शिक्षाशास्त्र / Education

अध्यापक शिक्षा की मुख्य समस्यायें | अध्यापक शिक्षा में समस्याओं के समाधान के उपाय

अध्यापक शिक्षा की मुख्य समस्यायें | अध्यापक शिक्षा में समस्याओं के समाधान के उपाय

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में अध्यापक शिक्षा में अधिक उन्नति हुई, परन्तु इस उन्नति के साथ ही अध्यापक शिक्षा की समस्याओं में भी वृद्धि हुई। डा० एस० एन० मुखर्जी के अनुसार-“यद्यपि वर्तमान युग में अध्यापक प्रशिक्षण का यथेष्ट विस्तार हुआ है, लेकिन उसकी वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है। शिक्षा की उन्नति के साथ-साथ अध्यापक शिक्षा में नवीन पेचीदा प्रश्न खड़े हो गये हैं।”

अध्यापक शिक्षा की मुख्य समस्यायें

अध्यापक शिक्षा की मुख्य समस्यायें निम्नलिखित हैं-

(1) प्रवेश की समस्या- अध्यापक शिक्षा की मुख्य समस्या, प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्रवेश की समस्या है। कुछ समय पहले प्रशिक्षित अध्यापकों की माँग अधिक न होने से प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्रवेश सरलतापूर्वक मिल जाता था, लेकिन आज इन महाविद्यालयों में प्रवेश पाने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रवेश के संदर्भ में एक सर्वेक्षण के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि-“गत वर्षों में अनेक प्रशिक्षण महाविद्यालयों के मामले सामने आये हैं जिन्होंने अपने यहाँ पर प्रवेश देने वाले फार्म अत्यधिक महँगे बेचे हैं और प्रवेश भी उन्हीं प्रशिक्षार्थियों को दिया गया है जिसमें बिल्डिंग फण्ड या इस प्रकार के फण्ड के लिए खूब चंदा एकत्रित किया है। इस प्रकार के मामले भी सामने आये हैं जहाँ अभ्यर्थियों ने फर्जी अंक तालिका देकर प्रवेश लिया है।”

(2) स्वतंत्र वातावरण के अभाव की समस्या- प्रशिक्षण महाविद्यालय में स्वतंत्र वातावरण की कमी पायी जाती है जिस कारण छात्राध्यापक अपनी योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। प्रशिक्षण महाविद्यालय स्वयं अपने सिद्धांत करके सीखने को कार्य रूप में लागू नहीं कर पाते हैं। इन महाविद्यालयों में छात्राध्यापक तथा छात्राध्यापिकायें स्वतंत्र वातावरण की कमी महसूस करते हैं, क्योंकि इन महाविद्यालयों में व्याख्याता उन्हें व्याख्यान देते हैं और वे परंपरागत विधि के आधार पर ही कार्य करते हैं। परिणामस्वरूप उनकी प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता है। यदि इन प्रशिक्षण महाविद्यालयों में छात्राध्यापकों तथा छात्राध्यापिकाओं को ‘क्रिया द्वारा सीखने’ की स्वतंत्रता और कार्य करने के लिए स्वतत्र वातावरण की व्यवस्था की जायें तो भविष्य में वे नि:संदेह योग्य तथा कुशल अध्यापक बन सकेंगे।

(3) सिद्धांतों पर अधिक बल देने की समस्या- अध्यापक प्रशिक्षण की प्रमुख समस्या व्यवहार की अपेक्षा सिद्धांतों पर अधिक जोर दिया जाना है। इन महाविद्यालयों में प्रशिक्षणार्थियों को अनेक ऐसे विषयों का अध्ययन करना पड़ता है जो शिक्षण कार्य में नाममात्र को नहीं होते हैं। प्रशिक्षणार्थियों को केवल डिग्री या डिप्लोमा प्राप्ति के लिए इन विषयों का अध्ययन करना पड़ता है। इसके अलावा प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रशिक्षणार्थी, प्रशिक्षण काल में मात्र एक या दो सप्ताह ही पढ़ते हैं, शेष समय सैद्धांतिक विषयों के अध्ययन में बीतता है। परिणामस्वरूप वे शिक्षा सिद्धांतों के विषयों में तो अत्यधिक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु शिक्षण कार्य में कुशल नहीं हो पाते हैं।

