निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणा एवं परिभाषा | पेशेवर प्रबन्ध की प्रकृति

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणा एवं परिभाषा | पेशेवर प्रबन्ध की प्रकृति

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणा एवं परिभाषा

(Concept and definition of professional management in Hindi)

आधुनिक प्रबन्धक प्रबन्ध को एक पेशा मानते हैं। अमेरिकन प्रबन्ध एसोसिएशन के अनुसार, “प्रबन्ध एक पेशा है और उसी रूप में आज इसका विकास हो रहा है।” विश्व के लगभग सभी विकसित राष्ट्रों (जैसे—अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी आदि) ने प्रबन्ध को एक पेशे के रूप में स्वीकार किया है। हमारे देश में भी वर्तमान में पूंजीपति प्रबन्धकों का स्थान पेशेवर प्रबन्धकों ने ग्रहण करना आरम्भ कर दिया है। प्रबन्ध का शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिनमें प्रतिवर्ष हजारों पेशेवर प्रबन्धक तैयार होकर निकल रहे हैं। इस प्रकार प्रबन्ध तेजी से एक कैरियर (Career) या पेशा बनता जा रहा है।

पेशेवर प्रबन्ध (Professional management) की प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:

  1. नेतृत्व-अभिमुखी परिभाषाएँ (Leadership-oriented Definitions)- पेशेवर प्रवन्ध को नेतृत्वकारी शक्ति कहा गया है जो संस्था में कार्यरत विभिन्न व्यक्तियों को नेतृत्व प्रदान करता है। इस विचार का समर्थन करने वाली प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
  2. आर.सी. डेविस (R.C. Davis) के अनुसार, “पेशेवर प्रबन्ध कहीं पर भी कार्यकारी नेतृत्व का कार्य है, यह संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इसकी क्रियाओं का नियोजन, संगठन तथा नियंत्रण करने का कार्य है।”
  3. डोनाल्ड जे. क्लग (Donald J. Clough) के अनुसार, “पेशेवर प्रबन्ध निर्णयन एवं नेतृत्व की कला एवं विज्ञान है।”
  4. पर्यावरण प्रधान (अभिमुखी) परिभाषाएँ (Environment-oriented Definitions)- समय एवं परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण प्रबन्ध प्रक्रिया की प्रकृति में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। इसके परिणामस्वरूप प्रबन्ध प्रक्रिया पर्यावरण-अभिमुखी बनती जा रही है। इस विचार को स्वीकार करने वाले प्रबन्ध विशेषज्ञों द्वारा पेशेवर प्रबन्ध की दी गयी प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
  5. कूण्ट्ज एवं व्हीरिच (Koontz and Weihrich) के अनुसार, “पेशेवर प्रबन्ध पर्यावरण के निर्माण एवं अनुरक्षण की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति समूहों में कार्य करते हुए चुने हुए लक्ष्यों को दक्षतापूर्वक प्राप्त करते हैं।”
  6. रॉबर्ट अलबानीज (Robert Albanese) के अनुसार, “पेशेवर प्रबन्ध वातावरणों के निर्माण एवं अनुरक्षण का कार्य है जिसमे व्यक्ति लक्ष्यों को दक्षतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से पूरा कर सकें।”

इस विचार के अनुसार प्रबन्धक को सम्पूर्ण प्रबन्ध प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण एवं उसमें होने वाले परिवर्तनों की ओर विशेष रूप से ध्यान देना होता है। वर्तमान समय में यह विचार दिनोंदिन लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।

निष्कर्ष- पेशेवर प्रबन्ध की उपयुक्त परिभाषा

विभिन्न प्रबन्ध विद्वानों द्वारा दी गयी ‘प्रबन्ध’ की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पेशेवर प्रबन्ध से आशय उस कला से है जिसके द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से उद्यम की निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित किया जाता है। इसके अतिरिक्त पेशेवर प्रबन्ध का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से होता है जिनका निर्देशन एवं नियंत्रण करके सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इस प्रकार पेशेवर प्रबन्ध निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अन्य लोगों के कार्यों का मार्गदर्शन, नेतृत्व एवं नियंत्रण करता है। सरल शब्दों में, पेशेवर प्रबन्ध एक कलात्मक एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय सामूहिक प्रयासों का नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियंत्रण पर्यावरण अपेक्षाओं के अनुरूप दक्षतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से करती है।”

