शिक्षाशास्त्र / Education

भारत में शिक्षा वित्त की समस्याएँ तथा उपाय | Problems and solutions of education finance in India in Hindi 

भारत में शिक्षा वित्त की समस्याएँ तथा उपाय | Problems and solutions of education finance in India in Hindi 

भारत में शिक्षा वित्त की समस्याएँ तथा उन्हें हल करने में सरलतम् उपाय (Problem of Finance in Indian Education & Solutions of overcome)

भारतीय शिक्षा वित्त की समस्या कोई नई नहीं है। ब्रिटिशकालीन शिक्षा से लेकर स्वतन्त्रता तक और स्वतंत्रता से लेकर अब तक, अनेक ऐसी समस्याएँ हैं जिससे शिक्षा के विकास में बाधा आती है। यद्यपि इन समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास बराबर किया जा रहा है। किन्तु फिर भी वर्तमान स्थिति में भारतीय शिक्षा वित्त की समस्याएँ निम्नवत् हैं-

(1) भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) के अनुसार आने वाले 20 वर्षों में भारत में शिक्षा के माँग में वृद्धि होगी जिसके लिए पयाप्त धन जुटाना होगा यदि इस आर्थिक संकट को टालने या पूरा करने का प्रयास नहीं किया गया तो शैक्षिक प्रगति में बाधा उत्पन्र होगी।

(2) शिक्षा के विकास के लिए देश में अनेक योजनाएँ बनाई जा रही हैं। पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत भी शैक्षिक प्रगति ढरने के लिए अनेक योजनाएँ कार्यन्वित हो रही हैं किनतु इन योजनाओं से देश की प्रगति तभी हो सकती है जब उनके लिए उचित धन की व्यवस्था हो क्योंकि धनाभाव के कारण अच्छी योजनाएँ फेल हो जाती हैं।

(3) आज की शिक्षा पहले की अपेक्षा अत्यधिक महँगी है इसलिए शिक्षा पर बिल्कुल व्यय के रूप में होने वाले धन की मात्रा में वृद्धि हो गई है जिससे शैक्षिक योजनाओं की सफलता एक समस्या बनी हुई है।

(4) देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, लोकतंत्र का विकास तथा आर्थिक योजनाओं के कारण शिक्षा की माँग में तेजी से वृद्धि हो रही है किन्तु देश वित्त व्यवस्था की माँग को पूर्ण करने में असमर्थ जिसके कारण शिक्षा वित्त की व्यवस्था पर एक कठिन समस्या का रूप धारण किए हुए है।

(5) भारत के राष्ट्रीय बजट को 10 प्रतिशत राज्य सरकारों द्वारा अपने-अपने बजट के 20 से 25 प्रतिशत तक शिक्षा पर व्यय किया जा रहा है। किन्तु उपरोक्त धनराशि दूसरे देशों की तुलना में कम है। अतः बजट में शिक्षा व्यय हेतु धनराशि बढ़ाने की समस्या हल नहीं हो पा रही है।

(6) विद्यालयों में चलने वाले विभिन्न शैक्षिक कार्यों में शिक्षा वित्त के अभाव में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। इसीलिए विद्यालयों में कोई भी शैक्षिक कार्य प्रारम्भ तो हो जाता है। किन्तु पूर्ण नहीं हो पाता।

(7) शिक्षा पर किए गए व्यय से जो लाभ विद्यार्थियों और जनता को मिलना चाहिए। वह नहीं मिल पा रहा है क्योंकि कभी-कभी व्यय सम्बन्धी मदों का निवारण उचित प्रकार से नहीं किया जाता जिससे अनेक घरेलू पहलू समुचित विकास नहीं कर पाते।

(৪) शिक्षा वित्त के अभाव में शिक्षा के तीनों स्तरों प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के मध्य सन्तुलन बनाए रखना कठिन कार्य है। जबकि तीनों स्तरों में उचित सन्तुलन रहना चाहिए।

(9) साधारणतया-विद्यालयों में, उचित भवनों, उपकरणों, सामग्री, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों तथा योग्य शिक्षकों का अभाव बना हुआ है। जिसका मुख्य कारण वित्तीय व्यवस्था का कमजोर होना है।

(10) पर्याप्त धन के अभाव में औद्योगिक शिक्षा में किसी प्रकार की प्रगति नहीं हो पा रही है। यद्यपि अनेक औद्योगिक संस्थाएँ तथा कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं किन्तु उनके संचालन के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता है।

(11) कोठारी आयोग के अनुसार शैक्षिक वित्त का शिक्षा पर उचित प्रयोग नहीं हो पा रहा है। शिक्षा के धन का अपव्यय हो रहा है जिंसको रोकना आवश्यक है। यह एक समस्या बनी हुई है।

(12) शिक्षा प्रणाली का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि स्थानीय साधनों द्वारा प्राप्त धन शिक्षा पर कम व्यय हो रहा है। केन्द्र तथा राज्य की सरकारें ही पूरा व्यय भार उठा रही हैं। अतः स्थानीय साधनों द्वारा प्राप्त धन भी शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। जिससे केन्द्रीय व राज्य सरकारों को मदद मिल सकें।

(13) शिक्षा प्रशासन में अस्थिरता है इसीलिए शैक्षिक वित्त का अपव्यय हो रहा है जो एक गहन समस्या है।