(4) प्रशिक्षण महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में ताल-मेल के अभाव की समस्या- प्रशिक्षण महाविद्यालयों और विद्यालयों के कार्यक्रमों का आपसी तालमेल न बैठना भी एक प्रमुख समस्या है। प्रशिक्षण विद्यालयों में छात्राध्यापकों तथा छात्राध्यापिकाओं को जो प्रशिक्षण दिया जाता है, वह विद्यालय के व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित महीं होता है तथा हमारे देश में विद्यालयों की स्थिति इस प्रकार की नहीं है कि अध्यापक नवीन शिक्षण विधियों को प्रयोग में ला सकें।

(5) बुनियादी और गैर बुनियादी पाठ्यक्रम में अन्तर की समस्या- भारतवर्ष में प्रमुख रूप से दो प्रकार के प्रशिक्षण महाविद्यालय हैं-(i) बुनियादी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, (ii) गैर बुनियादी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय। इन दोनों प्रकार के प्रशिक्षण महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भिन्नता दिखाई देती है। बुनियादी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों में क्रिया द्वारा सीखने’ और सामुदायिक जीवन तथा अभ्यास पर जोर दिया जाता है तथा सैद्धांतिक शिक्षण व अध्ययन पद्धतियों पर ध्यान दिया जाता है, परन्तु व्यावहारिक पक्ष या अभ्यास पर कोई जोर नहीं दिया जाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार के प्रशिक्षण महाविद्यालयों की शिक्षण पद्धतियाँ दोषपूर्ण हैं।

(6) मानवीय मूल्यों की अपेक्षा की समस्या- प्रशिक्षण महाविद्यालयों में केवल लक्ष्य तथा उद्देश्य आदि पर जोर दिया जाता है और मानवीय मूल्यों की उपेक्षा की जाती है। प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षा का उद्देश्य, मानदण्डों तथा महत्त्व की समस्याओं पर आलोचनात्मक रूप से विचार करने का अवसर प्रदान नहीं दिया जाता है। यह मानव का स्वभाव है कि जब कोई कार्य इच्छा तथा अपने विवेक से किया जाता है, तो उस कार्य में रुचि ज्यादा हो जाती है। इस संदर्भ में सैयदेन के अनुसार–“वे इस बात की कल्पना नहीं कर पाते हैं कि शिक्षा एक विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक क्रिया है। अदूरदर्शिता के कारण छोटे-छोटे ब्यौरों की बातों तथा प्राविधिक आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित रखने के कारण समाज के साथ विद्यालय का सम्बन्ध और उनकी जीती-जागती समस्याओं और मसले दृष्टि से ओझल हो गये।”

अध्यापक शिक्षा में समस्याओं के समाधान के उपाय

(Remedies to Solve the Problems of Teacher Education)

उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर अध्यापक शिक्षा की समस्याओं का विवरण दिया गया है, अब यहाँ इन समस्याओं के समाधान के उपायों का विवरण निम्न प्रकार हैं-

(1) प्रवेश की समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा विभाग की मदद से समस्त राज्यों के प्रशिक्षण विद्यालय के अधिकारी प्रत्येक पाँचवें वर्ष राज्य का दौरा करने के बाद यह मालम करें कि विभिन्न विद्यालयों के लिए कितने शिक्षक तथा शिक्षिकाओं की आवश्यकता है। इस आवश्यकता के अनुसार ही प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्रवेश हेतु छात्र-छात्राओं की संख्या को निश्चित किया जाये। योग्य तथा अनुभवी शिक्षकों के लिए अल्पकालीन पाठ्यक्रमों का प्रबन्ध किया जाये और छात्राध्यापकों के चयन की नवीन मनोवैज्ञानिक पद्धतियों को प्रयोग में लाया जाये और उनके नैतिक एवं बौद्धिक गुणों की जानकारी के बाद ही उन्हें प्रवेश दिया जाये तथा जिन छात्रों की अध्यापन-कार्य में रुचि हो और जो भविष्य में योग्य एवं कुशल अध्यापक बन सकें, केवल उन्हीं विद्यार्थियों को ही अध्यापक की शिक्षा दी जाये।

