जीन ब्रूंश

जीन ब्रूंश – फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता (Jean Brunhes – French Geographer)

जीन ब्रूंश फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता (Jean Brunhes French Geographer)

जीवन परिचय

जीन ब्रूंश (1869-1930) ब्लाश के सबसे प्रथम एवं प्रिय शिष्य और फ्रांस के महान भूगोलवेत्ता थे। मानव भूगोल को एक स्वतंत्र वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित करने में ब्रूंश की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ब्रूंश का जन्म 1869 में फ्रांस में ताउलाउस (Toulouse) नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने पेरिस के ‘इकोल नार्मल सुपीरियर’ नामक शैक्षिक संस्थान से शिक्षा प्राप्त की थी। उस समय ब्लाश उस संस्थान में भूगोल के प्रोफेसर थे। ब्रूंश ने ब्लाश के निर्देशन में इतिहास और भूगोल विषय के साथ 1892 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1894 में उन्होंने स्पेन की यात्रा की और वहाँ के अनुभव पर आधारित सिंचाई पर एक शोध प्रबंध तैयार किया। 1896 में ब्रूंश की नियुक्ति स्विटजरलैण्ड के फ्राइबर्ग विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर के पद पर हुई जहाँ वे 1912 तक कार्य करते रहे। 1898 में फ्रांसीसी अकादमी ने विद्वतापूर्ण, कार्य के लिए ब्रूंश को पुरस्कृत करके सम्मान प्रदान किया। इसी दौरान ब्रूंश ने फ्रांसीसी भाषा में मानव भूगोल (La Geographie Humaine) नामक पुस्तक लिखा था जिसका प्रथम संस्करण 1910 में प्रकाशित हुआ। बाद में ब्रूंश के मित्र अमेरिकी भूगोलवेत्ता ईसा बोमैन की सहायता से इसका अंग्रेजी संस्करण (Human Geography) भी प्रकाशित हुआ जिससे ब्रुंश की विचारधारा का प्रसार आंग्ल भाषी देशों में भी हो गया। ब्रूंश के इस महत्वपूर्ण कार्य के आधार पर उन्हें ‘कालेज डी फ्रांस’ में मानव भूगोल के प्रोफेसर पद पर नियुक्त कर लिया गया जहाँ वे मृत्यु पर्यंत (1930 तक) कार्य करते रहे।

ब्रूंश की रचनाएं

ब्रूंश एक अध्ययनशील और समर्पित भूगोलवेत्ता थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अध्ययन, अध्यापन और लेखन में व्यतीत कर दिया। उन्होंने ब्लाश के विचारों का अनुकरण, समर्थन और प्रचार-प्रसार किया था। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नांकित हैं-

(1) मानव भूगोल (La Geographie Humaine)- यह तीन खण्डों में 1910 में प्रकाशित हुई।

(2) फ्रांस का सामान्य भूगोल एवं प्रादेशिक भूगोल- 1920 में प्रकाशित यह पुस्तक फ्रांसीसी लेखक गिरार्डीन के साथ लिखी गयी थी।

(3) फ्रांस का राजनीतिक भूगोल एवं परिवहन भूगोल- 1926 में प्रकाशित यह पुस्तक डिफोंतें के सहयोग से लिखी गयी थी।

(4) इतिहास का भूगोल (La Geographic de la Historie) – 1921 में प्रकाशित हुई।

(5) ईसा बोमैन की राजनीतिक भूगोल की पुस्तक ‘नया विश्व’ (New World) का फ्रांसीसी अनुवाद जो 1928 में प्रकाशित हुआ।

ब्रूंश भूगोल को लोकप्रिय और जीवनोपयोगी विषय के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उन्होंने भौगोलिक अध्ययनों की गुणवत्ता में सुधार तथा इसे लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से स्कूल स्तरीय पाठ्य पुस्तकों तथा मानचित्रावली की रचनाओं को भी पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया।

