हॉब्स का प्रभुसत्ता सिद्धान्त

हॉब्स का प्रभुसत्ता सिद्धान्त | Hobbes Theory of Sovereignty in Hindi

हॉब्स का प्रभुसत्ता सिद्धान्त

हॉब्स का प्रभुसत्ता सिद्धान्त | Hobbes Theory of Sovereignty in Hindi

हॉब्स का प्रभुसत्ता सिद्धान्त

हॉस्स के विचारों में प्रभुसत्ता की कल्पना भी निहित है। समझौते के परिणामस्वरूप राज्य का जन्म हुआ। राज्य की शक्ति किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की सभा में निहित है। वह व्यक्ति ही संप्रभु है। जनता ने अपने अधिकार शासक को बिना किसी शर्त के सौंप दिये हैं, इसलिए वह जनता के नियन्त्रण से मुक्त रहता है। उसके अधिकारों पर कोई बन्धन नहीं है। इस प्रकार हॉब्स निरंकुश प्रभुसत्ता का समर्थक है। हॉब्स शासक की उस शक्ति को प्रभुसत्ता कहता है जिसके द्वारा वह अपने आदेशों का पालन करने के लिए जनता को बाध्य करता है। प्रभुसत्ता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-

(1) संप्रभुता न्याय का स्रोत (Sovereignty is the source of justice)-

हॉब्स का विचार था कि संप्रभुसत्ता न्याय का स्रोत है क्योंकि संप्रभु को न्याय करने का सर्वोच्च अधिकार है। हॉब्स का तर्क यह है कि न्याय केवल व्यविस्थत एवं अनुशासित समाज में ही सम्भव है तथा शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना समाज में तभी हो सकती है जबकि इसके लिए एक ऐसी संप्रभु शक्ति हो जो सबको अपने नियन्त्रण में रख सके।

(2) सम्रभुता नैतिकता से ऊपर है (Sovereignty is above morality)-

होस्स के अनुसार सम्प्रभुता को नैतिक आधार पर गलत नहीं ठहराया जा सकता। उसका कहना है कि प्राकृतिक अवस्था में नैतिक-अनैतिक, उचित-अनुचित आदि का विचार नहीं था। ये सब चीजें नागरिक समाज एवं राज्य की उत्पत्ति के साथ उत्पन्न हुई क्योंकि नैतिकता का जन्म भी नागरिक समाज की स्थापना के बाद हुआ; अतः सम्प्रभुता नैतिकता से ऊपर है। जो कार्य संप्रभु द्वारा बनाये गये नियमों के अनुरूप होते हैं वे नैतिक हैं तथा जो उसके बनाये नियमों के विरुद्ध होते हैं वे अनैतिक हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि बोदों ने संप्रभुता पर जो नैतिक बन्धन लगाये थे हॉब्स उन्हें अस्वीकार करता है और इस प्रकार वह संप्रभुता को निरंकुश निरपेक्ष बना देता है।

  • सम्प्रभुता अविभाज्य, अदेय, अपृथक्करणीय है (Sovereignty is indivisible, inalienable and inseparable) –

हॉब्स के संप्रभुता सम्बन्धी विचारों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समाज में यह शक्ति केवल एक ही व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के पास होती है। इसो अनेक व्यक्तियों में विभाजित नहीं किया जा सकता । इसका अर्थ यह हुआ कि संप्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह इसका प्रयोग नहीं कर सकता। दूसरे संप्रभुता किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दी जा सकती। इस कारण यहं अदेय है। तीसरी विशेषता यह है कि इस शक्ति को संप्रभू से पृथक् नहीं किया जा सकता।

  • संप्रभुता निरपेक्ष है (Sovereignty is absolute) –

हॉब्स के अनुसार संप्रभु की कानून बनाने की शक्ति पर कोई भी बन्धन नहीं है। संप्रभु केवल एक व्यक्ति अथवा सभा होती है। इसके अतिरिक्त कोई दूसरी ऐसी शक्ति नहीं है जो इस अधिकार का प्रयोग कर सके। जनता ने संप्रभु को अपने सभी अधिकार स्वेच्छापूर्वक सौंप दिये हैं। जनता ने संप्रभू को अपने अधिकार सौंपते समय कोई शर्ते नहीं रखीं; अतः संप्रभु का जनता के प्रति कोई दायित्व नहीं है। संप्रभू चाहे जनता के हित में कार्य करे अथवा न करे परन्तु जनता को उसका विरोध करने अथवा उसे पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।