(2) स्वतन्त्र वातावरण के अभाव की समस्या के समाधान के लिए इन प्रशिक्षण महाविद्यालयों का स्वतन्त्र वातावरण होना चाहिये, छात्राध्यापकों को कठोर नियमों का अनुसरण नहीं करना चाहिये और न ही उनकी गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये। प्रशिक्षण महाविद्यालयों का संगठन सक्रिय समुदायों के रूप में किया जाना चाहिये जिनमें छात्राध्यापक और छात्राध्यापिकायें अपनी प्रेरणा के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य कर सकें। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि इन प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रशिक्षणार्थियों को स्वतन्त्र वातावरण प्रदान किया जाये ताकि वे अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकें तथा स्वतन्त्रता के साथ शिक्षण कार्य में सक्षम हो सकें।

(3) सिद्धान्तों पर अधिक बल देने की समस्या के समाधान के लिए प्रशिक्षणार्थियों हेतु सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम कम कर दिया जाना चाहिये और उन्हें केवल वे ही विषय पढ़ाये जायें जो जीवन में उपयोगी सिद्ध हों। सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम कम करने से प्रशिक्षणार्थियों को कम पढ़ना पड़ेगा, परिणामस्वरूप उनके पास पहले की अपेक्षा अधिक समय बचा रहेगा। इस बचे हुए समय में प्रशिक्षणार्थियों से शिक्षण कार्य कराया जाना चाहिये ताकि वे भविष्य में योग्य तथा कुशल अध्यापक बन सकें।

(4) बुनियादी तथा गैर-बुनियादी पाठ्यक्रम में अन्तर की समस्या के समाधान के लिए गैर-बुनियादी और बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालयों की शिक्षण पद्धतियों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये और उनके दोषों को समाप्त किया जाये। गैर-बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालयों में पाठ्यक्रम के सैद्धान्तिक पक्ष को कम किया जाये और अभ्यास कार्य पर जोर दिया जाये। दोनों प्रकार के महाविद्यालयों की शिक्षण पद्धतियों के एकीकरण पर जोर दिया जाये।

(5) प्रशिक्षण महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में ताल-मेल के अभाव की समस्या के समाधान के लिए प्रशिक्षण महाविद्यालयों की पढ़ाई में व्यवहार और सिद्धान्त में सम्बन्ध स्थापित किया जाये और प्रदर्शन विद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालय स्थापित किये जायें। प्रायोगिक विधि के अनुसार ही प्रदर्शन विद्यालय चलाये जायें और इन विद्यालयों में छात्राध्यापकों के द्वारा बतायी गयी विधियों के अनुसार ही गृह-कार्य दिये जायें क्योंकि जब छात्राध्यापक नवीन विधियों का प्रयोग इन विद्यालयों में करेंगे तभी यह सम्भव हो सकेगा कि वे भविष्य में इन विधियों की मदद से अन्य विद्यालयों में शिक्षण कर सकें। इसी प्रकार व्यवहार तथा सिद्धान्त में समन्वय स्थापित किया जा सकता है।

(6) मानवीय मूल्यों की उपेक्षा की समस्या के समाधान के लिए प्रशिक्षण महाविद्यालयों के मानदण्डों में परिवर्तन किया जाना चाहिये। प्रशिक्षणार्थियों को कार्य करने के लिए स्वतन्त्रता और सुविधा प्रदान की जाये ताकि वे स्वविवेक तथा इच्छापूर्वक कार्य कर सकें और सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन में शिक्षा के महत्त्व को समझ सके। इसके साथ-साथ सामुदायिक जीवन हेतु महत्त्वपूर्ण नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज की जानी चाहिये।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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