ब्रूंश  की विचारधारा

जीन ब्रूंश  अपने विद्यार्थी जीवन में ही ब्लाश के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से ब्लाश के विचारों को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रसारित करने का भारी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य किया। ब्रूंश शुद्ध रूप से मानव भूगोलवेत्ता थे और उनका महत्वपूर्ण योगदान मानव भूगोल से सम्बंधित है। उन्होंने मानव भूगोल के विषय क्षेत्र (मानव भूगोल के तथ्यों) को निर्घारित करने का प्रयास किया और सम्भववाद का समर्थन तथा पुष्टि किया। ब्रूंश ने मानव भूगोल के दो आधारभूत सिद्धान्तों – (1) पार्थिव एकता का सिद्धान्त औरं (2) क्रियाशीलता या परिवर्तन का सिद्धान्त को अपने अध्ययन का आधार बनाया। इस प्रकार मानव भूगोल के विकास में आजीवन तत्पर जीन ब्रूंश के भौगोलिक दृष्टिकोण और विचार निम्नांकित हैं।

(1) मानव भूगोल के तथ्य (Facts of Human Geography)

ब्रूंश की प्रसिद्ध पुस्तक ‘मानव भूगोल’ (Human Geography) में मानव भूगोल के तथ्यों की विस्तृत विवेचना की गयी है। उन्होंने मानव भूगोल के तथ्यों को दो भिन्न ढंग से वर्गीकृत किया है-

(अ) सभ्यता के विकास के आधार पर वर्गीकरण, और

(ब) यथार्थवादी वर्गीकरण।

(अ) सभ्यता के विकास (Evolution of Civilization) के आधार पर वर्गीकरण

ब्रूंश ने अपनी पुस्तक मानव भूगोल में सभ्यता के विकास को ध्यान में रखकर मानव भूगोल के तथ्यों को चार वर्गों में विभक्त करके विश्लेषण किया है जो इस प्रकार हैं-

(i) प्राथमिक आवश्यकता का भूगोल (Geography of First Vital Necessity)- इसके अन्तर्गत मानव की तीन मूलभूत (प्राथमिक) आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र, और आश्रष को सम्मिलित किया गया है।

(ii) भू-शोषण का भूगोल (Geography of the Earth’s Exploitation)- इसमें मानव की उन क्रियाओं तथा प्रयत्नों को सम्मिलित किया गया है जिनके द्वारा वह प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करके अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसके अन्तर्गत पशुपालन, कृषि, खनन, औद्योगीकरण आदि सम्मिलित किये गये हैं।

(iii) सामाजिक भूगोल (Social Geography)- इसके अन्तर्गत मनुष्यों की अन्तर्निर्भरता, श्रम विभाजन, सहकारिता, नागरिक व्यवस्था आदि को सम्मिलित किया गया है।

(iv) राजनीतिक एवं ऐतिहासिक भूगोल (Political and Historical Geography)- इसके अन्तर्गत ब्रूंश  ने राजनीतिक या प्रशासकीय तथ्यों तथा ऐतिहासिक घटनाओं से सम्बंधित तथ्यों को सम्मिलित किया

(ब) यथार्थवादी वर्गीकरण (Positive Classification)

ब्रूंश  का यथार्धवादी वर्गीकरण उनके उपर्युक्त वर्गीकरण से भिन्न है। इसके अन्तर्गत उन्होंने मानव भूगोल के तथ्यों को तीन प्रमुख वर्गों और छः आवश्यक तथ्यों में विभाजित किया है और प्रत्येक वर्ग में दो-दो आवश्यक तथ्यों को रखा है। ये प्रमुख वर्ग और आवश्यक तथ्य निम्नांकित हैं-

(i) मिट्टी के अनुत्पादक व्यवसाय सम्बंधी तथ्य (Facts of the Unproductive Occupation of Soil)- इसके दो आवश्यक तथ्य हैं- गृह (house) और राजमार्ग (highways)। ब्रूंश के अनुसार गृहों और सड़कों के अन्तर्गत प्रयुक्त भूमि से कोई आर्थिक उत्पादन नहीं प्राप्त होता है। अतः उन्होंने इसे अनुत्पादक व्यवसाय की संज्ञा दी है।

(ii) पौधों और पशुओं पर विजय संबंधी तथ्य (Facts of Plants and Animal Conquest)- इस वर्ग के दो आवश्यक तथ्य हैं- कृषि और पशुपालन। ब्रूंश  ने कृषि और पशुपालन को क्रमशः प्राकृतिक वनस्पतियों तथा जंगली पशुओं पर मनुष्य की विजय का प्रतीक माना है।