  • सम्ब्रभुता कानून बनाने की शक्ति है (Sovereignty is law-making power)-

संप्रभुता वह शक्ति है जिसके आधार पर शासक जनता के लिए कानून बनाता है। हॉब्स के कथनानुसार जनता अपने सभी अधिकारों को त्याग देती है तथा इसके बदले में उसे शासक द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है; अंतः समाज में एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह जो संप्रभु है, जनता के लिए कानून बनाता है। हॉब्स से पहले बोदाँ ने भी संप्रभुता की धारणा पर अपने विचार प्रकट किए थे परन्तु उसने उसे सीमारहित नही बनाया था। हॉब्स ने संप्रभु को सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त कर दिया। यह उसका मौलिक योगदान था।

आलोचना-

हॉक्स के संप्रभुता के सिद्धान्त की विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार से आलोचनाऐें की गई हैं। आलोचकों का कथन है कि आधुनिक युग में ऐसा कोई भी संप्रभु नहीं है, जिसे इतनी व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हों। इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि होंब्स का उद्देश्य संप्रभु द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की व्याख्या करना नहीं था बल्कि इस प्रश्न की व्याख्या करना था कि संप्रभु को किन किन शक्तियों का उपभोग करना चाहिए।

हाब्स के संप्रभुता के सिद्धान्त में विद्वानों ने अनेक दोष बताए हैं। उनका कहना है कि आधुनिक युग में इतने व्यापक एवं असीमित अधिकारों वाला संप्रभु कहीं नहीं है। उसने इस सिद्धान्त के द्वारा नागरिकों की स्वतन्त्रता पर गहरा आघात किया है। इससे तानाशाही शासन का समर्थन होता है ऐसा शासन जिसमें नागरिकों को शासक के विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। परन्तु इस सत्य के होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि उसने संप्रभुता के विचार को एक निश्चित रूप दिया।

हांब्स की संप्रभुता के विरुद्ध यह भी आरोप लगाया जाता है कि उसका यह सिद्धान्त स्वतन्त्रता का हनन करके तानाशाही एवं अनियन्त्रित निरंकुश शासन को जन्म देता है। यह सिद्धान्त शासक के विरुद्ध जनता को कोई अधिकार प्रदान नहीं करता। हॉब्स की संप्रभुता के सिद्धान्त के विरुद्ध आलोचकों का यह आरोप किसी हद तक सही है। परन्तु हाब्स का राजनीतिक दर्शन के लिए जो योगदान है उससे इन्कार नहीं किया जा सकता । उसने सप्रभुता की धारणा को एक निश्चित रूप दिया जो निश्चय ही राजदर्शन के लिए उसकी महान् देन है ।

निष्कर्ष-

हॉव्स की सबसे बड़ी देन संप्रभुता के सिद्धान्त को पहली बार सुस्पष्ट रीति से प्रतिपादित करना था। हॉब्स से पहले मैकियावेली. बोदाँ तथा ग्रोशियस आदि ने इसका प्रतिपादन अवश्य किया था परन्तु इसकी विशद एवं पूर्ण व्याख्या, इसके स्वरूप मर्यादाओं तथा कार्यों की सूक्ष्म विवेचना करने का श्रेय हॉव्स को ही है। हॉब्स की महत्ता इस बात में नहीं है। कि उसने निरंकुशवाद का समर्थन किया, यह उससे पहले बोदाँ ने भी किया था । उसकी महत्ता इस बात में है कि उसने निरंकुशवाद तथा धर्मनि रपेक्षतावाद का समर्थन भौतिकवाद के दर्शन के आधार पर किया। हॉब्स संप्रभु शासक को स्वेच्छा से शासन करने का अधिकार इसलिए देता है ताकि वह पूर्ण स्वतन्त्र रहकर सामाजिक आवश्यकताओं के अनुकूल कार्य कर सके।

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