वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अनुवाद का महत्व | रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद का महत्व
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अनुवाद का महत्व | रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद का महत्व
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अनुवाद का महत्व
‘भूमण्डलीकरण‘, ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ का ताजा संस्करण है लेकिन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एक भारतीय अवधारणा है जो मानवता पर आधारित है जबकि भूमण्डलीय का मानवता से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह पूरी तरह अर्थ पर अवलम्बित परिकल्पना है। एक तरफ कहाँ दया, करुणा, प्रेम, सहानुभूति व त्याग पर आधारित विश्व कल्याण की कामना है तो दूसरी तरफ व्यापार व्यवसाय केन्द्रित विशुद्ध आर्थिक अवधारणा है। एक तरफ कहाँ पूरी दुनिया परिवार की तरह है जिसमें हर किसी के लिए हदय में स्थान है तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लो की भावना के साथ संसार को बाजार के रूप में तब्दील करके मनुष्य को विक्रेता और उपभोक्ता के रूप में बदल देना है। एक समय था जब स्वतंत्रता करके मनुष्य का विक्रेता और उपभोक्ता के रूप में बदल देना है। एक समय था जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों सहित पूरे देश ने विदेशी वसों और वस्तुओं की होली जलाकर खादी और स्वदेशी का नारा लगाकर विदेशियों को खदेड़ दिया था लेकिन आज स्थिति यह है कि हमारे नेता लोग लाल जाजिम बिछाकर उनके लिए पलक-पावड़े फैलाये हुए उनका स्वागत करने को आतुर दिखायी देते हैं, उसी का कुपरिणाम है कि भारत का बाजार विकसित देशों के माल से अटा पड़ा है। भूमण्डलीकरण केवल हमारी अर्थव्यवस्था को ही प्रभावित नहीं कर रहा, अपितु हमारी पूरी जीवन-पद्धति को बदल रहा है, रहन-सहन के तरीके को बदल रहा है, हमारे सोच को बदल रहा है। हमारी संस्कृति और सभ्यता सहित हमारे साहित्य और भाषा को भी बदल रहा है
लेकिन असल सवाल है कि भूमण्डलीकरण का अनुवाद से क्या सम्बन्ध है यह तो पर्वविदित है कि भूमण्डलीकरण की भाषा हिन्दी नहीं, अंग्रेजी है। यानी इस समय हिन्दी ही नहीं, अंग्रेजी के अलावा दुनिया में जितनी भाषाएँ हैं, सभी के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बाये बाजू के मशहूर लेखक प्रो. राजेन्द्र कुमार का मानना है कि भूमण्डलीकरण को सीधा सम्बन्ध क्योंकि व्यापार से है, इसलिए इस दौर में सिर्फ उन विषयों की उपयोगितास रह जायेगी जो अर्थाधारित हैं, जो व्यवसाय और व्यापार बढ़ाने का उपक्रम करते हैं। यानी सबसे बड़ा संकट साहित्य के ऊपर है। अर्थात् जो सम्बन्धों की बात करता है, संवेदनाओं की बात करता है, इंसानियत की बात करता है, उसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सिर्फ उन्हीं विषयों की पूछ रह जाएगी जो व्यापार की बात करेंगे। अंग्रेजी क्योंकि भूमण्डलीकरण की भाषा है, उसी का महत्त्व बढ़ने वाला है, इसलिए दुनिया भर का ऐसा साहित्य जिसका व्यवसाय या व्यापार बढ़ाने से ताल्लुक होगा, अंग्रजी में अनुदित होगा, बाकी व्यवसायेतर साहित्य का न तो कोई मतलब होगा और न किसी अन्य भाषा का। भूमण्डलीकरण से पैदा यह सबसे बड़ा संकट होगा। इसलिए राजेन्द्र जी का सुझाव है कि इस संकट से उबरने के लिए दुनियाभर के साहित्यकारों को आगे आना चाहिए और साहित्य के स्वरूप पर विचार करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो भूमण्डलीकरण मौजूद रहेगा जिसका ताल्लुक सिर्फ व्यापार से होगा, व्यवसाय से होगा, तकनीक से होगा नहीं होगा तो हमारी संवेदनाओं से, भावनों से और इंसानियत से।
रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद का महत्व
ग्लोबलाइजेशन के दौर में एक भाषा से दूसरी भाषा में सूचनाओं एवं जरूरत की सामग्री को रूपान्तरित करने वाले लोगों के लिए रोज़गार की अपार सम्भावनाएं हैं। क्षेत्रीय व विदेशी भाषाओं में लिखा जाने वाला साहित्य हो या पत्र-पत्रिकाएँ यदि आप वे भाषाएँ अच्छी तरह जानते हैं तो बतौर अनुवादक आप रोजी-रोटी कमा सकते हैं। आप चाहे तो अनुवाद के भरोसे कोई सरकारी नौकरी भी पा सकते हैं या किसी प्रकाशन-प्रतिष्ठान से अनुबन्ध कर घर बैठे कमाई कर सकते हैं। लेकिन अनुवादक बनना आसान नहीं है। यह जरूरी नहीं कि आप अनुवादक बनने के लिए कोई कोर्स ही करें, अध्यवसाय से भी यह कार्य संभव है लेकिन प्रशिक्षण के कारण अनुवाद-कला की बारीकियों और उसके तकनीकी पहलुओं से वाकिफ हो सकते हैं। अच्छा अनुवादक बनने के लिए कम से कम उन दो भाषाओं में महारत हासिल होना चाहिए। जिसमें अनुवाद करना है यानी लक्ष्य और स्त्रोत दोनों भाषाओं पर कमाण्ड होना चाहिए।
जहाँ तक रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद की भूमिका का सवाल है तो विभिन्न सरकारी व निजी संस्थानों, कार्यालयों, बैंको और गैरसरकारी संगठनों में अनुवादक के तौर पर नौकरी की संभावनाएँ दिखायी देती हैं। इसके अलावा केन्द्र व राज्य सरकारों के सचिवालयों या मंत्रालयों सहित आकाश वाणी, पत्रकारिता, फिल्म, साहित्य, प्रकाशन-प्रतिष्ठान एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय वाले अनेक संस्थान हैं। जहाँ अनुवादकों की नियुत्तियाँ होती हैं। सरकारी नौकरियों में अनुवादकों का मूल वेतन छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के पहले तक 5000 से 14000 तक रहा है। अन्य भत्ते और सुविधाएँ वही है।
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