पेशेवर प्रबन्ध की प्रकृति

(Nature of Professional Management in Hindi)

पेशेवर प्रबन्ध की प्रकृति को निम्नलिखित तीन अंगों में बाँटा जा सकता है:

(i) पेशेवर प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है (Professional Management is the Development of People) – सामान्यतः व्यवसाय के साधनों को निम्न दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-प्रथम, मानवीय साधन एवं द्वितीय, भौतिक साधन। मानवीय साधन सजीव है और इसमें हम अधिकारियों व कर्मचारियों तथा उनके विकास को सम्मिलित करते हैं, जबकि भौतिक साधन निर्जीव हैं और इसमें माल, मशीन, पूँजी, भूमि व विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है। यह सही है कि व्यवसाय की सफलता के लिए दोनों ही प्रकार के इन साधनों का महत्व है परन्तु फिर भी मानवीय साधन का विशेष महत्व है क्योंकि मानव ही इन भौतिक साधनों का निर्माता एवं उपयोगकर्ता है। अतः यदि मानव का विकास होता है तो भौतिक साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग सम्भव है। सही कहा गया है कि साधन मानव के लिए होते हैं, न कि मानव साधन के लिए।

यह उल्लेखनीय है कि मानवीय साधन जितने अधिक विकसित होंगे, वस्तुओं का निर्देशन भी उतना ही अधिक विकसित होगा। इस प्रकार एप्पले ने प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के विकास को और परोक्ष रूप से भौतिक साधनों के निर्देशन को प्रबन्ध की संज्ञा दी है। अतएव उनकी परिभाषा पेशेवराना प्रबन्ध को मानवीय आधार प्रदान करती है।

एक अमेरिकन कॉरपोरेशन के अध्यक्ष ने संगठन में मानव के महत्व को स्पष्ट करते हुए ठीक ही कहा है कि “हम मोटरें, हवाई जहाज, फ्रिज, रेडियो या जूतों के फीते नहीं बनाते, हम बनाते हैं मनुष्य और मनुष्य इन वस्तुओं का निर्माण करते हैं।”

मैकग्रेगर (McGregor) के विचार भी एप्पले के विचार के समान ही हैं। उनके अनुसार, यदि प्रबन्ध कार्यरत कर्मचारियों को ऐसा वातावरण प्रदान करता है जिसमें वे अपनी सम्पूर्ण क्षमता एवं प्रतिभा को कार्य पर उड़ेल सकें तो उनके लिए कार्य उतना ही प्राकृतिक हो जायेगा जितना कि खेल अथवा विश्राम। वे संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्वयं पहल करेंगे तथा नियंत्रित होंगे। अतः यह कहना ठीक ही है कि पेशेवर प्रबन्ध मनुष्यों का विकास है।

संक्षेप में पेशेवर प्रबन्ध को व्यक्तियों का विकास कहा गया है क्योंकि –

  1. संस्था की सफलता मानवीय साधनों की कुलशता पर निर्भर है।
  2. मानव न केवल उत्पादन का घटक है वरन् उत्पादन का लक्ष्य भी है। अतः वह (व्यक्ति) प्रबन्ध का केन्द्र बिन्दु है। इसलिए तो कहा गया है कि विश्व के समस्त साधन व्यक्ति के लिए हैं, व्यक्ति उनके लिए नहीं।
  3. व्यक्ति का विकास प्रबन्धकीय समस्याओं की कुंजी है और उसमें विकास की असीमित सम्भावनाएँ छुपी हुई है।
  4. संतुष्ट व्यक्ति (कर्मचारी संस्था की सबसे बड़ी सम्पत्ति है।
  5. व्यक्ति के विकास पर ही कार्य-संस्कृति का निर्माण निर्भर करता है।”
  6. व्यक्ति सजीव है और उसे अभिप्रेरित करके ही उससे कार्य लिया जा सकता है।

