राजनीति विज्ञान / Political Science

संसदीय व्यवस्था एक दलीय सरकार और मिलीजुली सरकार | संसदीय व्यवस्था | दलीय सरकार | मिलीजुली सरकार | मिलीजुली सरकारों के लक्षण

संसदीय व्यवस्था एक दलीय सरकार और मिलीजुली सरकार | संसदीय व्यवस्था | दलीय सरकार | मिलीजुली सरकार | मिलीजुली सरकारों के लक्षण

संसदीय व्यवस्था एक दलीय सरकार और मिलीजुली सरकार

भारतीय संविधान द्वारा केन्द्रीय और राज्य स्तर पर संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। संसदीय व्यवस्था शासन की वह व्यवस्था है जिसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका परस्पर सम्बन्धित होती हैं, कार्यपालिका का गठन व्यवस्थापिका में से किया जाता है और कार्यपालिका (मंत्रिमण्डल) व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। उत्तरदायित्व का आशय यह है कि वास्तविक कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिमण्डल उसी समय तक अपने पद पर रहता है, जब तक उसे व्यवस्थापिका के लोकप्रिय सदन (इंग्लैण्ड में लोक सदन, भारत में लोकसभा तथा राज्य स्तर पर विधानसभा) का विश्वास प्राप्त हो। साधारण जन की भाषा में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता।

इस संसदीय व्यवस्था में सर्वप्रथम केन्द्रीय स्तर और राज्य स्तर पर व्यवस्थापिका के लोकप्रिय सदन (लोकसभा/विधानसभा) के चुनाव होते हैं। इन चुनावों में जब किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाता है और यह राजनीतिक दल अपना एक नेता चुन करलेता है, तब राज्य का प्रधान (राष्ट्रपति/राज्यपाल) बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री पद पर मनोनीत करता है तथा मंत्रिमण्डल के गठन के साथ ही एकदलीय सरकार का गठन हो जाता है, लेकिन जब लोकप्रिय सदन के चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता, त्रिशंकु लोकसभा या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है; जब राजनीतिक दलों और दलीय नेताओं के बीच गठबंधन को जन्म देने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है और जो गठबंधन राज्य के प्रधान को अपने बहुमत से आश्वस्त कर देता है, उस गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया जाता है और गठबंधन का नेता, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री मिलीजुली सरकार का गठन करता है। इस प्रकार मिलीजुली सरकार एक ऐसी सरकार होती है, जिसमें कम-से-कम दो राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है। मिलीजुली सरकार एक भागीदार दलों की संख्या 3, 5, 8, 10 या 15 भी हो सकती है, लेकिन मिलीजुली सरकार का नाम प्राप्त करने के लिए सरकार में कम-से-कम दो दलों की भागीदारी आवश्यक है। ऑग के अनुसार, “मिलीजुली सरकार एक ऐसे सहयोगी प्रबन्ध का नाम है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य सरकार के गठन या मंत्रिमण्डल के निर्माण के लिए एक हो जाते हैं।” “मिलीजुली सरकार राजनीतिक समुदायों तथा शक्तियों का गढजोड़ है जो अस्थायी और कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए होता है। राजनीतिक दलों का यह मिलन सरकारों के निर्माण या उनकी रक्षा करने के लिए बनाया जाता है। जिन दलों के सहयोग के फलस्वरूप संयुक्त सरकारों का निर्माण होता है वे एक बुनियादी राजनीतिक कार्यक्रम पर एकमत होते हैं।”

मिलीजुली सरकार ‘मतभेदों के बावजूद एक समवेत स्वर’ होती है। ऊपर से देखने पर गठबंधन सरकार चाहे किनती ही ठोस प्रतीत हो, उसके अन्दर मतभेद के स्वर विद्यमान होते ही हैं। भागीदार दलों के बीच विद्यमान ये राजनीतिक मतभेद ही तो, दलों को अपना अलग- अलग राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने की प्रेरणा देते हैं।

मिलीजुली सरकारें ‘सम्मिलन की राजनीति’ (Coalition politics) का परिणाम होती हैं और विभिन्न राजनीतिक दल सम्मिलन की इस राजनीति को चुनाव के पूर्व या चुनाव के पश्चात् अपना सकते हैं। सम्मिलन की इस राजनीति को अपनाने का विशिष्ट प्रयोजन होता है। जब चुनाव के पूर्व सम्मिलन या गठबंधन की राजनीति को अपनाया जाता है, तब इसका लक्ष्य होता है, चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सरकार का गठन करना। अनेक बार ऐसा होता है कि राजनीतिक दल चुनाव में अकेले अपने ही बलबूते पर बहुमत पाने की आशा करता है; लेकिन जब वह ऐसा नहीं कर पाता या कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं कर पाता; तब वह दूसरे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन कर बहुमत बनाता और सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करता है। चुनाव के पूर्व जो गठबंधन बनते हैं, उनमें अवसरवादिता का तत्व कम होता है और साथ- साथ काम करने का आधार बन जाता है। चुनाव के पश्चात् और चुनाव से उत्पन्न स्थिति का सामना करने के लिए जो गठबंधन बनाये जाते हैं, उनमें अवसरवादिता का तत्व अधिक अंशों में विद्यमान होता है और यही बात इन गठबंधनों को कमजोर कर देती है।

मिलीजुली सरकारों के लक्षण

मिलीजुली सरकारों के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

  1. मिलीजुली सरकार में कम-से-कम दो भागीदार होते हैं। भागीदार दलों की संख्या इससे अधिक हो सकती है।
  2. भागीदार दल गठबन्धन की राजनीति को कुछ प्राप्ति के लिए अपनाते हैं। लक्ष्य सारभूत रूप में कुछ प्राप्ति हो सकता है या मनोवैज्ञानिक रूप में प्राप्ति।
  3. गठबंधन एक अस्थायी प्रबन्ध होता है। सामान्यतया यह देखा गया है कि गठबंधन का प्रत्येक प्रमुख भागीदार अपनी राजनीतिक शक्ति में वृद्धि कर अकेले ही सत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखता है।
  4. मिलीजुली सरकार का गठन समझौते के आधार पर होता है, इसमें कठोर सिद्धांतवादी राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं होता। मिलीजुली सरकार ऐसे न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर कार्य करती है, जिसे सत्ता में भागीदार दल अपनी विचारधारा की दृष्टि से आदर्श मानकर नहीं, वरन् समझौते की दृष्टि से अपनाते हैं। इस दृष्टि से मिलीजुली सरकारें यथार्थवाद पर आधारित होती हैं।
  5. मिलीजुली सरकार की संकल्पना और प्रबन्ध में एक मूलभूत विकासशीलता होती है। यह विकाशीलता अनेक रूपों में हो सकती है। यह सरकार नवीन और चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए किसी विशेष राजनीतिक तकनीक को अपना सकती है। इसके अतिरिक्त सहमिलन की राजनीति में एक राजनीतिक दल आज जिसका सबसे अधिक प्रबल रूप में विरोध कर रहा है, कल उसे अपना सहयोगी समझ सकता है। 1988-89 में जनता दल कांग्रेस को अपना प्रमुख विरोधी और भाजपा को कुछ सीमा तक सहयोगी समझता था, लेकिन बाद में जनता दल भाजपा को अपना प्रमुख विरोधी और कांग्रेस को कुछ सीमा तक सहयोगी समझने लगा।
राजनीतिक शास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!