्णता प्रदान करता है उसी प्रकार मानवीय कानून के द्वारा निष्पक्षता के साथ समस्त जनता के हितों की रक्षा और वृद्धि की जानी चाहिए।”

  • मानवीय कानून लौकिक क्षेत्र तक सीमित है-

शाश्वत, प्राकृतिक और दैवी कानून लौकिक जीवन के साथ-साथ पारलौकिक जीवन से भी सम्बन्धित हैं और दैवी कानन का तो प्रमुख कार्यक्षेत्र ही पारलोकिक जीवन हैं, लेकिन मानवीय कानून आवश्यक रूप से लौकिक जीवन तक सीमित होता है, पारलौकिक जीवन तक विस्तृत नहीं।

  • मानवीय कानून सार्वजनिक सहमति और मान्यता पर आधारित होटा है-

एक्वीनास इस बात पर बल देता है कि मानवीय कानून के पीछे सार्वजनिक सहमति और मान्यता का बल होना चाहिए तभी उसे भली-भाँति लागू किया जा सकता है और उसके लक्ष्य जन-कल्याण की सिद्धि सम्भव हो सकती है। डनिंग ने लिखा है कि “कानूनों को प्रभावी बनाने के लिए उनके पीछे समुदाय की भावना होनी चाहिए।” एक्वीनास ने यद्यपि ‘लोक प्रभुता’ (Popular Sovereignty) की बात नहीं की हैं, लेकिन यह कहकर कि “कानून सार्वजनिक सहमति और मान्यता पर आधारित होना चाहिए” उसने लोक प्रभुता का संकेत अवश्य ही कर दिया है।

  • मानवीय कानून के पीछे दण्ड की शाक्ति का बल होता है-

मानवीय कानून के पीछे सार्वजनिक मान्यता के बल के साथ-साथ दण्ड की शक्ति का भी बल होता है और यही बात मानवीय कानून का शाश्वत, प्राकृतिक और दैवी कानूनों तथा रीति-रिवाजों और परम्पराओं, आदि से भेद स्पष्ट करती है। मानवीय कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति और संस्था को दण्डित किया जाता है।

  • मानवीय कानून का पालन सशते है-

एक्वीनास की मानवीय कानून सम्बन्धी धारणा का सबसे प्रमुख तत्व यह है कि मानवीय कानून का पालन सशर्त नहीं है। एक्वीनास प्राकृतिक कानून और मानवीय कानून में कोई विरोध नहीं मानता और उसके अनुसार मानवीय कानून प्राकृतिक कानून के अनुकूल होने चाहिए। यदि मानवीय कानून इस शर्त को पूरा नहीं करते तो उनका उल्लंघन किया जा सकता है। एक्वीनास ने स्पष्टतया लिखा है कि “एक अत्याचारी शासन के अधिनियम कानून नहीं, वरन् कानून के विकृत रूप हैं, उन्हें कानून के स्थान पर हिंसा के कार्य ही कहा जा सकता है।”

उपर्युक्त लक्षणों के अतिरिक्त एक्वीनास इस बात का प्रतिपादन करता है कि कानून जिस पर लागू किया जाना है, उन्हें इससे अवगत कराया जाना चाहिए, जिससे इसका पालन भली-भाँति हो सके।

  1. दैवी कानून (Divine Laws)-

ये बाइबिल के पुराने और नये धर्म नियमों (Old and New Testaments) में प्रतिपादित की गयी देववाणियाँ और ईश्वरीय व्यवस्थाएं हैं। जब कोई भी मनुष्य विवेकशून्य हो जाता है, तो ये दैवी विधियाँ मनुष्य में उत्पन्न कमियों और बुराइयों को दूर करती हैं। इन विधियों का पालन भी अन्य विधियों की भाँति आवश्यक है, क्योंकि संसार के बन्धनों में पड़ा हुआ मनुष्य केवल इन विधियों के पालन से ही शक्ति प्राप्त कर सक्ता है। इस प्रकार दैवी कानून मानवीय जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को नियमित और नियन्तवित करता है। हैकर ने ठीक ही लिखा है कि “दैवी कानून नागरिकों और प्रशासकों को उन क्षेत्रों में प्रेरित करने का ईश्वरीय तरीका है जहाँ मानवीय कानून नहीं पहुंच सकते।” दैवी कानून और प्राकृतिक कानन में उसने यह अन्तर स्पष्ट किया है कि देवी कानन सबके लिए नहीं होते. जो धर्म को मानते हैं वे ही इन कानूनों की उपयोगिता या यथार्थता जान पाते हैं। प्राकृतिक कानून कुछ विशेष मनुष्य के लिए न होकर सबके लिए लागू होते हैं।

एक्वीनास द्वारा वर्णित चार प्रकार के कानूनों में शाश्वत तथा दैवी कानूनों का सम्बन्ध धर्म और आध्यात्मिकता से है, जबकि प्राकृतिक व मानवीय कानून राजनीति और भौतिकता से सम्बन्धित हैं।

थॉमस एक्वीनास के कथन के सिद्धान्त की आधारभूत बातों को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है कि केवल न्यायपूर्ण और धर्मविहीन मानवीय कानून ही नागरिकों के लिए मान्य है। मानवीय कानून को धर्मविहीन होने के लिए उन्हें प्राकृतिक कानून के अनुरूप होना चाहिए। यदि कोई मानवीय कानून प्राकृतिक कानून के अनुसार नहीं है तो नागरिक उसकी अवज्ञा कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए उन्हें दण्ड नहीं मिलना चाहिए। कानून का उद्देश्य भी सामान्य हित होना चाहिए और वे व्यक्ति के अन्तःकरण को मान्य होने चाहिए। इस प्रकार थॉमस एक्वीनास ने कानूनों के पालन पर नैतिक मर्यादाएँ लगा दी हैं। थॉमस एक्वीनास के सम्पूर्ण दर्शन में उसके कानून सम्बन्धी विचार महत्त्वपूर्ण हैं और उसकी कानून संबंधी धारणा ने हॉब्स तथा लाक की विचारधारा पर पर्याप्त प्रभाव डाला है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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