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बन्दुरा एवं वाल्टर्स का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त | अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त | सामाजिक अधिगम सिद्धान्त

बन्दुरा एवं वाल्टर्स का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त | अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त | सामाजिक अधिगम सिद्धान्त

प्रश्न – बन्दुरा एवं वाल्टर्स के सामाजिक अधिगम सिद्धान्त का उल्लेख कीजिये।

बन्दुरा और वाल्टर्स ने किसी मॉडल के व्यवहार को निरीक्षण करके सीखने के सिद्धान्त को बताया है। इसी कारण उनके सिद्धान्त को ‘निरीक्षण द्वारा सीखने’ का सिद्धान्त कहते हैं। बन्दुरा और वाल्टर्स यह विश्वास करते हम जटिल सामाजिक व्यवहार को निरीक्षण द्वारा सीख सकते हैं। उन्होंने स्व-प्रचलन पर अधिक बल दिया और उनका मत था कि वह व्यवहार जिसको कि पुरस्कार नहीं मिलता, या दूसरों के द्वारा दण्डित किया जाता है उसे स्व-सहमति के द्वारा बनाए रखा जा सकता है। बन्दुरा ‘स्व-चालन’ के अध्ययन में भी रुचि रखते थे। उनके अनुसार सीखना जो कि व्यवहार के आन्तरिक प्रबलन द्वारा होता है वह बाह्य प्रचलन के विपरीत होता है। फिर से, प्रबल व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करता है जबकि व्यक्ति चेतन रूप से या सजातीय रूप से प्रबलन की उत्पत्ति के प्रति जागरुक नहीं होता है।

एक नई परिस्थिति में जबकि एक व्यक्ति यह सोचता है कि क्या करे और क्या न करे वह उन व्यक्तियों को निरीक्षित करके जो कि यह जानते हैं कि क्या करना चाहिए, सीख सकता है। यदि आप अपने एक मित्र के पास पहुंचते हैं और अपने नए काम के बरे में चिन्ता व्यक्त करते हैं, तब वह आपको शान्त रहने और दूसरे क्या कर रहे हैं उन्हें देखने की सलाह दे सकता है। इस बात से कोई इन्कार नहीं है कि मनुष्य का अधिक सीखना और यहां तक कि उच्च जानवरों को भी दूसरे के व्यवहार से तुलना द्वारा निर्मित होता है। फ्रायड द्वारा दिया गया आइडेन्टीफिकेशन वास्तव में निरीक्षण द्वारा सीखने का ही एक प्रकार है। फ्रॉयड ने यह बताया था कि बच्चा अपने व्यवहार को अपने समान लिंग वाले माता-पिता के साथ अपने संवेगों को संयुक्त करने के द्वारा सीखती है। एक छोटा लड़का अपने व्यवहार को पिता से और एक छोटी लड़की अपने व्यवहार को मां की नकल द्वारा सीखती है। पूरे जीवन में, एक मॉडल नकल करने के लिए रहता है। वातावरण में रहने की सफलता या असफलता बहुत से रूपों में निरीक्षण द्वारा सीखने पर ही निर्भर होती है। वातावरण द्वारा प्रदान-अपराध, मनोविकार, काम से भागने के लिए रोग का बहाना करना आदि भी उनमें से एक असफलता हो सकती है जो कि अपनी भूमिका (कार्य) की आकांक्षाओं को निश्चित करने में असफल हो जाते हैं। इस प्रकार असफलता अपर्याप्त आदमी बनाने, गलत आदमी रखने या मॉडल का गलत प्रभाव होने के कारण हो सकती है। निरीक्षणात्मक व्यवहार समाज के वास्ते एक आदर्श दे सकता है लेकिन अपर्याप्त आदर्श की उपस्थिति में व्यवहार में न्यूनता आ सकती है।

प्रतीकात्मक आदर्श के विपरीत जीवन (Life Versus Symbolie Model)

