शिक्षाशास्त्र / Education

आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका | आर्थिक विकास में शिक्षा का योगदान

आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका

आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका | आर्थिक विकास में शिक्षा का योगदान

आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का मूल्यांकन (Evaluation of contribution of Education in Economic Development)

मुख्तयः अर्थशास्त्री आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का मूल्यांकन करने के लिए काफी समय से कोशिश कर रहे थे इसके अध्ययन से निम्न चार दृष्टिकोण उभरते हैं। (आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका)

  1. सामान्य सह-सम्बन्ध दृष्टिकोण (General correlation approach)
  2. अवशिष्ट दृष्टिकोण (View of Arrears)
  3. शिक्षा के प्रतिलाभ का दृष्टिकोण (View of Benefit of Education)
  4. जनशक्ति आवश्यकता प्रक्षेपण दृष्टिकोण (View of Manpower need Projection)
  5. सामान्य सह-सम्बन्ध दृष्टिकोण-

सरल शब्दों में यह शैक्षिक क्रिया के समस्त सूचकांक और आर्थिक क्रिया के सूचकांक में सह-सम्बन्ध स्थापित करती है। विभिन्न देशों में साक्षरता के स्तर और प्रतिव्यक्ति आय की परस्पर तुलना की जाती है, विशेष रूप से यह देखने के लिए कि कितनी साक्षरता प्रतिशत को हम ऊँची विकास दर प्राप्त करने में अपरिहार्य मान सकते हैं।

सामान्यत: यह पाया गया है कि उन समृद्ध देशों में, जहाँ प्रति व्यक्ति आय 500 डॉलर से अधिक है, साक्षरता दर 90 प्रतिशत से भी अधिक है। जबकि उन गरीब देशों में जहां प्रतिव्यक्ति आय 200 डॉलर से भी कम है, साक्षरता दर 30 प्रतिशत से भी कम है। प्रति व्यक्ति आय का साक्षरता दर की 30-40 प्रतिशत रेंज से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस दृष्टिकोण में थोड़ा परिवर्तन करके कुछ देशों, जैसे- अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस और जर्मनी में अंतकाल सूचक सहसम्बन्ध निकाला गया। एण्डसन ने इन देशों के अनुभवों की परीक्षा की और वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा की 40 प्रतिशत साक्षरता स्तर एक सीमा है जिसके नीचे कोई देश विकसित नहीं हो सकता है।

हरबिंसन और मायर्स ने मानव संसाधन विकास के कुछ और सूचक लिए। उन्होंने दूसरे और तीसरे स्तर पर नामांकन दर को कुछ और सूचकों के साथ लिया और इनकी तुलना प्रति व्यक्ति आय के स्तर से की। उन्होंने विभिन्न देशों को मानव संसाधन विकास के स्तरों से विभाजित करने की चेष्टा की।

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो दूसरे सूचक लिये गए वे हैं- सकल राष्ट्रीय विकास (GNP) का प्रतिशत हिस्सा जो शिक्षा पर व्यय किया गया और श्रमिक शक्ति का शिक्षण गुणांक।

इस दृष्टिकोण का सबसे बड़ा गुण यह तथ्य है कि इसके द्वारा उन सभी प्रयासों की तुलना सम्भव है जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए किए गये हैं विशेषकर विकासशील देशों में किए गए शिक्षण के प्रयासों को उन प्रयासों की तुलना में जो विकसित देशों ने अपने विकास के आरम्भिक चरणों में किए थे।

लेकिन इससे हमें शिक्षा और आर्थिक विकास में कारण-सम्बन्ध के विषय में कोई ज्ञान प्राप्त नहीं होता। यह प्रश्न कि, क्या शिक्षा आर्थिक विकास का कारक है’ या इसके विपरीत, एक प्रश्न ही रहे जाएगा विशेषकर इसलिए कि शिक्षा की आय-लोच बहुत अधिक है और कुछ मैक्सिको जैसे देश भी है जो साक्षरता में बहुत बदलाव न आने पर भी तेजी से विकसित हो रहे हैं।