(14) भारत में शैक्षिक वित्त का प्रमुख स्रोत अनुदान प्रणाली है। व्यक्तिगत प्रयास इस ओर बिल्कुल नहीं है जबकि अन्य देशों में व्यक्तिगत प्रयास अधिक रहते है। हमारे देश में यह एक समस्या है।

भारतीय शिक्षा वित्त की समस्याओं के निराकण हेतु कुछ उपाय-

शैक्षिक वित्त की समस्याओं को दूर करने के लिए निम्न उपाय ढूंढ लेने चाहिए।

(1) शिक्षा का विकास करना राज्यों का उत्तरदायित्व होना चाहिए तथा केन्द्र की सहायता इसमें सामान्य होनी चाहिए, विशेष मदों के लिए नहीं। राज्य ही यह स्वयं निश्चित करे कि केन्द्र से प्राप्त धन का उपयोग किस प्रकार किया जाये।

(2) भारतीय शिक्षा में प्रत्येक स्तर पर अपव्यय तथा अस्थिरता अधिक है। अत: अपव्यय और अतिस्थिरता को कम करके प्रशासन को पुर्नगठित किया जाये जिससे मितव्ययिता तथा कार्य कौशल बढ़े।

(3) केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों को कुल शैक्षिक व्यय का 90 प्रतिशत भार वहन करना चाहिए। 10 प्रतिशत व्यय की पूर्ति, 3 प्रतिशत द्वारा, 4 प्रतिशत स्थानीय संस्थाओं द्वारा 3 प्रतिशत चन्दा द्वारा होनी चाहिए।

(4) भारत में विभिन्न धार्मिक सम्प्रदाय हैं जिनके पास अत्यधिक धन है यदि उनके धन का प्रयोग शिक्षा में किया जाये तो शैक्षिक वित्त में सुधार सरलता से हो सकेगा।

(5) देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण निरक्षरता बढ़ती जाती है। अत: सरकार के साथ-साथ व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा जनंसख्या को कम किया जाए और निरक्षरता शिक्षा –उन्मूलन आन्दोलन में सक्रिय भाग प्रत्येक व्यक्ति को लेना चाहिए।

(6) शोध कार्यों, विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा का विकास करने के लिए शैक्षिक वित्त की मात्रा इन क्षेत्रों में बढ़ानी चाहिए।

(7) प्रत्येक राज्य में राज्य-स्तर की शिक्षा सलाहकार समिति तथा जिले में जिला स्तर की शिक्षा सलाहकार समिति का निर्माण किया जाये तथा दोनों के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

(৪) अनुदान देने के नियमों में परिवर्तन होना चाहिए तथा उपेक्षित वर्गों, क्षेत्रों एवं संस्थाओं की शैक्षिक प्रगति के लिये अधिक अनुदान देने पर पर बल देना चाहिए। राज्य में शैक्षिक प्रगति के लिए केन्द्रीय सरकार को राज्य सरकार की तुलना में राजकीय सरकार को स्थानीय सरकारों की तुलना में अधिक धन अनुदान के रूप में देने चाहिए।

(9) राज्यों में कार्य करने वाले माध्यमिक शिक्षा मण्डलों तथा विश्वविद्यालयों के पास स्वंय के प्रेस होने चाहिए जिससे वे आवश्यक पुस्तकों को छाप सकें और शैक्षिक व्यय में कमी कर सकें तथा प्रेस के माध्यम से अतिरिक्त आय भी कर सकेंगें। ऐसा करने से केन्द्र तथा राज्यों पर अनुदान का भार कम पड़ेगा।

(10) हमारे देश में निजी स्थानीय प्रयासों का समुचित प्रयोग शिक्षा के विकास हेतु नहीं किया जा रहा है। केन्द्र और राज्यों को इस कार्य में सहायता करनी चाहिए।

(11) विद्यालयी भवन तथा उपकरण व्यवस्था स्थानीय साधनों पर छोड़ी जानी चाहिए।

(12) उच्च माध्यमिक तथा टेक्नीकल शिक्षा हेतु उद्योगों तथा निजी साधनों को उत्साहित किया जाए। उच्च शिक्षा हेतु निजी प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी ईनाम या अधिक अनुदान देने की विधियों को अपनाया जा सकता है।

(13) टेक्नीकल शिक्षा के उपकरण महँगे होते है। विद्यालयों मे ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे अधिक से अधिक इनका उपयेग किया जा सके।

(14) स्थानीय स्वायत्त शासन संस्थाओं को ब्लाक स्तर पर व्यवस्थिति किया जाए और सभी विकास कार्यों का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा जाए। राजस्व वसूली करें और प्राथमिक शिक्षा का पूर्ण उत्तरदायित्व उन्हीं पर हो। योग्य व्यक्तियों द्वारा उन्हें परामर्श दिया जाए।

(15) महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अपंग तथा विकलांग लोगों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए किन्तु केन्द्र को अलग से इनकी व्यवस्था नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यह मंहगी पड़ती है।

(16) शिक्षा वित्त की व्यवस्था हेतु शिक्षा संस्थाओं को कर्ज देकर उनकी सहायता की जा सकती है।

शिक्षाशस्त्र –  महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!