कम्पनी संचालकों के दायित्व | कम्पनी संचालकों के सापराध दायित्व | Responsibilities of Operators in Hindi | Corporate liability of company directors in Hindi

कम्पनी संचालकों के दायित्व | कम्पनी संचालकों के सापराध दायित्व | Responsibilities of company Operators in Hindi | Corporate liability of company directors in Hindi
कम्पनी संचालकों के लिए दायित्व
निम्न परिस्थितियों में संचालक कम्पनी के प्रति उत्तरदायी होते हैं-
- लापरवाही के लिए दायित्व- संचालकों को अपने कार्यों का निष्पादन सावधानी से एवं कम्पनी के अधिकतम हित में करना चाहिए। यदि कोई संचालक अपने कर्त्तव्यों का पालन करने अथवा अपने अधिकारों का प्रयोग करने में किसी प्रकार की असावधानी करता है या लापरवाही करता है तथा उसकी असावधानी अथवा लापरवाही के कारण कम्पनी को कोई क्षति होती है, तो ऐसे संचालक कम्पनी की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। सिटी इक्वीटेबल फायर इन्स्योरेन्स कम्पनी, 1925 के मामले में यह निर्णय दिया गया था कि यदि कोई संचालक अपने कर्त्तव्यों का पालन करने में असफल रहता है तो वह लापरवाही के लिए दोषी होता है। कम्पनी के संचालक उनकी साधारण लापरवाही के लिए कम्पनी के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यदि किसी कम्पनी के अन्तर्नियम में संचालकों को उसके लापरवाही के दायित्व से मुक्त करने की व्यवस्था की गयी है तो ऐसे नियम व्यर्थ तथा प्रभावशून्य होंगे।
- प्रन्यास भंग के लिए दायित्व- संचालक कम्पनी के प्रन्यासी की तरह कार्य करते हैं। अतः इनको प्रन्यासी की तरह कम्पनी के हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। यदि कम्पनी के किसी संचालक ने प्रन्यास भंग किया है तथा ऐसे प्रन्यास भंग के कारण कम्पनी को कोई हानि सहन करनी पड़ती है, तो ऐसा संचालक कम्पनी की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होता है। फ्लिटक्राफ्ट्स के मामले में दिये गये निर्णय के अनुसार यदि कम्पनी के संचालकों द्वारा पूँजी में से लाभांश का भुगतान किया जाता है तो वे प्रन्यास भंग के लिए कम्पनी के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- अनधिकृत कार्यों के लिए दायित्व- कम्पनी के संचालकों को अपने अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कार्य करना चाहिए। यदि संचालकों द्वारा अपने अथवा कम्पनी के अधिकारों के बाहर कोई कार्य किया जाता है तथा इस प्रकार के कार्यों के कारण कम्पनी को कोई हानि सहन करनी पड़ती है तो ऐसी हानि की क्षतिपूर्ति के लिए संचालक कम्पनी के प्रति उत्तरदायी होते हैं। उदाहरणार्थ, कम्पनी के अंशों का क्रय करना, पूँजी में लाभांश का वितरण करना अथवा निर्धारित दर से अधिक दर पर अभिगोपन के लिए कमीशन देना आदि कार्य संचालकों के अधिकारों के बाहर कार्यों के अन्तर्गत आते हैं। परन्तु कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत संचालक अपने को दायित्व से बचा सकते हैं। संरक्षण प्राप्त करने के लिए संचालक को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि उसने सत्यता, ईमानदारी तथा न्यायपूर्वक कार्य किया है तथा वह निर्दोष है। यदि न्यायालय इस तथ्य से संतुष्ट हो जाता है कि संचालकों ने सत्यता एवं ईमानदारी से तथा उचित रूप से कार्य किया है तो न्यायालय ऐसे संचालकों को दायित्व से मुक्त कर सकता है।
- कर्त्तव्य भंग के लिए दायित्व- संचालक अपने कर्तव्य भंग करने के लिए भी कम्पनी के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यदि कोई संचालक अपने कर्तव्यों का उचित प्रकार पालन नहीं करता है तथा ऐसे कर्त्तव्य भंग के कारण कम्पनी को हानि उठानी पड़ती है तो वह हानि की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होता है। ‘विल्सन विवाद’ 1972 के निर्णय के अनुसार, यदि कम्पनी के संचालकों द्वारा किसी अवयस्क को जान-बूझकर अंशों का आबंटन कर दिया जाता है तो वे कर्तव्य भंग के दोषी होते हैं। इसी प्रकार यदि कम्पनी के संचालक कोई रिश्वत या अनुचित धनराशि प्राप्त करते हैं तो ‘पियरखन मामले’ 1870 में दिये गये निर्णय के अनुसार कर्त्तव्य भंग के दोषी होते हैं। बिना न्यूनतम अभिदान राशि प्राप्त किये अंशों का आबंटन करना, कपट या अनुचित रूप से व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त करना तथा संचालकों द्वारा औपचारिकताओं को पूरा किये बिना व्यापार प्रारम्भ करना आदि कार्य संचालकों के कर्तव्य भंग के अन्तर्गत आते हैं।
- कपट के लिए दायित्व- यदि कोई संचालक जान-बूझकर त्रुटि अथवा कर्त्तव्य भंग करता है अथवा अन्य कोई कपटपूर्ण कार्य करता है तो ऐसे कार्यों के कारण कम्पनी को हुई हानि की क्षतिपूर्ति करने के लिए वह उत्तरदायी होता है। कपटपूर्ण विवरण के साथ प्रविवरण निर्गमन करने पर सम्बन्धित संचालक कम्पनी तथा बाहरी व्यक्तियों की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होता है। यदि कम्पनी के समापन के समय न्यायालय को यह पता लग जाता है कि संचालकों की इच्छा से कम्पनी कपटपूर्ण कार्य कर रही थी अथवा कम्पनी ने कपटपूर्ण कार्य किये थे तो इसके लिये संचालकों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
कम्पनी संचालकों के सापराध दायित्व
संचालकों का सापराध दायित्व- कम्पनी विधान के कुछ व्यवस्थाओं का पूर्णतः पालन नहीं करना अपराध माना गया है। विभिन्न धाराओं में सापराध दायित्व का विवेचन किया गया है। सापराध दायित्व की दशा में दोषी संचालकों को अर्थदण्ड के साथ कारावास की सजा भी दी जा सकती है। कम्पनी विधान में कई स्थानों पर संचालकों द्वारा की जाने वाली त्रुटियों, भूल एवं लापरवाही के लिए संचालक को दण्डित करने की व्यवस्था की गयी है, जिनमें मुख्य निम्न हैं—
(i) प्रविवरण के द्वारा नियमों के विरुद्ध धनराशि जमा करने हेतु आवेदन देना- 7 वर्ष की सजा एवं कम से कम ₹. 25 लाख का आर्थिक दण्ड।
(ii) गलत विज्ञापन से धनराशि को एकत्रित करना – 3 वर्ष की सजा और/अथवा रु. 50,000 का आर्थिक दण्ड।
(iii) आवेदन पर प्राप्त आधिक्य को वापस न करने पर – 1 वर्ष की सजा एवं न्यूनतम आर्थिक दण्ड ₹ 5 लाख तथा अधिकतम ₹ 50 लाख।
(iv) लाभांश के विवरण में गलती- 2 वर्ष की सजा एवं कम से कम र. 1000 प्रतिदिन के हिसाब से आर्थिक दण्ड।
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