  1. अवशिष्ट दृष्टिकोण (View of Arrears)-

यह दृष्टिकोण मानव संसाधन में निवेश में बढ़ती हुई रुचि के लिए उत्तरदायी है और विशेषकर शिक्षा पर हुए खर्च को एक निवेश के रूप में मानने के लिए आर्थिक विकास निकालने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वास्तव में आर्थिक विकास के स्रोतों का यथा सम्भव मात्रा में पूँजी तथा श्रम जैसे मानवीय आगतों में पहचाना जा सकता है। वह अवशिष्ट जिनकी व्याख्या न हो सके, अवशिष्ट आगत जैसे शिक्षा और तकनीकी उन्नति के कारण माने जाते हैं। प्रसिद्ध प्रो. के. वी. बुधौड़ी ने लिखा है कि-

श्रम लागत की एक आगत श्रृंखला कार्य-घंटों और इसी प्रकार पूँजी के आधार पर बनाई जाती है। इस आगतों की संकलित बढ़ी दर की तुलना संकलित निर्गत की बढ़ी दर से की जाती है। इस प्रकार एक में से दूसरे के घटाने से हमें अवशिष्ट के योगदान का माप मिल जाता है। अमरीका में सन् 1889-1957 के बीच आगत सूचक में औसतन् 1.9 प्रतिशत और निर्गत सूचक में 3.5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि पाई गई और अवशिष्ट के कारण वार्षिक वृद्धि 1.6 प्रतिशत बची। इस प्रकार निर्गत की कुल बढ़त 46 प्रतिशत अवशिष्ट कहा जाता है। भारतीय शिक्षा अर्थशास्त्रियों के अनुसार बढ़त का यह प्रतिशत 37.6 अवशिष्ट रूप में जाना जाता है।

इसी प्रकार राबर्ट सोलो ने उत्पादन फलन के स्वरूप की स्पष्ट धारणाएँ बनाई। उन्होंने रेखीय क्रिया के सन्दर्भ में इस मान्यता से, तकनीकी बदलाव तटस्थ हैं, अवशिष्ट 10 प्रतिशत पाया। अमरीका के डेनिसन ने अमेरिका के आर्थिक विकास के स्रोतो को पहचानने की कोशिश की और उन्होंने ज्ञान में उन्नति के प्रभावं का आकलन अन्य सभी आगतों से बढ़ी वृद्धि दर को सामान्य रूप से घटाकर किया। अमरीका में 1929 से 1957 ई. के बीच हुए कुल विकास का 23 प्रतिशत शिक्षा की वर्धित मात्रा के कारण 20 प्रतिशत उन्नत ज्ञान के कारण, जबकि 15 प्रतिशत की बढ़त पूँजी स्टाक के कारण थी।

अमरीकन डेनिसन ने उपरोक्त परिणामों तक पहुँचने के लिए कई मान्यताएँ बनाई आय वितरण के सीमान्त उत्पादता सिद्धान्त विशेषकर बहुत महत्वपूर्ण हैं और साथ ही प्रतियोगिता, स्थानापत्ति-लोच और समानुपातिक प्रतिफल की माप भी (Constant Return to Scale) आर्थिक सिद्धान्त में आय वितरण के सीमान्त स्थानापत्ति लोच की बहुत आलोचना की गई और इसलिए जो भी परिणाम इस सिद्धान्त के आवार पर मिले वे पर्याप्त सीमा तक संदिग्ध हैं। लेकिन कुछ खण्डों ने इस बात की ओर संकेत दिए है। कि लधु और बड़े स्तर पर किए गये कुछ अध्ययनों के अंश में और उनके उत्पादन योगदान में एक सहसम्बन्ध बताया है और इसलिए सीमान्त स्थानापत्ति सिद्धान्त का प्रयोग न्यायिक है।

