कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन

कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन

प्रश्न कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन कीजिये।

उत्तरअधिगम का सूझ सिद्धान्त परिस्थिति को समग्र रूप में समझने अर्थात् सम्पूर्ण परिस्थिति का प्रत्यक्षीकरण करने पर बल प्रदान करता है। अतः बालकों के मानसिक विकास में इस सिद्धान्त का उपयोग बहुत लाभदायक हो सकता है। इससे स्पष्ट है कि इस सिद्धान्त के अनेक शैक्षिक निहितार्थ हैं। इसके शैक्षिक महत्व एवं उपयोगिता को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है- (कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन)

  1. सूझ के लिए समस्यात्मक परिस्थिति आवश्यक होती है। अतः अध्यापकों को कक्षा में बालकों के सम्मुख ऐसा वातावरण एवं परिस्थिति प्रस्तुत करनी चाहिए जिससे उनमें सूझ उत्पन्न हो सके। सूझ का सम्बन्ध बुद्धि, चिन्तन, तर्क एवं कल्पना शक्ति से होता है। अतः सूझ का उपयोग बालकों के मानसिक विकास में सहायक सिद्ध होगा।
  2. सूझ द्वारा सीखना एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है इसमें बालक सायास या सचेतन प्रयास (Conscious Effort) से सीखता है। अतः इस विधि का प्रयोग करके बालकों को सीखने अथवा समस्या समाधान के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
  3. यह सिद्धान्त बालक के द्वारा स्वयं परिस्थितियों का अवलोकन करने तथा अन्वेषणात्मक ढंग से सीखने पर बल देता है। अतः अध्यापक द्वारा बालकों को अधिक से अधिक ऐसे अवसर प्रदान किये जाने चाहिए जिससे वे स्वयं सीखने हेतु क्रियाशील हो सकें।
  4. यह सिद्धान्त सम्पूर्ण परिस्थिति के प्रत्यक्षीकरण पर बल देता है। अतः शिक्षक को किसी भी इकाई का शिक्षण करते समय उस इकाई से सम्बन्धित सभी बातों को संक्षेप में एक साथ प्रस्तुत करना चाहिए जिससे बालकों को अपनी सूझ से उस इकाई से सम्बन्धित समस्त पहलुओं को समझने का अवसर मिल सके।
  5. इस सिद्धान्त के प्रयोग से बालकों में यंत्रवत् अधिगम अर्थात् रटने की प्रवृत्ति में कमी लाई जा सकती है।
  6. यह सिद्धान्त सीखने में उद्देश्य केन्द्रित होने के साथ-साथ नवीन ज्ञान की आवश्यकता, उपयोग एवं सार्थकता पर भी बल देता है, अतः आधुनिक शिक्षा के लिय यह अधिक उपयोगी है।
  7. अध्यापक को विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण से पूर्व छात्रों की योग्यता, उनके बौद्धिक स्तर एवं पूर्वज्ञान का भी ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि समग्र का प्रत्यक्षीकरण इन्हीं योग्यताओं की सहायता से सम्भव होता है।
  8. इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षक को चाहिए कि वह पाठ को समग्र रूप में या छोटी-छोटी पूर्ण इकाइयों के रूप में प्रस्तुत करे, खोजपूर्ण प्रश्नों के माध्यम से छात्रों को सोचने एवं अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग करने का अवसर प्रदान करे, समस्या समाधान से सम्बन्धित गृहकार्य प्रदान करे, छात्रों को अपने विषयगत पूर्व अनुभवों को नई परिस्थितियों में उपयोग करने का अवसर प्रदान करे, तथा व्यक्तिगत विभेदों को ध्यान में रखते हुए छात्रों को समस्या समाधान के लिए प्रेरित करे आदि।
  9. सूझ विधि गणित एवं विज्ञान जैसे उच्च मानसिक क्रिया वाले विषयों के लिए बहुत उपयोगी है। उच्च स्तर पर अध्ययन एवं अनुसंधान कार्यों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।
  10. मानसिक योग्यता एवं बुद्धि पर आधारित होने के कारण शिक्षा के सभी स्तरों एवं सभी सम्बन्धित पहलुओं में आवश्यकतानुसार इस सिद्धान्त का प्रयोग करके उसे उद्देश्यपूर्ण उपयोगी एवं सार्थक बनाया जा सकता है।

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