बन्दुरा और वाल्टर ने वास्तविक जीवन और प्रतीकात्मक आदर्श के बीच मतभेद किया। वास्तविक जीवन के आदर्श के अन्तर्गत वातावरण के प्रतिनिधि, जैसे- माता-पिता, अध्यापक, हीरो, नियम बनाने वाले अधिकारीगण, खेल के सितारे सम्मिलित हैं। प्रतीकात्मक आदर्श में मौखिक सामग्री, चित्रात्मक प्रस्तुतीकरण (फिल्म और टेलीविजन) लिखी हुई सामग्री (किताबें और मैग्जीन) सम्मिलित हैं। बहुत से अध्ययन प्रकट करते हैं कि वास्तविक जीवन और प्रतीकात्मक आदर्श दोनों ही निरीक्षण करने वाले के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। बन्दुरा और वाल्टर ने यह देखा कि दूरदर्शन द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रम माता-पिता के निर्देशन की अपेक्षा अधिक प्रभाव डालता है क्योंकि सिर्फ मौखिक उपदेश की अपेक्षा मनुष्य के नियत कर्तव्य का सीधा चित्रलेखन अधिक सजीव या स्पष्ट होता है। दूरदर्शन के दृश्य और चित्रों की गति जीवनलायक दृश्यों को प्रदान करती है।

यदि कोई व्यक्ति अधिक मात्रा में फिल्म को देखता है तो वह उन तीव्र अनुभवों को पुनःस्मरण कर सकता है जिन्हें कि वह महसूस करता है। नियन्त्रित प्रयोगों में इन सामान्य अनुभवों का अध्ययन किया गया जो कि यह बताते हैं कि प्रत्येक स्थिति के अनुसार संवेगात्मक उद्दीपक को उत्पन्न किया जा सकता है। यह निरीक्षणात्मक व्यवहार, दर्द, डर या एक्टर के दुख के चित्र लेखन के सीधे अनुभव के बिना उत्पन्न किया जा सकता है। नाटक करने वाले के द्वारा किए गए संकेत के साथ विषय भी समान अनुक्रिया कर सकता है। इस प्रकार यन्त्र के समान क्रिया की अनुक्रिया, परिस्थिति के अनुसार, संवेगात्मक अनुक्रिया और साथ ही कॉगनीशन, निरीक्षणात्मक व्यवहार के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सीखना वास्तविक जीवन के आदर्श या प्रतीकात्मक आदर्श की उपस्थिति में उत्पन्न हो सकता है।

निरीक्षण विधि से सीखने द्वारा किस प्रकार की अनुक्रियाएं प्राप्त की जा सकती हैं ? (What Types of Responses are Acquired through Observational Learning?)

विशिष्ट अनुक्रियाएं जो कि विषयी वास्तविक जीवन और प्रतीकात्मक मॉडल के अनुकरण द्वारा सीखता है, अधिकतर असीमित होती है। निरीक्षण द्वारा सीखकर व्यक्ति जिन व्यवहारों को प्राप्त कर सकता है उन्हें साधारणतया तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

  • नए व्यवहार की प्राप्ति , जैसे मॉडल से आक्रामक व्यवहार को सीखना।
  • जन्मजात व्यवहार का कमजोर या मजबूत होना, जैसे डर वाली परिस्थिति में मॉडल के व्यवहार को निरीक्षित करके डर का कम या अधिक लगना।
  • अचानक उत्पन्न अनुक्रिया को प्रोत्साहन मिलना, जैसे- महान संगीतज्ञ की बायोग्राफी को देखने के बाद पियानों का लम्बे समय तक अभ्यास करना।

बन्दुरा और वाल्टर्स के सिद्धान्त का मूल्यांकन (Evaluation of Bandura and Walter’s Theory)

  • एक व्यवहारात्मक सिद्धान्तवादी के रूप में बन्दुरा और वाल्टर्स प्राथमिक रूप से व्यवहार की भविष्यवाणी व नियन्त्रण से सम्बन्धित थे। उनका सिद्धान्त व्यवहार के एक बहुत बड़े क्षेत्र को बताना है।
  • बन्दुरा और वाल्टर्स के द्वारा निरीक्षण द्वारा सीखने का जो प्रस्ताव रखा गया है वह अनुभवों पर आधारित और विषयी सूक्ष्म परीक्षा पर आधारित है।
  • उन्होनें फ्रायड के विचार व्यवहार के अचेतन प्रभाव को नहीं माना।
  • उन्होंने व्यक्ति के बीच जैविक अन्तर जैसे कि आकर्षण में, शारीरिकता में और मजबूती आदि में जागरूकता की महत्ता पर वातावरण के प्रभाव पर बल दिया है।
  • बन्दुरा और वाल्टर्स के अनुसार, व्यक्तित्व परामर्शकारी और सीधे प्रबलन के मिलने पर निर्भर है। वह रास्ता जो कि क्रियाप्रसृत और निरीक्षण द्वारा सीखने में भीतर से पूरा होता है वह विशेष व्यक्ति की विशेषताओं पर निर्भर होता है।
  • वह व्यक्ति के विकास की अवस्थाओं पर विश्वास नहीं करते थे।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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