(iii) विनाशकारी अर्थव्यवस्था सम्बंधी तथ्य (Facts of Destructive Economy)- इस वर्ग के दो आवश्यक तथ्य हैं-(1) खनिज सम्पत्ति का शोषण, और (2) पौधों तथा पशुओं का विनाश। मनुष्य प्रकृति द्वारा निर्मित खनिज भंडारों तथा पौधों एवं पशुओं का अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अंधाधुंध शोषण करता है जबकि इस विनाश की क्षतिपूर्ति निकट भविष्य में संभव नहीं है। इसीलिए ब्रंश ने इन विनाशकारी आर्थिक क्रियाओं को ‘आर्थिक लूट’ (Economic Plunder) और इस प्रकार की अर्थव्यवस्था को ‘लुटेरी अर्थव्यवस्था’ (Robber economy) की संज्ञा प्रदान की है।

मानव भूगोल के तथ्यों के उपर्युक्त यथार्थवादी वर्गीकरण में बहुत से तथ्य समाहित नहीं हैं यहाँ तक कि ब्रुंश द्वारा सभ्यता के विकास के आधार पर किये गये वर्गीकरण में सम्मिलित सभी तथ्यों का समावेश इसमें नहीं हो पाया है। सम्भवतः इसी कमी को दूर करने के उद्देश्य से ब्रूंश ने तीन प्रमुख वर्गों तथा छः आवश्यक तथ्यों की व्याख्या के पश्चात् अपनी पुस्तक के अंत में एक परिशिष्ट के रूप में ‘मानव भूगोल के कुछ विशेष अध्ययन’ शीर्षक के अन्तर्गत इन तथ्यों की विवेचना की है(1) मानव भूगोल और प्रादेशिक भूगोल, (2) मानव जातियाँ, (3) सामाजिक भुगोल, और (4) राजनीतिक एवं ऐतिहासिक भूगोल।

(2) सम्भववाद को समर्थन (Support to Possibilism)

ब्रूंश  सम्भववाद के प्रमुख समर्थकों में से एक थे। उन्होंने भौगोलिक अध्ययनों में मानवीय प्रयत्नों और कार्य-कलापों पर अधिक बल दिया। ब्रंश मनुष्य और उसके कार्यों को ही प्रमुख मानते थे और प्रकृति को गौण। उनके विचार से मनुष्य एक निष्क्रिय प्राणी नहीं बल्कि एक क्रियाशील शक्ति है जो प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करने में निरन्तर क्रियाशील रहती है।

(3) पार्थिव एकता का सिद्धान्त (Principle of Terrestrial Unity)

ब्लाश की भाँति ब्रंश भी पार्थिव एकता के सिद्धान्त को मानव भूगोल का प्रमुख सिद्धान्त मानते थे। ब्रूंश  के अनुसार ‘विभिन्न शक्तियाँ एक-दूसरे पर केवल निश्चित दशाओं में ही कार्य नहीं करती हैं। और न ही वे केवल कुछ निश्चित दशाओं में पारस्परिक क्रिया का प्रयास करती हैं, बल्कि विभिन्न दशाओं के अंतहीन अंतर्सम्बंधों के कारण ये सभी शक्तियाँ परस्पर घनिष्ट रूप से बंधी हुई हैं।

(4) क्रियाशीलता या परिवर्तन का सिद्धान्त (Principle of Activity or Change)

इस सिद्धान्त के अनुसार पर्यावरण के सभी तथ्य चाहे वे जड़ हों या चेतन, प्राकृतिक हों या सांस्कृतिक (मानवीय) सभी परिवर्तनशील हैं और उनके स्वरूप में परिवर्तनकारी शक्तियाँ निरंतर क्रियाशील रहती हैं। ब्रुंश के शब्दों में, “हमसे सम्बन्धित प्रत्येक चीज परिवर्तित हो रही है, प्रत्येक चीज बढ़ रही है। अथवा घट रही है, बास्तव में कुछ भी स्थिर या परिवर्तनरहित नहीं है।” इस प्रकार वे परिवर्तन को प्रकृति का निश्चित नियम मानते थे और भौगोलिक तथ्यों के विश्लेषण में ऐतिहासिक विकास प्रक्रिया को समझाने का प्रवास करते थे।

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