  1. शिक्षा के प्रतिलाभ का दृष्टिकोण (View of Benefit of Education)-

इसमे शिक्षा के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रतिलाभ का मापन किया जाता है। शिक्षित व्यक्ति की आजीवन आय की तुलना उस व्यक्ति की आय से की जाती है जिसने कोई शिक्षा नहीं ग्रहण की। इस दृष्टिकोण में बहुत-सी विभिन्नताएँ हैं। बहुत से देशों में आन्तरिक प्रतिलाभ की दर निकालने के लिए बहुत से अध्ययन हुए हैं। शिक्षा में निवेश से होने वाली प्रतिलाभ दर ऊँची होती है अर्थात् आर्थिक प्रतिलाभ शिक्षा की लागत से अधिक होती हैं। यह सच पूरे समाज और उस प्रत्येक व्यक्ति पर जो, अपनी शिक्षा के लिए अपने में निवेश करता है, लागू होता है। परन्तु वास्तविक रूप से-

इस स्थिति के सन्दर्भ में समीक्षा करने के लिए शुल्ज ने अमरीका में 1900-56 ई. के बीच वास्तविक संसाधनों की समुचित लागत निकालने के लिए एक तकनीक बनाई। ऐसा करते समय उन्होंने उन विद्यार्थियों की वंचित आय की संकल्पना की जो शिक्षा धारा में थे। विकल्प लागत संकल्पना का विस्तार फिर हंसन ने किया। 1947 ई. में इस बात का ज्ञान हुआ कि शिक्षा में वह निवेश जो एक प्रथम कक्षा के व्यक्ति को माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने में सहायक है, औसतन 13.6 प्रतिशत प्रतिफल देता है। कॉलेज में 4 वर्षों में जो निवेश होता है उससे 12.1 प्रतिशत का प्रतिलाभ मिलता है। व्यक्तिगत आर्थिक प्रतिलाभ ज्यादा प्रभावशाली थे उदाहरणतया 1950 ई. में प्रारमिभक कक्षाओं का प्रत्येक व्यक्ति अपनी उस निजी निधि पर 25.6 प्रतिशत की उम्मीद कर सकता है जो उसने माध्यमिक शिक्षा पाने के लिए खर्च की है और 18.2 प्रतिशत उस निजी निधि से जो उसने कॉलेज से स्नातक होने के लिए खर्च की है।

  1. जनशक्ति आवश्यकता प्रक्षेपण दृष्टिकोण (View of Manpower need Projection)-

जनशक्ति आवश्यकता प्रक्षेपण का उद्देश्य है शिक्षण योजनाएँ बनाने के लिए उत्तरदायी लोगों को भविष्य में अर्थव्यवस्था की जरूरतों के लिए विभिन्न प्रशिक्षण प्राप्त जनशक्ति की सम्भावित प्रक्षेपण का ब्यौरा देना। यह प्रशिक्षण लोगों के विस्तृत समाहार के रूप में हो सकता है या विशिष्ट व्यावसायिक श्रेणी के रूप में।

जनशक्ति प्रक्षेपण के लिए कई विधियाँ प्रयुक्त की गई हैं।

(1) नियोक्ताओं से उनकी भविष्य की कुछ वर्षों में होने वाली जनशक्ति की आवश्यकताओं को विशेषकर, प्रशिक्षण के हिसाब से पूछा गया और फिर सभी की आवश्यकताओं का योग निकाला गया।

(2) वर्तमान शिक्षित जनशक्ति के कुल रोजगार में अनुपात का जनांकिकीय सूचना के आधार पर भविष्य में प्रक्षेपण किया गया।

(3) उपलिखित तर्कों को पिछली जनशक्ति उपयोग प्रवृत्तियों के मध्य नजर रखकर परिष्कृत किया गया।

(4) नये विकासशील देशों की जनशक्ति की आवश्यकताओं का प्रक्षेपण करने के लिए उन देशों का कुल जनशक्ति और कुल श्रम शक्ति का अनुपात देखा गया जो आर्थिक विकास के उन्नत चरण पर थे।

इस सामान्य दृष्टिकोण का आकर्षण यह है कि यह निर्णय लेने के लिए सुनिश्ति निर्देशन देती है। इस दृष्टिकोण का नकारात्मक पहलू यह है कि आज जितने भी जनशक्ति प्रक्षेपण हुए हैं। वह सभी घटनाओं की तीव्रता के कारण नकारे गये हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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