(ii) पेशेवर प्रवन्ध वस्तुओं का निर्देशन नहीं है (Professional Management is not the Direction of Things)– एप्पले की परिभाषा से यह अर्थ निकालता गलत होगा कि प्रबन्ध में वस्तुओं के निर्देशन को सम्मिलित नहीं किया जाता। वस्तुतः स्थिति यह है कि व्यक्तियों का विकास वस्तुओं (भौतिक साधनों) के निर्देश, नियंत्रण एवं उपयोग को स्वतः ही सम्मिलित करता है। संस्था में यदि व्यक्तियों का विकास किया जाता है तो उत्पादन कार्य पूर्ण क्षमता व कुशलता से किया जा सकेगा; पूँजी व माल की बर्बादी को रोका जा सकेगा और भौतिक साधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए लक्ष्यों को प्राप्ति को सम्भव बनाया जा सकेगा। इस प्रकार प्रबन्ध प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों का विकास और परोक्ष रूप से वस्तुओं का निर्देशन है।

एप्पले ने सम्भवतः निम्नलिखित कारणों से प्रबन्ध को वस्तुओं का निर्देशन नहीं माना—

  1. वस्तुएँ अथवा भौतिक साधन निर्जीव घटक हैं। इनके द्वारा स्वयं लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है। निर्देशित एवं विकसित मानवीय साधन ही लक्ष्यों की प्राप्ति को सम्भव बना सकते हैं।
  2. समस्त व्यवस्थाओं का सूत्रधार मानव है। वह प्रतिस्थापन साधन है और एकमात्र साध्य है। अतः प्रबन्ध के लिए मानव प्रमुख है और वस्तुएँ (साधन) गौण।
  3. प्रबन्ध समस्याओं की जटिलता वस्तुओं की तुलना में मानवीय साधनों से अपेक्षाकृत अधिक है।

(iii) पेशेवर प्रबन्ध सेविवर्गीय प्रशासन है (Professional Management is Personnal Administration)- एप्पले की परिभाषा के अन्त में कहा गया है कि ‘पेशेवर प्रबन्ध सेविवर्गीय प्रशासन है’ अथवा ‘सेविवर्गीय प्रशासन ही प्रबन्ध है’। ऐसा कहकर एप्पले ने सेविवर्गीय प्रबन्ध के कार्यों को ही प्रबन्ध के कार्यों में सम्मिलित करने पर बल दिया है। इस प्रकार प्रबन्ध का महत्वपूर्ण कार्य कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, पदोन्नति, स्थानान्तरण कार्य मूल्यांकन, कर्मचारी मार्गदर्शन व नेतृत्व, कर्मचारी प्रबन्ध सहभागिता, कर्मचारियों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापना आदि हैं। ये कार्य सेविवर्गीय प्रशासन के नाम से जाने जाते हैं और सर्वव्यापी हैं। प्रबन्ध क्षेत्र में इन कार्यों की सार्वभौमिकता के कारण सम्भवतः एप्पले ने प्रबन्ध को कर्मचारी प्रशासन की संज्ञा दी।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्ध व्यक्तियों (मानवीय संसाधन) का निर्देश करता है और व्यक्ति भौतिक साधनों के सर्वोत्तम उपयोग द्वारा उत्पादकता को बढ़ाते हैं और लक्ष्यों की प्राप्ति को सम्भव बनाते हैं।

अन्त में, निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एप्पले की प्रबन्ध की उपर्युक्त परिभाषा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह सही है कि प्रबन्ध के उद्देश्यों की प्राप्ति व्यक्तियों के द्वारा ही की जा सकती है। जब भी कोई निर्णय संयंत्र, उपकरण, कच्चा माल, वित्त, विपणन, उत्पादन आदि के सम्बन्ध में लेना हो तो उसके लेने एवं क्रियान्वयन में व्यक्तियों का सक्रिय योगदान लेना चाहिए। भौतिक साधनों की प्रभावशीलता एवं कार्यकुशलता मानवीय संसाधनों के विकास पर निर्भर करती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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